नारद: July 2014

Monday, July 28, 2014

भारतीय मुसलमान का एक सपना :

आज जब नींद खुली अचानक सब कुछ बदला बदला सा था, कानो में आँ आँ आँ अलाह आअ हु अकबर की मधुर ध्वनी कानो में टकराई, पर किसी मंदिर या गुरुद्वारा की बेसुरी आवाज गायब थी. ये देख कर मैंने नारा लगाया, तारा ये तकबीर अल्लाह हु अकबर, साथ ही लोटा ले के खेत की तरह तरफ निकला, देखा पड़ोस के काफ़िरो के घर खाली थे, उनके गुसलखाने में फ्रेश होने के निकला तो, अक्सर सामने वाले चबूतरे पर गुरुदयाल और पंडित जनार्दन दिख जाते थे जिनका मनहूस चेहरा देखते ही काफिराना उलटी होने लगती थी, वो आज नजर नहीं आये, ५६ देशो के भाइयों का लाख लाख शुक्र है, और साथ ही अम्मी जान की छमता का जो ५६ देशो का पर्यटन कर सकी इस नेक काम के लिए. 



थोडा आगे बड़ा, लाला राम खेलावन नजर नहीं आ रहे थे, कोई अजनबी चहरा था, मै उसके पास गया, तो पता चला ये अफगानिस्तान के अपने भाई है, आखिर यहाँ सबका हक़ है. मैंने जिज्ञाषा वश पूछ लिया की लाला कहा है, तो उसने कहा, हमने अल्लाह के दिनी ईमान के लिए सारे काफिरों का सफाया कर दिया है, हम सबके अम्मा के मेहनत से जन्मे ५६ देशओ के भाईओ ने मिलकर इस नेक काम को अंजाम दिया. लाला की ये दूकान अब मेरी है, अगल बगल देख के तुम भी किसी काफिर का घर कब्ज़ा लो . 


ये सुनकर थोडा हैरानी हुई, और ख़ुशी भी चलो ये भारत भी अब दारुल इस्लाम बन गया, हाफिज सईद जी का लाख लाख शुक्र है. अब यहाँ फ़ालतू संगीत नहीं बजेगा, गाडी घोड़े बंद, चलने के लिए चारो तरफ ऊंट ऊंट ही, प्रदुषण कम होगा, सारे फ़ालतू फल के पेड़ों को काट हर जगह खजूर खजूर ही होगा, वाह मजा आगया. अब हमें हमारा असली हक मिलेगा. 

दूध ले के घर आया तो माँ ने पतीले पे चढ़ा दिया, मुझे जल्दी से अपने दोस्तों को खबर देनी थी. जैसे ही फेसबुक लोग इन किया तो बहुत सारे कमेन्ट थे की अब काफिर नहीं रहे, मुझे भी लगा की दिल भड़ास निकाल दूँ लेकिन निकलता किसपर ? काफिर तो थे नहीं, और ये सारे देश विदेश के ५६ देशो से आये हमारे ही भाई थे. 

लोग आफ करके तैयार हुआ, घुटने के निचे तक वाला पैजामा पहन, सर पे क्रोसिया टोपी बड़े करीने से लगाई, सड़क पर आया, एक ऊंट ले के आफिस की और चल दिया. पुरे फिंजा में अल्लाह की खुसबू थी, जो काफ़िरो के जले हुए लाशो से निकल रही थी. सड़क के अगल बगल, बगदादी जी, हाफिज सईद जी इत्यादि के पोस्टर लगे थे, ये देख कर दिल गद गद हो गया. पूरा माहौल दारुल इस्लाम का था, जगह जगह मंदिरों के टूटे खंडहर, और मंदिरों में काफ़िरो और गायों की लाश कुछ भाई गायों की लाश को लाद के जा रहे थे, तो कुछ लाशो के पास ही अपने चूल्हे जला रखे थे. आफिस पंहुचा आफिस में सभी साथी खुश नजर आ रहे थे, आफिस वालो का अगला निशाना नेपाल था. यहाँ सबकी तनख्वाह १० गुना जादा कर दी गयी है, वो भी बिना कोई काम किये, काफ़िरो के घर से लुटा गया माल असवाब के बदौलत हमें कई पीढ़ी तक बिना काम किये तनख्वाह मिलेगी. सारे साथियो ने नारा ये तकबीर अल्लाह हु अकबर का एक सुर कह, नेपाल आक्रमण का खाका तैयार काने में जुट गए. थोड़े देर बाद सभी ने गाय के मांस लजीज गोश्त खाया, अल्लाह जाने ये काफिर कैसे घास फूस खाते थे. 

