किसी को भी पता नहीं था की आज की सुहानी सुबह दिन चढ़ते ही सबको संदेह के बादल में ढक देंगी , लेकिन "होईहे वही जो राम रूचि राखा" आखिर कार हवेली के पुत्र के उद्घोषणा "मै ब्राह्मण हूँ " के साथ संदेह का बादल बदल फट गया, और लोग कनाफूस्सी करने लगे की बारिश का पानी किसका ??
जो विदेशी बेग्नोवेलिया के डंठल से निकल कर खजूर का फल दे रहा था, अचानक से कहने लगा वो बेल पत्र है, सुन जनता सकते में आ गयी, सब एक दूसरेका मुह देखने लगे, वास्तव में इस संकर प्रजाति के उतपत्ति के पीछे कौन कौन है. सुगबुगाहट होने लगी अफवाहों पे अफवाह जारी था, आज इतने दिनों बाद इस तरह कि सच्चाई सामने आएगी किसी ने सोचा भी नहीं था. बात अपने जासूस जोखुआ के कानो तक भी पहुंची. उसने इस रहस्य से पर्दा उठाने कि ठान ली. मध्य रात्री वह उस बालक के कमरे में छुप गया. देखता है वह पौधा उद्घोषणा के बाद खुद भी परेशान है. रो रो कर अपने आप से बाते किये जा रहा था ,
"हे यीशु अल्लाह इशार जब तू एक है बस नाम अलग अलग है तो मेरी माता बेग्नोवेलिया के साथ ऐसा क्यों किया, अलग अलग नाम मेरे एकलौते डैडी के ही क्यों नहीं रख दिए बजाय कि....कम से कम अलग अलग नाम के ब्रांडिंग से तो बच जाता." आखिर मेरी माँ ने अब क्यों बताया कि मै एक ब्राहमण हूँ, इतने दिनों बाद ???
ये सब सुन जोखुआ भौचक्का रह गया. वो निष्कर्ष निकालने लगा, कि क्या करण हो सकते थे इसके ??
अभी कुछ साल पहले कि ही बात है कि साउथ डेल्ही का का भी एक पौधा अपने आप को बेलपत्र घोषित किया था जिसमे तिवारी जी के ऊपर आक्षेप आया था, तिवारी उसी खानदान के एक पुराने नौकर थे जिस हवेली के पौधे ने आज अपने आपको बेल पत्र कहा था. तिवारी जी कि उस समय भी बहुत फजीहत हुई थी, यहाँ तक की वैज्ञानिको ने उनके उर्वरा शक्ति का परिक्षण तक लिया. तो क्या अब भी कुछ ऐसा था ?? बात आग कि तरह फैलने लगी थी, पहुँचते पहुचंते पडोश वाले हवेली तक पहुची जो कि इस बालक के खानदान से विद्वेष और जलन रखते, उनकी कुदृष्टि हमेशा ही बालक कि हवेली पे रहती थी, उनको मौका मिल गया.
"राम राम , थू थू , किसका बालक है असिलियत पे अब पर्दा न रहा, किसकी फसल है ये, कहता अपने को बेग्नोवेलिया है , देता खजूर का फल है और अब कहता है की वो बेलपत्र प्रजाति का है, हम तो झूठे राजू चौधरी इसका खेतिहर समझते रहे, लेकिन तिवारी जी के पराक्रम का भी कोई जवाब नहीं मान गए गुरु". अब इनको हवेली छोड़नी होगी, हवेली में रहने का तुम्हे कोई अधिकार नहीं , पडोसी हवली वाले चठखारे ले ले बाते करने लगे .इसी आशा के साथ की कौन जाने इस हवेली पे अब कब्ज़ा किया जा सके .
