नारद: April 2012

Monday, April 30, 2012

काफिर से हार




बात उन दिनों की है जब पंडित मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जी जान से प्रयासरत थे.  इसाई से हिन्दू बनी श्रीमती एनी बेसेंट ने जब बनारस के "सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल" को विश्वविद्यालय में परिवर्तित करने का सुझाव मालवीय जी से साझा किया तो मालवीय जी सहर्ष  स्वीकार कर इस कार्य के लिए अग्रणी हुए.  सबसे बड़ी समस्या थी जमीन की  उस समय  तत्कालीन  काशी नरेश महाराजा बनारस ने तत्काल इस सत्कार्य के लिए  १५ किलोमीटर की जमीन उपलब्ध करायी  जिसमे साधे 6 किलोमीटर  नगर के  अन्दर   और बाकी की जमीन मिर्ज़ापुर के बर्कक्षा नामक स्थान पे थी.  अब समस्या थी धन की कुछ हद तक मदद महाराजा दरभंगा की तरफ से हुआ लेकिन पूरा न पड़ा. उस समय हैदराबाद के निजाम विश्व के धनाढ्यों में गिने जाते थे. मालवीय जी ने उनसे मदद लेने की सोच निजाम हैदराबाद के पास पहुचें.  लेकिन ये क्या ??? निजाम ने उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देख खूब खरी खोटी सुनायी  एक "हिन्दू विश्वविद्यालय "  की स्थापना के लिए मुझसे मदद मांगने की हिम्मत कैसे हुयी ?? मालवीय जी मुस्कराए  " क्या विश्वविद्यालय  हिन्दू होना ही अपराध मात्र है ??? " 

तब निजाम ने उनका तिरस्कार करने के लिए अपने जूते उनके हवाले कर दिया. " एक हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए मै तुम्हे  बस अपना जूता ही दे सकता हूँ इससे जादा कुछ नहीं." 

 मालवीय जी कुछ सोच मुस्कराए और जूता ले चुपचाप  निकल लिए.  

अगले दिन पुरे हैदराबाद में घोषणा करावा दी, की निजाम हैदराबाद के जूते बिकाऊ है, कृपया सभी लोग अपनी अपनी  सामर्थ्यनुसार ले के इस महान निजाम की जूते की बोली लगाये. 

घोषणा सुन निजाम घबराया, जिसके सामने कोई सर नहीं उठाता उसकी टोपी तो छोडो यह ब्राहमण जूते तक लीलाम करने पे तुला था . 

उसने तत्काल अपने कारिंदे को ताकीद दी की वो जाए और सबसे ऊँची बोली लगा वो जूता वापिस ले आये.  आखिरकार निजाम को अपना ही जूता खरीदना पड़ा, और मालवीय जी से क्षमा  माँगा. 

जिसके फलस्वरूप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे "रत्न खान"   की स्थापना हुयी जो आज तक  ढेरो रत्नों को उगल रहा है. 

Friday, April 27, 2012

एक था राहुल :



 कुछ महीने पहले आर्यावर्ते जम्बू द्वीपे राजधानी देल्ही में राहुल नाम नाटकबाज रहा करता था. इनका जन्म छद्म - देशभक्त नेहरू के खानदानी पुत्र राजिव के घर में गलती से हुआ था. इनकी माता का नाम कुछ कोई, मायनों था जिस पर उनको शर्म आ रही थी तो कालांतर में बदल कर सोनिया कर लिया.  इनकी शिक्षा -दीक्षा कहाँ हुयी भगवान् ही जनता है ,कोई कहता है हार्वर्ड से भगाए हुए भगोड़े हैं, कोई कहता है कैम्ब्रिज से कछुन्नर से पास हुयें हैं, खैर इनकी माँ की तरह इनके शिक्षा के बारे में भी  विद्वानों में मतभेद है. शिक्षा  के नाम पे फ्राड डिग्रियां और गुण के नाम पे खानदानी -अनुवांशिक गुण नौटकी का, इनके जाती एवं खानदान के बारे विद्वानों में मतभेद है  यहाँ तक नाम भी सहेंस्पाद है यहाँ तक की  पिता के बारे में मतभेद है वैसे कागजी तौर पर किसी राजिव को कहा जाता है. इनकी एक मात्र सुन्दर , सेक्सी बहिन प्रियंका ने किसी ईसाई ठठेरे से शादी कर परिवार का नाम रोशन किया. जिसके  चलते ठठेरा रातो रात वी आई पि बन गया, भगवान् जाने किस संसदीय नियमो के तहत लेकिन इसकी किसी भी एअरपोर्ट पे चेकिंग नहीं होती, देश चाहे गोला बारूद लाये या हथियार कोई रोक टोक नहीं . 

अब आईये राहुल के जीवन के विभिन्न पहलूवों से रूबरू होते हैं :-

विविध  संस्कृति प्रेमी : 
राहुल मनाता है की अनेकता में एकता, राहुल विभिन्न संस्कृतियों के पोशक है. इसी कारन वश इनके विवाह में विलम्ब है . अपने इसी बहु -संस्कृति प्रेम के कारन के कारण कभी सुकन्या बलात्कार के मामले में फसते हैं तो कभी वेरोनिका के साथ जीवन आनंद लूटते दिखाई पड़ते है, सब मिला के भारतीय और पाश्चात्य संस्कृत का अनूठा संगम है राहुल. 
कभी ये अपनी दाढ़ी मुसलमानों की तरह रखते हैं तो कभी अपने आपको ब्राहमण  घोषित कर अपनी माता को संशय में डाल देते हैं जबकि जन्मजात ईसाई होने के कारन केरला के एक इसाई पतित  गुरु पाल दिनाकरण  के तलवे चाटते इनको आसानी से देखा जा सकता है.  

धैर्यवान:  
राहुल बहुत धैर्यवान  और मनन शील है, वो बात  अलग है की कभी कभार मंच पर चिल्ला पों करते हुए दिखाई दिए हैं, एक बार इन्होने उमा भारती जी को दुसरे प्रदेश का कहा था , तब उमा जी इनके माता की पराई भूमि का संज्ञान बड़े कठोर वचनों में कराया था, तब इन्होने अपनी बोलती बंद कर अपने धैर्य का परिचय दिया. 

हास्य प्रेमी : 
राहुल हास्य प्रेमी भी है, इनके अभिनय और नौटंकी से  जनता में बरबस हास्य और हसी का पुट भर जाता है. लोग इनको देख के गंभीर बने रहने का अभिनय  तो करते हैं लेकिन मन ही मन खूब हसी का आनंद  उठाते है. इस्नका हर पल रूप बदलना भी लोगो के हास्य का कारन बनता है, बड़े ही  बहरूपिये   किस्म के हैं अपने राहुल 

समालोचक:
राहुल एक अच्छा  समालोचक भी हैं. चुनाव के समय में संबधित प्रदेशो  के गरीबी  और भीखमंगी  दुर्दशा का समोलोचना बड़े ही बेहतरीन ढंग से करते हैं और चुनाव ख़त्म होते ही  कहीं भूमिगत हो जाते हैं,और साथ में गायब हो जाती है उस प्रदेश की गरीबी  और दुर्दशा भी. बाद में यही गरीबी और दुर्दशा  का उस प्रदेश में  स्थानांतरण करा देते हैं जिसमे चुनाव होने वाला  हो.  इनकी ये मेंढकी मौसमी प्रवृत्ति, आनुवंशिक  गुण है.

