नारद: January 2012

Sunday, January 29, 2012

इन्टरनेट वोटिंग

शाम का समय, दो चार नौजवान गोलगप्पे की दूकान पे खड़े, ठेले पे आने जाने बालिकाओं को देख रहे थे हलाकि  उनका खुद गोलगप्पा खाने का कोई विचार न दीखता था,  किसी मुद्दे पे बहस कर रहे थे . 

मै कार्यालय से घर  जाते  समय उसी ठेले पे पांच गोलगप्पे खाने के बाद  सात प्लेट गोलगप्पे का पानी जरुर पीता हूँ, सो मै अपना निर्धारित  सांयकालीन नित्य क्रिया कर ही रहा था की उसी भीड़ में से एक की आवाज जनता की आवाज की तरह मेरे  कानो में पड़ी,  " मुह काला हो गया " 

दूसरा   "किसका कैसे " ??
तीसरा "अरे किसी का नहीं , एक पोस्टर का , और उसके लिए बिचारे की कितनी पिटाई हो गयी, अब तू भी विज्ञापन पे छपी लड़कियों के मुछ दाढ़ी न बनाया कर नहीं तो पिट जाएगा ख्वामखाह ". 

पहला : " यार अबकी इस सरकार को सबक सिखाना है , इसको हराना है " 

दूसरा : भाई गोलगप्पे के ठेले के पास खड़े हो के कोसने से कुछ नहीं होगा बेहतर है चुनाव  में गांव जाओ , मतदान  से हराओ.

पहला : "गांव जाना न हो पायेगा" .  

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इस तरह की चर्चाये आपको अक्सर हर जगह मिल जाएँगी चाहे वो चाय की दूकान हो, गली मोहल्ला या गूगल फेसबुक जैसी सोशल मीडिया. 

सच ही तो है, जो समझदार है और मतदान  के दम पर कुछ करना चाहते हैं वो मतदान नहीं कर सकते क्योकि अधिकतर उनमे से अपने क्षेत्र के बहार कार्यक्षेत्र में रहना होना है , बाकि जो गईं या कस्बो में हैं वो किसी न किसी बात से प्रभावित हो गलत  प्रत्याशी को  मतदान कर देते हैं. न्यू मीडिया ने निश्चित ही लोगो में जागरूकता जगाई है , लेकिन अधिकाँश लोग अपनी भड़ास सरकार की नीतियों और सरकार की आलोचना में निकाल देते हैं, वोट देने का मौका उन्हें नहीं मिल पाता जो अपने घर या क्षेत्र से दूर होते हैं और चाह कर भी अपे वोट की ताकत का इस्तमाल नहीं कर पाते. 

तो प्रश्न आता है की क्या इसका कोई उपाय है या हो सकता है ?? 

मेरे समझ से वोटिंग में भी चुनाव आयोग को इंटरनेट का इस्माल किया जाए जाए वैकल्पिक मतदान के लिए, ताकि कोई भी कहीं से भी अपना मतदान कर सके. इसके लिए चुनाव आयोग प्रत्येक जो विकल्प वश नेट मतदान करना चाहता है, को विशेष लोग इन आई डी दी और पास वार्ड दिया जाये जिसे वो सिर्फ चुनावी दिनों में बस एक बार कर सकता है. 

अब कुछ लोगो का सवाल होगा फर्जी वाडा , 

नहीं ये नहीं हो सकता ,इसीलिए मै कह रहा  हूँ  की सारी  चीजें चुनाव आयोग की देख रेख में हो , 
अरे भाई जब रुपये पैसे जैसे सवेदनशील मुद्दे इंटरनेट से किया जा सकता है जैसे इन्टरनेट बैंकिंग इत्यादि , तो  ये तो साल में बस कुछ बार होने वाला चुनाव मात्र है , 

आप लोगो का क्या सुझाव है दीजिए , तो लेख आगे बढ़ाएं :) 

