झुक जाता है सर मेरा, जब कोई मंदिर दीखता है ,
करता लेता हूँ इबाबत जब कोई मस्जिद दीखता है ,
प्रेयर , करके इसा की, कुछ और आनंद ही आता है ,
स्वर्ण मंदिर देख, सर नतमस्तक हो जाता है,
शायद यही है व्याख्या धर्म कि, जो ये अज्ञानी कर पाया,
ग्यानी हमें बनना नही , जिन्होंने धर्म भेद फैलाया,
सुना है ग्यानी आजकल , संसद में बैठते हैं,
धर्म को अधर्म बना, इस देश को डसते हैं ,
तो दोस्तों आप ही बताओ उन्हें ग्यानी कहूँ सांप,
जिनका काम है डसना उसको , जिसके आस्तीन में पलते हैं,
(कमल - १९ , १२ , २०११ )
3 comments:
क्या सांप हैं जी!
janta ko dasne vaalon ko to saanp hi kaha ja sakta hai.bahut khoob likha.
वाह ...सही है धर्म का ये सच्चा ज्ञान ...सटीक विश्लेषण
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