कोई साल भर पहले जमीनी कार्य और जनता में अलख जगाने के बाद बाबा रामदेव ने काली सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की तिथि की घोषणा जून २०११ निर्धारित कर दी तो महीनो पहले से जनता उस दिन का इन्तजार बेसब्री से करने लगी, क्योकि जनता सरकार के काली करतूतों से अजीज आ चुकी थी. परेशांन थी, हैरान थी, उसको चाहिए था तो किसी का नेतृत्व, ये कमी बाबा राम देव ने पूरी कर दी तिथि घोषणा के साथ. चुकी बाबा रामदेव जमीनी तौर से कई वर्षों से हर प्रकार के देश सेवा में लगे है, चाहे वो स्वदेशी हो, योग हो, आयुर्वेद हो, या व्यापार में शिर्षता हो, इसलिए जनता का भरोसा बाबा के ऊपर निश्चय ही था .
अब देखिये घटना क्रम कितनी तेजी से बदलता है.
बाबा के तिथि घोषणा के बाद है एक ऐसे गुमनाम शक्श को रातो रात भारत की जनता का मसीहा बनाया जाता है जिसको पिछली सुबह तक कोई जानता तक न था, जो शायद किसी महारष्ट्र के अनाम गाँव से था... वास्तव मैंने खुद भी इनका नाम कभी नहीं सुना था, और मेरी ही तह करोड़ोयुवावों ने भी, जो महारष्ट्र से नहीं थे.
एक सभा बुलाई, बाबा राम देव को बुलाया, बाबा ने उसका परिचय अन्ना हजारे के नाम से इस देश को कराया. शायद ये सब पहले से सोची समझी योजना थी (अभी मै शाजिश नहीं कह सकता). शायद इसके पीछे केजरीवाल का दिमाग रहा हो.. केजरीवाल का इतिहास खंगाला जाए तो केजरीवाल वास्तव में बहुत ही महत्वाकाक्षी व्यक्ति रहें है, एक बार इनसे किसी टी वी वाले ने पूछा की अपने सरकारी नौकरी क्यों छोड़ दी, तो इनका जवाब था, यहाँ न नाम है न इज्जत, मुझे और जादा चाहिए ... यानि ये दिल मांगे मोर...
अब चुकी अन्ना सज्जन आदमी थे, सीधे थे भोले थे, अरविन्द की नजर इनपे गयी, लेकिन लांचिंग के लिए किस पैड का इस्तमाल हों ?? अरविन्द के आर टी आई लाने के बाद भी अरविन्द आम जनता में इतने लोकप्रिय न थे जितना बाबा, वास्तव में बाबा आज इस देश में किसी भी व्यक्ति से लोकप्रिय है, भारत ही नहीं वरन विदेशो में भी.. चाहे वो गूंगा प्रधान मंत्री हो या भ्रष्ट का कलंक लेने वाला राष्ट्रपति. तो अरविन्द अन्ना को खड़ा आगे कर बाबा को लांचिंग पैड बनाया, और अन्ना हजारे को लांच कराया, उस समय तक बाबा भी शायद पूरी बात नहीं समझ पाए थे, उन्होंने सोचा काम देश का है तो एक से भले दो...
बाबा के द्वारा लांचिंग के बाद अन्ना और टीम को आम जनता जानने लगी तभी आना को जंतर मन्त्र पर बिठा दिया गया, और माया से उनको भारत का हीरो, डुप्लिकेट गाँधी, और न जाने क्या क्या बता दिया गया, जनता भी खुश, की चलो अब क्रांति हो के रहेगी, उधर बाबा और इधर अन्ना.. सो जनता ने पुरे जोश वो खरोश से अन्ना का समर्थन किया, इसके कई कारन थे , पहला, वेश्यावों के को रखने वालो, ब्लू फिल्म बनाने वालो और अवैध बच्चो के पिता जी लोगो से जनता तंग आ चुकी थी... दूसरा अन्ना को बाबा रामदेव ने लांच किया था इसलिए बाबा को मानने वाले एक बड़ी संख्या अन्ना के साथ थी, तीसरा भाजपा कोंग्रेस के खिलाफ मौका ढूंढ रही थी, अब तक सभी चाहे वो संघ हो या भजपा या बाबा खुद, टीम अन्ना सरकार के विपक्ष में जोरदार ढंग से खड़े हुए जो जनता भी चाहती थी .
अब मुझे ए समझ नहीं आता की मुद्दा यदि देश का ही था, तो जून में क्यों न रख लिया बाबा के साथ ही ?? दो अलग अलग आन्दोलन क्यों ?? दोनों मिल के एक क्यों नहीं ?? इसका कारन ये था की शायद अन्ना तो मान भी जाए, लेकिन अरविन्द का छिपा हुआ एजेंडा कुछ और ही था...इसलिए इसने एक नहीं होने दिया बल्कि उलटी पुलती बयान बाजियां भी की, जो आजतक जारी है...
