नारद: पत्नी पीड़ित की व्यथा

Sunday, September 18, 2011

पत्नी पीड़ित की व्यथा

विंध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे
 गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृंद सुखारे।
 ह्वै हैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे पद मंजुल कंज तिहारे,
 कीन्हीं भली रघुनायक जू जो कृपा करि कानन को पगु धारे!!

अर्थात - रामचंद्र जी विंध्य पर्वत पे आ रहे हैं , सुन सारे तपस्वी  प्रस्सन्न हो गए ये सोच के की  जब प्रभु एक पत्थर को नारी बना सकते ( शायद उस समय इंडिया टी वी  रहा होगा  जो राम वनवास का लाईव दिखा रहा होगा उन मुनियों को भी ) है तो यहाँ तो सब पत्थर ही पत्थर है . कौन जाने हम योगियों की भी चांदी हो जाये इस  निर्जन वन में !!

ये कविता मैंने यू पी बोर्ड के हाई स्कूल में पढ़ी थी , भगवान जाने तुलसीदास ने ये वाली कविता  क्यों लिखी , जबकि वो खुद भुक्तभोगी थे , पत्नी पीड़ित थे , फिर भी , !!शायद उनमे बदले की भावना आ गयी होगी , की  "हम बर्बाद हुए तो क्या सनम सबको ले डूबेंगे"" . 


उनको ये न समझ में की रामचंद्र जी नारी बनाने की फैक्ट्री नहीं थे , ऐसा होता तो क्या अपने लिए न बना लेते सीता जी के धरती में समां जाने के बाद ???, लेकिन नहीं बनाया ,

 वास्तविक बात ये है की वो खुद भी पीड़ित थे सीता जी से कभी हिरन मांगती थी सोने का तो कभी कुछ ! दम कर दिया था एकदम से  , सोचा चलो इसी बहाने जान छूटा , चुकी मर्यादा पुरुष थे , तो रोना धोना तो दिखाना ही होगा दुनिया को , ( होयिहे वही जो राम रूचि राखा)

अस्तु अस्तु , ये तो हुई तुलसी जी और प्रभु राम चंद्र जी की बात , 

आईये अब हम अपने एक मित्र की बात बताते है, कहने के लिए वो लेखक है, - 


मित्र कहींन :- 

सुबह सुबह जब लिखने लगा तो पहली वाणी  " सुनो  डोसा खाना हो तो उडद  की डाल लेते  आओ "  मै समझ गया की आज श्रीमती को डोसा खाने का मन है . 

मेरा मन किया की मना कर दूँ की नहीं खाना है , लेकिन पिछला इतवार याद आ गया , जब मुझे बाहर जा के खाना पड़ा था .

खैर , वापस आ के दुबारा शुरूं किया तभी आवाज आयी , मम्मी दूध लेन के लिए कह रही हैं , जब माता जी से पूछ तो उन्होंने कहा नहीं , खैर मन मसोस के वो भी आ गया , 

 फिर बैठा , फिर आवाज आयी , जो कर रहे हो जल्दी से निपटा लो , और जाओ टिकट ले आओ , सबको सिनेमा  जाना है .'
. मै चुपचाप उठा अपने यंत्र ले के , और पार्क में बैठ गया सोचा  जब वापस जाऊंगा तो बोल दूँगा की सीट फूल थी ..... तभी फोन आ गया , और मुझे अपने आप पे गुस्सा की ये मोबाइल तो घर ही छोड़ना था मुझे , 

बोला "आये क्यों नहीं अभी तक" ?? मैने योजनानुसार अपनी बात कह दी ! आवाज आयी  , शाम की लेते आओ न,

 मेरा दिल रो के रह गया अबकी बार , मरता क्या न करता ???