कमल 

Wednesday, January 11, 2012

सेकुलर या "शेखू"लर


भारत एक सेकुलर देश है.  जहाँ हर धर्मो का सामान रूप से अधिकार दिया जाता  (ऐसा कहा जाता है, हलाकि ऐसा होता नहीं ) . पहले मै ऐसा ही समझता था, वास्तव में सेकुलर की जगह शब्द "शेखुलर " इस्तमाल करना चाहिए, क्योकि ये देखने में आया है की  हिंदू की मान हानि, धार्मिक भावना पे आघात हो तो कोई फर्क  नहीं पड़ता इन शेखुलर को  . इस हिंदू बहुल देश में सारी बाते मुल्ले मौलवी तय करते हैं, 

ये वही मुल्ले है जो हिंदू धर्म का मजाक बनाते हैं, मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं, और वही इनसे जरा खतना और नसबंदी के बारे में पूछ लो तो बिदक जाते हैं. हमारी शेखुलर सरकार भी इन्ही की सुनती है, यदि भारत धर्म निरपेक्ष  है तो :-

१.धर्म के आधार पे ९ % आरक्षण  क्यों ?? 
२. यदि अल्प्शंख्यक  के नाम पे तो सिर्फ मुसलमानों को क्यों ??? 
३.  क्या अल्पसंख्यक सिर्फ मुसलमान हैं ??? 
४ . क्या सिख्ख , ईसाई और बूधिष्ठ  भाई अल्पसंख्यक नहीं ??
५. अब यदि इस्लाम का अल्लाह मुसलमानों को सबकी भलाई करना सिखाता है तो क्यों कोई मुसलमान भाई सबको आरक्षण देने के लिए नहीं कहता ?????
६. क्या हर मुसलमान सिर्फ अपने मजहब के लिए सोचता है और दूसरे के लिए तब तक नहीं सोचेगा जब तक सामने वाला भी इस्लाम काबुल न कर ले ???? 


ये तो रही सरकार की बात जो सब कुछ जानते हुए भी अपने वोट के लिए राजनीति  करती है और भारतीय कठमुल्ले उसका समर्थन करते हैं. 

अब शलमान रश्दी भारत आने वाले हैं सो मुल्लो का फ़तवा जारी हो गया, की यदि रश्दी भारत आ गए तो गडबड होगा, सरकार अब सोच मे पड़ गयी है , 

मुझे समझ नहीं आता यह लोकतान्त्रिक सरकार है या लोकतंत्र के नाम पे तालिबानी सरकार. 

भाई साहित्यियक सम्मेलन हैं उसमे कोई भी आ सकता है, हाँ तुम  कठमुल्लो चाहो तो अपने मस्जिद में घुसने पे रोक सकते हो देश क्या सिर्फ तुम्हारे बाप का है जो बात बात पे फ़तवा जरी करते हो , बाकी जनता तो सुनना चाहती है उन्हें .


देश के "शेखुलर" अफजल गुरु के माफी के लिए हवा बनाते हैँ और रुश्दी जो एक बड़े भारतीय अतंराष्ट्रीय लेखक है उनको रोकती है ।

रही बात  मुसलमानों धार्मिक  भावनाओ को आहत करने की बात तो कठमुल्ले तो बात पे हिंदुओं और इस देश का अपमान करते हैं. 

अभी कुछ देर पहले ही मेरे कार्यालय  के दो मुसलमान भाईयों अरबाज़ और परवेज  से चर्चा हुई,  मैंने पूछा की आपलोगों के लिए राष्ट्र से बड़ा धर्म क्यों ? 

अरबाज़  ने कहाँ कौन कहता है ???? 

मैंने की आपके मुल्ले खुद की वंदे मातरम मत कहो . 

अरबाज़ ने कहा देश सिर्फ कठमुल्लो का ही नहीं हम मुस्लिम्स का भी है , मै नहीं मानता और कार्यालय  में ही चार  बार वंदे मातरम का नारा लगा दिया . 

अब आईये दूसरे पे , परवेज  ने कहा , हम नहीं कह सकते क्योंकि हमारे धर्म इजाजत नहीं देता , हमारा मजहब कहता है की इसमें पूजा की बू आती है, और हमने ऐसा कह दिया तो हम काफ़िर हो जायेंगे , और अल्लाह की नजरो में गिर जायेंगे. 

