नारद: March 2013

Friday, March 29, 2013

मोक्क्ष की प्राप्ति



दिल्ली में मकान  मिलना  मोक्ष मिलने के बराबर है, एक अद्द्द  मकान जहाँ मिला वही आप अपने आपकी हालत वैसी हो जाती जैसे जेहादियों को जन्नत मिल गयी. दिल्ली में इस खाकसार देशी मुजाहिर को भी इसका ख़ासा अनुभव है .

मकान ढूढने के लिए आपको श्री कृष्ण की तरह सोलह कला सम्पन्न  होना आवश्यक है, कम से कम मकान देने वाले  की आवश्यक अपेक्षाएं इतनी या इससे कुछ आगे की होती है. है इतने पर भी पुलिस का वेरिफिकेशन करना आवश्यक होता है, आज श्री कृष्ण  होते तो उनका दिल जरुर टूट जाता. वही किरायेदार इसका खासा ख्याल रखता है की जहाँ मकान मिले वहां वहां के आस पड़ोस  रहने वाली बालिकाए भी मकान की तरह  या जादा खुबसूरत हो जहाँ रहने के आलावा इश्क  करने का काम भी बखूबी किया  जा सके.  वैसे हम  कई  पराक्रमियों  को जानतें है जो अपने ज्ञान का उपयोग कर दोनों  परम स्थितयों को प्राप्त कर चुके है.

जो रिश्ता संसद में पक्ष और विपक्ष का होता है उससे कम मकान  मालिक और किरदार का रिश्ता तो नहीं  ही होता.पक्ष कहता है हम किराया बढ़ाएंगे, विपक्ष कहता है साल के बीच में बढ़ाना तो सनद में नहि लिखा था. फिर विपक्ष कहता है, आपने दरवाजे  पे लगे दीमक के बारे में क्या किया ? इस महीने ही ही प्रस्ताव दिया था नया पेंट लगवाने का.  नल की टोंटी भी टूटी हुई है, पानी की किल्लत है, बियर पिने को मजबूर करती है. अब जिस दिन माकन मालिक और किराए दार में सुलह की सनद लिखा दी जाएगी उसी दिन संसद में  पक्ष विपक्ष में सुलह होगा  और देश तरक्की करेगा, अब ये कब होता है राम ही जाने.

गुलाम अली की  भासा में कहा जाए तो डेल्ही शहर में भी घर है , जिसमे हजारो लोग के अपने घर हैं, वो बात अलग है की ऐसे हजारो लोगो की नजर  पड़ोस के घर या छत  पर बनाये रखते हैं. लेकिन हम  अभी तक राजा बलि का कलियुगी वर्जन हैं. महीने के पहले दिन ही मकान  मालिक वामन अवतार ले मेरा जेब नाप जाते हैं. राजा बलि निश्चित ही भाग्यशाली थे जो  विष्णु से वन टाईम सेटलमेंट कर लिया, और हम बलि से भी सौ गुना पराक्रमी जो हर महीने जानबूझ कर जेब नाप्वाने के लिए तैयार है. कुवारी लड़की की तरह महगाई भी घास फुंस की तरह बढती जाती है और इनकम किसी बेहुदे इमानदार के इमानदारी की तरह अडिग. आफत ये की बीच बीच में ज्वार भाटा की तरह मिलनेवाला इंसेटिव भी बस भाटा ही बन रह जाता है ज्वार तो कभी आता ही नहीं.