घर वापस आया , डिमांड पूरी करके , फिर शुरू किया लिखना ,

बोलीं - मम्मी का फोन आया था मेरे , जरा  तुमसे बात करनी थी उनको , अभी फोन कर लो ,

"अभी कुछ कर रहा हूँ"  मैंने कहा इतना सुनते ही

" बड़ा गोलमेज सम्मलेन कर रहे हो , बाद में कर लोगे तो भारत जीत नहीं जायेगा मैच में .आप मेरे मा पिता जी की इज्जत नहीं करते हो , कही ऐसा  भी होता है क्या ?? पिछली बार भी आप मेरे फूफा के मौसे के साली के बहन से भी बात नहीं किया था, पता नहीं क्या समझते हैं अपने आप  को, आपके किसी का ....................
( इसके बाद के शब्द मै सुन नहीं पाया था , कान में रुई भर ली थी )

" उफ्फ्फ" ( मन में - सामने तो उफ़ तक न किया जाता  )
खैर चलो ये भी हुआ , अब हो गयी शाम , तय शुदा प्रोग्राम के तहत सिनेमा देख के वापस आ गया .

ये तो रही मेरी बात ,   अब आपको एक मेरे मित्र सुरेश  की बात बताता हूँ , सुना है पिछले सप्ताह  वो गूंगा और बहरा हो गया है . उसको देखने गया उसके घर  , इशारे से हाथ हिला के पूछा ये क्या हुआ ??? उसके शकल से लगा की वो खुश है, गूंगा- बहरा बन के, मैंने कहा यार तुम पहले इंसान हो जो गूंगा बहरा बन के भी खुश है, भला ये क्यों ??? उसने इशारे से इशारा किया, ऊँगली को तरफ देखा तो वो भाभी जी की तरफ इशारा कर रहा था जो किसी से बात करने में मशगुल थी .

मैंने कहा भाई ऐसा क्या हुआ की  सब खो बैठे , हमें भी बताओ , वो मुस्कराया , तभी भाभी  जी आयीं , और सुरेश को कागज का टुकड़ा  पकड़ा कही बाहर चल दी  शायद किसी पडोसी के घर  !

 पुर्जे  में  लिखा था , "शाम को शोपिंग चलेंगे"  ! अब समझ में आया की इनकी स्तिथि और भी खराब थी .

मैंने उससे हसंते हुए कहा , गूंगा , बहरा तो हो गया , लगे हाथ यादाश्त भी खो देता , कम से कम पढ़ना तो न पडता .

" अगले हफ्ते वो भी खोने वाला हूँ " वो बोला ,  मै चौंक पड़ा ... यानि सब नाटक है ???
बोला   "तू भी कर ले , दो चार महीने तो ढंग से रहेगा "

" यार जब से शादी हुई है मै किसी दोस्त के घर नहीं जा पाता, पार्टी तो मै आजकल बस सपने में ही करता हूँ , किसी का फोन आने पे फालो अप शुरू हो जाता है, और दुनिया भर का क्लारिफिकेशन,  न्यूज देखे महीने हो गया, मज़बूरी में सास बहु देखना पडता है, हर शाम घुमाने पार्क न जाओ तो  रात दूभर, हफ्ते में शोपिंग न जाओ तो हफ्ता दूभर, महीने नयी जगह न ले जाओ तो महीना दूभर, हे भगवान कोई "अन्डू " का  या कंट्रोल जेड  का बटन  लाईफ में भी दे दो "     वो तब तक बोलता गया ,जब तक  मेरी भी आँख में आंसू न आ गए .

मै उसके मन की अवस्था को समझ रहा था , आखिर " जाके  पावँ  फटे बिवाई , वही जाने है पीर परायी " .


भारी मन से वापस लौटने लगा , तभी एक कार वाले ने टक्कर मार दी !! होश आया तो  अस्पताल में पाया श्रीमती बैठी थी खुश हो के कहा , " भगवान का लाख लाख शुक्र है ,  चलो दो दिन बाद सही होश में तो आये , मैंने मन्नत मांग ली थी , की आप होश में आ जाओगे तो अगले महीने तिरुपति बालाजी चलेंगे "

और  मै दुबारा बेहोश हो गया .

