नारद: 2014

Friday, August 29, 2014

भारत या हिन्दुस्तान

मोहन भागवत के बयान की भारत एक हिन्दुराष्ट्र है पर सभी सेकुलर(?) पार्टिया एक सुर में जिस तरह प्रतिक्रिया दे रही हैं, उसे देख कर ये माना जाना चाहिए की विभाजन के समय सिर्फ हिन्दू ही छले गए है. मुसलमानों को एक राष्ट्र भी मिल गया और यहाँ जिसे हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए उसे सेकुलर घोषित कर यहाँ भी रहने का अधिकार मिल गया. अब ऐसे में किसी भी संघठन हिन्दू राष्ट्र के लिए खड़ा हो जाय तो ये साम्प्रदायिकता कैसे? यदि ये साम्प्रदायिकता है तो  इसकी नीव श्री नेहरू और श्री मोहनचंद्र गांधी ने इस्लामी राज्य की मांग मान  पाकिस्तान का बटवारा कर १९४७ में ही डाल इस प्रकार के साम्प्रदायिकता को जायज सिद्ध कर चुके हैं.  बटवारे के समय दुसरे हिस्से के जमींन जिसे हिन्दू राष्ट्र का पेड़ होना चाहिए वहां सेकुलर जमीन घोषित कर साम्प्रदायिकता का बीज भी उसी समय से बोया जा चूका है.
अपने राष्ट्रपति काल में श्री राधा कृष्णन ने एक बार कहा था “ Here in India, unfortunately, change of religion means change of race and nationality” . – यहाँ भारत में दुर्भाग्य से धर्म परिवर्तन का अर्थ, जातीयता और राष्ट्रीयता का परिवर्तन है”. उनका ये वाक्य बहुत ही दूरदर्शी था जिसको आज हम प्रत्यक्ष रूप से देख रहे है. किस किस तरह से हिन्दुस्तान कहते ही एक जमात किलस पड़ता जैसे उनकी कोई घर की महिलाओं को छेड़ रहा है. एक श्री श्री चागला ने, जब वो शिक्षा मंत्री थे, कहा था “भारत के सभी मुसलमान हुन्दुवों में से ही धर्म परिवर्तित है, उनके नसों में हिंदुवो का ही रक्त बह रहा है”  यही बात भारतीय इसाईयों के बारे में भी है, लेकिन अफ़सोस, आज भारतीय मुसलमान अरब के गुण और इसाई यूरोपीय देशो के गुण गाता नहीं थकता. किसी भी देश का गुण गाना बुरा नहीं है, बुरा तब है जब उसे अपने देश से जादा दुसरे देशो और महापुरुषों के प्रति रुझान दिखाई देता है.
भारत सरकारे और राजनेता दिन रात रास्ट्रीय एकता का अनंत कालिक अजान देते हैं, उन्हें ये समझ नहीं आता की भारत में अभी राष्ट्र है ही कहाँ? जिस देश की हालत ये हो की यदि पाठ्य पुस्तको में उसी देश के महापुरुष राम, कृष्ण और दयानंद जैसे को शामिल किये जाने के नाम मात्र से ही श्वान रोदन शुरू हो जाता हो उस राष्ट्र की एकता के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है. इसे तत्काल से धर्म से जोड़ कर गैर हिन्दू धर्म की पुस्तको को पढ़ाने की मांग की जाती है जिनके महापुरुषों का भारत या हिन्दुस्तान से रत्ती भर भी सम्बन्ध नहीं है तो कहाँ से आएगी राष्ट्रीयता ?
हिन्दू छात्रो में तो ये उदारता है की वो सभी धर्मो की पुस्तको को पढ़ते है, सीखते हैं, मै भी उन्ही में से एक हूँ, लेकिन यही बात गैर हिंदुवो पर लागू नहीं होती क्योकि वो अपना “रेस” भी परिवर्तित मानते है. आश्चर्य की बात ये है जिस देश के संविधान की दुहाई दे के कुछ इन्द्रा गांधी द्वारा बनाई इंडियन नेशनल कोंग्रेस के नेता (ज्ञात हो की कोंग्रेस से टूट के एक दल आर एस एस बना और दूसरा इंडियन नेशनल कोंग्रेस). एक सामान धार्मिक आधार पे सामान आधिकार देने की बात करती है उन्ही की पूर्वज पार्टी ने मुसलमानों को उनका इस्लामी राष्ट्र तो दे दिया लेकिन बराबरी न दिखाते हुए हिन्दुवों का हक़ मार उसे सेकुलर राष्ट्र बना दिया, ये सच में बहुत ही आश्चर्यजनक है की न जाने कहाँ से या किस मुह से पार्टियाँ अब बराबरी की बात करती है. जबकि वास्तव में अधिकारों में भी हिंदुवो को पीछे ही रखा गया है, मुस्लिमो को उनके धार्मिक आधार पे कुछ भी करने की छुट है जबकि वहीँ हिन्दू के लिए तमाम कानून लागू होते है, ये कैसी समानता है? बिलकुल ही समझ के परे है.
इस मानसिकता का विकास देश में यूह ही नहीं हो गया, इसके पीछे कुछ कारण थे. देश के विधान की रचना क्रम में जब देश का नाम लागू होने का प्रश्न आया तो, श्री भीम ने, श्री जवाहर लाल, और मौलाना अब्दुल कलाम ने निजी तौर से उनसे परस्पर विचार विमर्श किया था. कुछ लोगो ने इसका नाम आर्यावर्त रखने का सुझाव दिया था, स्वयं श्री भीम ने देश का नाम हिन्दुस्तान अंकित करना चाहते थे, लेकिन इसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद को आपत्ति थी, उनके अनुसार इससे अहिन्दुवो के भावना को ठेस लग सकती थी जो पहले ही एक देश ले चुके थे. इस दुविधा में नेहरू जी ने भारत नाम सुझाया जिसे श्री भीम को अनिक्षा पूर्वक स्वीकार करना पड़ा.
उस समय यदि इस देश के संविधान में देश का नाम भारत की जगह हिन्दुस्तान होता तो आज ये नौबत ही नहीं आती और हिन्दू और गैर हिंदुवो में किसी भी तरह का वैमनस्य का बीज अंकुरित नहीं होता. यही एक कारन है की इस देश पर राष्ट्र निष्ठां गैर हिंदुवो में नहीं है या है भी तो अँगुलियों पे गिनी जा सकने वाली संख्या पर है क्योकि कोई भी धर्म इतना सहिष्णु नहीं जितना हिन्दू धर्म.
यदि हिन्दू धर्म भी उतन ही कट्टर रहा होता जितना की गैर हिन्दू धर्म तो पाकिस्तान की तरह ही एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना भी उसी समय हो जानी चाहिए थी. एक पक्ष को उसका हिस्सा तो मिल गया, लेकिन दूसरा पक्ष, जिसको वो अपना हिस्सा समझता रहा है, उसके साथ इस हद तक छलावा हुआ की आज भारत को हिन्दुस्तान कह दो तो गैरहिन्दुवों की भुजाएं फड़कने लगाती है, जो की बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है, और ये सब एक तरफ फिर से हिंदुवो को संगठित कर सकती है एक हिन्दू राष्ट्र निर्माण के आन्दोलन के लिए, और यदि एसा होता है तो ये बिकुल भी गलत नहीं.
 सादर
कमल कुमार सिंह

Monday, July 28, 2014

भारतीय मुसलमान का एक सपना :

आज जब नींद खुली अचानक सब कुछ बदला बदला सा था, कानो में आँ आँ आँ अलाह आअ हु अकबर की मधुर ध्वनी कानो में टकराई, पर किसी मंदिर या गुरुद्वारा की बेसुरी आवाज गायब थी. ये देख कर मैंने नारा लगाया, तारा ये तकबीर अल्लाह हु अकबर, साथ ही लोटा ले के खेत की तरह तरफ निकला, देखा पड़ोस के काफ़िरो के घर खाली थे, उनके गुसलखाने में फ्रेश होने के निकला तो, अक्सर सामने वाले चबूतरे पर गुरुदयाल और पंडित जनार्दन दिख जाते थे जिनका मनहूस चेहरा देखते ही काफिराना उलटी होने लगती थी, वो आज नजर नहीं आये, ५६ देशो के भाइयों का लाख लाख शुक्र है, और साथ ही अम्मी जान की छमता का जो ५६ देशो का पर्यटन कर सकी इस नेक काम के लिए. 