इसमें द्वापर के एक  कार्पोरेट ट्रेनर कृष्ण का हाथ है. पुरातन काल में मैनेजमेंट गुरु वेदव्यास के पास एक व्यापारी  समूह पंहुचा.  वेदव्यास उस समय दाढ़ी को हिला हिला उसकी मजबूती चेक कर रहे थे मानो समुन्द्र मंथन में बलि का बकरा वासुकी नाग को नहीं बल्कि उनके दाढ़ी को बनाया गया था. वैसे उस समय वो अविवाहित रहे होंगे, अविवाहित  आदमी अपने बालो और दाढ़ी को ही छेड़ सकता है. देवताओं को देख दाढ़ी को छेड़ना बंदकर अपनी दिव्य दृष्टी उठायी, “बोलो क्या काम है?” देवता बिना चुके कह उठे  “ गुरुवर हमारे एम्प्लोयी पगार और इंसेंटिव बढाने की मांग करते हैं इसके बिना कोई भी भाला, तीर धनुष इत्यादि बनाने को तैयार नहीं है, सारा काम ठाप्प पड़ा हुआ है, अमेरिकवादी भक्त लोग तपस्या कर अश्त्र् शश्त्र की डिमांड करते हैं,  एसा रहा हो तो, हम भी वर पूरा करने के रोजगार से बोजगार हो जाएगे, और दिवालिया हो  आपकी तरह मैनेजमेंटगुरु बनाने को मजबूर होना पड़ेगा.

उन दिनों वेदव्यास की दाढ़ी आजकल के नवयुवतियों के बाल की तरह लम्बी थी, उसमे शैम्पू कंडिशनर लगता भी था या नहीं, ये शोध का विषय है. माना जाता है ये अर्थिंग का काम करती थी ,जो आसपास के वातारण से ज्ञान सोख दाढ़ी के रास्ते दिमाग को आपूर्ति करती थी.  
वेदव्यास व्यस्त थे  या सरकारी कर्मचारी की तरह टरकाने की गरज से दायें और अंगुली दिखा दी जहाँ कृष्ण बासुरी बजाने के बाद पर्स से निकाल राधा का फोटो देख रहे थे.
देवता दल पहुचे व्यथा दुहराई.
कृष्ण ने शंका पूर्वक देख मुस्कराए, फिर मन्त्र दिया, और मातहतो को सुनाने के लिए कहा गया, मन्त्र था, “कर्मणे वाधिकारस्त , माँ इंसेटिव पगारम  कदाचन: “ फिर बोले, “अब चुकी यह मेरी जबान से निकला है सो जनता अब चुप रहेगी, सरकार के फरमान निकलने के बाद कोई कुछ बोलता है क्या ?
देवता खुश,लगाया उपाय जो काम कर गया. बाद में वो देवता लोग “ हैवेन अर्थ कल्चरल  एक्सचेंज  प्रोग्राम “ के तहत पृथ्वी पे आ  मुंशी मैनेजर बन गए, इस्लामिस्ट की तरह वह यहाँ के रंग ढंग और संस्कृति में नहीं ढले आज भी अपने को भगवान् समझते हैं और  जहाँ तहां कटौती करते हैं .

हाँ अब आईये मुद्दे पे, क्या था ?  मोक्ष , नहीं मकान, हलाकि बात एक ही है.
एक बार ‘मकान एक खोज” के हमने भी  गली गली की धुल फांकी जिससे गलिया धुल मुक्त और साफ़ सुथरी हो गयी, हालाकि ये साफ़ सफाई आजकल बेरोजगार भी बखूबी करते हैं. या यूँ कह सकते हैं सरकार साफ़ सफाई चाहती है इसलिए इन्हें नवयुको को बेरोजगार रखती है.

काफी  कार्यकर्त्ता प्रयास करने के बाद टिकट रूपी एक पता मिला जहाँ पहुचने पे पता चला की मकान मालिक जी भगवान् को रिश्वत देने की प्रक्रिया में है. एक हाथ में आग लगी अगरबत्ती, और दुसरे हाथ में घंटा लिए भगवान्दो को घूरे जा रहे थे, बीच बीच में बगल में रखा सुखा लेकिन मजबूत नारियल की तरफ भी देखते थे मानो कह रहे हो अबकी इक्षा पूरी न की तो यही नारियल  पैर की जगह कहीं और फोड़ दूंगा. दो घंटे तक  घंटे तक भगवान् को धमकाने के बाद उन्होंने हमारे मुखमंडल को निहारा. 