बालक किलस गया, आखिर कब तक सुनता वह दूध मुह बालक जमाने के ताने, बोल उठा, "तिवारी जी पे आक्षेप लगते आपको शर्म नहीं आती ??? यद् करिए वो दिन जब मई पड़ोस के गाँव में एक सुंदरी के साथ पकड़ा गया था तब बाजपाई अंकल ने ही मुझे बचाया था"
"तो इसका मतलब ???" पडोसी
बालक सकते में आ गया , शायद कुछ गलत बोल गया,
तब भी हवेली हमारी हुई, यदि तुम्हारा ब्रहामंत्व हमारे खेमे के पराक्रम से है तब भी हवेली छोड़ बेगोनोवेलिया के मूल निवास के पास जाओ ये हवेली तुम्हारी नहीं.
कोई मानता न था, और बालक की माता बेग्नोवेलिया क्या बोलती अपने बालक की इस करतूत पे ?
तो तय हुआ पंचायत बुलाई जाये .
पंचायत में, बेलपत्र स्वामी, मोहम्मद खजुराल्लाह - डेल्ही वाले, और मिस्टर पोपोग्नोवेलिया जी को विशेष रूप से बुलाया गया.
तय करना था की इस नए बयांन से बालक का स्वामी किसे घोषित किया जाए??
बेलपत्र स्वामी ने कहा, : यदि इसमें तिवारी जी का प्रक्रम है तब भी हवेली छोड़नी होगी, और अपने बाजपेयी जी सुझबुझ दिखाई है तब भी मुन्ना हमारा हुआ और हम इसके संरक्षक, तो फैसला आपलोग कीजिये जो भी पट चित दोनों मेरी होगी .
मोहम्मद खजुराल्ला " डाक्टरी परिक्षण हमारे जमात में नहीं लिखा आज्ञा है सो ये हम करने नहीं देंगे, सुनो एक रूपये का सिक्का उछालो हेड आया तो तिवारी की फसल , टेल आया तो ये तुलसी स्वामी के आंगण की."
मिस्टर पोपोग्नोवेलिया: " और जो सिक्का खड़ा रह तो हजरत ?? आपका तरीका गलत है मै तो कहता हूँ आँख बंद कर दोनों हथेलियों की अंगुलियों से फैसला करा लो इसमें या तो आर होगा या पार बीच का कोई संदेह नहीं, आँख बंद करके एक हथेली की बीच वाली अंगुली दुसरे हथेली के बीच वाली से सटीक टकराई तो तिवारी जी नहीं तो बाजपेयी का.
अब बालक सकते में था और उसकी माँ मुह छुपाये कहीं और, अपनी दुर्दशा देख रो पड़ा, हे अंकल मैंने तुमजमात को अपना बनाने के लिए ही तो ये नयी ब्रांडिंग की थी और आप ही लोग मेरी इसे की तैसी कर रहे हो ?? करो जो करना है मै चला अपने माता और मंद्मोहन अंकल के पास. लेकिन मै आऊंगा जरुर.
अब देखते है आगे क्या होता है फिलहाल के लिए इतना ही ,
सादर
कमल
१६/०४/२०१२
5 comments:
पाठकों को कहानी के प्रवाह में बंधे रहने में सक्षम सुंदर प्रस्तुति....बधाई.नारद जी,...
मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है,....
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MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
सचमुच में बाबा पिछड़े हो, अधकचरी सी वीना बाजे ।
सदियों से संकर पर होती, हर पीढ़ी यह खोजे-खाजे -
नित नया अनोखा करते हैं, बस खोजों में मशगूल रहे -
कुछ इधर मिला कुछ उधर मिला, ना शादी ना बाजे गाजे ।
जो धर्म जाति से ऊपर हो, कल्याण का ले ले ठेका जो-
वो ही तो ब्राह्मण होता है, पहचान गए राजा-राजे ।।
बहुत सटीक विमर्श, आभार..
कमाल का लिखते हैं आप
उपमा बहुत शानदार लगी
प्रणाम
सटीक एवं धारदार व्यंग्य
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