हे प्रिये सत्ता,
ढेर सारा प्यार, दुलार .
जैसा की तुम्हे मालुम है, हमारे तुम्हारे बीच की दूरीयां बहुत जादा है, और ये जालिम जमाना है की मानता ही नहीं, समझता ही नहीं, मै बचपन से तुमसे प्यार करता हूँ, लेकिन किसी से जिक्र तक न किया, तम्हे पाने से पहले मै तुम्हे बदनाम जो नहीं करना चाहता था."बदनाम मेरे प्यार का अफसाना हुआ है , दीवाना भी कहता है दीवाना हुआ है " .
हे प्रिये, मुझे मालुम है हमारे तुम्हारे बीच की दूरीयां बहुत जादा है लेकिन तुम तनिक भी चिंता न करना, क्योकि तुम सीता नहीं जो चिंता करो, मै तो रामायण और माता जैसे शब्दों में विश्वाश ही नहीं करता, विश्वाश करो तुम्हे अपनाने के लिए मै कुछ भी करने को तैयार हूँ, रामदेव और माँ भारती जैसे सांप्रदायिक चीजो से मई कोसो दूर हूँ, चाचा बुखारी से बात चीत चल रही है, आशा है काम बन जायेगा. रामायण की माता लंका में थी , लेकिन तुम आधुनिका हो, तुम अपने आपको पकिस्तान में समझो, वैसे भी मेरे सहोदर सुग्रीव भूषण कश्मीर को पकिस्तान को देने के वायदे दे चुके हैं, सो चिंता की कोई बात नहीं. बस धैर्य रखो .. बना बनाया काम बिगड़ गया,, मैंने अन्ना जैसे कुशल इंजिनियर को फांस कर तुम्हारे पास तक आने के लिए पुल बनवाने के लिए तैयार करवा लिया था जो पराक्रम में अकेले ही "नल -नील " के बराबर था, लेकिन तुम्हे पता है न, कलियुग में मै न तो राम हूँ न अगला "नल नील हनुमान" उसे पता चल गया की पुल बनाते ही भारत में बलि का भी रिवाज है. बिचारा डर के भाग गया.
थोडा समय लगेगा तुम तक पहुचने में, कम से कम एसा मै सोचता हूँ, खैर लोग तो कहते हैं मेरे तुम्हारा प्यार सच्चा है , और शायद वो सही सोचते है, और आज तक सच्चा प्यार मिल नहीं सका नहीं सका. यदि मै तुम्हे नहीं मिल सका तो तुम मुझे बेवफा तो न समझोगी ?? मैंने तुम्हे टूट के चाहा है, मानो या न मानो , लेकिन यही सच है.
तुम्हारे लिए मैंने क्या क्या नहीं सहा ? ?? नौकरी छोड़ी, दर दर भटका, भूखा रहा, "लेकिन तुम्हारा नाम तक जबान पे नहीं आने दिया" की कहीं तुम बदनाम न हो जाओ (वास्तव में तुसे जादा मुझे मेरी बदनामी की पड़ी थी तुम बस मिल तो जाओ एक बार , फिर देखो तुमको जाने मन से अपनी लौंडिया कैसे बनाता हूँ ).लेकिन क्या इश्क और मुश्क छुपाये छुपा है ?? तुम मानो या ना मानो, मैंने तुम्हारे लिए अपने नेता "अन्ना" तक के आँख में धुल झोकी, लेकिन हाय रे किस्मत, हाय ये जालिम जमाना, इनको किसी का सच्चा प्यार ही नहीं सुहाता.
जिस अन्ना को मैंने अपना अगुवा बना तुम्हारे पास अपनी कुंडली मिलाने को भेजी थी, अब वही अमरीश पूरी बन चुका है, लेकिन तुम घबराना मत, मै तुम्हारे लिए हर बाजी खेलने को तैयार हूँ.
मान लो यदि तुम मुझे न मिली तो तुम अफ़सोस न करना, कोई न कोई सुयोग्य तुम्हारे लिए आ ही जायेगा, और मै तुम्हारी छोटी बहिन "एन जी ओ " के साथ तो हु ही, उसके जरिये तुम्हारा हाल समाचार लेता रहूँगा, तुम मेरी न हो पाई तो क्या हुआ, कम से कम अपनी छोटी बहिन पे स्नेह बना के रखना..
बाकी का प्यार मनुहार आगले पत्र में ..
तुम्हारा ,
अरविन्द केजरीवाल.
3 comments:
बिलकुल सही व सटीक विवेचन. बधाई.
बड़े भाई ठेठ अभिधा में उतर आये ,कुछ तो लक्षणा और व्यंजना के लिए भी छोड़ा होता .काणे को काणा कहना कलात्मकता नहीं है उसे कमसे कम समदर्शी या डिप्टीकमिश्नर तो बोलो भाई जो पूरी कमिश्नरी को एक नजर से देखता है .नारद तो ठीक कर लो यार नादर ही लिख छोड़ा है .व्यंग्य चलाओ बेटा लेकिन थोड़ी सी वर्तनी भी सुधार लो इटली जी की तरह कब तक हिंदी में पैदल रहोगे बेटा .नाक दी है भगवान् ने तो उसका प्रयोग करो अनुस्वार /अनुनासिक को पहचानो जान मेरी .
ये ब्लॉग जगत को हो क्या गया है नाक का इस्तेमाल ही करना छोड़ता जा रहा है कमोबेश जिसे देखो बिंदी और चन्द्र बिंदु लगाने से परहेज़ रखता है जैसे हकीम तुर्कमान ने कहा हो बेटा नाक का इस्तेमाल भूल के न करियो .
लिंक 10-
खुजलीवाल का सत्ता सुन्दरी को पत्र -कमल कुमार सिंह ‘नादर’
आदरणीय वीरेंदर जी ,. हमें पता है आप कमुनिस्ट है और केजरीवाल के भक्त है , फिर भी हम आपकी इस तिपड्डी का स्वागत करते हैं , आशा है आगे भी आप हमारी त्रुटियों की ऑर हमारा ध्यान इंगित करते रहेंगे, जो मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप होगा ... आभार
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