वह  लम्बे वालो एक औरतनुमा मर्द था. शायद देखते ही समझ गया था की मई क्यों आया हूँ . नाक में कानी अंगुली घुसा के नाक से  अंगुली साफ़ करते हुए बोला, “लड़की नहीं लाओगे”, अचानक धमाक से बम फोड़ते हुए   उसने मेरी नब्ज पे हात रख दिया था. मैंने पूर्व में कितनी कोशिश की थी की कोई माकन मालिक ये शब्द कहे और मई मन मसोस कर रह जाऊं हाय अब नहीं ला सकता, लेकिन जब लेकिन जब मुद्दा ही न हो तो अफ़सोस किस बात का ?हलाकि घर पर प्रेयसी लानो वालो को मई टनो गालियाँ देता, जिसको सुनकर कोई विद्वान गाली पुराण या या गाली – ये – हदीस  लिख जाए तो भविष्य में उत्तर प्रदेश के नेतावो के  इस “विशेष भासा शब्दकोष”  की “कुंजी” बन सकती थी .  

“नहीं नहीं आंटी मई उन लंपटो(ऊपर से, मन से उन सौभाग्शाली)  में से नहीं, जो आफिस की बजाय घर पर अवैध कार्य करते हैं”  मैंने दांत  निपोर के कहा. वैसे भी वर्तमान सरकार जैसी मेरी  स्थिति नहीं थी की  बाहरी ऍफ़ डी आई घर में लाता.

फिर काफी देर तक इधर उधर (नौकरी और तनख्वाह मिलने की तारीख की बाते करते रहे. फिर नाक में से अंगुली निकाल बनियान में पोछते हुए अगली शर्त रखी “हम लोग शाकाहारी है, हमारे घर में मांस आज तक नहीं पका, तुम भी नहीं  पकाओगे.” मुझे लगा गोया फ़्लैट किराये पे नहीं बल्कि लड़की के साथ ढेर सारा दहेज़ दे  अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे हों. हँह,  शाकाहारी, क्या भेजा मांस में नहीं आता,  मापने लायक लायक कुछ होता तो  ५ एकड़ खा चूका था . क्या जमाना आ गया है , कभी सुना था बिहार के  एक मुख्यमंत्री माँसाहारी से शाकाहारी हो चुके है,  गाय  बकरा छोड़  उसके चारा को खाना शुरू कर दिया है, और  यहाँ यह दूसरी प्रजाति, शाकाहार  के नाम मेरे दिमाग का बाल्तकार किये जा रहे  है .  
"जी, मुझे  बनाने नहीं आता”,  अपने दातो को दुबारा बाहरी दुनिया दिखाते हुए बोला.

इसके बाद उन्होंने दो चार क्लाज और रखे जैसे की आमतौर सभी धूर्त रखते हैं और हम उनके शर्तो को जहर की तरह शंकर बन आत्मसात करते  रहे.  

मुझे वैसे भी उनकी सारी  बात मानाने में भलाई लगने के कई कारन थे, एक तो मुझे एक नए फ़्लैट की शख्त जरूरत थी दूसरा इनका  लड़का जो इनके बगल में खड़ा मुझे लगातार घूरे जा रहा था,  ६ बाई ३ का एक बढ़िया क्षेत्रफल रखता था , उनकी साड़ी शर्ते मनानी जरुरी ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य वर्धक भी थी . बाद में सुनने में आया की वह एक  प्रतिभाशाली लुच्चा है, और उसकी दोस्ती एक स्थानीय नेता से भी है और इसी गति से कर्मठ रहा तो भविष्य में उसका प्रमोशन बाद  गैंग्स्टर बनान तय है, और यदि लड़के ने दिमाग लगाया तो नेता जी को निपटा के उनके स्थान पर टिकट भी ले सकता है, नेता जी भी इसी विधि से किराने की दूकान बेच, अपने पथ प्रदर्शक को निपटा  नेता बने थे जैसा की आमतौर पर आजकल के अधिकंश्तात  नेतान्नोमुख लोग करते हैं .  उदहारण के तौर पर केजरीवाल को लिया जा सकता है जो अन्ना को निपटा नेताबाजी का भरपूर मजा ले रहे है .वास्तव में वह एक जिम्मेदार व्यक्ति था, जिम्मेदारी के साथ ठेका ले एक मुश्त वोट डलवाना, जिम्मेदारी के साथ सुनदर स्त्र्री देख दिल पे काबू न कर पाना, जिम्मेदारी के साथ बिना बात के लड़ना उसके विशेष रुचियों में से एक था, सारी बतकही यहाँ बता नहीं सकता, बाकि आप लोग अनुभव से सूंघ सकते है आपके ऊपर छोड़ता हूँ.