भोज्य पदार्थ के प्रेमी:    
राहुल खाने पिने के शौक़ीन है, चुनावी समय में घर घर पहुच गरीबो तक का खाना खा जाते हैं और डकार भी नहीं मारते, ठीक उसी तरह जैसे इनके पार्टी के लोग देश खा के सांस भी नहीं छोड़ते. खाने का इनका खानदानी शौक रहा है है, कभी देश की भावनाए खा गये, कभी देश की जनता की भावनाए, आजकल देश भी जम के खा रहे हैं, वो तो भला हो सुब्र्मनाय्म स्वामी का जो उलटी करने की दवाई समय समय पर देते जाते हैं, ताकि हाजमा सही बना रहे है.

पारखी: 
राहुल एक उम्दा पारखी भी है, उन्होंने चुन चुन देश भर अपने साथ नवरत्न  चेलों का जमावड़ा लगाया है. 
१. डिग डिग  दिग्गी  : 
सबके लिए एक सामान क्या साधू क्या आतंकवादी , सबके लिए दिल में प्यार. मानसिक रूप से कमजोर लेकिन प्रसन्न व्यक्तित्व के मालिक. श्वान प्रवचन के प्रणेता, मजबूत पीठधारी. 
२. सलमा खुजली  :
इस्लाम के नाम पर सम्प्रद्यिकता फैला कर मुसलमानों के दिल में खास जगह बनाने वाले भारत वर्ष के एक मात्र नेता. 
३. क -पिल सब बल: 
संसाधनों काजम के उपयोग करने में मंथरा, पिल बांटने  में उस्ताद चाहे वो आई पिल हो या आई टैबलेट. इनकी बंदरों जैसी मुस्कान किसी का भी मन मोह सकती है, खासकर बन्दर इनके सबसे बड़े  फैन्स हो गए हैं, सुनने में आया है कि बनारस के संकटमोचन के बंदरों  ने हड़ताल कर दी है, मांग है की हनुमान जी मूर्ति हटा के कपि-ल जी की फोटो ही लगा दो.     
४. मनु सिंघी : नैतिक शास्त्र एवं  महिला कल्याण में अग्रणी, महिलाओ के साथ साथ नैतिक कल्याण हेतु अपना चैंबर भी दान में दे देते हैं, बदले में बस चिर काल तक इज्जत  लेते हैं,  अब समझ में आया की क्यों मायावती जी " मनुवादियों" को कोसती थी. 
५. मदेरणा: 
मनु सिंघी के गुरु, लेने -देने परंपरा के प्रणेता, "सर्व महिलामांसा  हारी" सुना है आजकल पौरुष  हारी होके जेल का चक्कर कट रहे हैं, लेकिन युवराज राहुल जरुर ही इनकी नईया पार लगा देंगे.  
६.चिद्दू:
ए जी -ओ जी से लेके टू जी तक में अपना दिमाग लड़ने वाले   एक महान लुंगी धारी, जिनके लुंगी का घेरा कितना बड़ा है  बता पाना आजतक किसी भी दलाल के लिए संभव नहीं है. कहा जाता ही इस घेरे की कुल गहराई समुद्र की तरह अनंत हैं जहाँ  कई घोटाला  रूपी सीप एवं मोती छुपे बैठे है, हाँ एक अगत्स्य रूपी साधू स्वामी  जरुर इस समुद्र को सुखा के सारे मोती दुनिया को दिखाना चाहता है.
७.मानिस तिवारी : 
विदेशी सहायता प्राप्त एक लूटो खोसो संस्था के मालिक, पेड मिडिया का वर्षों  का अनुभव. श्वान प्रवचन के बाद माफ़ी माँगने के अभ्यस्त. 

८. राबर्ट वढेरा: 
वैसे तो अब तक  ये आधिकारिक  नवरत्न नहीं है फिर भी खानदानी पेशा होने के कारन ये भी राहुल के खासम खास में से एक है. एक उम्दा ठठेरा, शीला की जवानी सा गठीले  बदन का मालिक, ये महाशय कभी कभी अपने पुत्रो तक को युवराज के कैम्पेन में बिना किसी की परवाह किये भेज देते हैं वो भी अपनी सुन्दर पत्नी के साथ.
९. मंद मोहन  सिंह  : 
लास्ट बट नाट लिस्ट  इन नवरत्नों के टीम लीडर मनमोहन अपने टीम की अ कुशलता में माहिर हैं . इनकी वजह से मूक बघिर स्कूल  और रोबोट बनाने वाली कंपनियों में तनाव व्याप्त हो गया है , दोनों ही अपना अपना अधिकार  इस भले मानस पे जाताना चाह रही है  लेकिन मंद्मोहन हमेशा की तरह चुप्पी तोड़ने से इनकार  कर रहें हैं. इनको बोलने नहीं आता, इनसे प्रेरणा ले के मूक बघिर स्कुलो  के बच्चो ने मंद मोहन को अपना प्रोजेक्ट बनाया है. सभी मूक बघिर बच्चो के प्रेरणा दायक श्रोत मंद्मोहन जी का व्यक्तिव टर्मिनेटर थ्री के एक चरित्र से मिलता जुलता है जो सिर्फ  फिडेड  भासा पढ़ और बोल सकता था. इतना उन्नत किस्म के रोबोटिक इंसान को देख अमेरिका भारत से जलने लगा  है, और इसी जलन के कारन शाहरुख़ को अमेरिकन  एअरपोर्ट पे रोक कर नए रोबोट के बारे में सलाह मांगी गयी थी. 

इन नवरत्नों का प्रभाव राहुल के व्यक्तित्व पे भी उसी तरह पड़ा है जैसे एक आम इंसान के ऊपर, राहू ,केतु  और  साड़े साती का पड़ता है. आजकल हमारा यह युवराज पता नहीं कहाँ है .... हैं से "था" हो चूका है. 
अब जनता दर रही है  की पता नहीं कब किस  प्रदेश के लोगो का भला हो जाए भिखमंगा हो के . 