थोडा आगे बड़ा, लाला राम खेलावन नजर नहीं आ रहे थे, कोई अजनबी चहरा था, मै उसके पास गया, तो पता चला ये अफगानिस्तान के अपने भाई है, आखिर यहाँ सबका हक़ है. मैंने जिज्ञाषा वश पूछ लिया की लाला कहा है, तो उसने कहा, हमने अल्लाह के दिनी ईमान के लिए सारे काफिरों का सफाया कर दिया है, हम सबके अम्मा के मेहनत से जन्मे ५६ देशओ के भाईओ ने मिलकर इस नेक काम को अंजाम दिया. लाला की ये दूकान अब मेरी है, अगल बगल देख के तुम भी किसी काफिर का घर कब्ज़ा लो . 


ये सुनकर थोडा हैरानी हुई, और ख़ुशी भी चलो ये भारत भी अब दारुल इस्लाम बन गया, हाफिज सईद जी का लाख लाख शुक्र है. अब यहाँ फ़ालतू संगीत नहीं बजेगा, गाडी घोड़े बंद, चलने के लिए चारो तरफ ऊंट ऊंट ही, प्रदुषण कम होगा, सारे फ़ालतू फल के पेड़ों को काट हर जगह खजूर खजूर ही होगा, वाह मजा आगया. अब हमें हमारा असली हक मिलेगा. 

दूध ले के घर आया तो माँ ने पतीले पे चढ़ा दिया, मुझे जल्दी से अपने दोस्तों को खबर देनी थी. जैसे ही फेसबुक लोग इन किया तो बहुत सारे कमेन्ट थे की अब काफिर नहीं रहे, मुझे भी लगा की दिल भड़ास निकाल दूँ लेकिन निकलता किसपर ? काफिर तो थे नहीं, और ये सारे देश विदेश के ५६ देशो से आये हमारे ही भाई थे. 

लोग आफ करके तैयार हुआ, घुटने के निचे तक वाला पैजामा पहन, सर पे क्रोसिया टोपी बड़े करीने से लगाई, सड़क पर आया, एक ऊंट ले के आफिस की और चल दिया. पुरे फिंजा में अल्लाह की खुसबू थी, जो काफ़िरो के जले हुए लाशो से निकल रही थी. सड़क के अगल बगल, बगदादी जी, हाफिज सईद जी इत्यादि के पोस्टर लगे थे, ये देख कर दिल गद गद हो गया. पूरा माहौल दारुल इस्लाम का था, जगह जगह मंदिरों के टूटे खंडहर, और मंदिरों में काफ़िरो और गायों की लाश कुछ भाई गायों की लाश को लाद के जा रहे थे, तो कुछ लाशो के पास ही अपने चूल्हे जला रखे थे. आफिस पंहुचा आफिस में सभी साथी खुश नजर आ रहे थे, आफिस वालो का अगला निशाना नेपाल था. यहाँ सबकी तनख्वाह १० गुना जादा कर दी गयी है, वो भी बिना कोई काम किये, काफ़िरो के घर से लुटा गया माल असवाब के बदौलत हमें कई पीढ़ी तक बिना काम किये तनख्वाह मिलेगी. सारे साथियो ने नारा ये तकबीर अल्लाह हु अकबर का एक सुर कह, नेपाल आक्रमण का खाका तैयार काने में जुट गए. थोड़े देर बाद सभी ने गाय के मांस लजीज गोश्त खाया, अल्लाह जाने ये काफिर कैसे घास फूस खाते थे. 

शाम को घर जाते समय, एक काफिरके खाली घर में बैठ कर नमाज अदा की. कोई ट्रेफिक जाम नहीं था, सड़क विभाग हर जगह रेत बिछाने के काम में लगा था, ताकि ऊँटो की गति को रफ़्तार दिया जा सके, और रेत की सड़के आसानी से हवा से एक जगह से दुसरे जगह शिफ्ट भी की जा सकती है, जिधर चाचो अलाह का नाम लो और फूंक मार दों. इससे रेतीली सड़के साफ़ रहेंगी, रेत की वजह से कोई कीचड़ नहीं होगा, वाह . सारे ऊँटों पर अलाह की फजल थी, एक दुसरे से बात कर साइड दे दिया कर रहे है, न कोई ट्रेफिक न कोई एक्सीडेंट. पार्किंग की भी कोई समस्या नहीं, एक ऊंट से दुसरे ऊंट को बाँध बिना परेशानी के पार्क कर ले रहे हैं. 

घर आया तो देखा सबकी उंट एक दुसरे ऊँटों के टांगो से बढ़ी करीने से सजी थी, वाह मजा आ गया, इतना सुकून. काफ़िरो के अविष्कारों को छोड़ने का इतना मजा होगा मुझे पता नहीं था. 
मै ऊंट को कासिम कसाई भाई के ऊंट के साथ पार्क कर घर में घुसा तो माँ ने बताया की अब सभी लोग स्वस्थ है, काफ़िरो के दवाई का भी कोई काम नहीं, हर रोग के लिए अल्लाह के कुरआन की कोई भी आयत पढ़ लो मामला फिट हो जा रहा है. 

स्कुलो की जगह अब बड़े बड़े मदरसे हो गए है, जहाँ हर चीज और समस्या का इलाज कुरआन के मार्फ़त ढूढने की रिसर्च की जा रही है. काफ़िरो को सूंघ कर पहचनाने की छमता विकसित की जा रही है. काफिरों के बिजली आविष्कार की की वजह से काफिर टी वी रेडियो चलाते थे, जिससे इस्लाम बाधित होता था, अब उनकी जगह मशालों ने ले ली है. अब तो मशालो से हम कभी कभी लुककड़ – लुकाड़ भी खेल लेते है. फ्रेश हो के बैठा, तो मस्जिद से मौलवी ने न्यूज सुनाया की की अब सारे काफिर भारत से चले गए है, अब न कोई विवाद होगा न अपराध होगा. 

इतना सुनते ही मेरे आँखों में ख़ुशी के आंसू निकल पड़े, अरे भाई इसी दिन का तो इन्तजार था हम ५६ देशो के भाईयों के लिए. 

मेरे भाई मेरे पास आके मेरे सार और गालो को सहलाने लगे, तभी अचानक नींद खुली देखा दो चार कुत्ते मेरे गाल चाट रहे है. ओह्ह ये सपना था ? :( 

सादर 

कमल कुमार सिंह. 





Saturday, July 26, 2014

क्या कोंग्रेस और केजरीवाल के काम्बो पैक है मोदी ??


कौवा चला हंस की चाल मोदी की तरह ही एक प्रसिद्द कहावत है, चुनाव से पहले जनता के लिए कौवा था कोंग्रेस और रंग बदलने वाला आपा, और कोंग्रेस के लिए कौवा थे नरेन्द्र मोदी जिन्हें लगता था की मोदी एक ऐसे कौवे हैं जो हंस का आवरण ओढ़े हुए जनता को बरगला रहे है. 
मामला जो भी हो, लेकिन जनता ने फैसला सुनाया और, और मोदी को भारी बहुमत से भारत का सिंहासन सौंपा जिसकी उम्मीद भारत की कोई पार्टी नहीं कर सकती थी.

सारी चीजों को समझने के लिए हमें सब कुछ दो भागो में बाटना पड़ेगा, 
१ . चुनाव पूर्व 
२. चुनाव बाद 

१. चुनाव पूर्व : 
ये चुनाव निश्चित ही भाजपा के नाम पर न होक मोदी के नाम पर था, और मोदी के वोटरों में दो तरह के लोग थे. 
१. कट्टर हिंदूवादी : ऐसे जो हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान का सपना बस हिंदुत्व धर्म के आधार पर रखते थे. इस श्रेणी के लोगो को लगता था था की मुस्लिम हिंदुवो के अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे है, इनके न होने पे उन्हें उनके अधिकार जादा मिल पायेंगे, जबकि वो भूल जाते थे, की अतिक्रमण मुस्लिम नहीं बल्कि सरकार उनके सधे हुए वोट बैंक के कारन खुद पीठ सहलाई थी. यही बात इस प्रकार के हिंदुवादियों को एक होकर मोदी के पक्ष में वोट करने के लिए विवश किया क्योकि इनको भी लगता था की गुजरात दंगा मोदी के इशारो पे हुआ था. 

