नारद: February 2014

Wednesday, February 19, 2014

नेता या नंगा


हमारे समाज ने हमें एक हमाम दिया है जिसमे सब नंगे होते है, ज्ञान चतुर्वेदी जी के भाषा में कहें तो नंगा होना बहुत जरुरी है इसीलिए हमाम का निर्माण हुआ. 

लेकिन नेता अपवाद है, वो कहीं भी नंगे या नंगेपन पे उतारू हो सकते हैं, समय पर नंगे होते है, नंगापन दो प्रकार का होता है श-शरीर और दूसरा आध्यात्मिक, मसलन जिसतरह से "उत्तर" प्रदेश के नेता अपने कपडे को बेटी की तरह बोझ मान कर अपने शरीर से अलविदा कर देते हैं वो श -शरीर नंगई है. और दूसरा मीडिया का मोफ्ल्रावातार के  जूठ को  प्याज के छिलके की तरह उतारना, वो अध्यात्मिक कटेगरी का नंगई है, हालाकि की ये आध्यात्मिक सुख स्यवं मोफ्ल्रावातार नहीं लेना चाहते फिर भी पब्लिक और मिडिया उन्हें ये सुख देने पे उतारू है. हाँ हलाकि कुछ दिन पहले जिस प्रकार के धरना प्रदर्शन सहित छोटे बच्चों सी नगई करी वो उनकी इक्छा के मनमाफिक था. 

 ये नंगा क्यों है ये तो नेता ही जाने या नंगे जाने या नंगे नेता जाने, नेता नंगे जाने हलाकि नेता और नंगा में आप चाहे तो कोई फर्क न करे, हमें कोई आपत्ति नहीं होगी.  

एक अच्छा खासा इंसान पहले तो न जाने क्यों नेता बनता है अथवा नंगा बनाने की और अग्रसर होता है, क्या मिलता है नंगा बनने में ?? माल पूवा??  नहीं, वो सेवा करना चाहता है,सर्वोत्तम सेवा,  भयंकर सेवा, विकट सेवा, वो सेवा करने की पिछले सभी वर्जनाओं को तोड़ना चाहता है. वो देश को एक नया नेतृत्व देना चाहता है. 

दुनिया भर के तिकड़मों को क्या वो खुद के लिए करता है ? किसे अच्छा लगता है किसी के तलवे चाटना ? किसी की दलाली करनी? अपने सीनियर सेवामय नेता के जूते उठाना, जूठे चबाना ? आपको क्या लगता है वो अपने लिए करता है ? यदि आप ऐसा सोचते है तो आपसे जादा कृतघ्न पुरे इस धरा पर नहीं. वो करता है तो बस आपके लिए, वो पूरा जीवन ही बस जनता की सेवा के लिए बना होता है, उसको ब्रम्हा जी ब्लैक में स्पेशल कोटे से सेवा करने का लाईसेंस के साथ हाथ में सेवा का घनघोर रेखा खिंच कर पृथ्वी पे भेजते है.

अब इतनी मशक्कत के साथ  पृथ्वी पे आने के बाद इस निरीह प्राणी के पास कोई रास्ता नहीं बचता सिवाय की वो जनता की सेवा करे. आपने काभी इस बात पे ध्यान  दिया की जब वह नेहरूटोपी लगा (जिस  टोपी को वो गांधी का  हर्फ़ दे के  पहनते है उन्हें ये वही जानकार नेता है जिन्हें नहीं  की गांधी ने आज तक कभी टोपी पहनी ही नहीं सिवाय एक बार के जब वो साउथ अफ्रीका में कुछ दिनों के कैदी थे) हाथ जोड़ आपके समक्ष कहता है की वो राजनीति करने नहीं बल्कि बदलने आया है, वो आप जैसा ही है, तो आप बस समझ लेते की यही है हमारे तारण हार, और समझना बुरा भी नहीं है, अब आप जैसे लोग नहीं समझेंगे तो उसके सेवा करने का कोटा अधुरा रह जायेगा. 

