नारद: October 2012

Saturday, October 27, 2012

ये जाहिल हैं, मुसलमान नहीं


बकरीद आई और दंगे की छाप छोड़ गयी, समझ नही आता शान्ति के इस धर्म में इतने जाहिल क्यों है कैसे है? निश्चित तौर पर ये मुसलमान बाद में जाहिल पहले है, इंसानी जाहिल, हालाकि  जानवरों और जाहिलो में और जानवरों में कोई ख़ास नहीं, क्योकि दोनों में सोचने और समझने की क्षमता का अभाव होता है और इनके साथ सरकार भी सलूक जानवरों जैसा ही कर रही और ये सोचते है की ये सरकार के शह पे हैं या सरकार इनपे रहमत बरसा रही है. ये इतने जाहिल हैं की खुद अपने खिलाफ हो रही साजिश को भी नहीं पहचान रहे.  

हालाकि  सभी जाहिल नहीं, मै एसे ढेर सारे मुसलमानों को जानता हूँ जो जहीन है लेकिन वो बिचारे करे भी तो क्या ? अब हो रहे दंगो में वो किसी को रोके भी तो कैसे ? हिन्दू को रोकेंगे तो पिटेंगे, मुसलमान को रोकेंगे तो जादा पिटेंगे. अलबत्ता वो इस झमेले में पड़ना नहीं चाहते. जो मुसलमान नौकरी पेशा है वो इसमें अपने हाथ जलाये या अपने बीवी बच्चो को पाले या अपना भविष्य देखें ? मुसलमान पढ़ा लिखा और जहीन होते ही समझदार हिंदुवो की तरह इन सब पचड़ो से दूर भाग आता है, लेकिन कीचड़ के छींटे से अपने को बचा नहीं पाता, गेहू के साथ घुन की तरह पिस जाता है. शक और गालियों के बाण उसपे भी चल जाते हैं. लिखने वाले भी एक ही तराजू में सबको तौल देते हैं.

जब भी ईद या बकरीद आता है इस तरह का दंगा होना अनिवार्य हो गया है ? क्या खुदा दंगा करके रोजे खोलने को कहता है ? नहीं बिलकुल नहीं, वास्तव में ये रोजे अपने लिए नहीं बल्कि नेतावो के लिए खोल रहे हैं, और अपने ही खिलाफ दूसरी कौम को लामबंद कर रहे हैं. 

अभी हाल में फैजाबाद दंगे का कारन मालूम करने पर पता चला की मूर्ति विसर्जन (दुर्गा पूजा के बाद) के समय कुछ गुलाल मस्जिद परिसर पर गिर गया, इसी को लेकर दंगे भड़के थे, बाद में कुछ जाहिलो ने जो अपने आपको मुसलमान कहते हैं, ने बीकापुर में मदरसे के पास के इलाके हिंदुवो के घरो में आग लगा दी और इस तरह से कफर्यू लग गया. इस प्रकार के जाहिलो ने एक बार ने बल्कि कई बार इस्लाम के नाम पर दंगो की शुरुवात की, और सरकार इन्हें पकड़ने की बजाय वोट पर पकड़ बनाने में जादा दिखी. 

ये जाहिल नहीं समझ पा रहे की अपने ही कुकर्मो से ये इस्लाम को हिन्दुओ की नजर में जहरीला बना रहे है, हिन्दू  अपने कृत्य को "प्रतिक्रिया" का नाम दे के बच जाते हैं.  अब समझ ये नहीं आता की मस्जिद पे गुलाल गिरने से इस्लाम पे इसी कौन सी आफत टूट पड़ी, और यदि वो आफत टूट ही गयी तो तो घर जला के उस आफत को ये दूर कर पाए ? नहीं बल्कि ये दिन ब दिन दो समाजो में जहर भरते जा रहे हैं.
फिर मुल्ले हिंदुवो की प्रतिक्रिया को आक्रमण बता के फिर से इनके दिमाग में जहर भरते है. की हिन्दू कौम मुसलमानों से नफरत करती है.  तो भाई दोनों इसी देश के हैं, और यही रहना है, आप किसी के बहकावे में आ के क्रिया न करोगे तो तो प्रतिक्रया कहाँ से होगी, इसी देश में मौलाना कल्वी जी भी हैं,  जो सभी  हिन्दुवों के आदर पात्र हैं और बुखारी जैसे बिजली चोर भी. यदि सिर्फ मुसलमान के नाम पर ही नफरत करना होता तो हिन्दू "कल्वी" जी  से नफरत करते और अब्दुल कलाम से भी, ए आर रहमान से भी, इसी देश में फ़िल्मी दुनिया में  शाहरुख़ और सलमान को सबसे ऊँचे दर्जे पे रखने वाला हिन्दू समाज ही है क्योकि ये बाहुल्य है, इस बात को दिमाग से निकलना ही होगा की हिन्दू सिर्फ "मुसलमान" नाम से नफरत करता है, वो कर्ता है तो जाहिलो के कुकृत्यों से, जिसको आपके मौलवी हिन्दुवों की नफरत बता देते हैं, ये समझना आपका भी काम है. अफ़सोस इस्लाम के नाम वाले इस देश में जाहिल जादा और जहीन कम है. 