२ .लिबरल हिन्दू : इस वर्ग में वो लोग आते हैं, जो भारत के विकास में कोंग्रेस को एक बहुत बड़ा रोड़ा मानते थे, और गाँधी परिवार को खतरनाक, क्योकि इस परिवार के रहते कोंग्रेस में ही गैर गाँधी परिवार में ढंग का नेता पैदा ही नहीं हो सकता था. जो सिर्फ और सिर्फ समानता चाहते थे, एक कानून, एक जैसा व्यवहार, एक सामान अधिकार. मुसलमानों के बिना नहीं मुसलमानों के साथ. 
कोंग्रेस ने जो तुष्टिकरण का जो गाजर घास फैलाया था, इससे ये वर्ग अजीज आ चूका था. ये वर्ग देखता था की किस तरह से मुस्लिमो की हर जायज नाजायज बात मान ली जाती है. ये वर्ग देखता था, किस तरह मुजफ्फरनगर में दंगा होने के बाद किस बेशर्मी से सिर्फ समुदाय विशेष की पूछ परख होती थी.
मोदी ने इन दोनों वर्गों साध इनके अंगुलियों को कमल के निशाँ वाले बटन की तरफ मोड़ लिया. ध्यान रहे की इस चुनाव में भी मोदी को मुसलमानों का २% वोट भी हासिल नहीं हुआ है. हाँ हिन्दू जाती जरुर इकठ्ठी हो गयी.

२. चुनाव बाद : 
अब जबकि नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन गए है, जनता जरा भी मौका दिए बिना इनको प्रधान मंत्री न मान, अलादीन का चिराग मान रही है, जो चिराग में से बहार निकले, और जो हुक्म मेरे आका कह के कोंग्रेस के ६० सालो की इकठ्ठी की गयी, तुष्टिकरण विष्ठा, घोटाले की गन्दगी, अराजकता का माहौल ठीक कर दे. जो की बिलकुल गलत है. 
लेकिन, कुछ चींजे है जो जो बिना चिराग का जिन्न बने भी जनता में विश्वाश बनाया रखा जा सकता है. लेकिन मोदी सरकार के वो भी नहीं कर पाने में देख जनता सकते है, कम से कम वो वोटर जनता जो उन्हें चिराग का जिन्न नहीं मानता. 

जो चुनाव पूर्व ये कहता था की वो किसी भी प्रकार से तुष्टिकरण नहीं करेगा भले ही वो चुनाव हार जाए, उसका मंदिर से घन्टे उतारे जाने पर चुप रहना, इस वर्ग के वोटर को व्यथित करता है.

लॉर्ड्स में मैच जितने के तुरंत बाद ट्वीट कर बधाइयां देना, और पूर्ण बहुमत के बावजूद अमरनाथ पर सन्न मार चुप्पी इस श्रेणी के वोटरों के समझ से परे है. 

इजरायल के खिलाफ वोटिंग, वो भी तब जब संसद में बहस कराने मुकर चुके हो, यानि रात के अँधेरे में सब कुछ जैसा की कोंग्रेस के चलन में होता रहा है. 

राजनीति ऐसी हो जो आम आदमी के समझ में आये। और बात सिर्फ वोटिंग की ही नहीं है, बल्कि रोजेदार के रोटी पे भोकाल और संसद में चर्चा और अमरनाथ यात्रियों पे हमले के विरोध में मुर्दा बने रहने जैसे कई मुद्दे है जिस पर सरकार की प्रतिक्रिया का इन्तजार आम सरोकारी इंसान को था और आगे रहेगा. 

कालेधन और और कश्मीर में ३७७ पर सरकार का स्टैंड अभी पता नहीं चल रहा तो कुछ कहना उनको जिन्न मानने के बराबर ही होगा लेकिन जिन चीजो को बैलेंस किया जा सकता है उन चीजों को तुष्टिकरण के के तराजू पे चढ़ता देख मोदी का लिबरल वर्ग दुखी है. 

पूर्वांचल में एक कहावत है, "ननदिया के बोला ता पतोहिया के कान होला", कोंग्रेस के बुरी तरह से ख़ारिज हो जाने के बाद भाजपा को इसका संज्ञान लेना चाहिए क्यों की जल्द ही बैलेंस करने योग्य चीजो को बैलेंस नहीं किया गया तो नतीजा आने वाले विधानसभा चुनावों में जरुर दिखने लगेगा.

सादर 

कमल कुमार सिंह 

Wednesday, June 25, 2014

वर्कशॉप


स्वर्ग का अमरावती, कर्नाटक का हम्प्पी, और और ज्ञान का केंद्र ब एच यू को मिला के जो स्पेसिमेन कोपी बनेगा वो है गंगा के किनारे स्थित स्थित सामने घाट पर “ज्ञान प्रवाह”. 
भारत के इतिहास, कला का का औटोनमस् रिसर्च सेंटर. बेहद खूबसूरत. ओह्ह्ह, इतना खूबसूरत मुझे बी एच यु भी कभी नहीं लगा. 

नाथद्वारा पेंटिंग मे उदयपुर के प्रसिध्द चित्रकार राजाराम जी का वर्कशॉप था, और मै उत्सुक था. खड़ा था ब एच यू के गेट पर सुबह ९ बजे से, उन दिनों मैंने हॉस्टल मे ही रुकना सीख लिया था, हलाकि मै डे स्कालर था. गाडी ठीक समय पर आई सारे अनजान लड़के लड़किया बैठ गए. सभी के नजर चोर थे. एक बात खास थी की वो सारे ललित कला संकाय से थे और मै पर्यटन प्रबंधन का एकलौता छात्र. 

इस वर्क शॉप को करने के लिए मैंने बी एफ ए के प्रोफ़ेसर की स्पेशल सिफारिश की थी, नाम याद नहीं आ रहा उनका. वो भी पता नहीं क्या समझके मेरा नाम दे दिया “हम्म्म्म, पता नहीं क्यों मुझे लगता है की तुम्हे इस वर्क शॉप मे जाना दिया जाना चाहिए” कह कर मेरे फार्म पर साइन कर दिया.
तरह तरह के चित्रकार थे वहाँ जो नाथ्दारा स्टाईल सीखना चाहते थे, मै उनमे अपने आप को कही नहीं पा रहा था. वहाँ सभी एक दूसरे को जानते थे, सिर्फ मै था जिसे बस उसके ब्रश जानते थे.

“आप बी एफ ए के तो नहीं हो” एक लड़की ने मुझसे सवाल किया. 

मैंने सर हिला दिया, गजब का शर्मीला था मै उन दिनों, काँटा (असलि नाम- कांता) मुझे आज देख ले तो शायद वो विश्वाश न करे की ये मै ही हू. हालाकि आज भी मै खूब बोलता हू तो बस खास लोगो के साथ. 

“वोकल कार्ड खराब है क्या” – उसने कमेन्ट किया. 

मै फिर मुस्करा दिया बिना जवाब दिय्ये, जिससे शायद वो जल भून गयी होगी. 

कई दिन तक मै यू ही चुप रहा- स्वभावत: , बस गुरु राजा राम की अगुआई मे सीखता रहा. 
हाँ कभी कभी डाईरेक्टर प्रोफेसर आर सी शर्मा हमलोगों का हाल चाल ले जाते ( वो एक मूर्धन्य ग्यानी माने जाते है आज भी कला और इतिहास के, भारत कला भवन के डाईरेक्टर भी रहे वो- आज हमारे बीच नहीं है).

“यार तुम्हारा चेहरा जाना पहचाना सा लगता है”, अचानक एक दिन मैंने एक लड़के से मैंने पूछा, और शायद उस दिन पहली बार मेरी आवाज किसी ने उस वर्क शॉप मे किसी ने सुनी थी.

“पिछले जन्म मे तुम्हारा जीजा था” कह के वो हसने लगा, और मै कुढ़ गया. बेटा अब तो तू गया , पिटेगा तू ( मै शरीफ और शर्मीला था – कमजोर नहीं, और मै बनारस का ही हू तो जादा समस्या नहीं थी मुझे ये सब सांस्कृतिक कार्यकर्म का आयोजन करवाने मे) . 

ज्ञान प्रवाह की गाडी बी एच यू गेट पर छोड़ गयी. और मेरे दोस्त आ चुके थे, उनमे कुछ इंजीनयर थे, कुछ डाक्टर (सब आधा – यानी छात्र), कुछ उबन्तु शुध्ध बिरलाइट्स उस तथाकतित जीजा को पकड लिया, तो वो घबरा गया, उसे सपने मे भी गुमान नहीं था, की मेरे जैसा लौंडा की कोई बात भी सुनेगा. 