वह जनता की सेवा करने का कोई भी अवसर नहीं चूकना चाहता, चाहे जो करना पड़े, क्या आपके लिए अपने सगे ने  कभी किसी की हत्या की है ? बाल्तकार किया है ? लूट की है ? उत्पात मचाया है ?? नहीं न, आपके अपने और आप खुद  जिसे जघन्य मानते वह ये नेता, बस आपके लिए कुछ भी करने पे उतारू रहता है, वह आपकी सेवा में किसी भी हद तक जा सकता है.  लात मार सकता, लात खा सकता है,  पारस्परिक रूप से गालीयों का आदान प्रदान भी कर सकता है या करता है, सामने वाले सेवक को निपटा खुद पूरा भार वो अपने सर मढना चाहता है तो किसके लिए ?? बस जनता के लिए. 

ये सेवा भाव का ही असर है की संसद से प्रसारण बंद कर दिया जाता है, क्योकि वह सेवा भी करना चाहता और एहसान भी नहीं जताना चाहता, इससे जादा सच्चरित तो स्वयं सोलह कला संपन्न कृष्ण भी नहीं हो सकते. 

उत्तर प्रदेश के नेता इस मामले में आगे है, कोई "लैला लैला चिल्लाता था कपडे फाड़ के"  इसी परम्परा में उन्होंने सेवा सेवा चिल्लाया कपडे फाड़ के तो कौन सी आफत आ गयी ?? 

जनता का क्या वो तो कुछ भी बोलती है, वो एहसानफरोश होती है, कोई कितनी भी सेवा कर ले लेकिन उसे नेता सुहाता ही नहीं, वो बात अलग है की वो नेतावों से सेवा लेने पे मजबूर है, विकट सेवा, भयंकर सेवा, अथाह सेवा, अनंत सेवा, नंगी सेवा. 

सादर 
कमल कुमार सिंह 
१९ फरवरी २०१४ 

Sunday, February 16, 2014

असली नकली

"असली नकली" ये किसी बोलीवूड निर्देशक द्वारा निर्देशित कोई फिल्म नहीं है, बल्कि आजकल जनता, नेता, आमिर, गरीब, सजीव निर्जीव सब निर्देशक बन एक दुसरे को असली नकली का प्रमाण पत्र देने पे उतारू है, बस कंडीशन ये है की कंडीशन क्या क्या हो?  

आपके  पाले में  है तो असली है, दुसरे के पाले में है तो नकली है, या कुछ  यों कह ले की रूपये आपके जेब में है तो असली यदि दुसरे  के जेब में तो नकली, हम रईस तो व्हाईट मनी, वो रईस तो पक्का आपके  मन से भी काला  ब्लैक मनी,  असलियत चाहे जो कुछ भी हो उसमे आपना कीमती दिमाग जाया करने की जहमत कोई करना चाहता. दिमाग भी भला चलने की चीज है? अरे चलाना है व्यंग बाण चलिए, गाली चलाईये, धरना चलाईये, धरना के दौरान पुलिस पे पत्थर  चलाईये, और जब  पुलिस प्रतिक्रिया स्वरुप आप पे लाठी चलाये  तो आप पुनः अपने मूल रूप पे आके  पुरे जोश ए खरोश से, मुह से, दिल से, यहाँ से वहां से, जहाँ जहाँ से मन करे वहां वहां वहां से गाली चलाईये.  

आपका समर्थक है  तो असली देश भक्त, उनका है तो नकली वाला देश भक्त, नकली देशभक्त ?? नकली आदमी ? ये क्या होता है,  ये क्या कागज का होता है ? प्लास्टिक का होता है ? जुट का होता है ?  पटसन का होता है ? आदमी ही होता है ?? खैर भगवान् वो आपके हिसाब से जाने क्या होता है लेकिन इतना  तय है की वो आपके साथ नहीं तो आम आदमी नहीं, और आप आपके साथ है, आप आप है, गधे के भी बाप है लेकिन फिर भी असली है.