Thursday, April 26, 2012


प्रिय सचिन तेंदुलकर जी,

आप को राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किये जाने की खबर पढ़ कर खुशी भी हुई और दुःख भी !! खुशी इसलिए कि आप जैसे नेक और विश्वप्रसिद्ध व्यक्ति को ये सम्मान दिया जा रहा है और दुःख इसलिए कि आप को इस गन्दी राजनीती का एक केवल मोहरा बनाया जा रहा है जिसमे आपका सिर्फ इस्तेमाल किया जाएगा. तीन सवाल आपसे करना चाहता हूँ-

१. क्या आप एक सांसद बनने के बाद अपने खेल को पूरा वक्त और ध्यान दे पाएंगे ?
२. क्या आप एक सांसद बनने के बाद देश का भविष्य तय करने वाली राजनीती को पूरा वक्त और ध्यान दे पाएंगे ?
३. क्या इतना वक्त होगा आपके पास वन-डे, टेस्ट क्रिकेट, IPL, 20-20 लीग इत्यादि खेलने के बाद कि आप भूख, गरीबी, बेरोज़गारी, भरष्टाचार, मंहगाई, लूट-पाट, अत्याचार, शोषण, स्वास्थ्य, सडक, बिजली, पानी, स्कूल इत्यादि से संबंधित मुद्दों की बहस में संसद में हिस्सा ले सकें ?

क्या आप नहीं समझ रहें कि आपका "इस्तेमाल" किया जाने वाला है....आप को एक शिखंडी की तरह आगे कर दिया गया है इस नए युग के महाभारत में...ताकि उन लोगों को बचाया जा सके जो लूट कर खा गये हैं देश को, जिनके भरष्टाचार की कोई सीमा नहीं, जो अरबों- खरबों से कम की बात नहीं करते.....

क्या नहीं दिखाई देते आपको भूख से बिलबिलाते हुए बच्चे, एक वक्त की रोटी को मोहताज 70 % जनसँख्या, फटे कपड़ों से तन ढकती एक गरीब माँ/ बहन, वासना का शिकार होती महिलाएं ( जिनकी सुरक्षा को पुलिस नहीं है पर जहाँ नेताओं की सुरक्षा पुख्ता है ), काला धन, बलात्कार, शोषण, अन्याय, असमानता....

हमने आज तक आप के मुँह से इन मुद्दों पर एक भी शब्द नहीं सुना...कभी आप सड़कों पर हमारे हकों के लिए लड़ने हमारे साथ नहीं आये...आप हमेशा चुप रहे, सिर्फ अपने खेल पर ध्यान दिया ..और हम लोगों ने भी आपसे कोई अपेक्षा नहीं रखी....आपने शतक पर शतक जमाकर, चौके- छक्कों और रनों का भंडार लगाकर इस देश को लोगों को उनकी मुसीबतों और दुखों को कुछ देर भुलाने में मदद की...हमारे लिए आपका यही योगदान बहुत है .

पर अब !! पर अब आप की इस प्रसिद्धि और महानता को एक मोहरा बनाया जा रहा है ताकि इस देश की जनता का ध्यान बंटाया जा सके, ताकि मुद्दों को पीछे छोड़ा जा सके....ताकि आप की आड़ में कांग्रेस के भरष्ट नेताओं की गंदगी को छुपाया जा सके....आप खुद बताईये आपको कैसे लगेगा जब आप को जनता देखेगी अख़बारों में- ए. राजा, कलमाड़ी, शरद पवार, कनिमोझी, लालू यादव, मनु सिंघवी जैसे नेताओं के साथ....

सचिन जी, जब भारत की जनता ने आपको " भगवान" का दर्ज़ा पहले से ही दे रखा है तो फिर आपको और कौन सा सम्मान चाहिए ? अगर आप इस पद को स्वीकारते हैं तो मैं आपको आगाह करना चाहता हूँ कि आने वाले वक्त में आप अपना दामन पाक- साफ़ नहीं रख पाएंगे !! गंदगी में उतरेंगे को छींटे पड़ेंगे ही !!!!!!!!

आपका शुभाकांक्षी,............

इमाम बुखारी : धर्मगुरु या सांप्रदायिक-राजनीतिग्य आत्मा ??




२००८  का यह वीडियो जरुर देखें 

किसी भी धर्म का धर्म गुरु देश या कौम में  भाई चारे  से कैसे रहे, पे अमल करता है और करवाने कि कोशिश करता है, और शायद धर्म गुरु का यही काम भी है. मैंने हिन्दुवो से ले कर जैन, और बौद्ध से लेकर ईसाई किसी न  सभी धर्म गुरुओं को (छोटे -बड़े) देखा है, जो सदा सदाचार कि भाषा खुद भी बोलते है और दूसरों से अपील भी करते हैं . क्योकि यही धर्म है.  धर्म वही है जो समाज और देश के हित में हो और ये हमारे धर्म गुरुओं का काम है कि अपने  अनुयायियों  को सही रास्ता दिखाए, सही शिक्षा दें .  लेकिन जरा सोचिये यदि खुद धर्मगुरु ही रास्ता भटक जाए तो क्या हो ??? उक्त वीडियो में दिखाया गया है कि शाही इमाम कैसे भूखे भेडिये कि तरह  एक मुसलमान भाई पे टूट पड़े, उसकी गलती बस इतनी थी कि उसने तर्कपूर्ण भाई चारे के मुद्दे पे कुछ पूछना चाहा था.  इसका मतलब तो यही निकलता है कि शाही इमाम साम्प्रदायिक है. 

शायद इसीलिए मुसलमान भायों ने इनको नकार दिया और कहा जाता  है कि इस्नके बाते बस जमा मस्जिद के अंदर ही गुजाती है बाहर कोई नहीं सुनता . 

दूसरी महत्वपूर्ण बात एक और भी है, ये धर्म के नाम पे राजनीति खुले आम करते है . अभी हाल के चुनाव में ही देखें को मिला कि कैसे सपा के मुलायम सिंह के आगे पीछे घूम रहे थे, एकबारगी सबको लगा कि मुसलमानों के हित के लिए एक अछ्छा काम कर रहें हैं लेकिन वो बाद पता चला कि सब कुछ व्यक्तिगत था. वो अपने दामाद के चक्कर में चक्कर लगा रहे थे . 

जहाँ एक तरफ "हिंदू महासभा" ने भा ज पा को चेतावनी दे डाली कि धर्म के नाम पे राजनीति न करे, वोट न मांगे, जनता को न बरगलाये और  खूब विरोध किया,  भाजपा के पुतले फूंके गये,  वहीँ दूसरी तरफ  शाही इमाम को  मुलायम सिंह के आगे पीछे घुमाते देखा गया, अब आप ही लोग अंदाजा लगाईये कि कौन धर्म के नाम पे राजनीति करने को हमेशा तैयार रहता है.  

पता नहीं मुसलमान भाईयों कि क्या मज़बूरी है कि ये अपने धर्म  गुरुओं का भांडा फोडने से डरते हैं , जबकि वही दूसरी तरफ हिंदुओं ने निर्मल बाबा के ढोंग का तार  तार कर दिया.  क्या इतनी हिम्मत सिर्फ हिंदुओं में है ???? 

सुनने में आया है कि इमाम पाकिस्तानी संस्था आई एस आई के एजेंट हैं और ये बाते उन्होंने अपने खुद के मुखारबिन्दु से कहीं है, और मुसलमान भाई चुप रहे , क्या कोई हिंदू चुप रह सकता था यदि कोई भी हिंदू धर्म गुरु, या पीठाधीश्वर ऐसा कुछ कहता तो ??? 

