नारद: September 2011

Sunday, September 18, 2011

पत्नी पीड़ित की व्यथा

विंध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे
 गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृंद सुखारे।
 ह्वै हैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे पद मंजुल कंज तिहारे,
 कीन्हीं भली रघुनायक जू जो कृपा करि कानन को पगु धारे!!

अर्थात - रामचंद्र जी विंध्य पर्वत पे आ रहे हैं , सुन सारे तपस्वी  प्रस्सन्न हो गए ये सोच के की  जब प्रभु एक पत्थर को नारी बना सकते ( शायद उस समय इंडिया टी वी  रहा होगा  जो राम वनवास का लाईव दिखा रहा होगा उन मुनियों को भी ) है तो यहाँ तो सब पत्थर ही पत्थर है . कौन जाने हम योगियों की भी चांदी हो जाये इस  निर्जन वन में !!

ये कविता मैंने यू पी बोर्ड के हाई स्कूल में पढ़ी थी , भगवान जाने तुलसीदास ने ये वाली कविता  क्यों लिखी , जबकि वो खुद भुक्तभोगी थे , पत्नी पीड़ित थे , फिर भी , !!शायद उनमे बदले की भावना आ गयी होगी , की  "हम बर्बाद हुए तो क्या सनम सबको ले डूबेंगे"" . 


उनको ये न समझ में की रामचंद्र जी नारी बनाने की फैक्ट्री नहीं थे , ऐसा होता तो क्या अपने लिए न बना लेते सीता जी के धरती में समां जाने के बाद ???, लेकिन नहीं बनाया ,

 वास्तविक बात ये है की वो खुद भी पीड़ित थे सीता जी से कभी हिरन मांगती थी सोने का तो कभी कुछ ! दम कर दिया था एकदम से  , सोचा चलो इसी बहाने जान छूटा , चुकी मर्यादा पुरुष थे , तो रोना धोना तो दिखाना ही होगा दुनिया को , ( होयिहे वही जो राम रूचि राखा)

अस्तु अस्तु , ये तो हुई तुलसी जी और प्रभु राम चंद्र जी की बात , 

आईये अब हम अपने एक मित्र की बात बताते है, कहने के लिए वो लेखक है, - 


मित्र कहींन :- 

सुबह सुबह जब लिखने लगा तो पहली वाणी  " सुनो  डोसा खाना हो तो उडद  की डाल लेते  आओ "  मै समझ गया की आज श्रीमती को डोसा खाने का मन है . 

मेरा मन किया की मना कर दूँ की नहीं खाना है , लेकिन पिछला इतवार याद आ गया , जब मुझे बाहर जा के खाना पड़ा था .

खैर , वापस आ के दुबारा शुरूं किया तभी आवाज आयी , मम्मी दूध लेन के लिए कह रही हैं , जब माता जी से पूछ तो उन्होंने कहा नहीं , खैर मन मसोस के वो भी आ गया , 

 फिर बैठा , फिर आवाज आयी , जो कर रहे हो जल्दी से निपटा लो , और जाओ टिकट ले आओ , सबको सिनेमा  जाना है .'
. मै चुपचाप उठा अपने यंत्र ले के , और पार्क में बैठ गया सोचा  जब वापस जाऊंगा तो बोल दूँगा की सीट फूल थी ..... तभी फोन आ गया , और मुझे अपने आप पे गुस्सा की ये मोबाइल तो घर ही छोड़ना था मुझे , 

बोला "आये क्यों नहीं अभी तक" ?? मैने योजनानुसार अपनी बात कह दी ! आवाज आयी  , शाम की लेते आओ न,

 मेरा दिल रो के रह गया अबकी बार , मरता क्या न करता ???

घर वापस आया , डिमांड पूरी करके , फिर शुरू किया लिखना ,

बोलीं - मम्मी का फोन आया था मेरे , जरा  तुमसे बात करनी थी उनको , अभी फोन कर लो ,

"अभी कुछ कर रहा हूँ"  मैंने कहा इतना सुनते ही

" बड़ा गोलमेज सम्मलेन कर रहे हो , बाद में कर लोगे तो भारत जीत नहीं जायेगा मैच में .आप मेरे मा पिता जी की इज्जत नहीं करते हो , कही ऐसा  भी होता है क्या ?? पिछली बार भी आप मेरे फूफा के मौसे के साली के बहन से भी बात नहीं किया था, पता नहीं क्या समझते हैं अपने आप  को, आपके किसी का ....................
( इसके बाद के शब्द मै सुन नहीं पाया था , कान में रुई भर ली थी )

" उफ्फ्फ" ( मन में - सामने तो उफ़ तक न किया जाता  )
खैर चलो ये भी हुआ , अब हो गयी शाम , तय शुदा प्रोग्राम के तहत सिनेमा देख के वापस आ गया .