 इस देश की जादा आबादी अभी भी गाँवों में रहती है. जहां एसे नौजवान रहते हैं जिनके हाथो को न काम है, न दिमागी खुराक, और एसे ही लोगो को ले के मौलवी इस्लाम के नाम पे अपनी ख़ुडक शांत करते दीखते है. इनको बड़ी आसानी से अपना शिकार बनाया जा सकता है, और यही वोटर भी होते हैं जो लामबंद हो के वोट करते हैं. और राजनेता इनके वोट ले के सत्ता तो पा जाते हैं, लेकिन इनको इनकी हालत पे ही छोड़ देते हैं, ताकि आगे फिर से इनके धार्मिक सुरक्षा के नाम पे इनसे वोट हथियाया जा सके, और दुसरे हिन्दुओ के खिलाफ भड़का के उन्हें एक तरफा वोट डालने के लिए दिमागी रूप से तैयार किया जा सके, क्योकि यदि इस कौम के जाहिलो का उत्थान कर दिया तो ये भी अपना भला बुरा समझने लगेंगे तब न इनके पास दंगो का समय होगा और न तोड़ फोड़ का, फिर ये भी सर उठा के चलने के लायक हो जायेंगे तो फिर धर्म के नाम पर इन नेताओं को सत्ता कौन दिलाएगा ? 

मैंने इस्लामी धर्म के पे लिखने वालो को काफी देखा है, जो इस्लाम की अच्छाइयां तो बतलाते हैं, लेकिन कुरीति को दूर करने के नाम पे चुप्पी साध लेते हैं. एसा नहीं है की इस्लाम को रास्ता देने या कुरीति दूर करने के लिए  कोई आगे ही नहीं  आया, आये और कै आये लेकिन उनको अतिवादियों द्वारा शाजिश करके शहीद कर दिया गया. दूसरी सबसे बड़ी बात की इस्लामी धर्म कर्म पे लिखने वाले  कभी अपनी कौमो के गलत कार्यो   निंदा  करते दिखाई नहीं देते जिससे हिन्दू समाज ये भ्रम फैलना स्वाभाविक  है की मुसलमान धार्मिक रूप से दंगाई है.  क्योकि गलत कार्यों की निंदा  न करना शह ही माना जायेगा, जबकि वहीँ हिन्दू अपने ही कुरूतियो की निंदा ही नहीं बल्कि बाबा -बुबियो की पोल भी खोलता दिखाई पड़ता है. रही सही कसर मुल्ला मौलवी पूरी कर देते हैं जो इन्हें इस्लामिक राज्य का झूठा भ्रम दिखला के इन्हें धर्म की बेड़ियों में जकड़ पीछे जाने के लिए प्रयासरत है. 

इनकी सबसे बड़ी समस्या है इनकी जनसँख्या, जो धर्म के रस्सी से बधी हुयी है, जो मुसलमान पढ़े लिखे होते हैं वो आज नसबंदी करा रहे हैं, और अपना भला बुरा सोच सकते हैं, उन्हें पता है  एक चादर में कितने पाँव फैलाए जा सकते हैं, सुकून से रहने के लिए चादर का बड़ा होना जरुरी है, जिसके बुनने के लिए उन्हें जहिनियत का जुलाहा बनाना पड़ेगा, और वो बन भी रहे हैं, लेकिन इस प्रकार के लोगो की संख्या नगण्य है.

जिस दिन सबके हाथो को काम और पेट में रोटी होगी यकींन मानिए दंगो का नामोनिशान मिट जाएगा, लेकिन ये जिम्मेदारी जिनकी है वो इन्ही के भूखे पेटों से रोटियाँ छीन उसे अपने राजनीति के मशीन में डाल कर वोट बना लेते हैं. और इन्हें अपने हाल पे छोड़ देते हैं और इनके मजहबी पथ प्रदर्शक इन्हें रास्ता न दिखा अपनी रोटियाँ सेंकने में लगे है एसा लगता है जैसे इन्हें कौम मौलवी नहीं बल्कि नेतावो के सलाहकार है. 

भूखा पेट ही अहिष्णु हो सकता है, जो सिर्फ हिन्दुओ के प्यार से नहीं भरा जा सकता. क्योकि भूखे पेट को प्यार चाहिए तो जरुर लेकिन पेट भरने के बाद, और ये प्रकृति का नियम भी है.