शाम को घर जाते समय, एक काफिरके खाली घर में बैठ कर नमाज अदा की. कोई ट्रेफिक जाम नहीं था, सड़क विभाग हर जगह रेत बिछाने के काम में लगा था, ताकि ऊँटो की गति को रफ़्तार दिया जा सके, और रेत की सड़के आसानी से हवा से एक जगह से दुसरे जगह शिफ्ट भी की जा सकती है, जिधर चाचो अलाह का नाम लो और फूंक मार दों. इससे रेतीली सड़के साफ़ रहेंगी, रेत की वजह से कोई कीचड़ नहीं होगा, वाह . सारे ऊँटों पर अलाह की फजल थी, एक दुसरे से बात कर साइड दे दिया कर रहे है, न कोई ट्रेफिक न कोई एक्सीडेंट. पार्किंग की भी कोई समस्या नहीं, एक ऊंट से दुसरे ऊंट को बाँध बिना परेशानी के पार्क कर ले रहे हैं. 

घर आया तो देखा सबकी उंट एक दुसरे ऊँटों के टांगो से बढ़ी करीने से सजी थी, वाह मजा आ गया, इतना सुकून. काफ़िरो के अविष्कारों को छोड़ने का इतना मजा होगा मुझे पता नहीं था. 
मै ऊंट को कासिम कसाई भाई के ऊंट के साथ पार्क कर घर में घुसा तो माँ ने बताया की अब सभी लोग स्वस्थ है, काफ़िरो के दवाई का भी कोई काम नहीं, हर रोग के लिए अल्लाह के कुरआन की कोई भी आयत पढ़ लो मामला फिट हो जा रहा है. 

स्कुलो की जगह अब बड़े बड़े मदरसे हो गए है, जहाँ हर चीज और समस्या का इलाज कुरआन के मार्फ़त ढूढने की रिसर्च की जा रही है. काफ़िरो को सूंघ कर पहचनाने की छमता विकसित की जा रही है. काफिरों के बिजली आविष्कार की की वजह से काफिर टी वी रेडियो चलाते थे, जिससे इस्लाम बाधित होता था, अब उनकी जगह मशालों ने ले ली है. अब तो मशालो से हम कभी कभी लुककड़ – लुकाड़ भी खेल लेते है. फ्रेश हो के बैठा, तो मस्जिद से मौलवी ने न्यूज सुनाया की की अब सारे काफिर भारत से चले गए है, अब न कोई विवाद होगा न अपराध होगा. 

इतना सुनते ही मेरे आँखों में ख़ुशी के आंसू निकल पड़े, अरे भाई इसी दिन का तो इन्तजार था हम ५६ देशो के भाईयों के लिए. 

मेरे भाई मेरे पास आके मेरे सार और गालो को सहलाने लगे, तभी अचानक नींद खुली देखा दो चार कुत्ते मेरे गाल चाट रहे है. ओह्ह ये सपना था ? :( 

सादर 

कमल कुमार सिंह. 





Saturday, July 26, 2014

क्या कोंग्रेस और केजरीवाल के काम्बो पैक है मोदी ??


कौवा चला हंस की चाल मोदी की तरह ही एक प्रसिद्द कहावत है, चुनाव से पहले जनता के लिए कौवा था कोंग्रेस और रंग बदलने वाला आपा, और कोंग्रेस के लिए कौवा थे नरेन्द्र मोदी जिन्हें लगता था की मोदी एक ऐसे कौवे हैं जो हंस का आवरण ओढ़े हुए जनता को बरगला रहे है. 
मामला जो भी हो, लेकिन जनता ने फैसला सुनाया और, और मोदी को भारी बहुमत से भारत का सिंहासन सौंपा जिसकी उम्मीद भारत की कोई पार्टी नहीं कर सकती थी.

सारी चीजों को समझने के लिए हमें सब कुछ दो भागो में बाटना पड़ेगा, 
१ . चुनाव पूर्व 
२. चुनाव बाद 

१. चुनाव पूर्व : 
ये चुनाव निश्चित ही भाजपा के नाम पर न होक मोदी के नाम पर था, और मोदी के वोटरों में दो तरह के लोग थे. 
१. कट्टर हिंदूवादी : ऐसे जो हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान का सपना बस हिंदुत्व धर्म के आधार पर रखते थे. इस श्रेणी के लोगो को लगता था था की मुस्लिम हिंदुवो के अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे है, इनके न होने पे उन्हें उनके अधिकार जादा मिल पायेंगे, जबकि वो भूल जाते थे, की अतिक्रमण मुस्लिम नहीं बल्कि सरकार उनके सधे हुए वोट बैंक के कारन खुद पीठ सहलाई थी. यही बात इस प्रकार के हिंदुवादियों को एक होकर मोदी के पक्ष में वोट करने के लिए विवश किया क्योकि इनको भी लगता था की गुजरात दंगा मोदी के इशारो पे हुआ था. 