“महाराज जरा मटन बनाना” एक मटन को धोने के बाद दूसरा खायेंगे. बिरला होस्टल के मेस मे उसको पटक के किसी ने खानसामा से आवाज लगाई थी. उसका चेहरा फक पड़ चूका था, उसे नहीं समझ आ रहा था की उसे क्या क्या करना चाहिए या कहना चाहिए, क्योकि गलत तो वो कह चूका था. 
“भोसड़ी के तुम्हारा नाम क्या है ? “ एक एम् बी बी एस ३र्द इयर के लौंडे ने पूछा, जाहिर सी बात है की मेरे टोली का था.

“रामधनी” उसने रोवासा चेहरा बना के कहा. अब सच मे मुझे भी उस पर दया आने लगी थी. कलाकार का दिल कोमल होता है. . 

“कहा के रहने वाले हो ?” फिलोसफी के लड़के ने कुहनी मारी. 

“खमरिया – भदोही” – अब तक वो रो चूका था बस आँख मे आसूं नहीं थे. 
इतना सुनते ही मेरा पारा ठंडा हो गया.

वो इसलिए की वहाँ के ही कोलेज से मैंने दसवी की थी. रामधनी मेरे कान मे ये नाम दुबारा कौंधा, इस लडके के बारे मे ये कहा जाता था, की उस उम्र मे (जब वो ८ वि मे था) किसी का भी चेहरा देख कर दिन भर का कोमिक्स बना डालता था, ये नाम मैंने सुना था. 

अबे क्या हुआ ? – मेरे एक दोस्त ने मुझे सर पे हाथ रखे देख पूछा,

छोड़ यार इसको तुमलोग, मै बात करता हू. मैंने कहा. पता नहीं क्यों मुझे लगा की ये वही है जिसके बारे मे मै उस समय सुन चूका हू. 

अभी तक श्योर नहीं था मै, - कहा से पढे हो ? 

शहीद नरेश विद्या मंदिर . उसने जवाब दिया. 
हाँ ये पक्का वही है, बी एफ ए मे भी है, खमरिया का है, शाहिद नरेश से भी पढ़ा है. ये वही है. 

राहुल को जानते हो ? अमरनाथ को , मैंने एक साथ पूछा .

हाँ – उसने कहा . 

हाँ ये वही था . 

यार तुम चित्रकार आदमी ऐसी बदतमीजी करते है ? मैंने कहा . तब तक हमारा मटन आ चूका था, 

अरे यार इसका भी प्लेट लगवावो , हमारा गुरु भाई है . मेरे सारे दोस्त मेरा चेहरा देखने लगे थे. 

दूसरे दिन से हम ज्ञान प्रवाह साथ जाने लगे थे. अब हम अच्छे दोस्त थे. काई सालो तक दोस्ती रही. 

मै देल्ही आ गया, बनारस जाता रहा जब तक ओ डिपार्टमेंट मे रहा, मै जब भी बनारस जाता फैकल्टी आफ विजुअल आर्ट मेरा अड्डा रहा, हलाकि अपने डिपार्टमेंट कभी नहीं गया. जब भी जाता उसके साथ एक पेंटिंग जरूर बनाता . उसके बाद वो पुणे चला गया. 

अंतिम, समय मेरी उससे बात सन २०११ मे हुई, हाय हेल्लो हुआ , फिर उसने एक लड़की से भी बात कराई संभवतः वो उसकी गर्लफ्रेंड होगी. 

फिर मै अपने कामो मे व्यस्त हो गया. एक बार उसके नम्बर पर फोन किया तो “सेवा मे नहीं है “ की आवाज आई. मुझे लगा वो खुद मुझसे संपर्क करेगा. लेकिन उसने नहीं किया. 

कुछ दिनों बाद फेसबुक पे मुझे श्याम मिला, अब वो एन आई डी- अहमदाबाद मे था, “यार रामधनी का नंबर नहीं मिल रहा” मैंने उसे मसेज किया. 

“HE IS NO MORE” FLU ATTACKED HIM “ – उसने जवाब दिया और मेरी साँस अटक गयी. हाथ से ग्लास छूट गया. जितना पिया था अब वो आँख से बाहर आ रहा था,. ओह्ह . 

आज बरबस सब कुछ याद आ गया, जब मकान शिफ्ट करने के चक्कर मे उस वर्कशॉप का सर्टिफिकेट हाथ आया. 

और दोस्त तुम याद आ गए, ये फोटो मुझे कभी नहीं भूलती, तुमने जबरजस्ती करके मेरी ये एक्शिबिशन लगवायी थी. 

कमल

Tuesday, June 24, 2014

नौजवानों का चिंतात्मक शौक

नौजवानों ने अपने दिल को लुभाने के लिए नया नया शौक अपनाया, कभी सर के बाल खड़े कर झाड़ना मानो चिड़िया चुग गयी खेत, कभी सर पर भारत का नक्शा, कभी अपनी नयी मोर्डन लंगोट का ब्रांड स्ट्रिप पेंट से ऊपर दिखाना, कभी कण छिदाना मानो “नारी पुरुष सामान है” के आन्दोलन कारी, कभी कोलेज की लड़की पटाना तो कभी कोलेज की टीचर (विपरीत लिंगी अपने हिसाब से सब कुछ विपरीत कर लें), कभी सर तोडना, और मौका मिल जाय छिनैती करना.

खैर नौजावानो के के पास काफी समय है, नए नए शौक बना सकते है उसको पूरा करने के के लिए समय साधन खर्च कर सके है, दिमाग लड़ा सकते है. हैसियत हो समाज लडवा सकते है.

इसी चक्कर में एक नौजवान लगा है की उसे देश की चिंता करना जरुरी है, नहि करेगा तो देश अब बिका या तब बिका, ये नौजवान चिंता न करे तो देश किसी मंडी में बिक जाएगा, चिंता करना जरुरी है आखिर देश के नौजवान है, लेकिन ये नौजवान देश बिकने की चिंता में घुले जा रहा वो खुद बिकने की कगार है. ये नौजवान पनवाड़ी की दूकान से उधारी की सिगरेट मुह में लगा धुएं के गोल छल्ले जब ऊपर की और छोड़ता है तो उसे इस पुरे गोल पृथ्वी की भी चिंता हो जाती है. ओह्ह ये धरती, प्यारी धरती, वसुधैव कुटुम्बकम, दुसरे देशो में हुए युध्ध माहौल खराब कर रही है, इसका असर हमारे देश होगा या नहीं होगा? वो अपने जेब एक मात्र पड़े सिक्के को उछलता है, फिर तय करता है की पहले देश की चिंता की या विश्व की?

मेरा देश, हाय देश, बिक जाएगा, क्या होगा इसका, ये उधार की बीडी पि चिंता न करेंगे तो कौन करेगा? इसी चिन्तालय में वो पनवाड़ी से दूसरा उधार की सिगरेट मांगता है, पनवाड़ी मना कर देता, अब ये एक नयी चिंता ओह्ह बिना इसके देश की चिंता कैसे करू? कैसा छुद्र आदमी है, देश बिक रहा है और इसको अपने धंधे की पढ़ी है, ओह्ह्ह, क्या होगा मेरे देश का भविष्य, जब ऐसे ऐसे ग्रास रूट लेवल के पनवाड़ी न समझेंगे. फिर वो पनवाड़ी को देश के बारे में बताता है, पनवाड़ी मुस्कराता हुआ, तगादे के साथ एक और सिगरेट पकड़ता है, लो जी पार हुआ चिंता का पहला पडाव, फिलहाल देश की चिंता करने के लिए हुयी सिगरेट की चिंता का निदान हुआ, अब पनवाड़ी उसे अपना दोस्त लगता है, जो कुछ देर पहले छुद्र लग रहा था.

फिर वो उससे देश के बारे में बात करने लगता है. उफ़ देश को बिकने से कैसे रोकू, चलो उस मंडी को ख़त्म कर दें जिसमे ये देश बिकेगा, फिर वो उस मंडी को खोजने की चिंता में घुल जाता है, कहा है ये मंडी? किधर मिलगा? दिल्ली आजाद मार्केट या बनारस का चनुवा सट्टी, कौन लेके जाएगा बेचने? ये एक नयी आफत? ये कौन को कैसे ढूँढा जाय? किस रास्ते से जाएगा. कौन सी गाडी पे? या लम्बी करियर वाली सायकिल पे? ये एक नयी चिंता.