सब मिला के वह कमरा मुझे मिल गया है,  कुल मिला के दो साल का कारावास उसी कमरे में काट चूका  हूँ, अब उस मकान मालिक के लफंगे रत्न को किसी के गले मढने की तयारी की जा रही है, फलतः मुझे कमरा खाली करना है, और एक बार फिर मोक्ष की खोज में निकलना है.

कमल कुमार सिंह 

Thursday, March 28, 2013

आतंकी आईटम हराम, आतंकी हलाल

कोंग्रेसी सांसद फौजिया खान के स्नेही- "हलाल आतंकवादी  अबू जिंदाल " 

 जब अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान है, या यूँ मान ले अल्लाह गधो पर ही मेहरबान होता है, क्योकि ये जिसपर भी मेहरबान होता है वो सिर्फ चारो तरफ ढेंचू ढेंचू करता है,  दुसरे की नहीं सुनता. जिसने भी ये कहावत कही होगी वो किसी न किसी दिन सत्ता पक्ष में जरुर रहा होगा या फिर कोई सेठ रहा होगा जो जिसको सुबह शाम उसका कुत्ता सडको पर घुमाता होगा या कुकरम करने वाला कोई धर्मगुरु.  

आजकल स्पेशली  हिन्दुस्तान के लिए एक स्पेशल अल्लाह डेपुट हुआ है जिसका नाम  सरकार है, कोंग्रेसी सरकार, इस अल्लाह का लोगो के  भाग्य का फैसला करने का एक स्पेशल रेंज है -गरीब तबका, पैसे वाले क्षेत्र में इस भगवान् का काम धाम ठप्प हो जाता है, या यूँ कह ले दान दक्षिणा ले अल्लाह खुश हो जाता है.  ये भारत भाग्य विधाता टाइप टाइप के  स्पेशल आईटम के दो मुह है, एक खाने के एक निकालने के हलाकि है दोनों मुह. सेठ के कई कुत्तो की तरह इनके भी श्वान है जो ये मानते है की न्याय पैसे के हिसाब से होना चाहिए. 

१९९३ में  संजय दत्त को अवैध  हथियारों के मामले गिरफ्तार किया गया, जिसमे साफ़ था की संजय दत्त के घर में किसी ने अनजाने में नहीं रखा बल्कि संजय के शौक का इसमें पूरा हाथ था. जबकि जेब्बुनिशा के घर में यही हथियार कुछ दिन तक किसी ने रखा था लेकिन जेब्बुनिशा की मर्जी इसमें थी, ये कहीं साबित नहीं हो सका, न ही उनका या उनके दिमाग या हाथ का   किसी  तरह के  "भाईवाद" या आतंकवाद में  शामिल होना पाया गया, उनका गुनाह था तो बस इतना की यह हथियार  बस कुछ दिन तक उनके घर में आराम फरमा रहा था. यदि जेब्बुनिशा की यही मात्र गलती है तो बाकियों को क्यों बक्शा जाय ?

