अन्ना के तस्वीरी मुह मे अन्न डालता बालक (पेट की हालत बच्चे भी समझते हैं)
पिछले साल के अप्रैल की गर्मी ने उसे बहुत सताया, फिर उसने ठण्ड का दामन पकड़ा, लेकिन कमबख्त ठण्ड ने भी अपनी दादागिरी जोर शोर से दिखाई, एसी कमर तोड़ी की मोर्डन गाँधी को मुंबई से तडीपार होना पड़ा, उसके बाद शायद जनता कुछ चेती, "ओफ्फ्हो, ये क्या ?? देश को एक नया मंत्र देके भाग गया.". ये थे अपने अन्ना जी, लेकिन एक बात साफ़ कर दूँ अन्ना जी मे कोई दोस् नहीं है, उनको पता है कि कभी कभी भागना स्वास्थ्य के लिए परम लाभदायक होता है. ये भागते हैं हैं तो इनके साथी भागते हैं, अतः सबका स्वाथ्य ठीक रहता है, चाहे वो अरविन्द हो या सिसोदिया... अतः अन्ना को पी टी अध्यापक भी कहा जा सकता है.. भ्रस्टाचार के साथ -साथ अब रोग को भगाएंगे अन्ना टीम वो भी भाग भाग के.
मेरा बस चले तो मै गिनीज बुक वालो को आमंत्रित कर लूँ, कि आओ भईया, तुम लोग अजूबो का नाम अपने किताब मे लिख के अमर बना देते हो न, तो आओ और फ्री मे दो चार नाम हमारे देश मे से भी लेते जाओ बिलकुल ताजा ताजा.... एक से बढ़ कर एक खासियत है इनमे, एक बुला के भाग जाता है, तो कोई मतदान करने की जागरूकता फैला के खुद वोट नहीं देने जाता. किसी ने सही कहा हैं, भारत मे नमूनों कि कमी नहीं.
वैसे इसमें अरविन्द की कोई गलती नहीं है, वास्तव मे वो भारतीय साहित्य का सम्मान करते हैं, हमारे भारतीय साहित्य मे लिखे एक लाइन से इतने प्रभावित हुए कि उसको जीवन मे ही उतार लिया "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" हम कोर्ट का सम्मान करने के लिए लोगो से कहेंगे लेकिन खुद समय पे नहीं पहुचेंगे, तो क्या हुआ ?? सम्मान तो करते हैं, इतना क्या कम है.. भ्रस्टाचार हटाने के लिए हम जागरूक तो करेंगे लेकिन खुद अपना टैक्स देने मे हीला हवाली करेंगे. कोई नहीं ये सब भारतीय साहित्य का असर है, यदि कोई पूछे तो एक लाइन सूना दो,"पर उपदेश कुशल बहुतेरे".
शुरू शुरू मे मै भी बड़ा प्रभावित था, अन्ना का भोला चेहरा, रोगन बादाम खाए हुए गले से जब ओजस्वी आवाज मे भारत माता कि जय निकलता था तो लगता था जैसे भारत माता अभी झंडा ले के प्रगट हो जायेगी, और कौन जाने हो भी जाती है, लेकिन उनकी तस्वीर भी हटा ली, तो शायद भारत माता ने भी समझ लिया होगा, अरे सम्मान तो करता है इतना ही बहुत है, क्या हुआ जो मुए ने जो मुझे मंच से भगा दिया..आखिर है तो मेरा बेटा न. खैर इससे पता चलता है की सम्मान करना कहने और और करने मे कोई खास फर्क नहीं है, सब चलता है.
अबकी की अन्ना टीम ने बहुत बुध्धिमानी से काम लेते हुए अनशन बरसात मे रखा, न गर्मी के थपेड़े न हड्डी तोडक ठण्ड की गुंडा गर्दी, वास्तव मे पिछली गलतियों का मौसमी अनुभव बहुत काम आया है, "बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले" यदि कोई जुगाड होता बादल मे विटामिन और पोषक तत्व मिलाया जा सकता था खैर ये तो मेरी बस कल्पना है, लेकिन सुना है की वैज्ञानिक अब मनचाहे ढंग से बारिश कर सकते हैं, लेकिन इस विटामिन युक्त बरसात के लिए अन्ना टीम को इविज्ञान
बुध्द्जिवियों से संपर्क करना पड़ेगा.
वैसे भी कहा जाता है की टीम अन्ना मे
बुध्द्जिवियों की भरमार है, बुध्द्जिवि अर्थात यदि आप उन्हें दड़बे के मुर्गे गिनने को कहें तो पहले मुर्गे की टांग गिनेंगे फिर उसमे दो से भाग देंगे.... अरे विचारशीलता इसी को तो कहते हैं... बिना विचार वाले तो सीधे सर गिन लेते हैं..
अन्ना और उनकी टीम अब जोर शोर से समर्थन मांग रही है, कोई समर्थन के लिए मिस काल करने का नंबर देता है तो कोई कुछ, अरे समर्थन दे दो न भाई, वैसे भी बुखारी ने इन्हें भगा दिया, ओफ्फ्हो, अन्ना ने एक गलती कर दी गाँधी टोपी कि जगह यदि "क्रोसिये" से बुने हुए धागे का टोपी पहन जाते तो कौन जाने मिल जाता, लेकिन कोई बात नहीं, फलाँ नो पे मिस काल करिये न --प्लिज , प्लीज , समर्थन दीजिए, हम दिमाग से हाथ हटा दिल पे रख इन्तजार कर रहे हैं.... अमाँ मिया दे भी दो,...
अब दिल्ली मे दिल डूबता - उतरता देखते हुए सूरज को भी गलतफहमी होने लगी है की वो सूरज ही है या अन्ना टीम का दिल.
काश कोई एसी व्यवस्था हो जाय कि सूरज भी एस एम् एस या मिसकाल से डूबने - उतरने लगे तो मजा आ जाये.... कम से कम मजनू लोग तो खुश हो ही जायेंगे ....
सादर
कमल
No comments:
Post a Comment