सादर
कमल कुमार सिंह
२७ अक्टूबर २०१२ 

Wednesday, October 17, 2012

रामलीला और राजलीला


रामलीला आ रही है, सभी पूर्व पात्र अपने अपने रंग ढंग में  आने लगे है,  जो पिछले साल का राम था वह कही भगा हुआ है, उसकी जगह किसी नए अपरिपक्व लौंडे ने लिया है और पुराने वाले की तरह का अभिनय करने की कोशिश कर रहा है, हालाकि दोनों ही अभिनयी है लेकिन एक अनुभवी दूसरा "अनु -भवी" . पिछले साल दोनों ने साथ में राम लीला किया था, अबकी मेहनताना में गड़बड़ी हो गयी सो अनुभवी अभिनयी भाग लिया, या यों कहिये नए अभिनवी ने जादा मेह्नाताना के चक्कर में अनुभवी अभिनयी को भगा दिया और खुद नए परोगो से अनुभव जूटा मंझा हुआ अभिनयी बनने की कोशिश कर रहा है , धाय्न रहे सिर्फ अभिनय के लिए. 

खैर, लीला तो  सिर्फ लीला है, और ये होना भी चाहिए, इससे समाज में सन्देश जाए या ना जाये, लेकिन मनोरंजन जरुर होता है. और रामलीला यदि मिडिया प्रायोजित हो तो कसम से मजा दोगुना. इस तरह के रामलीला से किसी को कुछ मिले या न मिले लेकिन मिडिया को टी आर पि जरुर मिलता है और मिडिया को इससे जादा चाहिए भी क्या?? 

हे नकली राम ये कैसा बाण है तुम्हारा ?? छोड़ते हो लेकिन लगता किसी को नहीं ? निशाना गड़बड़ है या डाईरेकटर के हिसाब से हो ? भाई आपके अभिनय  का जो लोहा मानते है वो तो ये भी कहते है की तुम्हारा दिमाग ऐसा  है जिधर मुड़ेगा गोला दागेगा ?भाई गोला दागो, जनता को गोली मत दो, जनता वैसे भी हर प्रकार की गोली और गोले की अभ्यस्त है, जो सरकार समय समय पर दगती ही रहती है . भाई कैसा तोप है आपका ? कहीं लकड़ी का तो नहीं, जिसमे बारूद  की जगह "भूसा" भरा है ? 

आपके मानने वाले आपको सच  का राम समझाते है, खैर मनाने और मनाने का का क्या ?? मेरी दादी  जी आज भी अरुण गोविल  को राम  ही मानती है, किसी धारावाहिक में देखा तो बोल पड़ती है  देखो राम  जी, उनको अरुण गोविल और राम का भेद नहीं पता है. लेकिन इस प्रकार के भोले लोगो के भरोसे अपना अभिनय कब तक जारी रख पाओगे ?  क्योकि आजकल की दुनिया में भोले  लोग कम है और भालू लोग  जादा , भालू भी एइसे जो मधुमख्खी के छत्ते से भी मधु निकाल ले, बिना डरे. 

हे नकली राम, आप तो पहले एसे राम हो जिसका "हनुमान" पहले ही भाग खड़ा हुआ है, या यों कहिये के राजनीति के रामायण के चक्कर में आपने पहले ही भगा रखा है, बिना हनुमान के आप सुंदरी सत्ता , माफ़ करीए सीता तक कैसे पहुचोगे ?? असली राम ने बहुत पापड़ बेले थे , समुद्र बाँध लिया था..भोली जनता के राम बन  ये क्या कर रहे  हो आप ?  मजा तो तब है जब भोली के साथ भालू जनता भी आपके साथ हो, क्या आप भूल गए, सीता के पास पहुचने का मार्ग प्रशस्त करने वाला एक भालू ही था. लेकिन आप है, की भालू को भोला समझाने की भूल कर रहे हैं, और भालू का शहद अकेले डकारने के चक्कर में है. भाई आपसे आग्रह है असली वाला राम ही बनो, न की असली का खोल पहन नकली राम, क्योकि खोल पहनने का काम भेडिये का होता है. आपकी अन्युयाई भोली जनता आपको सचमुच का "राम" समझने लगी है, बहुत ही भ्रम में है है, कृपया इस भ्रम को तोडिये नहीं बिचारे किसी काम के नहीं रह जायेंगे. सूना था आज आपने कोई बड़ा तीर छोड़ने का कहा था, इतना सुनते ही भोली जनता अपना बुध्धि विवेक खो, आपके समर्थन " गोला , तोप , बन्दुक , या, वा" तमाम प्रकार के लेख भी डाले, लेकिन अफ़सोस एसा कुछ नहीं हुआ उनका लिखा बेकार चला गया, आपने बता दिया की आपके लिखने वाले समर्थक ब्रम्हा नहीं, और आपके  लोटे में पेंदा नहीं. आपने उनकी नाक कटा दी , दिल तोड़ दिया, बिचारो को "डी-मोर्लाईज्ड" कर दिया, आपने जिस कब्जे की बात को ले के गडकरी का नाम उछाला , उसी जमीन को आज सुबह सुबह एक किसान पाना बता रहा है और कहता अहि अभी भी हमारे पास है. 

अभी तक आपने जितने भी गोले छोड़े है सब फुस्सी, जितने तीर छोड़े सब रास्ते  ही काट दिए गए, ये असली वाले राम के लक्षण तो नहीं, कृपया अपना असली रूप जल्दी सामने लाये, भोली -भालू जनता को बेवकूफ न बनाये, क्योकि खोल का रंग भी एक समय पे आके उतरने लगता है, तब आपकी पहचान अपने आप होती जाएगी, और समय आपके लिए बड़ा दुखदायी होगा, क्योकि तब न माया मिलेगी न सत्ता, माफ़ करीए सीता. 

