२००८ का यह वीडियो जरुर देखें
किसी भी धर्म का धर्म गुरु देश या कौम में भाई चारे से कैसे रहे, पे अमल करता है और करवाने कि कोशिश करता है, और शायद धर्म गुरु का यही काम भी है. मैंने हिन्दुवो से ले कर जैन, और बौद्ध से लेकर ईसाई किसी न सभी धर्म गुरुओं को (छोटे -बड़े) देखा है, जो सदा सदाचार कि भाषा खुद भी बोलते है और दूसरों से अपील भी करते हैं . क्योकि यही धर्म है. धर्म वही है जो समाज और देश के हित में हो और ये हमारे धर्म गुरुओं का काम है कि अपने अनुयायियों को सही रास्ता दिखाए, सही शिक्षा दें . लेकिन जरा सोचिये यदि खुद धर्मगुरु ही रास्ता भटक जाए तो क्या हो ??? उक्त वीडियो में दिखाया गया है कि शाही इमाम कैसे भूखे भेडिये कि तरह एक मुसलमान भाई पे टूट पड़े, उसकी गलती बस इतनी थी कि उसने तर्कपूर्ण भाई चारे के मुद्दे पे कुछ पूछना चाहा था. इसका मतलब तो यही निकलता है कि शाही इमाम साम्प्रदायिक है.
शायद इसीलिए मुसलमान भायों ने इनको नकार दिया और कहा जाता है कि इस्नके बाते बस जमा मस्जिद के अंदर ही गुजाती है बाहर कोई नहीं सुनता .
दूसरी महत्वपूर्ण बात एक और भी है, ये धर्म के नाम पे राजनीति खुले आम करते है . अभी हाल के चुनाव में ही देखें को मिला कि कैसे सपा के मुलायम सिंह के आगे पीछे घूम रहे थे, एकबारगी सबको लगा कि मुसलमानों के हित के लिए एक अछ्छा काम कर रहें हैं लेकिन वो बाद पता चला कि सब कुछ व्यक्तिगत था. वो अपने दामाद के चक्कर में चक्कर लगा रहे थे .
जहाँ एक तरफ "हिंदू महासभा" ने भा ज पा को चेतावनी दे डाली कि धर्म के नाम पे राजनीति न करे, वोट न मांगे, जनता को न बरगलाये और खूब विरोध किया, भाजपा के पुतले फूंके गये, वहीँ दूसरी तरफ शाही इमाम को मुलायम सिंह के आगे पीछे घुमाते देखा गया, अब आप ही लोग अंदाजा लगाईये कि कौन धर्म के नाम पे राजनीति करने को हमेशा तैयार रहता है.
पता नहीं मुसलमान भाईयों कि क्या मज़बूरी है कि ये अपने धर्म गुरुओं का भांडा फोडने से डरते हैं , जबकि वही दूसरी तरफ हिंदुओं ने निर्मल बाबा के ढोंग का तार तार कर दिया. क्या इतनी हिम्मत सिर्फ हिंदुओं में है ????
सुनने में आया है कि इमाम पाकिस्तानी संस्था आई एस आई के एजेंट हैं और ये बाते उन्होंने अपने खुद के मुखारबिन्दु से कहीं है, और मुसलमान भाई चुप रहे , क्या कोई हिंदू चुप रह सकता था यदि कोई भी हिंदू धर्म गुरु, या पीठाधीश्वर ऐसा कुछ कहता तो ???
क्या मुसलमान भाई एकदम धर्मांध हो चुके है ??
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से कहा था कि वे अन्ना के आंदोलन से दूर रहें उनका कहना है कि अन्ना का आंदोलन इस्लाम विरोधी है क्योंकि इसमें वंदे मातरम और भारत माता की जय जैसे नारे लग रहे हैं।
अरे भाई हर चीज को धर्म से जोड़ कर देखना कहा तक सही है जब कि वही देवबंद ने अन्ना के साथ होने में हामी भरी थी. अब या तो देवबंद गलत है या शाही इमाम, क्या मुसलमान अपने ही धर्मगुरुओं के दो पाटो में पीसने को मजबूर है ???
बुखारी ने कहा, ' इस्लाम मातृभूमि और देश की पूजा में विश्वास नहीं करता है। यह उस मां की पूजा की पूजा को भी सही नहीं ठहराता, जिसके गर्भ में बच्चे का विकास होता है। ऐसे में इस्लाम इस आंदोलन से कैसे जुड़ सकते हैं, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। इसीलिए मैंने मुसलमानों को इस आंदोलन से दूर रहने को कहा है। ' बुखारी के इस आह्वान के बाद वंदे मातरम पर विवाद एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है। हालांकि इस आंदोलन से प्रशांत भूषण और शांति भूषण जैसे शख्स जुड़े हैं, जिन्होंने गुजरात दंगे के मामले पर नरेंद्र मोदी काफी विरोध किया था। फिर भी शाही इमाम इस आंदोलन के आलोचक हैं। उनका कहना है कि देश के लिए करप्शन से बड़ा मुद्दा सांप्रदायिकता है और देश को इससे ज्यादा खतरा है।
अब गौर करने कि बात है शाही इमाम खुद एक बड़े सांप्रदायिक तत्व है और भाई चारे का विरोध करते है. क्या इनको हिन्दुअस्तानी सरकार को अब भी यूँ ही खुला रखना चाहिए या सम्प्रद्यिकता फ़ैलाने के आरोप में जेल में डाल देना चाहिए.
इसी के साथ ही इमाम, मुसलमानों कि अलग पार्टी बनना चाहते हैं , इनका कहना है कि मुसलमान को सियासी ताकत होनी चाहिए, बिलकुल होना चाहिए और मुसलमान सियासत में भी खूब जमे हुए हैं , चाहे आप खुर्शीद को देख ले या शाहनवाज को , तो क्या मुसलमान के लिए एक अलग पार्टी कि मांग साम्प्रदायिकता नहीं है ???
इन सब सवालों का जवाब कोई मुसलमान भाई ही दे सकता है .
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