अबकी साल जोखुआ ने गाँव की प्रधानी लड़ने की सोची, पता चला की पिछले सरपँच जी के घोटालों से बड़ा प्रभावित था जो उसके अपने सगे पिताजी थे और उनको आदर्श मान उन्ही का अनुशरण करने की सोची.
अब जोखुआ लग गया मिशन पर, घर घर जाके पूछता, "सांस ले रहे हो की नहीं, अरे कल्लू तुम्हारे यहाँ अभी तक कोई बच्चा नहीं पैदा हुआ, मत घबराओ, प्रधान बनते ही मै सारी समस्याएं दूर कर दूँगा. अरे लाली तेरी शादी नहीं हो रही क्या ? मत घबरा मै हूँ न तुझे किस बात की चिंता " इत्यादि इत्यादि .
किसी ने कह दिया की भाई तुम तो खुद चोर लुटरे हो क्या भला करोगे हमारा, फिर क्या था, दिया दिया जोखुआ ने अपना पराक्रम गुर्गो से कह के नाक मुह एक करवा दिया, सिध्ध कर दिया की गाँव में सबसे योग्य उम्मीदवार वही है, आखिर इज्जत भी कोई चीज होतीं है भाई, जो अपनी इज्जत की रक्षा नहीं कर सकता वो भला गाँव की इज्जत कैसे सम्ह्लेगा आखिर उसके लिए भी तो पराक्रम का प्रदर्शन आवश्यक है.
दिन बितते गए चुनाव का का दिन नजदीक आने लगा लेकिन जोखुआ बहुत परेशान था. कभी रोता था कभी हसता था, कभी पागलो की तरह सबको गालियाँ बकता था मानो दिग्गी बाबू से ट्रेनिंग ले के आया हो.
मोहल्ले वाले जब उसके घर शिकायत करते तो अभिवाहक सफाई देते की बच्चा है कोई बात नहीं आप लोग सयंम बनाये रखे एक दिन अक्ल आ जायेगी. अरे बच्चा है तो डायपर पहना के पालने में क्यों नहीं रखते कही कोई लकडसुन्घवा उठा ले गया तो?? जवाब मिलता सारे लकडसुन्घ्वा इसी के चले है छोटी उम्र में इतनी बड़ी उप्लाब्ध्धि पाया है हमारा बेटा इसकी तारीफ़ तो कर नहीं सकते उलटे आ जाते हो शिकायत करने.
खैर तभी एक दुखद समाचार मिला, लडके माँ किसी अज्ञात बिमारी से ग्रसित हो गयीं, पुरे परिवार में मातम छ गया जैसे पूरा गाँव ही बीमार पड़ गया हो और गाँव की चिंता इस परिवार की चिंता .
सुबह से लाइन लग गयी कुशल क्षेम पूछने वालों की,
क्या हुआ ?
कैसे हुआ ?
कब हुआ ?
जवाब मिलता ,
छोडो भी, जाने दो यारों .
जोखुआ की माता इलाज करने चली गयीं बिदेश .
अब भाई आप लोग बताओ, ऐसा कौन सा गुप्त रोग है जो बताया नहीं जा सकता और जिसका इलाज इस देश में संभव नहीं ? देल्ही के शाहदरा और उत्तर प्रदेश के अमरोहा में तो गली गली में दुकाने है ऐसे बिमारियों की ऐसा क्या रहस्मय बिमारी है जो बतलाया नहीं जा सकता गाँव वालों को ?
माता जी के परिवार से सफाई आई की माता जी ईंट का जवाब पत्थर से देती हैं, जहाँ से बीमारी लगी है उन्ही के सर गयी है आपको तो सराहना करनी चाहिए इस बात की.
अब गाँव वाले दुआ कर रहे थे, काश ऐसा गुप्त रोग हमें भी लग जाता, कम से कम बिदेश की सैर तो कर आता .
कमल ३ /३ २०१२
6 comments:
जोखू ने जोखा सही, यही है भैया रीत ।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनत, भरत-जनों की मीत ।
भरत-जनों की मीत, ढीठ *दिग्गीश्वर जैसा ।*इंद्र
माँ को एकै रोग, ठिकाने जमता पैसा ।
द्रव्य सदी से सोख, चले देने फिर धोखा।
जमा बाप का माल, सही जोखू ने जोखा ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
ye sab ek khel hai aur hum ise nahi samj sakte.sunder vyangya lekh ke liye aabhar
भूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,
सुंदर आलेख ,..
NEW POST...फिर से आई होली...
नारायण नारायण:)
बहुत खूब दिग्गी का अम्मा विदेशवा गईं स्विसिया ठिकाना है ...
ये रहस्यमयी...बीमारी ...देश के हर राजनेता को लगी हुई हैं ....बढिया व्यंग्य
होली की शुभकामनएं
Post a Comment