कौन सी कृतघ्न कम्पनी ऐसे वाहन बना सकती है? दुष्ट कम्पनी? कम से कम ऐसे लोगो के हाथो में अपना वाहन तो न देती, पहचान करना भी जरुरी नहीं समझती? उफ्फ्फ ये दुष्ट कम्पनिया, क्या किया जाय इनका? ये एक नयी चिंता.

सुनो इस कम्पनी को ही जला दिया जाय, फिर देखते है वो कैसे बेचता ऐसे लोगो को अपना साधन जो देश बेचते है. उसका दूसरा सिगरेट भी खतम होने वाला है. वो वापिस अपने जड़ चिंता में लौटता है, अबकी उसको पता है की पनवाड़ी जादा कृतघ्न है, देश की चिंता के लिए उसे सामन भी मुहैया न करवाएगा.

कहाँ मर गया ये दिनेश, आज पैसे देने वाला था? साले ये एन टाइम पे धोखा दे जाते है, इनको नहीं मालुम की देश की चिंता के लिए कितने साधन की जरुरत होती है, सीने में आग जलानी पड़ती है, गला तर करना पड़ता है, साले ये आजकल के नौजवान भी न बस यु ही है, ठीक टाइम पे उधार भी नहीं दे सकते, लानत है इनकी जिंदगी पर जो एक देश भक्त को उधार देने की भी हैसियत नहीं रखते.

तभी उसके मोबाईल की घंटी बजती है.वो ख़ुशी से हकलाता हुआ “एस डार्लिंग कहा हो? हाँ मिलते हैं न, अरे वही कालेज वाले गार्डन में”. 
अब उसके पास एक नयी चिंता है, गार्डेन में एक सहूलियत वाली जगह ढूढने की.


सादर 
कमल कुमार सिंह 

Sunday, June 22, 2014

ईराकी -इस्लामी आतंकवाद और भारत पे प्रभाव


ईराक में जो खुनी खेल चल रहा है उसका तो अल्लाह ही मालिक है, वो मालिक इसलिए की सारा खेल ही उसी के नाम पर हो रहा है, इस्लाम.जिसकी वजह से लिबरल मुस्लिम पूरी दुनिया में शर्मशार होते है, और दुसरे सम्प्रदाय के कट्टरपंथियों का निशाना.
  
पहले ये जान ले की ईराक में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा हैतो सीधा सीधा वो कह रहे है की "इस्लामिक राज्य" पत्रकार या मिडिया इसके पीछे अमेरिका का हाथ बताते नहीं थकते, अगला जोर जोर पुरे गले फाड़ कर कह रहा की वो ये सब इस्लाम के लिए कर रहा लेकिन कमाल है किस वहाशियाने ढंग से "अमेरका छाप" दलील द्वारा डिफेंड किया जा रहा है की दिमाग फेल हो जाए. लेकिन ध्यान दें अमेरका क्या सरोकारसद्दाम को ख़त्म कर उसने अपनी ताकत दिखा दी थीईराक में वर्तमान सरकार रहे या इन सुन्नियो की फिर भी अमेरिका को तेल की की कोई चिंता नहीं उसके लिए तो सब बराबर है यदि हम इस "अमेरिका छाप" दलील माने तो. इसलिए उसने दखल देने से फिलहाल हाथ खड़ा कर लिया है, उसे अच्छी तरह मालुम है की दो बंदरो के बीच के लड़ाई में उसे नहीं पड़ना है बल्कि फायदा उठाना है. कुछ मुस्लिम ये भी दम भरते है की बराक हुसैन मुस्लिमान है, फिर जब भी कहीं विश्व में कुछ भी मुस्लिम में खिलाफ हो तब भी बड़ी चालाकी से अमेरिका के मथ्थे चढ़ा दिया जाता है. मुस्लिमान अपने फेवर में ओबामा का चरित्र (मुस्लिम होंना) जैसे चाहे बताते है, मुस्लिम ताकत दिखानी हो तो वो भी मुसलमान है, और जब बिना कारन इस्लाम के नाम पर लड़ाई हो तो तो वो इस्लाम का दुश्मन है.

चलो मान लेता हु इसके पीछे अमेरिका का हाथ है, तो फिर बर्मा में क्या हो रहा है? श्रीलंका? वहां अमेरिका का क्या हित हो सकता है? ये तो छोडिये जनाब पकिस्तान और अफगानिस्तान पर नज़ारे इन्यायत कीजिये. हिन्दुस्तान में मोदी और विश्व में अमेरिका को मीडिया/पत्रकार? ने कुछ इस तरह का गढ़ा है मानो मोम के हो, जहाँ चाहे थोडा सा गरम कर फिट कर दो.शुक्र मनाईये दोनों ही अपनी अपनी जगह मजबूत है नहीं तो पता नहीं दोनों का इस्लामिस्ट क्या कर बैठते.

भारत में भी मुलमानो का पर्सनल ला अलग है? तो जरा ये बताएं की ये इस्लाम के नाम पर है की इसके पीछे भी अमेरिका का हाथ हैजब इसके पीछे अमेरिका नहीं तो कहीं भी कुछ भी हो मुह उठा के अमेरिका वाले दिशा में थूक देने से सच्चाई तो नहीं बदलेगी न? कुछ अधिकार चाहिए किसी भे देश के कानून से अलग तो इस्लाम की वजह से, और इस्लामी कहीं कुछ उत्पात करे तो अमेरिका की गोद है न, फेंक दो गलती? गजब का तर्क है यार.

चलो मान लिया की इसके पीछे अमेरिका है, तो उसका सिक्का बस इस्लामी देशो में ही क्यों चलता है ? सोवयत के पास भी अब तेल के बड़े भण्डार है, साथ कुछ अन्य यूरोपियन देशो के पास भी उनके तेलों में क्या कीड़े पड़े हैनहीं, अमेरिका को अच्छी तरह मालुम है की कौन से धर्म के नाम पर किसको आसानी से भडकाया जा सकता है.

चलो जी अब कुछ कह रहे है ये सत्ता की लड़ाई है. जी हाँ, इस्लाम का उद्देश्य ही क्या है फिर?मोहम्मद साहब के बाद इस्लाम का दुरुपुयोग बस सत्ता के लिए ही किया गयायहाँ तक की इस्लाम के नाम पर उनके पुरे परिवार की हत्या कर दी गयी ताकि सत्ता हथियाया जा सके. हर जगह हर तरफ, पुरे विश्व में.

बेवजह अमेरिका, सऊदी अरब या ईराक के सुन्नियों को दोष क्यूँ दें, सीरिया में तो 2 लाख से ज्यादा मुसलमान मरा है , वहां इस नरसंहार का दोष शियाओं पर था. जहाँ जिसका दाव लगा उसने सामने वाले को  मार दिया पर एक बात पक्की है , जिसने भी मारा मारा इस्लाम के नाम पर, जेहाद के नाम पर,  न सुन्नी, न शिया और न वहाबी, इन सभी हत्याओं का दोष जिहाद पर है, इस्लाम पर है.

क्या इन सब का भारत पर प्रभाव पढ़ेगा? क्या यहाँ भी कुछ सुगबुगाहट होगीजबकि आई एस ई एस के लोगो ने विडिओ बना भारत के मुसलमानों का भी आव्हाहन किया है. क्या यहाँ कोई/ कोई संघटन उनके साथ हो के भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ने की तयारी कर सकता हैध्यान रहे हमारे यहाँ सिमी जैसे प्रतिबंधित संघठन भी है, और एक पुराना  तथा वर्तमान इतिहास भी.