क्या मुसलमान भाई एकदम धर्मांध हो चुके है ?? 

दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से कहा था  कि वे अन्ना के आंदोलन से दूर रहें उनका कहना है कि अन्ना का आंदोलन इस्लाम विरोधी है क्योंकि इसमें वंदे  मातरम और भारत माता की जय जैसे नारे लग रहे हैं। 

अरे भाई  हर चीज को धर्म से जोड़ कर देखना कहा तक सही है जब कि वही देवबंद ने अन्ना के साथ होने में हामी भरी थी.  अब या तो देवबंद गलत है या  शाही इमाम, क्या मुसलमान अपने ही धर्मगुरुओं के दो पाटो में पीसने को मजबूर है ??? 

 बुखारी ने कहा, ' इस्लाम मातृभूमि और देश की पूजा में विश्वास नहीं करता है। यह उस मां की  पूजा की पूजा को भी सही नहीं ठहराता, जिसके गर्भ में बच्चे का विकास होता है। ऐसे में इस्लाम इस  आंदोलन से कैसे जुड़ सकते हैं, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। इसीलिए मैंने मुसलमानों को इस  आंदोलन से दूर रहने को कहा है। ' बुखारी के इस आह्वान के बाद वंदे मातरम पर विवाद एक बार फिर उठ  खड़ा हुआ है। हालांकि इस आंदोलन से प्रशांत भूषण और शांति भूषण जैसे शख्स जुड़े हैं, जिन्होंने गुजरात  दंगे के मामले पर नरेंद्र मोदी काफी विरोध किया था। फिर भी शाही इमाम इस आंदोलन के आलोचक हैं।  उनका कहना है कि देश के लिए करप्शन से बड़ा मुद्दा सांप्रदायिकता है और देश को इससे ज्यादा खतरा है। 

अब गौर करने कि बात है शाही इमाम खुद एक बड़े सांप्रदायिक तत्व है और भाई चारे का विरोध करते है.  क्या इनको हिन्दुअस्तानी सरकार को अब भी यूँ ही खुला रखना चाहिए  या  सम्प्रद्यिकता फ़ैलाने के आरोप में जेल में डाल देना चाहिए. 

इसी के साथ ही इमाम, मुसलमानों कि अलग पार्टी बनना चाहते हैं ,  इनका कहना है कि मुसलमान  को सियासी ताकत होनी चाहिए, बिलकुल होना चाहिए और मुसलमान सियासत में भी खूब जमे हुए हैं , चाहे आप खुर्शीद को देख ले या शाहनवाज को , तो क्या मुसलमान के लिए एक अलग पार्टी कि मांग साम्प्रदायिकता नहीं है ??? 

इन सब सवालों का जवाब कोई मुसलमान भाई ही दे सकता है . 

Wednesday, April 25, 2012

कोंग्रेस की नीचता.


कोंग्रेस शब्द का अर्थ  मै  अपने पिछले लेख में बता चूका हूँ तो उसपे चर्चा नहीं करूँगा, वो मदेरणा और सिंघवी जैसे  कोंग्रेसी गाहे बगाहे व्यवहारिक रूप में खुद करके "कोंग्रेस " नाम को सार्थक कर देते है. लेकिन इसके इतर भी कुछ कार्य है इसे है जो नीचता पूर्ण है जिसको करने से कोंग्रेसी नहीं चुकते है. सेना वाला मामला पुरे देश को मालूम है , ये दो कौड़ी के ऐयाश नेता सेना तक को नहीं बख्शते है, सी बी आई तक को अपना रखैल बवाना के रखने वाले कोंग्रेसियों का एक नया खुलासा सामने आया है, इन्डियन एक्सप्रेस अखबार ने अपने खबर में छपा है की सी बी आई के साथ साथ ही " रास्ट्रीय जांच एजेंसी" को भी सत्ता में काबिज कोंग्रेसियों ने अपना रखैल बना लिया है.  
और इन्ही कोंग्रेसियों के इशारे पे "नॅशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी"  ने अजमेर ब्लास्ट मामले में  शामिल   दो आरोपियों को १ करोर रूपये देने का लालच सिर्फ इस लिए दिया की वो बस आर एस एस वालो का नाम ले लें की वो भी शाजिश में शामिल हैं.  यानि ब्लास्ट के  शाजिश में आर एस एस के लोगो को शामिल कराने की शाजिश के लिए एक करोर  रुपया...  हे  काम  पिपासु कोंग्रेसियों इतना दिमाग और कुशलता इस देश के लिए लगाओ तो हर एक हिन्दुस्तानी तुम्हारा गुलाम हो जायेगा, लेकिन नहीं,  ये सत्ता के  लोलुप  ही इसलिए रहते हिं की देश को गर्त में ढकेले, ये सत्ता में आते ही इसलिए हैं की इनकी काम कमाना शांत हो सके चाहे जैसे भी , ये सत्ता में आते ही इसलिए हैं की निर्दोष को फसा  सके.

इनकी सरकार सत्ता में आते ही योग्य पदों पे लोग किसी भी अहर्ता को किनारे कर दिया जाता है यदि उनके पास  कोंग्रेसियों की काम कामना शांत करने का जज्बा हो तो. हमारी कुशल मीडिया इन कोंग्रेसियों की इस कुशलता को बड़े कुशलता से छुपा लेती है मानो ये भी "साथ - साथ " होने का दम भर रही हों. 
और देश की निरीह जनता इन सब बातो से अनजान, इनके पीछे पीछे जिंदाबाद -मुर्दाबाद के नारे लगाते लगाते नहीं थकते.  कुछ तो कोंग्रेसी के फलोवर ताउम्र सब कुछ जानते हुए भी बने रहना चाहते हैं, शायद इस लालच में की कौन जाने  कोंग्रेस की नज़ारे इनायत हो और उनपर भी  किसी महिला  वकील  की कृपा बरसे या कौन जाने   एन आई  ए टाइप की कृपा इनको भी प्राप्त हो जाए.  

Wednesday, April 18, 2012

गांधी ही मेरा बाप है


मै   बचपन में सोचा  करता था की राष्ट्रपिता क्या होता है ?? राष्ट्रपति क्या होता ?? शायद दोनों एक होते क्या , या शायद अलग अलग , तब इनमे अंतर क्या होता है ?? आखिर चक्कर क्या है रास्ट्रपिता का?? 

सुना था जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान् होता है, तो क्या  जो अवैध बच्चे होते हैं जिनके पास ब्रांडिंग नहीं होती  कहीं उनके लिए कोंग्रेसियों ने गाँधी को रास्ट्रपिता बना हलाल तो नहीं  कर दिया गया ??  वो भी राष्ट्रपिता   को बापू कह सकता है, ?? तब तो उसकी समस्या हल , वो भी कह सकता है, तुम्हारे पास क्या है, मेरे पास  पंचायती(सबका,साझा  )  बापू है. 

