और यहाँ भी जादा से जादा ग्राहक की डिमांड होती है
यही व्यवसाय ऐसा जिसमे आय की कोई गारन्टी नहीं है
अलबत्ता आपकी जेब से ही जाना निश्चित है
साहित्य के ग्राहक भी दूसरे किस्म के होते हैं
बिना पैसे के भी चीजों को नहीं लेते है ,
दुकानदार एक लिख, दिन के दस चक्कर लगाते है ,
कोई ग्राहक आया की नहीं, बार बार जांचने आते है
कुछ चोर ग्राहक दूसरे का माल अपनी दूकान में लगाते हैं ,
कुछ चुपचाप मोल भाव कर जाते और चुपके से खिसक जाते हैं.
आखिर हमें भी जानने का है अधिकार की माल कैसा है .
कहीं देखि है एसी जमात जहाँ का दुकानदार, जांच परख के लिए बैठा है ??
बाकी की जमात पैसे भी लेता , और गाली भी देता हैं.
इस व्यवसाय के अलावा कहीं भी चले जाईये,
खुद ही जांच कर आईये ,
सीमेंट में बालू , दाल में कंकड, रिश्तों में खटास राजनीती में धर्म, की मिलावट है,
और जो आपने उनपे अंगुली उठाई तो आपकी हजामत है.
राजनीतिज्ञ तो जाति, धर्म , भेद , क्षेत्र की इतनी मिलावट करते हैं,
और उलटे माप दंड विभाग को आँखे भी तरेरते हैं ,
चिकित्सक इलाज तो मलेरिया का करता है,
बाद में आपका दिल किसी और के सीने में धडकता है.
अभियंता मकान का नक्शा बताता है,
साल भर बाद वही मकान किसी नक़्शे में नहीं आता है .
समाज सेवी सेवा के नाम का फंड करोडो लेते हैं ,
बाद खुद समाज से अपनी सेवा के लिए रोते हैं ,
शिक्षा का भी दूकान जम के फूल रहा है,
स्कूल -कोचीन से जम के डोनेशन जो मिल रहा है.
बोला, सुन तो मै लूँगा , बदले में क्या दोगे ?
मैंने कहा, मेरे तो बस मेरा व्यंग रूपी ज्ञान है , जिससे दुनिया अनजान है ,
सुन ले ज्ञान की बात , की आँखे खुल जाएँगी, तू तो बस लेने में परेशान है.
बोला, भाई सुन , क्या तेरे ज्ञान से मेरा पेट भर जायेगा ,
दो पेग के बिना भी क्या मेरी आँखे खोल पायेगा ?
पहला व्यंग सुनने जब सौ रूपये देगा,तो दुसरे पे डिस्काउंट हो जायेगा,
अच्छी न हुई फिर भी वाह वाही पायेगा,तीसरा फ्री हो जायेगा
इतना सुनके मेरे दिल को लगा अघात ,
पोथी पत्रा फाड़ के मै गया वहीँ ताप
अब नहीं पूछता किसी से की मेरा व्यंग सुनोगे ,
सिर्फ मैसेज भेजता हूँ , मेरा भी लेख है ,आप पढोगे ..
कमल (18/02/2012)
6 comments:
इतने कमजर्फ नहीं हम कि
हिंदी लेखक से पैसे की माँग करेंगे
एक क्या आपकी सौ व्यंग सुनेगे
पर प्रश्न तो वही है बदले में क्या देगे
चलो मिलजुल कर एक समझौता करेंगे
आपकी एक सुनने के एवज में
वादा करो आप हमारी भी दो सुनेंगे :):):):)
राजनीतिज्ञ तो जाती,
अच्छा व्यंग्य कृपया 'जाति' कर लें .
बहुत बढ़िया...:)))
हार्दिक बधाई.
वाह!!!!!बहुत अच्छी प्रस्तुति, सुंदर रचना
पहली बार आपका पोस्ट में आना अच्छा लगा
इसी तरह स्नेह बनाए रखे,...
MY NEW POST ...सम्बोधन...
सच कहा लेखन की दुकान से आमदनी की गारंटी नहीं। लेकिन कुछ लोग इस दुकान को चला ले जाते हैं।
हर क्षेत्र पर करारा व्यंग्य ....
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