मित्र मेरी सहानुभूति है आपके साथ ............

कमल
१८ / ०९/ २०११

14 comments:

Anonymous said...

वाह कमल भाई.. राम सीता पे टिप्पणी थोरी बुरी लगी.. अगर उसे ना पढू तो .. आपके लिए तारीफ के पुल बांध सकता हूँ यहाँ से दिल्ली तक..

कमल कुमार सिंह (नारद ) said...

ध्नाय्वाद, राम को तो खुद भक्त तुलसी जी ने नहीं छोड़ा ;) खैर , व्यंग को यदि गंभीर में लिया जाये तो गंभीर विषय है :)

रविकर said...

दर्द से जब छटपटा कर
आह करती है जुबाँ |
सबको लगती है कि कहता
वाह मेरे मेहरबाँ ||

vidhya said...

दर्द से जब छटपटा कर
आह करती है जुबाँ |
सबको लगती है कि कहता
वाह मेरे मेहरबाँ ||
http://sarapyar.blogspot.com

रविकर said...

पति की अनुनय को धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी - बोल कटार - गम, सहे चोट मन - ढाल ||

पत्नी पग-पग पर परे, पल-पल पति पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||


हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
हारहूर=मद्य
आहार-विरह=रोटी के लाले
चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
तेज तड़ित तन तोड़ती, तददिन तमक तड़ाक |

मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||
मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव

कमल कुमार सिंह (नारद ) said...

मै अबला पुरुष , निरीह असहाय ,
भरी भरकम बात आपकी मुझे समझ न आये ,

मुझे समझ न आये कि मै अज्ञानी ,
जाना कैसे हिय हे तात् मैंने न जानी :)

कमल कुमार सिंह (नारद ) said...

आप सभी को बहुत बहुत आभार , हौसला अफजाई के लिए , :)
त्रुटियाँ इंगित करने के लिए मुझे मेल करे :-

kkumarsinghkamal@gmail.com

ताकि आगे और सुन्दर प्रस्तुति दे सकू :)

सादर
कमल कुमार सिंह

Kavi Chetan Nitin Khare said...

क्या उक्त पंक्तियां तुलसी कृत रामचरित मानस की हैं ? कृपया स्पष्ट करें ?

Unknown said...

Kaise chutiya bna RHA hai logo ko aur log has bhi rhe hai .. nowadays it's too common to mock Hindu God's.

Anonymous said...

He is mocking our gods and you are applauding him like fool...Nice!

Unknown said...

Ye harami kuch bhi bole jaa rha hai hamre Gods k bare mai aur log has rhe hai bina koi fark pde

Anonymous said...

Jab koi baap apni ptni ko park me maze lete hue pregnant kar de to tum jaisi aulade paida hoti hai ,jo bhagwan k bishay me esi ghrinit soch rakh h. Aur patniyo k hath k nachane wale kutte ban jate h.
Punah ek baar ram charit manas padiye aur samjhiye neech purush ki tulasi das ne isse ek vyang k rup me likha h un logo k liye jo vairagya to le lete h kintu chintan stri ka krte h .
Samajh gye kaami purush

Anonymous said...

Jab koi baap apni ptni ko park me maze lete hue pregnant kar de to tum jaisi aulade paida hoti hai ,jo bhagwan k bishay me esi ghrinit soch rakh h. Aur patniyo k hath k nachane wale kutte ban jate h.
Punah ek baar ram charit manas padiye aur samjhiye neech purush ki tulasi das ne isse ek vyang k rup me likha h un logo k liye jo vairagya to le lete h kintu chintan stri ka krte h .
Samajh gye kaami purush

Unknown said...

राम के नाम पर आप सहज टिप्पणी कर सकते हैं
इसमें आपको कोई टैक्स नही चुकाना पड़ रहा है