ये तो रही मेरी बात ,   अब आपको एक मेरे मित्र सुरेश  की बात बताता हूँ , सुना है पिछले सप्ताह  वो गूंगा और बहरा हो गया है . उसको देखने गया उसके घर  , इशारे से हाथ हिला के पूछा ये क्या हुआ ??? उसके शकल से लगा की वो खुश है, गूंगा- बहरा बन के, मैंने कहा यार तुम पहले इंसान हो जो गूंगा बहरा बन के भी खुश है, भला ये क्यों ??? उसने इशारे से इशारा किया, ऊँगली को तरफ देखा तो वो भाभी जी की तरफ इशारा कर रहा था जो किसी से बात करने में मशगुल थी .

मैंने कहा भाई ऐसा क्या हुआ की  सब खो बैठे , हमें भी बताओ , वो मुस्कराया , तभी भाभी  जी आयीं , और सुरेश को कागज का टुकड़ा  पकड़ा कही बाहर चल दी  शायद किसी पडोसी के घर  !

 पुर्जे  में  लिखा था , "शाम को शोपिंग चलेंगे"  ! अब समझ में आया की इनकी स्तिथि और भी खराब थी .

मैंने उससे हसंते हुए कहा , गूंगा , बहरा तो हो गया , लगे हाथ यादाश्त भी खो देता , कम से कम पढ़ना तो न पडता .

" अगले हफ्ते वो भी खोने वाला हूँ " वो बोला ,  मै चौंक पड़ा ... यानि सब नाटक है ???
बोला   "तू भी कर ले , दो चार महीने तो ढंग से रहेगा "

" यार जब से शादी हुई है मै किसी दोस्त के घर नहीं जा पाता, पार्टी तो मै आजकल बस सपने में ही करता हूँ , किसी का फोन आने पे फालो अप शुरू हो जाता है, और दुनिया भर का क्लारिफिकेशन,  न्यूज देखे महीने हो गया, मज़बूरी में सास बहु देखना पडता है, हर शाम घुमाने पार्क न जाओ तो  रात दूभर, हफ्ते में शोपिंग न जाओ तो हफ्ता दूभर, महीने नयी जगह न ले जाओ तो महीना दूभर, हे भगवान कोई "अन्डू " का  या कंट्रोल जेड  का बटन  लाईफ में भी दे दो "     वो तब तक बोलता गया ,जब तक  मेरी भी आँख में आंसू न आ गए .

मै उसके मन की अवस्था को समझ रहा था , आखिर " जाके  पावँ  फटे बिवाई , वही जाने है पीर परायी " .


भारी मन से वापस लौटने लगा , तभी एक कार वाले ने टक्कर मार दी !! होश आया तो  अस्पताल में पाया श्रीमती बैठी थी खुश हो के कहा , " भगवान का लाख लाख शुक्र है ,  चलो दो दिन बाद सही होश में तो आये , मैंने मन्नत मांग ली थी , की आप होश में आ जाओगे तो अगले महीने तिरुपति बालाजी चलेंगे "

और  मै दुबारा बेहोश हो गया .

मित्र मेरी सहानुभूति है आपके साथ ............

कमल
१८ / ०९/ २०११

Thursday, September 8, 2011

मेरा और प्रभु का संवाद

पृथ्वी भ्रमण के बाद आज बहुत दिनों बद प्रभु के पास जाना हो पाया , देखा की प्रभु आराम से अपने समुन्द्र रूपी प्लाज्मा पे पृथ्वी के समाचार सुन रहे थे . देखते ही कहा

" कहो नारद क्या समाचार लाए हो पृथ्वी के " ????

"प्रभु  वहाँ के आचार का समाचार तो आप खुद देख रहें हैं  मै पृथ्वी पे भ्रमण कर कर के थक गया हूँ , अब न जाऊंगा , "

विष्णु : क्यों क्या हो गया ???