क्यों की इस्लाम को मानने वाले पुरे विश्व में है जैसा की हर मुस्लिम ८६ इंच का सीना तान के कहता है लेकिन पुरे विश्व को देखिये क्या हो रहा है वहां. मुझे बड़ा अजीब लगता है जब भारत में भी मुस्लिम कहते हैं "हम पुरे विश्व में है"  तो जब भी कहीं पुरे विश्व में इराकी घटना हो तो आपसे क्यों न जोड़ा जाए ? फिर ये कहाँ कहाँ तक जायज है की ये हिन्दुस्तान है यहाँ ऐसा कुछ नहीं हो सकता ? जबकि हुआ है, कश्मीर में कश्मीरी सेना बस इसीलिए पाकिस्तानियों से मिल गयी थी की वो मुसलमान थे, और ठीक यही ईराक मे हो रहा है, सुन्नी समुदाय इन इस्लामी आतंकियों के साथ इसलिए हो गया है की ये इस्लामी आतंकवादी सुन्नी है. चलिए जी माना सत्ता की लड़ाई है, तो ये जो आम इराकी सुन्नी इन इस्लामी आतंकियों के साथ मिल रहे उन्हें तो सत्ता का भागीदार बनाने से रहे ये इस्लामी आक्रमणकारी ? तो फिर ?? तो जाहिर ये बस इस एहसास के उनके साथ है की वो इनके जमात के हैं. नहीं तो १० -२० हजार के इस्लामी दहशत गर्द किसी भी देश को बंदी बना लें ये असम्भव है, जब तक वहां की अवाम साथ न हो. 

जब भी कहा जाता है भारत में इस्लाम तलवार के बल पर फैला तो मुस्लिम तिलमिला जाते है अरे मानिए न की सत्ता की लड़ाई थी मुस्लिमो दवारा न की इस्लाम के लिए, तो साहब खरबूजा चाक़ू पे गिरे या चाक़ू खरबूजे पर कटता खरबूजा ही है. इस्लाम को कुछ इसी तरह का हथियार बना गया.  

विश्व में कहीं कुछ भी हो  तो भारतीय मुसलमान ये आशा करते है की उन्हें उसमे न घसीटा जाय, और ये उनकी आशा वाजिब  भी जिसका हमें सम्मान करना चाहिए, लेकिन तभी याद आता है, इस्लाम ब्रदरहुड के नाम पर मुंबई में तोड़ फॉर जो की कही दूर बर्मा में हुआ था, कही श्रीलंका में हुआ था, अब ईराक के लिए भी पर्चे साइन कराये जा रहे है तो भाई अब सोचो की आपकी आशा जायज है या ना जायज. मुझे नहीं याद है की पाकिस्तान में हुए हिन्दू उत्पीडन के मामले में किसी भारतीय मुलिम को कोप झेलना पडा हो, किसी बंगलादेशी मुस्लिम की सजा यहाँ हिन्दुस्तान में मिली हो, अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ने पर किसी बुद्धिस्ट का कोप भाजन किसी देश में कोई मुस्लिम हुआ होजबकि बाबरी गिरने के ठीक बाद हर इस्लामी मुल्को पर हिंदुवो के उपर भयंकर गाज गिरी, खून के आंसू रुलाया गया, उनको पाकिस्तानी, बांग्लादेशी नहीं बल्कि हिन्दू माना गया. भारत के मुसलमान भी अमेरिका को गरियाते है लेकिन याद है की इन्ही लोगो ने अमेरिका को मोदी के लिए वीसा ना देने का पत्र लिखा था, और यदि आज भी बस चले तो मोदी को कुचलने के लिए किसी दुसरे देश की सेना माँगा ले. 


इस इराकी इस्लामी आतंकवाद में भी भारत के मुसलमान पर्चे साइन करा रहे है"शहादत" के लिए, जिनका उस अरब कंट्री से कुछ लेना देना भी नहीं है, तो जरा सोचिये, किसी खुरापाती तत्व की वजह से इश्वर न करे उंच नीच हो गयी या मुस्लिम और गैरमुस्लिम में जरा सा भी तनाव हुआ तो क्या यही पत्र इस्लामी देशी में नहीं जाएगा की भारत आओ हमारी मदद करो, गैर मुस्लिमो को ख़त्म करो. और वो तो तैयार बैठे हैं, विडियो भी बनवा के भिजवा दी की करो भाईयो हम बैक अप देते है. सरकार को तत्काल ऐसे लोगो पर लगाम लगनी चाहिए जो इंसानियत नहीं बल्कि मुसलमानियत के नाम पे ऐसी हरकत कर रहे है, यदि ये इंसानियत के नाम पे पहल करते तो सबसे आव्हाह्वाहन करते, मुस्लिम गैर मुस्लिम सभी से और सबको मिलकर सरकार पर दबाव बनाते की ईराक में कुछ करो इंसानियत के लिए, ये पर्चे साइन करा शहादत के लिए आह्वाहन करना "डाइरेक्ट एक्शन" जैसा कुछ नहीं लगता ? किसी देश में कुछ भी हो तो वो वैश्विक स्तर और राजनैतिक स्तर पर बात चित होती नहीं की इस्लामी विचार धारा के अनुरूप. 


होना तो ये चाहिए की इस्लाम के नाम पर होना विश्व में कहीं भी कुछ गलत हो आप मुस्लिम आगे आयें और सबका साथ मांगे, सोचिये हम भारतीयों का सर गर्व से कितना ऊँचा उठेगा, हम सीना ठोक के दुसरे मुल्को के ऊपर लानत भेज सकते है की हमारे मुल्क का मुस्लिम पहले इंसान है उसे विधर्मियो से भी परहेज नहीं मानवता के लिए काम करने को, लेकिन नहीं, आप तभी एक्टिव होते है जब विश्व में कही मुस्लिमो पे गाज गिरी हो और एक्टिव भी बस मुस्लिम ही होते है, क्या मुस्ल्मानियत इंसानियत से ऊपर है ? क्या इस्लाम ये सिखाता है की जब मुलमान परेशान है तभी आप परेशान हो, क्या इस्लाम ये सिखाता है की कोई गैर मुस्लिम चाहे कितना भी जहीन हो और वो परेशान हो तो आप इन्तजार करो की कब मुस्लिम परेशान होता है ?  क्या आप लोग लगता है की गैरमुस्लिम आपका साथ नहीं देगा तो, लानत है आपके सोच पर. भारत की बहुसंख्यक जनता इस इन्तजार में बैठी है की वो कब अपने को भारतीय माने और हमारे गले लगे बजाय की काफिर कहने के. हम ये मानते है की मस्जिद का गिरना गलत था, मस्जिद हो या मंदिर हो, चर्च हो गुरुद्वारा जो भी चींजे भारत में है वो हर भारतीय की विरासत हैउसे सम्हालने की जिम्मेदारी सभी भारतियों की है, न  की किसी हिन्दू, मुस्लिम सिख्ह इसाई की. 

विश्वाश कीजिये मेरा इरादा किसी का दिल दुखाना नहीं है, लेकिन मेरे मुआज्जिज दोस्त इस पर कुछ बोल नहीं रहे तो लिखना पढ़ रहा है, इसकी वजह से किसी का दिल दुखे तो मै माफ़ी मांगता हु, क्यों की कोई मेरे  लिए हिन्दू - मुस्लिम इसाई सिख्ख बाद में है पहले वो मेरे लिए इंसान है.

सादर 
कमल कुमार सिंह 

Saturday, June 14, 2014

केजरीवाल जी, नॉट योर व्यू लगाविंग -नो उल्लू बनाविंग

नोट : आपियो ने मिलके इसको स्पाम कर दिया है शायद, आप नॉट स्पाम पे क्लिक करके आगे बढ़े. 


कालीबाड़ी में हुए मोहल्ला सभा में केजरीवाल ने स्वीकार किया की उन्हें लगा की वो सरकार पूर्ण बहुत से बना लेंगे इसलिए इस्तीफा दिया. केजरीवाल राजनीति को अपने "लगने"और "न लगने" के चश्मे से ही तय करते है. 
उन्हें "लगता है" की गडकरी भ्रष्ट है, उन्हें  "लगता है की" संविधान भ्रष्ट है, उन्हें लगता है की जमानत मागने वाला "जज" गलत है. 

चुनाव से पहले उन्हें  बटाला काउंटर  पुलिस वाले पहले गलत लगते थे, चुनाव के बाद उसी पे कोर्ट का निर्णय सही लगता है.  

पहले उनको कुर्सी छोड़ के भागना राम के त्याग के बराबर लगता था, और अब उस त्याग पे माफ़ी मांगते है यानी उनकी नजर में राम गलत बना दिया.  

देल्ही विधानसभा चुनाव से पहले कोंग्रेस  भ्रष्ट लगती थी, चुनाव के बाद उसी के साथ सरकार बना ली.

पहले उन्हें लगता था की उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए, फिर उन्हें लगा की आना चाहिए.