मैंने कहा तो भाई तुम या तुम्हारे पूर्वज भी तो हिंदू थे तुम्हे इतना गुरेज क्यों ?? मुझे मेरे देश के हित में कोई 
कुरआन की आयात पढ़ने के लिए बोले तो मै खुशी से पढ़ दूँगा , क्योकि मुझे इस्लाम से बुराई नहीं , लेकिन
इस्लामी  वन्देमातरम बोल देगा तो क्या वो काफिर हो जायेगा ???....क्या अरबाज़ भाई काफ़िर हो गए ??? 

परवाज : भाई पूर्वज जरुर हिंदू थे  थे लेकिन इस्लाम की अच्छाई को देखते हुए हमने इसे काबुल किया. 

मैंने कहा तो क्या हिंदू धर्म खराब है ?? 

परवेज : हाँ , बहुत सी कुरीतियाँ है , ढकोसले हैं , इस्लाम निश्चित ही बेहतर है. इस्लाम में जादा शांति है. 

मैंने कहा तब जहाँ इस देश में निम्न कोटि के धर्म वाले जादा है तुम यहाँ क्या कर रहे हो , जाओ पकिस्तान वहाँ इस महान धर्म को मनाने वाले जादा हैं . वैसे ये बताओ की इस्लामिक देश में सब आपस में ही खून खराबा क्यों करते हैं ?????

परवेज : मै यहाँ पैदा हुआ हूँ और ये मेरा भी देश है मै क्यों जाऊं ?? .. और इस्लामिक देश में भी अरबाज़ जैसे दोगले मुसलमान होंगे तो क्या लड़ाई न होगी धर्म की रक्षा के लिए .. ( यानि राष्ट्र कुछ नहीं है ) 

मैंने कहा "  भाई जब तुम इस्लाम को अच्छा बता के धर्म बदल सकते हो तो देश क्यों नहीं ????  इस्लाम तुमने कुबूल ही इसलिए किया की ये जादा अच्छा है सो इसको मनाने वाले जिश देश में जितने जादा होंगे वो देश उतना ही अच्छा होगा जाहिर सी बात है अरब देश या पाकिस्तान या लीबिया टाइप में घुस जाओ ... 

अब उसके पास जबाव नहीं था ... और अरबाज़ परवेज की बातों पे हस रहा था . 

 एक समय मैंने एक कविता लिखी थी :- 
झुक जाता है सर मेरा, जब कोई मंदिर दीखता है ,
करता  लेता हूँ इबाबत जब कोई मस्जिद दीखता है ,
प्रेयर , करके इसा की, कुछ और आनंद ही आता है ,
स्वर्ण मंदिर देख, सर नतमस्तक हो जाता है,

शायद यही है  व्याख्या धर्म कि, जो ये अज्ञानी कर पाया,
ग्यानी हमें बनना नही , जिन्होंने धर्म भेद फैलाया,

सुना है ग्यानी आजकल , संसद में बैठते हैं,
धर्म को अधर्म बना, इस देश को डसते हैं ,

तो दोस्तों आप ही बताओ उन्हें ग्यानी कहूँ सांप,
जिनका काम है डसना उसको , जिसके आस्तीन में पलते हैं,

लेकिन अब कुछ ऐसा सोचता हूँ :- 

झुक जाता है सर मेरा, जब कोई मंदिर दीखता है ,
प्रेयर , करके इसा की, कुछ और आनंद ही आता है ,
स्वर्ण मंदिर देख, सर नतमस्तक हो जाता है,
लेकिन जब भी कोई मस्जिद दीखता, दिल दहल सा जाता है .....

अब मै समझ नहीं पा रहा था , की ये देंन  वास्तव में कठमुल्लो की है या इस धूर्त सरकार की ...और जो इसपे भी छुप्पी साध ले उसको क्या कहें ?? सेकुलर या शेखुलर ????

कमल  (११ दिसंबर )