"वहाँ आजकल बम धमाके बहुत हो रहें हैं , वहाँ का कुकृत्य देख मै घबरा गया हूँ और नजर कमजोर हो गयी है  और आप मेरा भत्ता भी तो नहीं बढ़ाते , मेरी सारंगी भी पुरानी हो चुकी हैं , खडाऊ घीस गया है , अब यदि वहाँ भेजना हो तो एक बुलेट प्रूफ कार चाहिए , रीबोक के जूते स्पाईक  वाले , और एक स्पेनिश गिटार लगे हाथ एक अमर सिंह टाइप का चश्मा .....मंजूर हो तो बोलिए ..."

विष्णु : ये तो ब्लैक मेलिंग है , तुम भी कस्साब ग्रुप जैसे व्यवहार कर रहे हो , यम पूरी भेज दिया जायेगा तुमको ... 

"क्यों प्रभु , वहाँ तो लोग धमाके कर कर के बिरियानी खाते हैं , खून पिने के बाद , रसमलाई खाते हैं और हमको यम पूरी ??? मैंने किया ही क्या है ?? बस थोड़ी जरूरतें ही तो बताई हैं , "

"एक वहाँ की सरकार है , धमाको के बाद संतवाना देती है ,बिना कुछ किये वेतन भत्ता , कार का उपभोग करतें हैं ( और भी बाकि आंतरिक चीजे हैं जो हमको भी नहीं पता ) , और जब चाहते हैं मेज थपथपा के वेतन बड़वा लेते हैं .. और फिर कई जान जाने के बाद गन्दी गन्दी बातें करते हैं , कहते हैं वहाँ के लोग तो धमाको के आदि हो चुके हैं , हे प्रभु वो सब आप के बालक है , जो मरने वाला है वो भी और मारने वाला है वो भी , आप सिर्फ एक ही तरह के लोग बनाइये प्रभु , मारने  वाले को यमपुरी क्यों नहीं बुला लेते ??? "

विष्णु :  नारद ,पहली बात की बुलाने का अधिकार यमराज का है और वो भी आजकल ढंग से काम नहीं कर रहे भारत के नेतावों की तरह .   मै तो सबको एक ही फक्ट्री से निकालता हूँ , एक ही कच्चा माल इस्तमाल करता हूँ , इन्तिग्रेदेंत भी एक ही होता ,हाई क्वालिटी का पञ्च तत्व , लेकिन वहाँ पृथ्वी  पे जाने के बाद , डीफेक्टेड लोग नेता बन जाते हैं , और अपने भाई बंधुओं को ही मारने का षड़यंत्र रचातें हैं , सुनने में आया है की वहाँ की पूनम नाम की महिला अपने आप को बार बार उसी अवस्था में लाने  प्रयत्न करती है जिस अवस्था में हमने उसको यहाँ से भेजा था . उसको सन्देश भेजो की जब तक आतंकवादी न पकडे जाये ,तब तक वो उसी अवस्था में रहेगी जिस अवस्था में वो चाहती है ... 

"हे  प्रभु  वहाँ तो लोग खुद यमराज हो गएँ हैं , जिसको चाहते हैं यमपुरी भेजतें हैं , शायद उनका पृथ्वी के  यमराज ( नेता )  से कुछ साठगांठ  है न , और आपकी दूसरी बात की आपका सन्देश उस स्त्री तक न पंहुचा पाउँगा .तो ये न हो पायेगा , सुनने में आया है की 
"राउर गन्दी " ने कहाँ , की पूनम पांडे ने फिर किया देश के साथ धोखा , बार बार अपने वायदे से मुकर 

जाती है , और ये असंसदीय है जिसका हक सिर्फ हमें हैं , उन पर उन पर विशेषा हनन अधिकार लागु किया जाये , 

और संसद में बुलाकर कर उनका वायदा पूरा कराया जाये.  हे प्रभु यदि ऐसा कुछ हुआ तो मै भी संसदीय
" कारवाही देखने जाने से न रोक सकूंगा .."


विष्णु : क्या तुम्हारी मति भ्रष्ट हो गयी है ??? तुम्हे लज्जा न आती ऐसी बाते करने में ??? इन्द्र की अप्सराओं को देख देख के तुम बिगड चुके  हो , क्या तुम भी निर्लज्ज हो गए हो वहाँ के नेतावों की तरह .

वहाँ जनता त्राहि त्राहि  कर रही है और तुम इस तरह की बाते कर रहे हो ??
  