एक और  भी एक संभावना बनती है,  कहा जाता है गाँधी जी  ब्रम्हचर्य का सत्य के साथ प्रयोग ( कुवारीं नग्न लडकियों के साथ सो कर )  करते थे. तो कौन जाने फलस्वरूप  जब फसल हुई  तो देश भर में फैला दिया और  डाईरेक्ट   ब्रांडिंग न कर के अपने आप को रास्ट्रपिता घोषित करवा लिया, इससे नून न फिटकरी  और रंग चोखा, यानि बदनामी का डर नहीं और उन बच्चो को उनका बापू मिल गया. जिसको लोगो ने भ्रम वश या ताकियाकलाम  बापू कहना शुरू कर दिया . जैसे किसी कोठे की वेश्या सबकी बीवी होती है.

क्या बात हो सकती है की गाँधी को रास्ट्रपिता घोषित कर दिया गया?? अभी हाल में ही एक बच्ची ने आर टी आई के तहत सरकार  से पूछा  की  गाँधी जैसे  मटेरियल को "रास्ट्रपिता"  जैसे भ्रम में किसने तब्लिद किया,  अब सरकार को क्या पता की की बापू (रास्ट्रपिता) किसकी गलती ? 

अब आईये गाँधी वादियों से पूछते हैं :- 

क्यों भाई आपके पिता का क्या नाम ?? 
गाँधी वादी :-मिस्टर X,Y,Z

तो क्या गाँधी जी कौन है ?? 
गाँधी वादी : क्या बकवास करते हो उनको मरे अरसा हो गया है वो मेरे पिता कैसे हो सकते है ??? 

अरे भाई लो आप ही लोग तो उनको डैडी कहते हो , 
गाँधी वादी : अरे वो तो रास्ट्रपिता है , 

राष्ट्रपिता कैसे ?? क्या आपकी मम्मी  जी ने बताया ?? 
गांधीवादी अब बिदक गया , " तुम ही जैसे लोगो कि वजह से देश बदनाम होता है..शायद तुम गोडसे के भतीजे हो ,  

अरे भाई बताओ तो सही राष्ट्रपिता  मतलब भारत का बाप ?? देश का डैडी?? यानि भारत गाँधी की पैदाईश है जिसको उसने नेहरू के खानदान  को सौप दिया और आजतक सभी उसको अपनी औलाद मानते है, रही बात गोडसे के चचा होने कि तो माफ कीजिये गाँधी -नेहरू दोनों रंगा -बिल्ला, देश के बाप -चचा  का पोस्ट हथिया लिया है ,  मानता हूँ की गाँधी का इस देश के लिए बहुत योगदान हुआ, तो हम कौन सा "महात्मा " कहने से गुरेज कर रहे हैं ?? लेकिन किसी को देश का बाप कैसे घोषित किया जा सकता है ?? तब गाँधी के साथ बाकी को भी घोषित करो .. चलो नेहरू को चचा मानने से हमें कोई गुरेज नहीं आजकल शिष्टाचार कि भाषा में किसी को भी चचा कहा जा सकता है. जब नेहरू राष्ट्र चचा हो गए तो बिचारा गोडसे कहाँ टिकेगा अब , हलाकि बापू मानना अपने आप को दोगला कहलाना लगाता है सो हम नहीं मानते ..

गांधीवादी : क्या खूब, जिसने आजादी दिलाई उसको बापू मानने से परहेज और नेहरू चचा ?? 

अरे भाई  तब तो आपके इस नाजायज बाप ने तो बहुतो को हाशिए पे कर दिया ए, :सुभास" आजाद , चंद्रशेखर , आदि आदि , क्या इसी बात के लिए गांधी को बापू मानते हो ???  रही नेहरू को  चचा मानने कि बात तो बताया कि शिष्टाचार में कोई भी चचा कहला सकता है अपने आप को .. 
गाँधीवादी अब चुप था अपने आप पर शर्मिंदगी महसूस  कर रहा था , बोला बताओ तुम्हे क्या गुरेज है गाँधी को बापू मानने से ,... 

 मैंने कहा , गुरेज मुझे इसलिए है इसकी वजह से देश में आज भी ढेर सारे  नौजवान कुवांरे  बैठे है .. 

"क्या बकते हो "  गांधीवादी बिदका   . 

मैंने कहा सच में , देखो कोंग्रेस के गाँधी को कोंग्रेसियों ने राष्ट्रपिता कहा तो जबरजस्ती पुरे देश का राष्ट्रपिता बना दिया गया , नेहरू का राष्ट्र चचा बना दिया गया , इंदिरा  को राष्ट्र बेटी बना दिया गया , सोनिया को राष्ट्र वधु - कालांतर मम्मी बना दिया गया , अब बचे राहुल , उसे देश का युवराज बना दिया  गया, जिससे राहुल खुद भी हैरान और परेशान है, जिसकी वजह से शादी नहीं कर रहा, देश भर के नौजवान कुवारें इसी बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब राहुल शादी करे और कब  उनकी बीवी को देश कि -------- 
गांधीवादी : अरे हाँ ये तो मैंने  सोचा ही नहीं था  , तब तो मै फिर से कहता हूँ गांधी ही मेरा बाप है. भाई  मै भी कुवारा हूँ (मुसकराते हुए कहा ) 

अब मुझे  गाँधी के बापू कहलाने का रहस्य पता चल चूका था , शायद आपको भी :) तब चलिए राम राम . 

सादर 
कमल 
१८/०४/२०१२ 

Monday, April 16, 2012

कालिवूड: कोंग्रेसी धंधे का नया आयाम





आईये जाने पहले "कोंग्रेस"  शब्द की  उत्पत्ति   कहाँ से हुई ??   दो  हवशी   पुरुष और स्त्री के आपसी अवैध सम्बन्ध को कोंग्रेस कहते हैं झूठ   नहीं बोल रहा यहाँ देख लीजये "  Noun: congress  'kóng-grus [N. Amer], 'kóng,gres [Brit]
  1. The act of sexual procreation between a man and a woman; the man'spenis is inserted into the woman's vagina and excited until orgasm andejaculation occur
    sexual intercourseintercoursesex actcopulationcoituscoition,sexual congresssexual relationrelationcarnal knowledge . 
  2. अब इसके सत्यापन के लिए एक लिंक  दे रहा हूँ :-http://www.wordwebonline.com/search.pl?w=congress



कोंग्रेस ने घोटाला उद्योग  में जितनी तरक्की  की है उससे उनकी ख्याति देश ही नहीं वरन विदेशो तक जा पहुंची है. घोटाला उद्योग जिस आयाम तक कोंग्रेसियों ने पहुचाया है वहां तक ले जाना किसी और के बूते की बात नहीं. कोंग्रेस  में "प्रतिभाओं" की कमी कभी से नहीं रही है, इसकी नीव आल राउन्डर नेहरू जी ने अपने ज़माने में रख दी थी जिसको उनके पपौत्र राजीव गाँधी ने मजबूती दिया और अब घोटाला उद्योग उनकी एक मात्र (नेपथ्य का पता नहीं ) धर्म पत्नी सोनिया जी के नेतृत्व में  नयी उचाईयों को छू रहा है, खानदानी गुण  श्री राहुल जी में खूब दीखते हैं. 