 हथियार जिन्न की तरह प्रकट तो नहीं हुआ, वह गाडी भी उतनी दोसी है, बाहर से आया तो किसी रास्ते से आया होगा, वह रास्ता भी दोसी है, उन सबपे मुकदमा चलाना चाहिए जिस रास्ते, निर्जीव चीजों से होकर  यह हथियार गुजरा, भले उनका कोई रोल न हो, आखिर जेब्बुनिषा का घर भी एक निर्जीव चीज है और सजीव जेबू की  इसमें कोई मर्जी नहीं दिखती यहाँ तक की कानून की नजर में भी नहीं सिध्ह हुआ. यदि फिर भी सरकार या कानून इनको दोसी सिर्फ इसलिए मानती है की अनजाने में ही सही हथियार इनके घर में तो पाया गया. 

 दोस्तों याद है आपको वो कोंग्रेसी सांसद फौजिया खान जिनके घर में कुछ समय के लिए ही सही लेकिन आतंकी अबू जिंदाल था  खुद  फौजिया ने भी इस बात का माना है लेकिन ये मानने से इनकार कर दिया की उन्हें उसके आतंकी होने की जानकारी थी. अब देखिये फौजिया और जेबुनिषा दोनों अनजान लेकिन एक कानून के गिरफ्त  में और एक आजाद शायद  आतंकी आईटम हराम, आतंकी हलाल है ,   फौजिया पर क़ानून   और सरकार की आँखे कई कारणों से मूंदे हैं वह यह की फौजिया, इस ७० साला जेबुन्निषा की तरह गरीब नहीं, नहीं फौजिया इस बुजुर्ग की तरह बेबस है, और सबसे बड़ी  और  अंतिम बात, अरे भाई फौजिया कोंग्रेसी है. 

कमल कुमार सिंह 

Wednesday, March 27, 2013

सेहतमंद, दौलतमंद और अक़्लमंद बनने का साइंटिफिक मैथड


भाईयों हर आदमी आज  टकाटक, फटाफट अमिर बनना चाहता है, इसके लिए की पूजा करता है, कोई नमाज पढता है, और कुछ बिदेशी धन से अपनी  डाक्टरीयत झाड़ते हैं. कुछ हम जैसे भी है जो सुबह सुबह उठ के पार्क में जा के  सेहत चूसते है, धन के लिए आफिस जाना होता है, अक्ल के लिए अच्छे अक्लमंद लोगो के साथ कुछ अक्लमंद लोगो के लेख पढ़ते है, और यही हमें बचपन से सिखाया  भी गया, "जिसका जैसा संग, वैसा होगा मन". 

यदि पूजा पाठ और नमाज से लोग आमिर बनते तो मंदिर का पंडा और मस्जिद क मुल्ला धीरुभाई  के साथ उठाना बैठना होता, अलबत्ता मैं तो यही जाना है की ये सब बस  माध्यम  है जहाँ अच्छे लोग पाए जा सकते हैं , लेकिन कुछ लोग इन सब की आड़ में  अपने बिदेशी पैसे का हक़ अदा करते हैं. यदि कोई तर्क दे की नियम पूर्वक नमाज पढने की आदत से लोग सुबह उठते हैं  जिससे लोग आमिर बनते है तो हसी आती है,  ये चोरो के लिए की एक अच्छी बात हो सकती है. '

क्योकि एक शातिर चोर रात के अंतिम बेला, और ब्रम्हा मुहूर्त में उठ भगवान्/ अल्लाह का नाम ले  पैसे से परिपक्व घर को चुनता है, मौका लगा तो हाथ साफ़ कर कुछ दिन का आमिर बन जाता है, फिर इश्वर को साधुवाद  देता है.  यदि इस  प्रकार का फायदा है तो ला हौल बिला कुवद. 

मेरा एक मित्र था, वह नियम पूर्वक  सुबह सुबह उठ, सड़क पर खड़ा हो तमाम आने जाने वाली महिलाओ को ताका करता था पूछने पर पता चला की "उस्किवाली " उस नियत समय पर उसी रास्ते से आती जाती है, जिसको देख वह "फील गुड " करता है, और उसका चेहरे और दिल का  स्वास्थ्य अच्छा होता है. 