"प्रभु  मै क्या करू ?? बार बार वहाँ भेजेंगे तो कुछ मति भ्रष्ट तो हो गी न ?? वहाँ के एक मंत्री भी अप्सरा दर्शन कर रहे थे जब मुंबई  स्थान पे विस्फोट हुआ था पिछली बार .... "

विष्णु : हे नारद जब भस्मासुर पागल हो के दौड़ा था शंकर के पीछे तो मैंने अपना उपाय लगाया , लेकिन इन पृथ्वी के भस्मासुरों पे मेरी भी कलई नहीं लग रही , 

इनको पृथ्वी के भस्मासुर के भरोसे ही छोड़ दो , अब जाओ , हमें इमोशनल अत्याचार  देखना है और तुम भी समुन्दर में डुबकी लगा लो ..... 


कमल  ८ / ०९ / २०११ 




Friday, September 2, 2011

इश्क नचाये जिसको यार


बात बचपन की है जब मै नवीं  में पढ़ता था  नाम मात्र का ( हलाकि आजकल बच्चे आठवीं में ही जवान हो के सर्व ज्ञाता  हो जाते हैं , और बुढ्ढों के नाक कान काटते हैं ) .  अच्छे  खासे दिन बीत रहे थे बाँके लाल का कॉमिक्स पढ़ पढ़ के ( दूसरों से छिना हुआ ).  लेकिन कहते है न की सुख दुःख एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ..

मुझे इश्क हो गया , वैसे तो एक तरफा मेरा तीसरा या चौथा होगा , फिर भी .. इससे पहले मै एक अभिनेत्री से बेपनाह मोहब्बत करता था , उम्र में शायद १० -१५ साल  बड़ी होंगी वो .

मै मै चिंता में घुला जा रहा था , की कैसे जल्दी से बड़ा हो जाऊं  और जल्दी जल्दी उनसे मिलके अपना प्रस्ताव रखूं .. हलाकि मेरी गणित कमजोर थी फिर भी मै हिसाब लगता था की अभी मै १४ का हूँ तो १० साल बाद २४ का हो जाऊंगा , नौकरी चाकरी करने लगूंगा फिर जाके प्रपोस भी कर दूँगा , जैसा की पहले ही बता चूका हूँ की गणित में कमजोर था इसलिए मै अपनी प्रिया के उम्र का हिसाब लगाना भूल जता था की , की १५ साल बाद उनकी कितनी उम्र होगी , सोच थी की ये सब तो सुंदरता का अमृत पि के आती होंगी .

फिर भी एक भय सताता था , की मेरे प्रपोज करने से  पहले  पड़ोस का गोलू या बबलू न जाके कर दे , क्योकि वो दोनों भी उसके बारे में बातें किया करते थे ..


आशंका बड़ी भयानक थी , लेकिन कहते हैं न , " हिम्मते मरदा -मददे खुदा "   उसी दिन सुबह  मेरे घर पे  गांव समाजी टी वी (अमूनन उन दिनों पुरे  गांवों में एक या दो टी वी हुआ करते थे , जिसपे पूरा गांव रामायण देखा करता था )  पे  रामायण देखते समय एक एड आया , अपनी लम्बाई बढ़ाये .

बस , मुझे जानो मुह मांगी मुराद मिल गयी हो .. अब दवाई तो ला नहीं सकता था , फिर भी बाज़ार में एक चांदसी  दवा खाना था जिसमे सुरेन्द्र ( नाम पे ध्यान मत दें -मुझे भी याद  नहीं है ) नाम के झोलाछाप डाक्टर बड़े मशहूर थे बवासीर का इलाज करने में .

देखते ही पूछा : शाम को मिर्ची जादा तो न खायी थी ??

मैंने कहा : नहीं डाक्टर साहब बात ये नहीं है .

डॉक्टर : तो बताओ कितने दिन से साफ़ नहीं हुआ ??

मैंने कहा : आप गलत समझ रहें हैं .

डॉक्टर : बात क्या है ??

मैंने कहा : किसी को बताओगे तो नहीं न ,

पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद उनको मैंने अपनी गुढ इश्किया बीमारी बताई .

डाक्टर : यार तो  तुम्हारी इस सनक के लिए इसमें मै क्या कर सकता हूँ ?? .

"मेरे प्यार को सनक मत बोलिए सुरेन्द्र , नहीं तो पिछली साल की तरह इस साल भी आपकी मडई होली में डाल देंगे , फिर बाबु जी के पास न जाना"  .. मैंने कहा ,.

डॉक्टर : यार छोटू तुम तो नाहक नाराज़ हो रहे हो , बताओ का करू ??