इसी के साथ ही "कोंग्रेस काला  व्यापार  मंडल" अब वयस्क फिल्म उद्योग के क्षेत्र में अपने पाँव रख दिए है. 

और कोंग्रेसियो का पिछला रिकार्ड और छमताओं को  देखते हुए ये कहा जा सकता है की इस क्षेत्र में भी वो जल्द ही अपना  एकाधिकार   प्राप्त कर लेंगे. रोचक बात ये है की इसकी भी नीव नेहरू- और गाँधी वादियों के कामन डैडी गाँधी जी डाल गए थे, नेहरू जी अपने अदाकारी से कई  कमसिन    हसिनाओ के साथ व्यावसायिक   अदाकारी की, तो गाँधी जी सत्य के साथ प्रयोग  करने के साथ साथ  "सुंदरियों के साथ ब्रहमचर्य प्रयोग" जैसी कला फिल्मो को आगे बढाया. 

गाँधी - नेहरू के बाद ये कला छोड़ लोग घोटाले के धंधे में पाँव जमाने लग गए जिससे उनका ये व्यवसाय कमजोर पड़ गया . लेकिन  कुछ वर्ष पूर्व  तिवारी जी ने इस पुश्तैनी उद्योग को आगे बढ़ने का बीड़ा उठाया और एक गुप्त कला फिल्म- "खुबसूरत गलती  किसकी"  बना  इस पार्टी  उद्योग को  पुनः  जीवित किया और जान फूंक कर मील का पत्थर गाड़ दिया.  इस फिल्म के फलस्वरूप उनके झोली में एक अवैध पुरस्कार भी आया. 

इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए राजस्थान के सुपरस्टार मदेरणा ने एक और गुप्त कला फिल्म बना इस उद्योद जगत में हाहाकार मचा दिया जिसका लोहा हर जगह  माना गया. भाजपाईयों ने इनके फिल्म को खूब सराहा, कर्णाटक से गुजरात तक ये फिल्म सिल्वर जुबली हिट रही. आमिर खान की तरह कोंग्रेसी भी कम लेकिन उम्दा फिल्म बनाते हैं . 

अभी सुनने में आया है की मनु सिंघवी की एक फिल्म तैयार हो चुकी है- " न्याय  बिस्तर में" , फिल्म में एसा कुछ भी नहीं है जो पिछली फिल्मो में नहीं था और ये भी शायद एक उम्दा फिल्म है ,  फिर भी पता नहीं क्यों हाई कोर्ट ने इसपर बैन लगा दिया है . यह   फिल्म    मीडिया   सपोर्ट का अभाव भी झेल रही है , जबकि पूर्व में मदेरणा द्वारा निर्मित "भवरी की जवानी" देखने मात्र से  भाजपायियो को ढेरों  कीमत चुकानी पड़ी. अब देखते है ये सनसनी खेज फिल्म कब रिलीज होती है . 
क्या इसको भी देखने मात्र से मिडिया कवरेज मिलेगा ?? ये तो वक्त ही बताएगा, वैसे मेरी तरफ से इस फिल्म को ५ में  ४ अंक दिए जाते है .. 

Sunday, April 15, 2012

मै ब्राहमण हूँ



किसी को भी पता नहीं था की आज की सुहानी सुबह दिन चढ़ते ही सबको संदेह के बादल में ढक देंगी , लेकिन "होईहे वही जो राम रूचि राखा" आखिर कार हवेली के पुत्र के उद्घोषणा "मै ब्राह्मण हूँ " के साथ  संदेह  का बादल   बदल फट  गया, और लोग कनाफूस्सी करने लगे की बारिश का पानी किसका ??

जो विदेशी बेग्नोवेलिया के डंठल से निकल कर खजूर का फल दे रहा था, अचानक से कहने लगा वो बेल पत्र है, सुन जनता सकते में आ गयी, सब एक दूसरेका मुह देखने लगे, वास्तव में इस संकर प्रजाति के उतपत्ति  के  पीछे कौन कौन है. सुगबुगाहट होने लगी अफवाहों पे अफवाह जारी था, आज इतने दिनों बाद इस तरह कि सच्चाई सामने आएगी किसी ने सोचा भी नहीं था.  बात अपने जासूस  जोखुआ के कानो तक भी पहुंची. उसने इस रहस्य से पर्दा उठाने कि ठान ली.  मध्य रात्री वह उस  बालक   के कमरे में  छुप गया. देखता है वह  पौधा    उद्घोषणा के बाद खुद भी परेशान है. रो रो कर अपने आप से बाते किये जा रहा था , 

"हे यीशु अल्लाह इशार जब तू एक है बस नाम अलग अलग है तो मेरी माता बेग्नोवेलिया  के साथ ऐसा क्यों किया, अलग अलग  नाम मेरे एकलौते डैडी के ही क्यों नहीं रख दिए बजाय कि....कम से कम  अलग अलग नाम के ब्रांडिंग से तो बच जाता."  आखिर मेरी माँ ने अब क्यों बताया कि मै एक ब्राहमण हूँ,  इतने दिनों बाद   ??? 

ये सब सुन जोखुआ भौचक्का रह गया. वो निष्कर्ष   निकालने  लगा,  कि क्या करण हो सकते थे इसके ?? 

अभी कुछ साल पहले कि ही बात है कि  साउथ डेल्ही का का भी एक पौधा अपने आप को बेलपत्र घोषित  किया  था  जिसमे  तिवारी जी के ऊपर आक्षेप आया था, तिवारी उसी खानदान के एक पुराने नौकर थे जिस हवेली के पौधे ने आज अपने आपको बेल पत्र कहा था. तिवारी जी कि उस समय भी बहुत फजीहत हुई थी, यहाँ तक की  वैज्ञानिको   ने उनके उर्वरा शक्ति का परिक्षण तक लिया. तो क्या अब भी कुछ ऐसा था ?? बात आग कि तरह फैलने लगी थी, पहुँचते पहुचंते पडोश वाले हवेली  तक पहुची  जो कि इस बालक के खानदान से  विद्वेष और जलन रखते,  उनकी कुदृष्टि हमेशा ही बालक कि हवेली पे रहती थी, उनको मौका मिल गया. 

"राम राम , थू थू , किसका बालक है असिलियत पे अब  पर्दा न रहा, किसकी फसल है ये, कहता अपने को बेग्नोवेलिया है , देता खजूर का फल  है और अब कहता है की वो बेलपत्र प्रजाति का है, हम तो झूठे राजू चौधरी इसका खेतिहर समझते रहे, लेकिन तिवारी जी के  पराक्रम  का भी कोई जवाब नहीं मान गए गुरु". अब इनको हवेली छोड़नी होगी, हवेली   में रहने  का तुम्हे कोई अधिकार नहीं , पडोसी हवली वाले चठखारे ले ले बाते करने लगे .इसी आशा के साथ की कौन जाने इस हवेली पे अब कब्ज़ा किया जा सके . 