आपका एक दर्शक 

कमल कुमार सिंह 


Sunday, October 14, 2012

अंडे का फंडा


अंडा स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, बहुपयोगी पदार्थ है, खाने के अलावा भी कई सुंदरी इसको बालो में लगाती है ताकि उनके बाल स्वास्थ्य रहे जिसे देख उनके  बॉय फ्रेंड का दिल स्वस्थ रहे, कुछ को तो चेहरे पे रगड़ते देखा है. इन सब के अलावा भी भी इसका एक उपयोग है, किसी को उपहार देना, जी हाँ अंडा लोग उपहार में भी देते हैं, कुछ लोग सर पे फेंक के देते है कुछ  चहरे पर. 

चहरे  से याद आया की कुछ दिन पहले रेणुका जी ने बाबा रामदेव को शक्ल ठीक करने की सलाह दी थी, उनका  मानना है की शक्ल ठीक तो सब ठीक, लेकिन मेरे समझ में ये नहीं आता की  इतनी ढलती उम्र में भी रेणुका जी की शक्ल भी ठीक है,खंडहरे बताते हैं की ईमारत बुलंद होगी, लेकिन अक्ल का क्या करें ?? अब शकल से ही कुछ होना होता तो कोंग्रेस में एक से एक सुदर्शन लोग है, लेकिन शकल का कवच उनकी रक्षा नहीं कर पा रहा.क्या कोंग्रेस में इन्होने अपनी जगह शकल से बनायीं है.

एक बात तो तय है की शकल का अकल से कोई सम्बन्ध नहीं है,एसा होता तो अपने राहुल भाई के पास क्या कम सुन्दर शकल है ? हाँ एक समानता हो सकती है, लोग अक्ल लगा के शक्ल सुधार सकते हैं, लेकिन फिर भी शकल लगा अकल का कुछ नहीं किया जा सकता.   बाबा रामदेव हो या केजरीवाल दोनों के पास सुन्दर शकल न सही ?? लेकिन इनलोगो ने  सुन्दर शकल वालो के चहरे बुरी  तरह काले  कर रखे है, अब इनका गोरा अक्ल, काले हुए शकल को सुधारने में चला जाता है. 

शीला दीक्षित जी के समारोह में कुछ अंड बंड लोगो ने अंडाबाजी की,  सुन के दुःख प्रकट करू या ख़ुशी ..कोंग्रेसी कह रहे हैं है कबूतर का बीट था, बीट , वो भी इतना?? की पुरे चेहरे पे कान्ति फैला दे ?? तब उस कबूतर का नाम गिनीज बुक में जरुर दर्ज होना होना  चाहिए, वैसे भी  आम को इमली कहना कोंग्रेस की ये पुरानी आदत है. खैर जो भी हो इतना है की इस घटना को शीला दीक्षित जी को सकारात्मक  लेना चाहिए जैसे कोंग्रेस अपने घोटालो, महगाई के लिए सकारात्मक पक्ष प्रस्तुत करती है.  


लोग उस अंडाबाज  को अंड बंड कह रहे हैं लेकिन एसा नहीं है, निश्चित ही वह अंडाबाज  कोंग्रेस का शुभचिंतक  है, उसके अंडा फेकने  में एक फिलोसफी है,  वह चाहता है की कोंग्रेस की सरकार आगे भी देल्ही में रहे और शीला जी उसकी अगुवाई करे, अब चुकी महगाई , और घोटाले के कालिख ने कोंग्रेसियों का मुह काला कर दिया जिससे इनके चहरे की कान्ति घटने लगी, सो वह शुभचिंतक बस सन्देश देना चाह रहा था की अंडा इस्तमाल कीजिये, चेहरे की कालिख  दूर भगाईये  और चेहरे को कांतिमय बनाईये. शायद वह "शीला , शीला की जवानी" गाने से प्रभावित था, किरदार समझने में उससे चुक हो गयी, अरे अंडाबाज भाई, वो शीला दूसरी है और ये वाली दूसरी,..

जनता से इनकी अपेक्षाएं है की इनके सलाहे हुए महगाई को जनता आत्मसात कर सराहना करे लेकिन क्या ये जनता के सलाह को स्वीकारेंगे ?  सराहेंगे ??

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Monday, October 8, 2012

केजरीवाल की नयी माशूका


इंसान का मन बड़ा चंचल होता है, गीता में अर्जुन के संशय को भंग करते हुए कृष्ण ने बड़ी अच्छी बात कही है :

गीता श्लोक –6.35
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहम् चलम्|
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||

अर्थात … ..हे महाबाहो!तुम जो कह रहे हो वह सत्य है लेकिन मन की चंचलता अभ्यास योग से मिले वैराज्ञ प्राप्ति से दूर होती है और मन परम सत्य पर स्थिर हो जाता है. 