मैंने कहा : पहले तो कोई एक दवाई खिलाओ जिससे मै १५ साल बड़ा हो जाऊं , तुम डाक्टरों के पास सब होता है ( उन दिनो मुझे झोला छाप डॉक्टर  का मतलब न पता था - मुझे लगता था जिसके पास झोला भर दवाई हो ) .

डाक्टर : चलो मान लो तुम १५ साल बढ़ गए लेकिन क्या वो तुम्हे स्वीकारेगी ??? तुम करते क्या हो ???

मैंने कहा : मुझे इन्जिनियर  बनाने की दवाई भी खिला दो लगे हाथ , टाईम नहीं है जादा , गोलू और पड़ोस के लडके  वैसे ही पीछे पड़े है उसके , अबकी बार तो उनको रामायण भी न देखने दूँगा  लफुओं को  , बोल दूँगा की टी वी खराब है.  .

डाक्टर हस के : भाई इसका इलाज मेरे पास नहीं है ...

इतना कहना था की मैंने बगल में  पड़ा एक पत्थर उठा के दे मारा डॉक्टर को , वो भय से मुझे तो छोड़ दिया , लेकिन बाबु जी से कह दिया ,

शाम को बाबु जी ने जम के धुनाई की    शाम को ,
माता जी ने प्यार से बुला के चुटकी लेते हुए  कहा , "जाने दो उस हीरोईनी को , ,मन्जू आंटी  की लडकी से तुम्हारी बात कर तो रही हूँ " ...

खैर बात आयी गयी हो गयी ...

अब आईये इस वाले इश्क  की बात बता हूँ जिसपे बात शुरू हुयी थी ..

स्कुल मेरे घर से कोई ६ किलोमीटर दूर था जहा हम सवारी से आया जाया करते थे .

हुआ यूँ की मेरे बगल वाली क़क्षा में एक नयी नयी सुन्दर सुशिल लडकी भरती हुई (हांलाकि सुन्दर नहीं थी लेकिन राजस्थान में मदार  के कांटे को ही पेड़ बोलतें हैं ) .

क़क्षा खत्म होने के बाद मै उसके पिछे पीछे हो लिया इस कयास में की काश वो समझ जाये की मै उसके पीछे हूँ तो काम आसान हो जाये .. दायें बाएं देखते हुए , मन में अजीब सी गुदगुदी थी , और अजीब सा भय , की कोई ये तो न समझेगा की मै इसका पीछा कर रहा हूँ ( हलाकि बात सच थी ) .

इतना सोचता तब से उसके पिता जी अपना लम्ब्रेटा ले के आये , और वो इठलाती हुई बैठ के चल दी,

सच बताऊँ उसके पिताजी को मैंने उस दिन जम के कोसा और गालियाँ  दी इतना तो आजकल मै सर्कार को नहीं देता .

मै अपना मुह ले के वापस घर आया , माताजी ने पूछ क्या बात है उदास क्यों ??

क्या बोलता ?? पिछले बार वाली मार याद आ गयी बाबु जी की , और माता जी उनकी पक्की जासूस थी ..

शाम तक मेरे प्रिय मित्र ( उस समय जो भी उसके बारे में बात करता वो मुझे प्राण से भी जादा प्रिय लगता )  ने बताया की उसका घर यहाँ से २०० मीटर पे है बाजार की तरफ  , नयी आयी है मोहल्ले में , चल चले उसके घर के सामने पार्क में क्रिकेट खलते हैं , एक बार तेरा चेहरा देख ले तो काम बन जाये . मैंने कहा की कही उसके लम्ब्रेटा वाले फादर ने देखा तो ??  " तो क्या , पावँ नहीं अपने पास भाग लेंगे ,  या रात में उसका कुत्ता चुरा के भगा देंगे , तब पता  चलेगा हजरत को"  मित्र ने कहा .

अब मै रोज चार बार उस रास्ते जाता था की कही बालकनी में खड़ी न हो , कही से तो दिख जाये ..

जो लडका महीनो घरेलु काम से बाजार न जाता हो , अब वो घर का सामान पूछ पूछ के बाजार जाने लगा था दिन में चार बार और वो भी हर बार नहा के , पावडर लगा के  जो की गर्मियों में भी तिन- तिन  दिन का नागा देता था पानी के पास जाने में .

इस बात पे माताजी हैरान भी थी और खुश भी .

समय बिता , साल भर निकल गया , उसके पिता जी का स्थानान्तरण हो गया कही , और मेरा दिल भी टूट गया  ( चौथी बार ) अबकी बार भी ....