बालक किलस गया, आखिर कब तक सुनता वह दूध मुह बालक जमाने के ताने, बोल उठा, "तिवारी जी पे आक्षेप लगते आपको शर्म नहीं आती ???   यद् करिए वो दिन जब मई पड़ोस के गाँव में एक सुंदरी के साथ पकड़ा गया था तब बाजपाई अंकल ने ही मुझे बचाया था"
"तो इसका मतलब  ???"  पडोसी 
बालक सकते में आ गया , शायद कुछ गलत बोल गया, 
तब भी हवेली हमारी हुई, यदि तुम्हारा ब्रहामंत्व हमारे खेमे के पराक्रम से है तब भी हवेली छोड़ बेगोनोवेलिया के  मूल निवास के पास जाओ ये हवेली तुम्हारी नहीं.  


 कोई मानता न था, और बालक की माता बेग्नोवेलिया  क्या बोलती अपने बालक की इस करतूत पे ? 
तो तय हुआ पंचायत बुलाई जाये .
पंचायत में,   बेलपत्र स्वामी, मोहम्मद खजुराल्लाह - डेल्ही वाले, और मिस्टर  पोपोग्नोवेलिया जी को विशेष रूप से बुलाया गया. 

तय करना था की इस नए बयांन से  बालक का स्वामी किसे घोषित किया जाए?? 
बेलपत्र स्वामी ने कहा, : यदि इसमें तिवारी जी का प्रक्रम है तब भी हवेली छोड़नी होगी, और अपने बाजपेयी जी सुझबुझ दिखाई है तब भी मुन्ना हमारा हुआ और हम इसके संरक्षक, तो फैसला आपलोग कीजिये जो भी पट चित दोनों मेरी होगी . 
मोहम्मद खजुराल्ला  " डाक्टरी परिक्षण हमारे जमात में नहीं लिखा आज्ञा है सो ये हम करने नहीं देंगे, सुनो एक रूपये का सिक्का उछालो हेड आया तो तिवारी की फसल , टेल आया तो ये तुलसी स्वामी के आंगण की." 
मिस्टर  पोपोग्नोवेलिया: " और जो सिक्का खड़ा रह तो हजरत  ?? आपका तरीका गलत है मै तो कहता हूँ  आँख बंद कर दोनों हथेलियों की  अंगुलियों से फैसला करा लो इसमें या तो आर होगा या पार बीच का कोई संदेह नहीं,  आँख बंद करके एक हथेली की बीच वाली अंगुली दुसरे हथेली के बीच वाली से सटीक टकराई तो तिवारी जी नहीं तो बाजपेयी का. 

अब बालक सकते में था और उसकी माँ मुह छुपाये कहीं और, अपनी दुर्दशा देख रो पड़ा, हे अंकल मैंने तुमजमात को अपना बनाने के लिए ही तो ये नयी ब्रांडिंग की थी और आप ही लोग मेरी इसे की तैसी कर रहे हो ?? करो जो करना है मै चला अपने माता और मंद्मोहन अंकल के पास. लेकिन मै  आऊंगा जरुर. 
अब देखते है आगे क्या होता है फिलहाल के लिए इतना ही , 

सादर 

कमल 
१६/०४/२०१२ 

Saturday, April 14, 2012

योगी अश्विनी का सच - घटिया एक व्यापारी



आप लोगो ने सुना होगा, हर चोर दूसरे साव को चोर कहता है, यही हालत योगी अशिविनी कि है, खुद तो एक व्यापारी है और दूसरे ( बाबा राम देव जी ) को हमेशा से ही  व्यापारी कहते रहे हैं. आज स्टार न्यूज़ पे बहस देख रहा था, स्टार  न्यूज़ कि पेड  सुन्दर, शुशील (ठेठ में  कहा जाए तो सेक्सी) वक्ता बखूबी बहस कर रही थी, और कोशिश कर रही थी कि राम देव का नाम बार बार आये जबकि चर्चा  निर् -मल बाबा कि हो रही थी. 

अब स्टार न्यूज़ भी क्या करे, करार खत्म हो चला था, "निर् मल" अपना मल (पैसा)  अबकी साल स्टार टी वी को नहीं देने के मूड में थे, तो  स्टार टी वी वालो ने खुद निर् -मल के मलमल मुह पे मल कर दिया, आखिर बदला बदला होता है भाई, इसमें हिसाब किताब पक्का होना चाहिए, नहीं तो यही स्टार न्यूज़ है जो "निर् -मल " बाबा का मल   कुछ दिन पहले तक "मखमल " दिखाती थी, और अबकी साल जब रुपया मिलने का आसार न रहा  तो "मख" माईनस कर दिया.    तमाम लोग आये थे चर्चा पे इस चैनल पे जैसा कि हमेशा होता है है. उसमे एक अश्विनी जी भी है जो रामदेव जी को व्यापारी कहते है. 

मैंने सोचा भाई तब इसका काम कैसे चलता होगा, तत्काल मैंने "गू -गल" बाबा का सहारा ले के इनकी वेबसाईट निकाली, तो पता लगा ये भी योगी है,  तो जाहिर सी बात है  एक योगी दूसरे प्रतिदंदी का अछ्छा कैसे चाह सकता है ??? अर्थात सूरज कितना भी बड़ा क्यों न हो जुगनू को जलन होती है, तो ये भाई साहब  बार बार रामदेव जी व्यापारी कहते नहीं अघाते , स्टार वालो कि बात न  करो , अभी नीचे उनके बारे  में भी बताता हूँ  और अश्विनी सदाचारी चोर के बारे में बताने से पहले बाबा रामदेव जी के बारे में कुछ स्पष्ट कर देता हूँ, बिंदु नीचे है :- 

. बाबा राम देव ने कभी ये नहीं कहा कि उन्हें "बाबा" कहो , ये तो हम जनता है  जो उन्हें बाबा कहती है, नहीं तो आप उनके वेबसाईट को चेक कर लीजिए , वहाँ भी "बाबा" नहीं स्वामी शब्द है. अब स्वामी तो कोई भी किसी को इज्जत देने के लिए कह देता है , वो बात अलग है कि उस स्टार न्यूज़ वाली  महिला को कितने भी पैसे दिए  जाए (पत्रकारिता के इतर ) वो हमको आपको स्वामी नहीं कहेगी ( हा हा , समझा करो भाई , तलाक हो जायेगा उसका ). 