सब मिला के  विदेशी पैसे के एक  विदेशी धर्म एक्सपर्ट मूर्खा वन्दनीय  श्री श्री धमालेशवर महाराज जी के, कहने के मतलब था सुबह उठो, लेकिन इसका श्रेय का कनेक्शन "लेखक मोहम्मद" के एक टाइम टेबल नुमा पुस्तक से जोड़ कर निचोड़ निकाला की सुबह उठो या मत उठो इस टाइम टेबल का फालो करो अब चुकी ये टाइम टेबल बिदेशी है तो उम्दा है वैसे भी लोग भारत में बिदेशी चीजो का बहुत क्रेज है चाहे सरकार की अध्यक्षा  हो या टाईम टेबल या टाइम टेबल के मानने वाले एक शब्द में  हम इस प्रकार के लोगो को "बताशेबाज" कहते हैं क्योकि इनका टाईम टेबल ८० साला बुजुर्ग के दिल की तरह है जो बात बात में झटका खा जाता है, उस पर खतरा मडराने  लगता हैं, नाजुक तो  बताशे से बभी जादा.

खैर अब मुद्दे पे आते हैं, अब बात है सुबह उठने की, हो सकता है नींद न खुले, या पब्लिक आलसी हो जाए तो मुझे एक और  नुकशा सुझा है, अमल फरमाएं, शाम को  खाना के बाद सोने से पहले तीन चुटकी त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ ले, और सो जाएँ, विश्वाश माने  ब्रम्हा मुहूर्त में आपके पेट में कर्बला होने लगेगा, तब  शहर के लोग सोने के  १० फीट की दुरी जा और गाँव के लोग लोटा ले दौड़ लगा दें तो  युध्ध विराम हो जायेगा, इससे आप शांति और सेहतमंद महसूस  करेंगे, साथ स्वास्थ्य लाभ भी.  सब मिला के टाइम टेबल से बेहतर है हिन्दुस्तानी त्रिफला और शौचालय, क्यों क्या कहते है  आपलोग ? 

कमल 

Sunday, March 17, 2013

इस्लामिस्ट कभी खुश नहीं रह सकते - तसलीमा

बांग्लादेश एक इस्लामिक देश है, हर इस्लामिक देश की तरह यहाँ के गैर मुसलमान  अपने खिलाफ हुए अन्याय की प्रतिक्रिया नहीं दे सकते 

हिन्दुओ के जले घर , - नोवाखली 

बांग्लादेश में मुसलमानों ने हिंदुवो के घर और मंदिर जलाये, क्या  वो इस्लाम के  विरोधी या इस्लाम के लिए खतरा थे ?
"नहीं "

तो फिर मुसलमानों का उनके ऊपर आक्रमण क्यों ?
"क्यों की मुसलमान  बांग्लादेश को विशुध्द रुप से दारुल इस्लाम बनाना चाहते हैं जहाँ, गैर मुस्लिम के रहने पे रोक हो ."

यदि गैरमुस्लिम बांग्लादेश छोड़ दें तो क्या मुसलमान खुश रहेंगे ?
" नहीं तब वो अहमदिया और नॉन सुन्निस को को मारेंगे"

यदि नॉन - सुन्नी भी बांग्लादेश छोड़ दें तो क्या वो खुश रहेंगे ?
" नहीं, तब वो उन सुन्नियो को मरना शुरू करेंगे जो ५ बार नमाज नहीं पढ़ते, या जो रमजान के महीने में रोज उपवास नहीं रखते"

अब तो  खुश रहेंगे ?
"नहीं"

क्यों ?
"अब उन्हें नरक का डर रहेगा", की क्यों इतने लोगो ओ मारा "

अब वो क्या करेंगे ?
"अब वो हज  करना मक्का जायेंगे "

---- तसलीमा नसरीन द्वारा . (http://freethoughtblogs.com/taslima/2013/03/17/islamists-are-never-happy/)


शायद तभी ये कहावत बनी होगी " नौ सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज को

सादर

कमल