लेकिन केजरीवाल ने इसका गलत मतलब निकाल लिया " इसमें कोई संशय नहीं की अभी मेरा दुर्दिन चल रहा है, सफलता ने मुझसे वैराग्य लिया है,  लेकिन किसी भी प्रकार अभ्यास कर करके इस वैराग्य रूपी असफलता  को दूर  करूँगा". 

अब इनके लिए सफलता क्या ?? तो भाई "जिसके" लिए ये अन्ना को छोड़े हैं "वही" पा जाए तो ये सफल है. 

अब आप कहेंगे के इसने अन्ना को कहाँ छोड़ा है ? तो भाई इनकी हालत कुछ वैसी है जैसे एक "मोहतरमा" कहे " सुनिए जी  माना की हमारा तलाक हो गया है लेकिन आप भूल न जाना फुफेरे भाई -बहन हम अब भी है"

खैर कहते हैं इश्क अंधा होता है, लेकिन ये गलत है, इश्क भी कहीं अंधा हो सकता है ?? हर कोई देख परख के अपने हिसाब से छांट कर अपने मन के मंदिर में बिठाता है  तो अँधा कैसे ?? हाँ इसके बदले ये जरुर कहा जा सकता है की इश्क गंदा होता है,.. क्योकि एक बार छांट कर पाने की लालसा जागृत हो जाए इंसान गंदे से गंदे स्तर तक उतर सकता है. 

अरविन्द को भी किसी से इश्क हो गया है और  ये बुरा भी नहीं है, इश्क करना भी कहीं बुरा है ?? नहीं न ,  इसमें  बुरा मानने वाली बात नहीं है, लेकिन आश्चर्य की की जिस लड़के से पूछा जाए की तुम इससे  शादी करोगे ?? बोलो- बोलो करोगे, और लड़का कहे नहीं कभी नहीं , मै इससे नफरत करता हूँ, ये पतित है, वेश्या है.
चलो मान लिया लड़का समझदार है, तभी कुछ दिन बाद लड़का पता नहीं क्या देख उसी बालिका से सहर्ष विवाह करने के लिए ही नहीं तैयार होता बल्कि अपना घर द्वार , माँ - "बाप" सब छोड़ने को तैयार हो के घरजमाई बन, यह तर्क देता है की मुझे इस वेश्या को अपना के सुधारना है, वाह जी वाह मान गए  गुरु त्याग,  तुम तो इस मामले कोंग्रेसी मम्मी को भी पछाड़ दिए. 

ये कुछ एसा हो गया जैसे कोई कहे "शराब एक बुराई है , आओ ख़त्म करे, एक पैग तुम और एक पैग हम ख़त्म करे". 

खैर इसमें कोई संदेह नहीं की ये अरविन्द अजगर कोंग्रेस की मानस पुत्र  है,नहीं क्या मजाल जो मिडिया इतना कवरेज दे ??

सुब्रम्नाय्म स्वामी न जाने कितने सालो से सरे आम कागजात  सहित मिडिया को कोंग्रेस का सच दिखाते आ रहे हैं, लेकिन मिडिया ने शायद ही कभी तवज्जो दी, सरे आम "बन्देरा" पे आरोप लगाते हैं लेकिन मिडिया उनसे सबुत भी नहीं मागती, क्योकि उसको पता है की मिल जायेगा, जिससे सरकार के मम्मी जी की किरकिरी होगी और वो भी इस कदर की रोका न जा सकेगा, तो उससे बेहतर है की मम्मी के ही किसी नाजायज औलाद को हाईलाईट कर दो, कितना भी कहेगा, लेकिन माँ का प्यार औए बेटे का दुलार कभी अलग हुआ है ?? 

एक महीने पहले से विजय गोयल के पोस्टर डेल्ही भर में लगे हैं , की वो बिजली  महगाई कें खिलाफ मोर्चा खोलेंगे .... ये देख सरकार  ने अपनी नाजायज उत्पत्ति  अरविन्द  अजगर को आदेश दिया, बेटा अजगर मुद्दा हड़प लो, निगल लो तुम्हरे ही पेट में जायेगा, और तुम अपना आदमी हो .. विश्वाश न हो तो , कोई भी  देल्ही के किसी भी गली में जा के देख सकता है लोकल बन्दे से पूछ सकता है .

शायद आप लोगो को याद हो की चुनाव के दौरान आउल बाबा ने उत्तर प्रदेश में "क्रांति" हेतु किसी के चुनावी बिल फाड़े थे, उनके छोटे भाई केजरीवाल ने उसे बिजली का बिल समझ लिया. सो बड़े भाई की  राह पकड़ बिजली बिल फाड़ना शुरू कर दिया. अब कजरीवाल ने अपनी पुरानी माशूका "लोकपाल बिल" को छोड़ "बिजली बिल" से नैन लड़ा रहे हैं .