कुछ साल पहले मिली तो वो शायद पहचान गयी , बोली मुझे पता था की तुम मेरे पीछे थे ,
मैंने कहा तो उस समय क्यों न मुस्कराते बना मुझे देख के , इतना कहना ही था , की उसने किसी से परिचय कराया ,

" ये मेरे पति हैं मिस्टर xxxxxxx. "   फिर दिल टुटा , और समझ  में आया की लोग क्यों कहते हैं की
 " इतिहास अपने को दुहराता है " ..


कमल ३/ ०९/२०११

ब्याय्ज वर्सेज गर्ल :

नोट:- इस व्यंग को गंभीरता से न ले और न हि दिल पे , मेरे हित में .

ब्याय्ज  वर्सेज गर्ल :


हर जगह  ये समस्या आदि काल से रही है चाहे पृथ्वी  हो या स्वर्ग, चाहे समय घोषा अपाला का रहा हो , या आज राखी सावंत का, की श्रेष्ठ कौन ??

तो मामला अति संवेदनशील है, अपशब्द भी सुनना पड़ सकता है मुझको दोनों पार्टियों से, फिर भी विश्लेषण करने का मन कर रहा है अपने छमता के हिसाब से ( और इसको कहतें है आ बैल मुझे मार ) .

वैसे देखा जाये तो महिलाये हर मामले में बराबर है लेकिन कुछ मामलों में मिलो आगे ..

कल मै जे के सीमेंट का प्रचार देखा  था दूरदर्शन  पे, पहले सीमेंट का बोरिया आता है, फिर पीछे नदी में से एक महिला निकलती है, और कथन   होता है   "आत्म विश्वास के साथ"  . मै चकराया - भाई सीमेंट के एड में इनका क्या काम ??? समझ में नही  आया  की सीमेंट ले पब्लिक या .... खैर .

महिलाओ के किसी भी प्रोडक्ट में पुरुषों की मौजदगी जरुरी नहीं है, लेकिन महिलाओं का पुरुष  के हर प्रोडक्ट में होना सर्वथा अनिवार्य है, चाहे शेविंग क्रीम हो, या शैट-बुशैट,
पुरुषों का स्वयम्बर भी हुआ, राहुल तो सेट हो गया  लेकिन राखी को न भाया, इस मामले में भी आगे .

आप किसी भी नेट्वर्किंग  साईट पे जाईये , कोई बुत बड़ा कवि  या लेखक होगा तो उसके मित्र सूचि  में ५००-६०० से जादा लोग अमूनन तौर पे नहीं होते , लेकिन यदि वहीँ किसी महिला का उत्तेजक छाचित्र हो तो ५००० मित्र सूचि बड़ी आम बात है .

इतना तो क्लिओपेट्रा के  लिस्ट में भी कोई नहीं होता यदि वो महाँन  विभूति आज जिन्दा होती तो ....

फिल्मो को ही देखिये, हीरो तो पूरा रहत है शैट -बुशैट में लेकिन अभिनेत्री ???

वो तो भला हो "खान ब्रदर्स " का जो थोड़ी बहुत टक्कर देने लगे हैं आजकल, लेकिन अभी भी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी उन्हें इस मामले में बराबर आने में अभिनेत्रियों के .

महिलाएं सब कुछ में आगे , लेकिन फिर भी बिचारे पुरुषों पे इलज़ाम लगाया जाता है और गाहे बगाहे जेल भी पुरुष ही जाते हैं ...

और तो और नित्यानंद जैसे स्वामी भी इस प्रभाव से नहीं बच सके योगी हो के भी, तो आम मनुष्य की मजाल क्या ???

और तो और, स्वर्ग भी इससे अछूता नहीं है, विष्णु, शंकर  का भी एक पत्ता नहीं हिलता जब तक  गृह मंत्रालय से मंत्रणा न हो जाये ...

और पार्टियों की तो बात ही क्या, स्मृति इरानी को गुजरात से लड़ाया जा रहा है, एक अछ्छी खासी सुन्दर शुशील युवती को खुर्राट लुटेरा बनाया जा रहा है, मेरा तो दिल ही टूट गया इस बात पे ( मुझे बहुत पसंद थी , और उससे भी जादा मेरी माता जी को, एक भी एपिसोड मिस नहीं करती थी ..

पुराने ज़माने में घोसा अपाला  ने बहुतों को पानी पिलाया  विदुसियों ने, और अब ...राम ही राखे .....


नारायण नारायण ..