 गधे  के बाप यों की  आप नेता है, और नेता के लिए जनता बाई डिफाल्ट गधा ही होता है,  वास्तव में गधे जब प्रमोट हो जाए तो नेता होते है. आजकल कुछ गधे समूह बना कर नेता बन गए सो फाइनली वो प्रमोट हो के नेता है लेकिन वही ढाक के तीन पात गधो  के भले के नाम पर गधो को गधा बनाकर खुद गधे  से नेता बन बैठे, गधे बिचारे  फिर छले जा चुके है. ता अपने आप को सबका बाप समझते है की कोई गधा जब आपके पास आ जाता आप उसके सामने तत्काल दो मुठ्ठी अपना चारा छेंट देते है और यदि वो खा ले तो  टनाटन बुध्धिमान हो जाता है और तत्काल आपकी तरफ से बुध्धिमान का प्रमाण पत्र उसके गले में लटका दिया जाता है. वो गधा आपके सामान पवित्र और बुध्दिमान बन चूका है, वह कुछ भी ढेंचू ढेंचू करे पब्लिक को वाह वाह कहना ही  चाहिए अन्यथा पब्लिक अथवा गधा आटोमेटिक बाईडिफाल्ट  गधा है, भ्रष्टाचारी है, कमीना है,  कल को वही गधा आपके बड़े मुह या  आपके छोटे दिमाग के स्थान (सर )  पर दुल्लती मार दे तो आप तत्काल उसे अपनी रूहानी शक्तियों उसे उसका असली रूप बता देते हैं, तब गधा गधा देंछु ढेंचू करने लगते है और वो भी आपको गधा गधा ढेंचू  करते हैं. खैर वो आपका आपस का भाई चारा है, होता रहता है . 

यही बात आजकल धर्म बनाम पार्टी पे लागू है, आजकल कुच्छ अतिवादी (आप इन्हें अन्मैचोर भी कह सकते है) लोग किसी को सच्चा या झूठा मुसलमान का सर्टिफिकेट बाँट रहे है, सिर्फ़ इस आधार पर की वो किसको सपोर्ट करता है? वो किस पार्टी का है ? (हर जगह इस तरह एक लोग है) नक़वी जी और शाहनवाज़ को कॉंग्रेस समर्थक मुसलमान नकली कहते है, जबकि भाजपा समर्थक कॉंग्रेस मुस्लिम नेताओ को च्छद्म सेकुलर (कुच्छ हद ये सही भी है ) लेकिन असली नकली का स्रटिफिकेट कैसे देते हैं वो... मुझे समझ नही आता ?? कोई आपके पाले मे है तो असली, उनके पाले मे है तो नकली ? भाई पाला / पार्टी नही आदमी देखो . 
मै असदूद्दीन ओवैसी (बड़े वाले का छोटे का नही ) का भी उतना ही फ़ैन हू जितना मोदी का. 

मै कोंग्रेस के मदीनी जी का भी फैन हूँ , किसी मै सिर्फ इसलिए देश द्रोही या नकली नहीं कह सकता क्योकि वो मोदी विरोधी है .. मोदी विरोधी होना देश विरोधी नहीं है भाई , हो सकता है एक समय मे वो मोदी के नजदीक भी आ जाये तब अब आप क्या उनका नकली वाला सर्टिफिकेट सरेंडर करवा दुबारा असली इस्सु करेंगे ?? अरे ये पोलिटिक्स है भाई, भाजपा निश्चित रूप से आज के समय मे धर्म निरपेक्ष है बाकी पार्टियों की अपेक्षा लेकिन दूसरी पार्टी के लोगो को इस तरह का प्रमाणपत्र दे के अपना कागज़ और दिमाग न खराब करे|

मै मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करता हू, मुस्लिम का नहीं

और अंत मे सबसे बड़ी बात इन फर्जी सर्टिफिकेट बाटने वालो फर्जी लोगो को तत्काल "असली" १००% या २४ कैरेट संघी होने का सर्टिफिकेट तथाकथित "फर्जी बुद्धजीवियों" से भी मिल जाता है - फ्री मे. 

इस प्रकार के नेतावो/ लोगो से आग्रह है की "आप" कुछ "उस" प्रकार के सिनेमा को "यू" सर्टिफिकेट दे के देखे, काम करता है या नहीं ? 

इती श्री प्रणाम पत्रं अथ कथा:
सादर

कमल कुमार सिंह
१६ फरवरी २०१४