सरकार ने सान्तवना दी अप्रैल खत्म हुआ इस आन्दोलन से अन्ना टीम के साथ बाबा वादी भी खुश संघ भी खुश की चलो परिवर्तन होने की रह में पहला भूख हड़ताल सफल रहा, लेकिन इनमे से कोई एक था जिसके चहरे पे कुटिल सोच के साथ कुटिल मुस्कान थी, और वो था अरविन्द.
अब जनता की नजर थी बहु प्रतीक्षित बाबा के विशाल आन्दोलन पर जो बाबा ने जमीन पर काम कर के खड़ा किया बजाय की सिर्फ भाषण बाजी और सिर्फ अनशन के. सरकार समझ गयी की जितने भी उसने ब्लू से ले के ब्लैक फिल्म बनाये जनता के सामने एक एक कर के सामने आ रहे हैं, और जनता अबकी इनकी रेटिंग कर देगी... सो बाबा को फेल करने के लिए सारी तैयारिया की गयी...
बाबा का आन्दोलन हुआ, और उम्मीद से कई गुना जादा समर्थन मिला, सरकार के हाथ पाँव फूल गए, उसी समय जनरल डायर की आत्मा ने सरकार के शरीर में प्रवेश किया, और डायर की आत्मा ने खूब उत्पात मचाया, बाबा का हल भी लाजपत राय वाला हो जाता यदि उन्हें खुद कुछ पुलिस वाले न बचा के ले हाय होते तो. ये दबाया हुआ आंदोलन भी सफल रहा, लेकिन जनता सरकार के रवैये से एक दम क्षुब्द थी, जनता की हालत हो उस इंसान की तरह हो गयी जिसका हाथ पाँव बाँध के समुन्द्र में फेंक दिया जाए, पूरी जनता बाबा का बदला लेने की ताक में थी,.
इसी समय अन्ना का दुसरा आंदोलन की घोषणा हुयी, अब जनता के हाथ पाँव की रस्सियाँ खुल चुकी थी, वो तैरने लगा, फिर से सांस और शक्ति जुटा बाबा का बदला लेने अन्ना के समर्थन में शामिल हो गया... अबकी सरकार सचेत थी, अच्छी तरह से समझती थी, की अबकी कुछ किया तो जनता का हाथ पाँव भी न बाँध पायेगी बल्कि जनता की लात खायेगी...मामला अब यही से घूमता है..यहाँ से अन्ना टीम गर्व में चूर हो जाती है और समर्थन वाले कारणों को भूलते हुए बाबा पे प्रहार होता है.. ... सरकार समझ चुकी थी की आंदोलन अहिंसक जरुर है लेकिन नपुंसक नहीं... सो चुपचाप आश्वाशन का पॅकेज दिया, और बला चलती कर दी... अन्ना का ये आंदोलन बस जनता के लिए सेफ्टी वाल्व का का काम किया जिसका दबाव बाबा ने बनाया था... यही से जनता शक की नजर से टीम अन्ना को देखने लगी , कही ये कोंग्रेस समर्थक तो नहीं ??
लेकिन जनता को एक और झटका लगा जब अन्ना को खड़ा करने वाले बाबा ही अन्ना टीम के निशाना बने.
दूसरा झटका जनता को तब लगा जब उन्होंने संघ को दूर रहने के लिए कहा, इतिहास गवाह है, चाहे वो जे पी आन्दोलन हो या गाँधी का चम्पारण, खोंग्रेस के खिलाफ सफल तभी हुआ जब उसमे राष्ट्रवाद शामिल हुआ... अब अन्ना टीम की असलियत जनता को धेरे धीरे समझ तो तो आने लगी थी लेकिन फिर भी जनता शंका में थी,
लेकिन जल्द ही बादल हट गए, कुमार विश्वाश की बाबा के ऊपर विभत्स सल्वारी कुंठा वाली टिप्पड़ियों ने मामला साफ़ कर दिया और ये बता दिया की बाबा रामदेव का बस इस्तमाल हुआ था..उसके बाद तो एक एक बाद एक हमले ने चाहे वो सिसोदिया द्वारा किये गए हो या अन्य जनता ने सुनी और मंथन किया . बाबा ने तो माफ कर दिया, लें उनके समर्थक और संघ ने ये बात गाँठ बाँध ली.. और मुंबई में हुए अनशन में अन्ना को भागने पर मजबूर कर दिया जिससे टीम अन्ना को करारा झटका लगा.. एक है जो गोलि चलने पे उसको जबरजस्ती भगाया जाता है और दूसरा जो ठण्ड की मार तक नहीं झेल पाता, जनता सब देख रही थी, सो अन्ना से उनके खुद के गृह राज्य में समझा दिया..
