जोखुआ अब जवान हो चूका है, कोलेज आता जाता है, इस कोलेज में प्रवेश लेने से पहले जोखुआ ने कितने सपने सजाये थे, कितना अरमान था, नया कोलेज नयी पढाई , नए दोस्त , और लगे हाथ कोई अमीर लडकी पट गयी तो भविष्य भी सुरक्षित.
स्कूल के समय से ही देखा करता था कि कैसे लड़के -लड़किया हाथ पे हाथ डाले घूमते रहते हैं, सच उसके दिल में हूंक सी उठती थी, कि कब स्कूल पास करे और कोलेज जाये, लेकिन मुएँ स्कूल वाले पास ही नहीं करते.
इस साल जोखुआ ने तय किया कि अबकी स्कूल पास करके रहेगा, हाथ में हाथ डाल के चलने का अधिकार लेगा और युवा समाज में गर्व के साथ सर उठा के चलेगा.
लेकिन स्कूल पास कैसे करे ?? बबुल के पेड़ (जानने के लिए लिंक पे क्लिक करें ) वाला उपाय तो फेल हो गया था. अब करे तो क्या करे ?
अपने पुरोहित के पास गया, " गुरु जी अबकी किसी भी तरह पास करा दो, जिंदगी भर गुलामी करूँगा. गुरु जी ने उसे किसी "निरमा बाबा " के बारे में बताया " उनकी कृपा दृष्टि मिल जाये तो कुछ हो सकता है.
जोखुआ ने पता कि तो पाया कि ईश्वरीय कृपा मात्र ३-४ हजार रूपये में ही प्राप्त हो जाती है, फिर क्या था, पिता जी के जेब से रुपये चुराए और कटा लिया टिकट दरबार का.
पहुचने पे देखता है कि लोग दूर दूर से आयें है दरबार का टिकट कटा के भले रास्ते में ट्रेन का टिकट न कटाया हो.
बाबा वुडलैंड का स्पोर्ट्स जुटा पहने के दूर एक सिंघासन पे विराजमान थे एक दम मद मस्त जैसे सूरा चख ली हो (कुरआन वाला). कोई उनसे बाल काले करने का उपाय पूछ रहा है तो कोई पडोसी को निपटाने के तरीके, किसी कि गाडी कम माईलेज देती थी, तो कोई गाडी लाने का उपाय पूछता, बाबा सबका धैर्य पूर्वक उत्तर देते.
जोखुवा ने कई बार माईक पकडने कि कोशिश कि लेकिन हाय रे भक्त, उस दीन परीक्षा पीड़ित पे किसी कि नजर न पड़ती जिसका भविष्य ही उस माईक पर निर्भर था.
किसी तरह माईक हाथ लगते ही झट सवाल दागा " बाबा मुझे परीक्षा में उत्तीर्ण करा दो "
बाबा : पिचली बार कब पढाई कि थी ?
जोखुआ : बाबा छः महीने पहले.
बाबा : अब से रोज पढ़ा करो.
जोखुआ : बाबा ये सलाह तो अध्यापक भी देते हैं, हमें कृपा चाहिए सलाह नहीं.
बाबा: रोज पढ़ो कृपा होगी.
जोखुआ : मेरे तीन हजार रूपये वापिस कीजिये.
बाबा(भक्तो कि ओर मुह करके) : भक्तों इनके पैसे वापिस कर दो.
बाबा का इतना कहना था कि दो रजिस्टर्ड भक्त बाबा जोखुआ के पास आये और और उसे एक कमरे में पैसा वापिस करने ले गये.
जोखुआ जब कमरे से बहार निकला तो उसका पूरा बदन दर्द कर रहा था, सर और माथा यूँ लगते जैसे विन्ध्याचल कि पहाड़ियां हो. बाबा के फूटी आँख का करिश्मा था.
जैसे तैसे जोखुआ घर आया, ठीक होने के बाद पुरोहित कि ठुकाई कि और कमीशन वापिस माँगा जो उसे दरबार से पब्लिक रिलेशन के लिए मिले थे और अध्यापक कि बात मान जम के पढाई कि, अंततोगत्वा "जोक्खु पास हो गया".
7 comments:
उसे एक कमरे में पैसा वापिस करने ले गये.
अंततोगत्वा "जोक्खु पास हो गया"
आभार ||
नव सम्वत्सर-2069 की हार्दिक शुभकामनाएँ!
bahut badhiya ,,
bahut majedar ,,par acchi sikh deti rachana hai...
aabhar...
बहुत ही बढ़िया प्रेरणात्म्क एवं विचारणीय पोस्ट ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ठोकर लगने पे सब समक्झ आता है ... अच्छी कहानी ...
चलो। 'निरमा बाबा की कृपाÓ से अब जो जोखुआ कॉलेज में लड़की के हाथ में हाथ डालकर घूम तो सकेगा। जय हो निरमा बाबा की।
जोखुआ तो पास हो गया... बधाई... लेकिन इस बाबा की पोल कब खुलेगी... बाबा ही जाने....:))
बहुत सुंदर रचना,बहुत अच्छी प्रस्तुति!
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