केजरीवाल देश के कानून की अवहेलना कर संविधान का अपमान कर रहे हैं और दूसरो को भी उकसा रहे हैं की कानून का पामान करो ये कहा तक सही है ? लेकिन ये समझ नहीं आता की सरकार केजरीवाल के लिए इतनी कोमल क्यों बनी हुयी है ?? उसे भी कानून से परहेज है या केजरीवाल से प्यार ?? क्या अब भी कोई नहीं मानेगा की कजरी सरकार की नाजायज उत्पत्ति नहीं ??

अब आप कहेंगे की उसने सरकार को चुनौती दी है  और ये साहसिक कार्य है, तो भाई देश के सारे माफिया, गुंडे ,बाल्त्कारी, हर दिन सरकार को चुनौती देते है, क्या हमें इसको भी साहसिक कार्य मानना चाहिए ??

जो गलत काम लोग पहले से ही करते आ रहे हो उसको कोई और सरकार का चहेता व्यक्ति करे तो ये और भी जघन्य अपराध है बजाय की सहानुभूति के,.

भाई मोहम्मद को जब इश्वर का ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होंने दस हजार की सेना बना मारकाट करना शुरू कर दिया ताकि शांति लायी जा सके,  इसका मतलब तो ये भी की जो अरब  लुटेरे महाज्ञानी थे, क्योकि वो तो पहले से ही मारकाट करते थे ...और केजरीवाल को देश भक्ति जागी तो गैर कानूनी काम करने लगे.. इनसे बड़े देश भक्त तब तो देश के माफिया और कातिल है ..

खम्बे पे चढ़ बिजली का कनेक्शन जोड़ने से यदि क्रांति होती है या देश, समाज में बदलाव होता है तो सबसे पहले देश भर के दो लाख से भी जादा  "लाइन मैनो" को मेरा नमस्कार. बिजली कनेक्शन जोड़ो और क्रांति लाओ.

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Tuesday, October 2, 2012

गिरगिट गैंग के गिरगिट समर्थक

कोंग्रेस का हाथ अन्ना के साथ 

गिरगिट (Chameleons) एक प्रकार की छिपकली है। तोते की तरह के उनके पैर; अलग-अलग नियंत्रित हो स्कने वाली उनकी स्टिरियोटाइप आँखें; उनकी बहुत लम्बी, तेजी से निकलने वाली जीभ; सिर पर चोटी (क्रेस्ट); तथा कुछ द्वारा अपना रंग बदलने की क्षमता इनकी कुछ विशिष्टताएँ हैं। इनकी लगभ्ग १६० जातियाँ "हैं " जो अफ्रीका, मडागास्कर, स्पेन पुर्तगाल, दक्षिण एशिया आदि में पायी जातीं हैं।

 लेकिन सन २०११-१२  के दौरान भारत में एक और १६१वें किस्म के  एक अनोखे और आश्चर्यजनक गिरगिट का पता चला जिसका चाल ढाल तो इंसानी था लेकिन बाकी विशेषताएं जैसे तेजी से निकलने वाली जीभ,  सिर पर चोटी (क्रेस्ट= अर्थात कोंग्रेस का हाथ); और अन्य विशेस्तावों से युक्त  पल पल रंग बदलने की अदभुद क्षमता, एसा माना जा रहा है की यह सबसे उन्नत किस्म का गिरगिट है जिसने  बाकि के १६० प्रजातियों को पछाड़ दिया है.

मेरा ये कहना गिरगिट और गिरगिट समर्थको को बुरा जरुर लगेगा, वो मुहे गालियाँ दे सकते हैं, या कुतरक, लेकिन हाँ तर्क सहित वो मेरी बात को गलत साबित नहीं कर सकते और इतना तो गिरगिट और गिरगिट समर्थक भी जानते  हैं.

जिस केजरीवाल और अन्ना  को दो साल पहले तक उसका खुद का मोहल्ला न जानता हो उसे आज पूरा देश जनता है. कैसे ??  सिर्फ और सिर्फ गिरगिट विकास के अध्याय में एक नयी  कड़ी जोड़ने के कारन मात्र, अब ध्यान देने योग्य बात ये है की इस नयी प्रजाति को विकसित करने की जरुरत क्या आन पड़ी ??


कई साल तक  पहले जमीनी कार्य और जनता  में अलख जगाने के बाद बाबा रामदेव ने काली सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की तिथि की घोषणा जून २०११ निर्धारित कर दी तो महीनो पहले से जनता उस दिन का इन्तजार बेसब्री से करने लगी, क्योकि जनता सरकार के काली करतूतों से अजीज आ चुकी थी इसके कई कारन थे, पहला,  वेश्यावों के को रखने वालो, ब्लू फिल्म बनाने  वालो और अवैध बच्चो के पिता जी, और घोटाले उत्पादक सरकार से जनता तंग आ चुकी थी.. परेशांन थी, हैरान थी, उसको चाहिए था तो किसी का नेतृत्व, ये कमी बाबा राम देव ने पूरी कर दी तिथि  घोषणा के साथ.