इसी बीच अन्ना टीम की कई कार गुअजारियां सामने आई, चाहे भूषण के जमींन का मामला हो या, प्रशांत के कश्मीर को लाग करने का बयां बाजी, जनता चक्कर खा गयी की हम इन देश द्रोहियों का साथ दे रहे हैं ?? जनता को पता चला की ये वही भूषण है जो आतंकवादियों के केस लड़ रहे हैं.. ये वही अरविन्द है जो जागरूकता तो फैलाते हैं लेकिन खुद वोट देने नहीं जाते.. ये वही किरण है जो छोटी मोटी रकम के लिए भी घोटाला कर देती है.. अब टीम अन्ना की जमीन खिसकती चली गयी..
अब अन्ना टीम को उसकी भूल में आया. उसने फिर से कुटिलता पूर्वक अन्ना को बाबा से जोडने की पुरजोर कोशिश की बाबा जुड भी गए क्योकि बाबा अन्ना टीम की विभत्स टिप्पडी से बड़ा देश को मानते थे.. और उनको पता था की उनका कार्य जमीनी है बजाय की सिर्फ भाषण बाजी और अनशन के... जैसा का टीम अन्ना का था.. .. लेकिन जनता अब भी सचेत थी, शायद वो समझ चुकी थी अन्ना बस एक मुखौटा भर है, आंदोलन का असली कारन कोंग्रेस को सहयोग करना है जिससे शायद अन्ना खुद भी अनजान हो.
आंदोलनों के बहाने जम के चंदा उगाही की गयी, जब ठीक ठाक रकम हो जाता तो घोषणा की जाती की सरकार ने हमारी बातें मान ली है, अब हम अनशन खत्म कर रहे हैं, और जब पैसे खत्म हो जाते तब घोषणा की जाती की सरकार ने धोखा किया है हम फिर से आन्दोलन करेंगे, निश्चय ही इन सब में अन्ना का कोई हाथ नहीं है, लेकिन वो बिचारे क्या करे ?? उनकी हालत भी मनमोहन से कुछ भिन्न नहीं है, मनमोहन भ्रष्ट मंत्रियों से घिरे है और अन्ना अपने कुटिल टीम से...लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है..
और अब अन्ना टीम के संजय सिंह बाबा से स्पष्टीकरण मांग रहे हैं की बाबा मोदी से क्यों मिले?? ये भी जनता देख रही है, और अरविन्द का बयांन की मोदी सांप्रदायिक है, यही नहीं भ्रष्ट भी है , ये भी जनता देख रही है ... जनता समझ चुकी है की अन्ना को अँधेरे में रख अरविन्द कोंग्रेस का पूरा साथ दे रहा है. शायद उनकी कुछ राजनितिक आकांक्षाएं भी हो.
अब निश्चय ही अब टीम अन्ना का आन्दोलन वेंटिलेटर पर है जिसकी साँसे कभी भी उखड सकती है, जनता भी समझ चुकी है उन्होंने लंगड़े घोड़े पे डाव खेला, और हार गए...
अब सबको इन्तजार है, बाबा के अगस्त क्रांति का, शायद बाबा ही अब एक मात्र विकल्प रह गए हैं..
सादर
कमल
2 comments:
आपके तर्क इस पोस्ट में कुतर्क की सीमाओं के पार चले गएँ हैं इस देश में एक ही नेत्री है जो क़ानून मानती है और उसका पालन करवाना भी .यह वही किरण बेदी है जिसने इंदिराजी की कार उठवा दी थी क्योंकि गलत जगह पार्क की गई थी .पंजाब में तो इन्हें क्रेन बेदी कहा जाने लगा था .सावन के अंधे को सब हरा ही हरा नजर आता है .रामदेव जी और अन्ना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं .और आप उस अन्ना को नहीं जानते जिससे सरकार इतना डरती है कि कोई अन्न भी कहे तो सरकार को अन्ना सुनाई देता है और वह भाग खड़ी होती है .अन्ना जी और रामदेव जी इस देश की धड़कन हैं राष्ट्र वादी शख्शियत हैं अरविन्द केजरीवाल आन्दोलन के पोस्टर बॉय हैं .
टी वी में न्यूज़ कैसे प्लांट होतीं हैं आपको शायद भाई साहब इल्म न हो .लडकी के साथ मामूली छेड़छाड़ भी हो तो टी वी टीम पैसे देकर उसे अपने कपडे फाड़ने को कहती है लडकी कहती है लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं .न्यूज़ करता इलज़ाम लगाते है अगला स्पष्टीकरण देता फिरे यही बंधू पत्रकारिता है .नारद भाई आप बचे इस गोरख धंधे से आपके बसकी सौदा नहीं है यह .मनमोहन (कृपया इसे पूडल पढ़ें )न बने किसी का .नारद ही रहें .नारायण !नारायण !नारायण !
बाकी का तो पता नहीं
पर मैने बहुत से सफेदपोशों को
सफेद टोपी लगाये हुऎ जलूसों में देखा था
कितना बदल दिया था अन्ना ने उनको
आहा आहा !
कैडबरी खाईये स्वास्थ बनाईये !
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