२ .लिबरल हिन्दू : इस वर्ग में वो लोग आते हैं, जो भारत के विकास में कोंग्रेस को एक बहुत बड़ा रोड़ा मानते थे, और गाँधी परिवार को खतरनाक, क्योकि इस परिवार के रहते कोंग्रेस में ही गैर गाँधी परिवार में ढंग का नेता पैदा ही नहीं हो सकता था. जो सिर्फ और सिर्फ समानता चाहते थे, एक कानून, एक जैसा व्यवहार, एक सामान अधिकार. मुसलमानों के बिना नहीं मुसलमानों के साथ. 
कोंग्रेस ने जो तुष्टिकरण का जो गाजर घास फैलाया था, इससे ये वर्ग अजीज आ चूका था. ये वर्ग देखता था की किस तरह से मुस्लिमो की हर जायज नाजायज बात मान ली जाती है. ये वर्ग देखता था, किस तरह मुजफ्फरनगर में दंगा होने के बाद किस बेशर्मी से सिर्फ समुदाय विशेष की पूछ परख होती थी.
मोदी ने इन दोनों वर्गों साध इनके अंगुलियों को कमल के निशाँ वाले बटन की तरफ मोड़ लिया. ध्यान रहे की इस चुनाव में भी मोदी को मुसलमानों का २% वोट भी हासिल नहीं हुआ है. हाँ हिन्दू जाती जरुर इकठ्ठी हो गयी.

२. चुनाव बाद : 
अब जबकि नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन गए है, जनता जरा भी मौका दिए बिना इनको प्रधान मंत्री न मान, अलादीन का चिराग मान रही है, जो चिराग में से बहार निकले, और जो हुक्म मेरे आका कह के कोंग्रेस के ६० सालो की इकठ्ठी की गयी, तुष्टिकरण विष्ठा, घोटाले की गन्दगी, अराजकता का माहौल ठीक कर दे. जो की बिलकुल गलत है. 
लेकिन, कुछ चींजे है जो जो बिना चिराग का जिन्न बने भी जनता में विश्वाश बनाया रखा जा सकता है. लेकिन मोदी सरकार के वो भी नहीं कर पाने में देख जनता सकते है, कम से कम वो वोटर जनता जो उन्हें चिराग का जिन्न नहीं मानता. 

जो चुनाव पूर्व ये कहता था की वो किसी भी प्रकार से तुष्टिकरण नहीं करेगा भले ही वो चुनाव हार जाए, उसका मंदिर से घन्टे उतारे जाने पर चुप रहना, इस वर्ग के वोटर को व्यथित करता है.

लॉर्ड्स में मैच जितने के तुरंत बाद ट्वीट कर बधाइयां देना, और पूर्ण बहुमत के बावजूद अमरनाथ पर सन्न मार चुप्पी इस श्रेणी के वोटरों के समझ से परे है. 

इजरायल के खिलाफ वोटिंग, वो भी तब जब संसद में बहस कराने मुकर चुके हो, यानि रात के अँधेरे में सब कुछ जैसा की कोंग्रेस के चलन में होता रहा है. 

राजनीति ऐसी हो जो आम आदमी के समझ में आये। और बात सिर्फ वोटिंग की ही नहीं है, बल्कि रोजेदार के रोटी पे भोकाल और संसद में चर्चा और अमरनाथ यात्रियों पे हमले के विरोध में मुर्दा बने रहने जैसे कई मुद्दे है जिस पर सरकार की प्रतिक्रिया का इन्तजार आम सरोकारी इंसान को था और आगे रहेगा. 

कालेधन और और कश्मीर में ३७७ पर सरकार का स्टैंड अभी पता नहीं चल रहा तो कुछ कहना उनको जिन्न मानने के बराबर ही होगा लेकिन जिन चीजो को बैलेंस किया जा सकता है उन चीजों को तुष्टिकरण के के तराजू पे चढ़ता देख मोदी का लिबरल वर्ग दुखी है. 

पूर्वांचल में एक कहावत है, "ननदिया के बोला ता पतोहिया के कान होला", कोंग्रेस के बुरी तरह से ख़ारिज हो जाने के बाद भाजपा को इसका संज्ञान लेना चाहिए क्यों की जल्द ही बैलेंस करने योग्य चीजो को बैलेंस नहीं किया गया तो नतीजा आने वाले विधानसभा चुनावों में जरुर दिखने लगेगा.

सादर 

कमल कुमार सिंह