जमीनी तौर से कई वर्षों से हर प्रकार के देश सेवा करने वाले बाबा रामदेव्  ने आन्दोलन से पहले जमीनी  रूप से ढेर सारे कार्य कर चाहे वो  स्वदेशी  हो, योग हो, आयुर्वेद  हो, या व्यापार हो शीर्षता हासिल कर  जनता मे परबा विश्वाश बना लिया था. जिससे कोंग्रेस  के पेट में बल पड़ने लगने, जरूरत थी एन केंन  प्रकारेंन  किसी भी तरह  योग गुरु बाबा रामदेव को नीचे दिखाना, लेकिन ये आसन काम नहीं था और न ही है. तो क्या किया जाए ?? अकबर  बीरबल के "रेखा छोटी करो" का सिध्धांत अपना बाबा के बराबर किसी भी इंसान को उस  स्तर तक लाया जा सके  चाहे  वो उस योग्य हो  या न हो, इसके लिए मिडिया का खूब इस्तमाल हुआ.

अब देखिये घटना क्रम कितनी तेजी से बदलता है.

बाबा के तिथि घोषणा के बाद है एक ऐसे गुमनाम शक्श को रातो रात भारत की जनता का मसीहा बनाया जाता है जिसको पिछली सुबह तक कोई जानता तक न था, जो शायद किसी महारष्ट्र के अनाम गाँव से था... वास्तव मैंने खुद भी इनका नाम कभी नहीं सुना था, और मेरी ही तह करोड़ो युवावों ने भी, जो महारष्ट्र से नहीं थे.

एक सभा बुलाई, बाबा राम देव को बुलाया, बाबा ने उसका परिचय अन्ना हजारे के नाम से इस देश को कराया. शायद ये सब पहले से सोची समझी योजना थी. शायद इसके पीछे केजरीवाल का दिमाग रहा हो.. केजरीवाल का इतिहास खंगाला  जाए तो केजरीवाल वास्तव में बहुत ही महत्वाकाक्षी व्यक्ति रहें है, एक बार इनसे  किसी टी वी वाले ने पूछा की अपने सरकारी नौकरी क्यों छोड़ दी, तो इनका जवाब था, यहाँ न नाम है न इज्जत, मुझे और जादा चाहिए ... यानि ये दिल मांगे मोर...

अब अन्ना के लांचिंग के लिए  किस पैड का इस्तमाल हों ?? तो  इस्तमाल बाबा का किया जो इन   के मनसूबे से अनजान थे. उन्होंने सोचा काम देश का है तो एक से भले दो... उन्हें नहीं पता था की जिस भर्ष्टाचार को मिटने के लिए बाबा रामदेव,  इन  गिरगीटो  को अपना आशीर्वाद दे रहे हैं वही दोनों आगे चल के इनके लिए भस्मासुर साबित होंगे.  वास्तव में बाबा आज इस देश में  किसी भी व्यक्ति से लोकप्रिय  है, भारत ही नहीं वरन विदेशो में भी.. चाहे वो गूंगा प्रधान मंत्री हो या भ्रष्ट का कलंक लेने वाला राष्ट्रपति. तो अरविन्द अन्ना को खड़ा आगे कर बाबा को लांचिंग पैड बनाया, और अन्ना हजारे  को लांच कराया,

बाबा के द्वारा लांचिंग के बाद अन्ना और टीम को आम जनता जानने लगी तभी आना को जंतर मन्त्र पर बिठा दिया गया, और माया से  उनको भारत का हीरो, डुप्लिकेट गाँधी, और न जाने क्या क्या  बता दिया गया, जनता भी खुश, की चलो अब क्रांति हो के रहेगी, उधर बाबा और इधर अन्ना..

जब इन गिरगिट  को लगा की अब सरकार द्वारा प्रायोजित मिडिया से ये मजबूत हो चुके हैं तो बाबा को हाशिये पे डालने के काम शुरू किया, अप्रत्याशित ज्वार भाटीय जनता के समर्थन से इन गिर्गितो का रंग इतना बदला की माहात्व्कंक्षा वश मौके का फायदा उठाने को स्वयं कोंग्रेस के लिए भस्मासुर बन बैठे जो की इनके पोषक थे.

लेकिन बाबा कोई झूट के पुलिंदे पे तो थे नहीं , न ही पूर्ण रूप से मिडिया प्रायोजित . सो सफल न हो सके और जनता भी ये समझने लगी .

अभी हाल में जब अन्ना ने जंतर मंतर पे बाबा को नेयोता दिया तो बाबा अपना समर्थन ले के गए लेकिन जब मामा ने दुबारा रामलीला मैदान में बुलाता तो अन्ना पल्टू उर्फ़ गिरगिट अपने ही वायदे से मुकर गए.