२.  राम देव जी अन्य बाबाओ से  अलग इसलिए हैं क्योकि वो कोरा  भाषण  के  अलावा भी देश को कुछ देते है, चाहे   वो स्वदेशी उत्पाद हो या  योग जिससे जीवन सही होता है, जबकि कोरा भासन तो मै भी दे  सकता हू. 
तो भाई जो स्वदेसी उत्पाद है उसको बनाने के लिए मिडिया दे दे पैसा , रामदेव जी तब किसी से सहायता शुल्क नहीं लेंगे, 
 अब आईये एक दूसरा पहलू देखे, चलो मान लिया रामदेव जी व्यापारी है, तो भी उनका व्यापार देश हित में है , देश के संस्कृति के हित में है, यो वैसे ही बाबा या स्वामी  मान्य हो जाते है चलो व्यापार का ही रामदेव जी बाबा या योगी मान लो , फिलहाल मै रामदेव जी बाबा या स्वामी इसलिए मानता हूँ कि उनका हर कदम , हर कार्य , हर बोल हमेशा राष्ट्र हित में रहा है चाहे वो व्यापार हो या योग या बोल , यदि आपको नहीं लगता तो तर्क दीजिए. यदि नहीं तो बंद कर दो  गाँधी के खादी भंडार देखो तो कितना धंधा करते है , और खादी तो मिलता भी महंगा है जींस से , तो मिडिया ये सिध्ध करने के चक्कर में है कि व्यापारी योगी कैसे ??  अब मेरा सवाल उन मिडिया कर्मी से . 

१. किसी भी डाक्टर को भगवान का रूप कहना छोड़ दो, क्योकि वो भी पैसे लेता है व्यापार करता है, यदि गलती से भी कह  दिया  तो कृपया अपनी गलती मान अपने मुह पे कालिख पोत लो. 

२. मिडिया खुद अपने आप को समाज का आईना और अपने आपको  पत्रकार कहना छोड़ दे, क्योकि वो पत्रकारिता कम और आजकल कंडोम ( और बाकि भी ) का विज्ञापन जादा दिखाती है. यदि अपने आप को पत्रकार कहते हो तो खुद से अपने मुह पे कालिख पोत गधे कि सवारी का आनंद लो. 

३. मिडिया को पैसा दो तो आपको भी भगवान बना देगी, नहीं दो तो, आप सब विज्ञ है समझ जाईये देख लीजिए    निर् मल को मखमल से  कैसे खटमल बना दिया. जबकि यही चैनल कुछ दिन पहले इसी निर् -मल को खटमल से मखमल बनाया करता था. 

४. राम देव ने कभी अंधविश्वास कि बात नहीं कि, हमेशा प्रामाणिक  रूप से देने कि कोशिश कि है, चलो माना  कि पैसा लेते है तो उसके बदले उत्पाद देते है , बाकी तो पैसा भी लेते है और कोर गप करते है, अपने पत्रकार बंधू भी रुपया ले(सैलरी-कौन जाने उपरी भी हो कुछ )  कुछ सही चीज नहीं दिखाते, तो कालिख का एक उम्दा पैकेट जेब में ले के घुमा करे और जिस योग्य है उस तरीके से उसका इस्तमाल किया करे.  

५. यदि इसी मिडिया को(स्टार न्यूज़ जैसे चैनल )  रामदेव पैसा नहीं देते, जाहिर सी बात है ये गलत है, अरे भाई ये चैनल समाज के आईना के नाम पर  पूरा बिजिनेस मैन, ऐसे कैसे नहीं दिया,??? धंधे वाली को पैसा नहीं दोगे तो धंधा कैसे होगा?? पागल हो ?? , अरे हम तो निर्- मल को मखमल बनायेंगे ,       क्यों ??                  चुप , क्या क्यों ?? अरे हम पत्रकारिता  कि आड़ में धंधे वाले है. समाज का आईना के नाम दूसरा चहरा दिखायेंगे ( पैसा दो तो सकारात्मक नहीं तो समझ जाओ , धंधे वाले है , मजाक नहीं कर रहे ). 

ब आईये अशिविनी जी के बारे में बात करते हैं जो ये कहते नहीं अघाते कि  रामदेव जी व्यापारी है ( मै पहले ही  बता चूका हूँ वो व्यापारी होते हुए राष्ट्र योगी है) तो भाई तुम भी अपना योग ज्ञान फ्री में क्यों नहीं देते , अश्विनी जी तमाम पुस्तक लिख चुके है जिसकी  लागत ५० रूपये से जादा नहीं लेकिन बेचते है ५०० से १२०० और उससे भी जादा, हे अश्विनी क्या ये कुटिल व्यापार नहीं है ???मै झूठ नहीं बोल रहा , यहाँ देखिये इन मनुभाव कि कीमत http://www.dhyanfoundation-books.blogspot.in/ , इनकी एक और वेबसाईट है http://www.dhyanfoundation.com/contact_us.php

अब आईये देखें ये डोनेशन कैसे मांगते हैं http://www.dhyanfoundation.com/what-is-charity.php जिसके सबसे नीचे लिखा है "Kindly note that Dhyan Foundation DOES NOT have any divisions. You are requested to make your donations in the name of Dhyan Foundation, payable at Delhi Account #00921000102439, HDFC Bank, GK, New Delhi.
Dhyan Foundation will not be responsible for donations made to any other account number other than the one mentioned herein."  

तो भाई अश्विनी बताओ ऐसा कौन सा काम कर रहे हो जो सिर्फ इक्षा शक्ति से पूरी हो जाती है बिना पैसे के ?? यदि ऐसा है तो फिर इस डोनेशन का क्या करते हो ???? 

साथ में मै पुरे होश हवास में इन सभी (चैनल और तथकथित बाबाओ) को  चुनैती देता हू कि मुझसे बहस करने का मौका मुझे दे , 
बाकी बाते भी मै जल्द ही खोद के आपके सामने रखूँगा. 

सादर 

कमल 
१४/४/२०१२ 

   

Friday, April 13, 2012

ऊंट का माँस: लाभकारी एवं स्वास्थ्य वर्धक



माँस प्रेमियों के लिए एक अच्छी खबर है, कुछ दिन पहले ही मै बीकानेर विसिट पे गया था, वहाँ एक बहुत बड़ा कैमल ब्रीडिंग फार्म है, जहाँ ऊँटो कि देख रेख , और उसका वर्धन अच्छे तरीके किया जाता है. वह कुछ दिलचस्प  बाते सामने आई, जिसको मैंने क्रोस चेक करने के लिए कई  जानवरों के डाक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ से भी सलाह ली,  जो मै निचे लिख रहा हूँ :- 

१. ऊंट का माँस अन्य जानवरों के माँस से जादा लाभकारी होता है.
२. ऊंट के माँस में प्रोटीन जादा और वसा कम होता है . 
३. उन्नत का माँस मिडिल ईस्ट देशो में भरपूर मात्रा में उपयोग में लाया जाता है. 
४. जोनाथन मरकाम - एक आस्ट्रेलियन ऊंट विशेषग्य कहते हैं, ऊंट के माँस उपयोगिता से माँस उद्योग में ऊँटो कि जबरस्त मांग हुई है. 
५. ऊंट के माँस में आईरन और विटामिन सी दोनों ही किसी भी जानवर के मुकाबले प्रचुर मात्रा में होता है.

यहाँ तक की इस्लाम में भी ऊंट का मांस हलाल माना गया है और पवित्र भी, उलट हिन्दुओ के की  गाय उनके लिए पवित्र है , उपयोगी भी लेकिन  वो  उसके पूजते है. 
तो इस दृष्टि से भी ऊंट का मांस सर्वग्राह्य है. 
सादर 

कमल कुमार सिंह 
१४/४/२०१२