पहले किरण बेदी उन्हें ठीक लगती थी, बाद में भाजपा की एजेंट हो गयी,पहले विक्रम सिंह उन्हें ठीक लगते थे, बाद में वो भी भाजपा के एजेंट हो गए,पहले राम देव उन्हें महान लगते थे सो उन्ही के गोद से आन्दोलन शुरू किया, बाद में उन्हें लगने लगा की  रामदेव उनके राजीनीतिमें आने वाले प्लान के रास्ते के रोड़े है, सो बाद में वो भ्रष्ट हो गए. 

उन्हें लगता है की अदानी मोदी को जहाज देते है, जरुर गड़बड़, लेकिन उन्हें ये भी लगता है की आजतक वाले उन्हें चार्टर्ड में लाते है तो ठीक है. 

उन्हें लगता है की ५०० रूपये जेब कहने से बनारस की जनता मुर्ख बन जाएगी, जबकि वापसी चार्टड में हुयी तो लगता था ये बात जनता को पता नहीं चलेगी. 

लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल को  लगता था की बनारस में "सत्यमेव जयते" होगा और बनारस की जनता बुध्धिमान है, अब उन्हें लगता है की बनारस की जनता बेवकूफ है.  

पहले उन्हें लगता था की सरकार छोड़ कर जनता की सहानुभूति मिलेगी तो सरकार छोड़ने का स्टंट किया, अब उन्हें वो गलती लगती है. 

उन्हें लगा की उनकी धरना देने वाले या वैसे ही कुछ  विकट हरकत से वो मिडिया में छाये रह सकते है, और छाये भी, लेकिन अब जब मीडिया उन्हें नहीं पूछता तो उन्हें भ्रष्ट लगता है. 

पहले इनको कोंग्रेस भ्रष्ट लगती थी, बाद में इन्हें बेदाग़ मोदी भ्रष्ट लगने लगे, पहले इनको भ्रस्टाचार एक सही मुद्दा लगता था, बाद में साम्प्रदायिकता लगने लगी.  


फिर इनको लगाने लगने लगा की पुरे देश में सभी पार्टियों का जमानत जब्त करवा देंगे, लेकिन जनता फिर लगा के जूता मारा मुह पर और ४०० से जादा सीटों पर जमानत जब्त करवा दी. 

इनको लगता है की नेतावो को इनका जवाब देना चाहिए, और इनको ये भी लगता है की इनको किसी का जवाब नहीं देना चाहिए, इनको लगता है की इनसे सवाल पूछने वाला या तो भ्रष्ट है या भाजपा - कोंग्रेस का एजेंट. 

इनको लगता है सब पर इल्जाम लगाना चाहिए, लेकिन इनको ये भी लगता है की इनकी आलोचना न हो. 

केजरीवाल जी इस लगने लगाने वाले चक्कर से बाज आईये, आपके इसी लगने लगाने वाले व्यवहार से जनता ने आपको दख्खिन लगा दिया, अब कितनी बार लगवावोगे ? 

आपका और आपियो का वही हाल है "अबकी मारो  तो जाने " "अबकी देख लेना" ये "आपीए"  (चुतिया x 1000= 1 आपिया)  पहले डेल्ही के विधान सभा में सबकी जमानत जब्त करवाते थे, दुसरे नंबर पर आये तो मुह काला कोंग्रेस के साथ किया जिसको ये एड्स से पीड़ित मानते थे. अब वही कोंग्रेसी बिमारी इन आपियो को लग गयी है. जानलेवा है धीरे धीरे आपियो और आपा को खत्म कर देगी. लेकिन फिर भी रोगी जब तक मर न जाए लड़ता है, जूझता है ऐसी ही हालत इन आपियो की है. 

सब मिला के उन्हें अब भी लगता है की वो जनता को उल्लू बना सकते है, वो बात अलग है की जनता ने उन्हें उल्लू मान के बैठी है, जो रात के समय अपने हिसाब से "लगने" के  वातावरण में निकलता है. 

जनता समझ चुकी है आपीए गुलेल से जहाज मार गिराने की बात करते है - तो प्लीज नो मोर उल्लू बनाविंग. 

सादर 
कमल कुमार सिंह.  

Thursday, May 22, 2014

स्वर्ग में धरना



स्वर्ग के विश्वशनीय एकाउंटेन्ट चित्रगुप्त व्हाट्स एप पे इंद्रा से कुछ निर्देश ले रहे थे, तभी मै नारायण नारायण करते हुए प्रकट हुआ. 

"कैसे आना हुआ मुनिवर? प इस बार के पृथ्वी लोक का टूर कैसा रहा? क्या क्या किया? कहाँ कहाँ घुमे? अब आगे का क्या प्लान है, और ये आपके सर पे टोपी कैसी है? अपने जूड़े को कैसे एडजस्ट किया." चित्रगुप्त ने एक ही सांस में सारे सवाल कर डाले. 

"क्या यार मरदे तुम भी धरनामैन की स्टाईल में एक साथ सवाल करते हो? थोडा पानी पि लिया करो, जवाब तो हम देंगे ही. रही टोपी की बात तो अभी भारत में इसी का चलन है, ये नहीं पहना तो चाहे तुम दानव हो देवता, दानव की श्रेणी में ही आओगे, इज्जत भी कोई चीज है की नहीं? गुंडों से बचना है तो गुंडों जैसे बन जाओ" - आई  रिप्लाईड.. 

लेकिन मुनिवर आपको इसी क्या जरुरत ? चित्रगुप्त शंकाषित पूछे . 

पहले तो मुझे भी जरुरत नहीं समझ आया, पर जिस कोन्फीडेंस से धरनावाल सिर्फ सवाल पूछने के लिए मुह खोलते है, उनका मुह माफिया लेन की तरह है, वन वे, सिर्फ प्रश्न के लिए खुलता है, जवाब के टाईम पे फेविकोल पी के उस कम्पनी से भी चंदा वसूल लेते है की देखि तेरा पिया तो तू धन्य है, मै समझ गया की ब्रम्हा की जी ने कोई गोची किया है, बिना किसी से बताये दसवें अवतार बना के विष्णु जी को ही भेजा है, सो मारे डर के मै मोफ्ल्रावातारा के सिर्फ प्रश्न पूछने के लिए खुलते मुह के सामने मैंने कुछ पूछने के लिए अपना मुह नहीं खोला, हलाकि एसा नहीं था, की मैंने कोशिश नहीं की, एक बार की थी, लेकिन मोफ्ल्रावातर के साथ शव बम की भुत प्रेत मंडली भी है उन्होंने मुझे खूब कूटा, मेरे बाल बिखेर दिए, मेरा सारंगी तोड़ दिया. मुह से फेचकुर फेक्वा दिया, लेकिन अब वो ठहरे प्रभु, मै क्या करता? सो टोपी पहन ली. 

तो आप ब्रम्हा जी से शिकायत क्यों नहीं करते? 

गया था उनके पास, लेकिन उन्होंने इस घटना में अपना हाथ होने से साफ़ इनकार कर दिया. 

फिर ? 

फिर विष्णु जी के पास गया, उन्होंने भी कहा की वो  मै नहीं हु . 

फिर ?

फिर मै दुबारा ब्रम्हा जी के पास गया? तो वो मुझे अपने कार्यशाला ले गए, और एक आलमारी पट को दिखा बोले" जानते हो ये क्या है? ये है दिमाग? शरीर बना हि था की वो बिना दिमाग के भाग लिया, मैंने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन वो भागता रहा, कभी अमरावती, कभी स्वर्ग, वहां जा के  सबको अंट शंट सुनाया. लक्ष्मी को कहा, की आपके पास जो नोट है वो बिना लेखा जोखा का है. 

दूतगण पकड़ने को हुए तो वहां से फिर भगा, नरक में जा के वहां के लोगो को भी डराया, बोले देवतावों के खिलाफ मेरा साथ न दिया तो बिजली पानी बंद कर दूंगा, वो उसके साथ हो लिए, एक बार फिर देव्तावो और असुरो में युध्ध हुआ, एक समय एसा भी आया की जब वो हारने लगा, लेकिन एक बार फिर वह दानव सहित प्रथ्वी पे कुंच कर गया, बाकी तो तुम वही से आ रहे हो, बाकी का तुम बताओ.