वो जनता जो सरकार  के खिलाफ थी वो रे धीरे जनता दो भागो में  बंट गयी एक अन्ना समर्थक दूसरा बाबा समर्थक.लेकिन  धीरे -धीरे इन दोनों गिरगीटो का सच जनता के सामने आने लगा, तो इन गिरगीटो का जनाधार खोने लगा, तो अरविन्द एक बार फिर अपने पोषक कोंग्रेस से माफ़ी मांगी होगी, और उनके लिए दुबारा भश्मासुर न बनने की कसम खायी होगी.. यानि थूक  के चाटा होगा, कोंग्रेस के प्रति अपनी स्वामी भक्ति दुबारा सिध्ध करने के लिए ये इन गिरगीटो ने एक और  रंग बदल घोटालाबाज कोंग्रेस को छोड़ हर मामले में बी जे पी को कोसना शुरू कर दिया. लेकिन इन गिर्गितो को ये नहीं समझ आता की जनता सब देखती है.

इससे फिर इनका जनधार खोना शुरू हो गया. और बाबा के समर्थक यथावत उतने ही है बल्कि इन गिरगीटो को देख और बढ़ गए. जब गिरगिट गैंग को लगा की वो अब बाबा को पछाड़  नहीं सकते तो एक और नाटक खेला, आपसी सर फुट्टवल  का.. क्यों ??क्योकि एक बड़ी संख्या  में गिरगिट समर्थक इन गिरगीटो का साथ छोड़  समझदारी दिखाते हुए बाबा के पाले में चले गए जिसके कारन था अरविन्द ये जनता अब भी अन्ना को साफ़ सुथरा मानती है, अनजाने में ही सही . तो बचा खुचा जनाधार रोकने के लिए ये एक और रंग  बदल  आपसी समझौते के तहत खुद ही दो भागो में बंट गए  ताकि पल्टू अन्ना  के समर्थक कम से बाबा के पाले न जाए जो गिरगिट अरविन्द से खफा है, यानि घर का माल घर में रखने के लिए ये सब नाटक हो रहा है.

अब आईये इनके गिरगिट समर्थको पे, कहा जाता है "संगत से गुण होत है संगत से गुण जात" . गिरगिट गैंग का जिन समर्थको पर जबरजस्त प्रभाव पड़ा वो उनके अन्दर भी गिरगिट वाले गुण आ गए हैं. वास्तव में मानसिक रूप से असहाय हैं, इन बिचारो को ये पता नहीं की दोनों ही कोंग्रेस के लिए काम कर रहे हैं, जिनके समझ में आया वो मेरी तरह इनसे भाग खड़े हुए और जो नहीं समझ पाए वो आज गिरगिट समर्थक बन चुके है  जो अपने गिरगिट सरदारों को देखते हुए अपना रंग बदलने पे मजबूर है.


अन्ना और उनकी भूतपूर्व टीम का गिरगीटीया सवभाव उसके अंध समर्थको पर भी पड़ा है.जो कल कहते है मै भी अन्ना, वही आज कह रहे है कौन अन्ना नेता तो अरविन्द है, और जो कल तक जो अरविन्द को बाप मानते थे वो अन्ना के साथ है .  इस प्रकार के गुट और उनके समर्थको का मनाना है की देश बहुत सादा है , रंगहीन है, इसलिए हमलोगों ने गिरगिट बन देश के माहौल में रंग भरने की  एक छोटी सी कोशिश की  है .

अन्ना अरविन्द दोनों की साठ- गाँठ था बाबा के आन्दोलन  को दबाने की और इसी योजना नुसार अन्ना का नाटक और दिखावा है अरविन्द से अलग होने के लिए, दोनों अलग हो के सारे देश वासियों के ऊपर काबिज हो कोंग्रेस को सत्ता दिलवाना चाहते है और कुछ नहीं. एक बहुत  बड़ा तबका अन्ना गैंग के खिलाफ हो चूका था खासकर अरविन्द को ले के, जिससे इनका आन्दोलन असफल हुआ, उस तबके को अन्ना गैंग अपने व पास वापिस लाने का तय एक षड्यंत्र रच है, ताकि  रामदेव से जुड़े लोग अन्ना के बारे में फिर से सकारत्मक सोच सके.   एक बात निश्चित है , की आने वाले दिनों में यदि इनका षड्यंत्र सफल हो गया, तो अन्ना अरविन्द फिर एक हो जायेंगे , वैसे आजतक का मेरा कोई भी विश्लेषण गलत नहीं  हुआ है ( इक्छुक लोग मेरे पुराने लेख पढ़ ले जो  गिरगिट गैंग के ऊपर था ). कभी अन्ना कहता है की की उसका नाम इस्तमाल न किया जाए कभी कहता है वो अरविन्द का प्रचार करता है , यानि गिरगिट प्रवृत्ति  अभी उछाल पे है.

टोपी पहनने के लिए बार बार टोपी का "कैप्शन" बदला गया .. कभी मै अन्ना हूँ , कभी मै अरविन्द हूँ , और आज , मै आम आदमी हूँ, अरे भाईओं आपसे एक छोटी सी टोपी तो सम्हलती नहीं ,आप देश कैसे सम्हालोगे ??

 अंत में बस एक बात कहना चाहूँगा  सच के कड़वाहट को कितना भी झूट के चाशनी में डुबो के रखा जाए कड़वाहट नहीं जाती.


सादर

कमल कुमार सिंह