ह्म्म्म , मामला गंभीर है, एक बात कहूँ तो मै दूरदर्शी हूँ , मैंने साल भर पहले ही अपनी गाडी खड़ी कर लिफ्ट मांगनी शुरू कर दी, बढ़ा दो, और इससे घाटा नहीं मै तो कहता हूँ फायदा ही फायदा है, अब देखिये आजकल गाड़ी के जमाने में बिचारे घोड़े तरसते हैं, नहीं पहले क्या ठाठ थी उनकी हर घोड़े की इज्जत होती थी ( आज के इंसान रूपी गधे से जादा ) की फलनवा मेरे पीठ पे बैठता है, कालांतर में गाडी इनकी सौत बन के आई, और ये बिचारी तब दहकने के बाद हाशिये पे हो गयी, कभी कभी कोई गधा इनपे जरुर चढ़ता है तब भी पछताता है ( शादी के समय ), मुझे लगता है सोनिया गाँधी अब परिवार प्रेम में आ गयीं है, और मेनका को मनाने के लिए घोड़ो के दिन वापिस लाना चाहती है, ताकि मेनका उनके इस जानवर प्रेम से खुश हो दीदी चिल्लाने लगे, सरकार के इस फैसले से घोड़े तो खुश ही हैं साथ में गधो की जमात भी है ( इन्क्लुडिंग कोंग्रेसी ).आस में की अब फिर से आदमी अब फिर से घोड़े पे चलने लगेगा तो गरीब तबका हमारी और भी नजर डालेगा और हमें भी लिक से हटकर (धोबी और घाट) कुछ चुनौती पूर्ण कार्य करने के अवसर प्राप्त होंगे.
इसका दूसरा असर ये होगा की नॉएडा और डेल्ही की सडको पर रात में शराबी लम्पटों की रेस बंद हो जाएगी ( एक ज़माने में हम भी इसी प्रकार के लम्पट थे )और घोड़ो पे चढ़कर तो कोई सड़क पे रेसिंग करेगा नहीं, क्योकि घोडा बड़ा संग्यानी होता है, शराब की महक सूंघ पटक जो दे तो रेसर बिचारे उठ न पाएंगे. दूसरा फायदा ये होगा की ट्राफिक वालो का अत्याचार कम हो जायेगा, ये साले घोड़े पकड़ थाने में नहीं बंद कर सकते, और जो कर भी दिया तो इनके पास चरी ( घोड़े गाय का कहना ) बोने का खेत नहीं है और सरकार देने वाली नहीं, और जो सरकार ने दे भी दिया तो ये बिचारे उगा न पाएंगे, और यदि उगा भी लिया तो भी घोड़े का न मिलेगा, सरकार चारा घोटाला के तर्ज पर चरी घोटाला कर देगी, सरकार भी अपने घोटालो का चक्र नहीं बिगाड़ती काफी दिन हो गया जानवरों का खाया अब तो इनके पाद में मोबाइल मोबाइल सा या कोयला जैसा महकता है. अंततः घोड़े गदहे की मौत मर जायेंगे जिसका पाप पुलिस वालो पे आयेगा , आखिर पुलिस वाला भी बिचारा कितना पाप सहेगा, एक तो डकैती की बद्दुवा सहता है अब ये पाप भी ,. डकैती ??? अरे हैं भाई, एक बार मेरे मोहल्ले में डाकू घुस आये , हमने घबरा कर कर थाने फोन किया , तो थानेदार ने बोला की पिकेट वाले तो इस क्षेत्र में ही नहीं गए हैं आज तो कहीं और होना चाहिए था,और दूसरी बात की अब हम लोग ये सब नहीं करते, अब तो सीधे सरकार से ही सांठ गाँठ है खैर!!! आदमी के स्वास्थ्य य पे भी इसका असर पड़ेगा.
जवाहिर को जब से ससुराली गाड़ी मिली है तबसे वो हगने भी गाड़ी से जाते हैं, ऊपर से हर महीने का पिटरोल का पैसा पिता जी से मांगते, इससे जवाहिर का घुटना पकड़ लिया है और पिता जी का का हृदय, मुद्दा ये की जवाहिर का घुटना ठीक और उनके पिताजी मस्त हो जायेंगे, दहेज़ में गाडी तो भूल के भी कोई न लेगा, बल्कि उल्टा ससुराल वाले बात बात पे धमका सकते हैं, बेटी को ठीक से रखो नहीं गाडी दे जायेंगे.
रोजगार ?? अरे तो इससे रोजगार पे कोई फर्क नहीं पड़ना, सारे मोटर मैकेनिक घोडा जाकी बन अपना स्वास्थ्य सुधरेंगे, नहीं तो बिचारे हाथ काले कर जब घर पहुचते तो डीजल मोबिल का महक आता था.
आप भी तो कोंग्रेस को वोट इसीलिए देते हो की आप खुश रहो स्वास्थ्य रहो, अब माई बाप्पा चिल्लाने का प्रश्न ही नहीं है , चुप चाप घोडा लाइए स्वास्थ्य बनाइये ..
लोग कहते हैं हर कुत्ते का दिन आता है, अब से लोग कहंगे हर घोड़े का दिन आता है.
कुछ गलत कहा हो तो कहियेगा
2 comments:
ओह! ये सब तो हमारे लिये मतबल जनता के भले के लिये हो रहा है और हमहुं हैं कि ....... कुछ और ही समझ बैठे थे।
इत्ती सी बात नहीं समझ पाते हम मूढ
आभार आपका
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
आपकी पोस्ट की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।
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