हे परम पिताआपका बनाया वो डैमेज पिस अत्यंत आतुर है कुर्सी के लिएलेकिन समस्या ये है की जो यहाँ थीकही एक जगह टिकता नहींकिसी एक कुर्सी पे तशरीफ़ नहीं धरताएसा नहीं की कुर्सियों में किल गड़े पड़े हैंबस भागता रहता है अलग अलग कुर्सियों के लिए मानो म्यूजिकल चेयर खेल रहा हो.  - आई उवाच.

भागना, धरना देना और प्रश्न पूछना उसका अन्तराष्ट्रीय होबी है, खुद कुर्सी पे न हो तो कुर्सी धारक के बजाय विपक्ष से प्रश्न पूछता हैकुर्सी पे हो तो जनता से प्रश्न पूछता है, खुद जनता रहे या नेता रहे या शाशक, वो सदाबहार धरनामुग्ध है, यदि उससे गलती से भी जनता ने प्रश्न पूछ लिया तो उसे अम्बानी का बिकाऊ आइटम कहता है, और दबा के खांसता है हर बात पे, कुछ तो कहते है वो बलगम से पैदा हुआ है इसलिए स्वभावतः खांसता है.  

ओह्ह्ह ऐसा ?? तब अब यमराज ही मदद कर सकते है पृथ्वी वासियों की - ब्रम्हा उवाच . 

फिर क्या हुआ मुनिवर - चित्रगुप्त आस्क्ड.

फिर क्या ब्रम्हज्ञान से यमराज चल दिए अपना सोटा ले के उसको सोटने.

फिर ??

फिर क्या, फिर धरनामैंन गुस्से में आ गया, जिससे मलेशिया वाला विमान गायब हो गया, उसे समुद्र निगल गयी, बोला तू क्या मुझे मारेगा? मुझे कूटने के लिए क्या मेरे ससंदीय क्षेत्र के लोग क्या कम है ? देख यामुवा, ये कूट काट कर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो तुम्हरी क्या औकात है? हम लात - मार -प्रूफ है. और सुनो मै समझ समझ रहा हु, तुम मोदी से मिले हुए हो, इस काम के लिए अदानी ने तुम्हे  भैंसा दिया है, 

फिर क्या ? 

फिर महाराज, उसे तड़ तड़ अपने गुर्गो से उनके गुर्गो को मैसेज करवाया है, अब यहाँ स्वर्ग में आ रहा धरना देने, इसीलिए मै भागा भागा आया ताकि सुचना दे दु.

इतना सुनते है चित्रगुप्त बेहोश हो गए, और मै उनके इलाज के लिए अश्विनी बंधुवो को लाने जा रहा हु . 

सादर 

कमल कुमार सिंह - नारद .

Wednesday, February 19, 2014

नेता या नंगा


हमारे समाज ने हमें एक हमाम दिया है जिसमे सब नंगे होते है, ज्ञान चतुर्वेदी जी के भाषा में कहें तो नंगा होना बहुत जरुरी है इसीलिए हमाम का निर्माण हुआ. 

लेकिन नेता अपवाद है, वो कहीं भी नंगे या नंगेपन पे उतारू हो सकते हैं, समय पर नंगे होते है, नंगापन दो प्रकार का होता है श-शरीर और दूसरा आध्यात्मिक, मसलन जिसतरह से "उत्तर" प्रदेश के नेता अपने कपडे को बेटी की तरह बोझ मान कर अपने शरीर से अलविदा कर देते हैं वो श -शरीर नंगई है. और दूसरा मीडिया का मोफ्ल्रावातार के  जूठ को  प्याज के छिलके की तरह उतारना, वो अध्यात्मिक कटेगरी का नंगई है, हालाकि की ये आध्यात्मिक सुख स्यवं मोफ्ल्रावातार नहीं लेना चाहते फिर भी पब्लिक और मिडिया उन्हें ये सुख देने पे उतारू है. हाँ हलाकि कुछ दिन पहले जिस प्रकार के धरना प्रदर्शन सहित छोटे बच्चों सी नगई करी वो उनकी इक्छा के मनमाफिक था. 

 ये नंगा क्यों है ये तो नेता ही जाने या नंगे जाने या नंगे नेता जाने, नेता नंगे जाने हलाकि नेता और नंगा में आप चाहे तो कोई फर्क न करे, हमें कोई आपत्ति नहीं होगी.  

एक अच्छा खासा इंसान पहले तो न जाने क्यों नेता बनता है अथवा नंगा बनाने की और अग्रसर होता है, क्या मिलता है नंगा बनने में ?? माल पूवा??  नहीं, वो सेवा करना चाहता है,सर्वोत्तम सेवा,  भयंकर सेवा, विकट सेवा, वो सेवा करने की पिछले सभी वर्जनाओं को तोड़ना चाहता है. वो देश को एक नया नेतृत्व देना चाहता है. 

दुनिया भर के तिकड़मों को क्या वो खुद के लिए करता है ? किसे अच्छा लगता है किसी के तलवे चाटना ? किसी की दलाली करनी? अपने सीनियर सेवामय नेता के जूते उठाना, जूठे चबाना ? आपको क्या लगता है वो अपने लिए करता है ? यदि आप ऐसा सोचते है तो आपसे जादा कृतघ्न पुरे इस धरा पर नहीं. वो करता है तो बस आपके लिए, वो पूरा जीवन ही बस जनता की सेवा के लिए बना होता है, उसको ब्रम्हा जी ब्लैक में स्पेशल कोटे से सेवा करने का लाईसेंस के साथ हाथ में सेवा का घनघोर रेखा खिंच कर पृथ्वी पे भेजते है.

अब इतनी मशक्कत के साथ  पृथ्वी पे आने के बाद इस निरीह प्राणी के पास कोई रास्ता नहीं बचता सिवाय की वो जनता की सेवा करे. आपने काभी इस बात पे ध्यान  दिया की जब वह नेहरूटोपी लगा (जिस  टोपी को वो गांधी का  हर्फ़ दे के  पहनते है उन्हें ये वही जानकार नेता है जिन्हें नहीं  की गांधी ने आज तक कभी टोपी पहनी ही नहीं सिवाय एक बार के जब वो साउथ अफ्रीका में कुछ दिनों के कैदी थे) हाथ जोड़ आपके समक्ष कहता है की वो राजनीति करने नहीं बल्कि बदलने आया है, वो आप जैसा ही है, तो आप बस समझ लेते की यही है हमारे तारण हार, और समझना बुरा भी नहीं है, अब आप जैसे लोग नहीं समझेंगे तो उसके सेवा करने का कोटा अधुरा रह जायेगा. 

वह जनता की सेवा करने का कोई भी अवसर नहीं चूकना चाहता, चाहे जो करना पड़े, क्या आपके लिए अपने सगे ने  कभी किसी की हत्या की है ? बाल्तकार किया है ? लूट की है ? उत्पात मचाया है ?? नहीं न, आपके अपने और आप खुद  जिसे जघन्य मानते वह ये नेता, बस आपके लिए कुछ भी करने पे उतारू रहता है, वह आपकी सेवा में किसी भी हद तक जा सकता है.  लात मार सकता, लात खा सकता है,  पारस्परिक रूप से गालीयों का आदान प्रदान भी कर सकता है या करता है, सामने वाले सेवक को निपटा खुद पूरा भार वो अपने सर मढना चाहता है तो किसके लिए ?? बस जनता के लिए. 

ये सेवा भाव का ही असर है की संसद से प्रसारण बंद कर दिया जाता है, क्योकि वह सेवा भी करना चाहता और एहसान भी नहीं जताना चाहता, इससे जादा सच्चरित तो स्वयं सोलह कला संपन्न कृष्ण भी नहीं हो सकते. 

उत्तर प्रदेश के नेता इस मामले में आगे है, कोई "लैला लैला चिल्लाता था कपडे फाड़ के"  इसी परम्परा में उन्होंने सेवा सेवा चिल्लाया कपडे फाड़ के तो कौन सी आफत आ गयी ?? 

जनता का क्या वो तो कुछ भी बोलती है, वो एहसानफरोश होती है, कोई कितनी भी सेवा कर ले लेकिन उसे नेता सुहाता ही नहीं, वो बात अलग है की वो नेतावों से सेवा लेने पे मजबूर है, विकट सेवा, भयंकर सेवा, अथाह सेवा, अनंत सेवा, नंगी सेवा. 

सादर 
कमल कुमार सिंह 
१९ फरवरी २०१४