नारद: भ्रस्टाचार

Tuesday, July 17, 2012

भ्रस्टाचार

जीवन को चलाने के लिए भी कुछ संविधान बनाए गएँ है जिसको कई अनुच्छेदों मे बांटा गया है जैसे आचार, विचार, सदाचार, ये अधिकारिक तौर पर मनुष्य को निर्देशित किये गए कि जाओ इस मार्ग पर चलो और जीवन   रूपी खाई को सफलता पूर्वक पार करो.

नियम बनाने वाले सफल होने कि गारन्टी नहीं दी इससे पता चलता है उस समय मे कोचिंग सेंटर नहीं था  नहीं तो जरुर कुछ सीख लेता. इससे कोचिंग का इतिहास पता चला है की अचार विचार सदाचार के ज़माने मे इसका अस्तित्व नहीं था. 

अब आगे बढते हैं. इस सविंधान को बनाने वाला निश्चय ही दूरदर्शी नहीं था, और बहुत ही दुबला पतला रहा होगा, उसने ये नियम मार्ग इतने पतले बनाए कि चौड़ा आदमी बिचारा दिक्कत महसूस करने  लगा. पतला आदमी तो ये सविंधान मान भी ले लेकिन मोटा इस रास्ते को देखते ही डर जाता. वह मोटा आदमी उस दुबले आदमी के पास गया. "भाई यह रास्ता चौड़ा क्यों न बनाया चलने मे आसानी होती ?? यह तो  पतला सा जोखिम भरा, मेरा बैलेंस जरा भी बिगड़ा नहीं कि कि सीधे खाई मे"

पतलू ने कहा " भाई रास्ता पतला है लेकिन मजबूत है, खाई पर कर जाओगे, जो चौड़ा बनाया तो माल मजूरी सिमित है, आकार बढ़ जायेगा, लेकिन कमजोर हो जायेगा, पार  क्या बीच मे ही गिर पड़ोगे."

समस्या यह कि रास्ता चौड़ा करने का माल खत्म, मजूरी खत्म. और मोटे आदमी कि समस्या सुन दुबला बोला भाई खाना कम कर दे पतला हो जायेगा. मोटा बिदका "तुमसे खाई पार करने का रास्ता पूछा है, आचार विचार वाले को आहार के बारे मे सुझाव देने का अधिकार नहीं.  इससे यह पता चलता है कि उस ज़माने मे रामदेव जैसे योगी नहीं होते थे, नहीं तो जरुर वह मोटे आदमी को रेफर करता. और योगी उसको समझता कि जितना है उसी मे संतोस करो, अपने को पतला करो और चौड़े मार्ग से बचो. 

धीरे धीरे मोटे समाज मे असंतोष फैला, और मोटो की सभा बुलाई गयी. जिसको वो पतला मनुष्य दूर से सुन रहा था.
अध्यक्षीय भाषण शुरू हुआ  " मित्रों जैसा की सभी लोगो को मालूम है, हम यहाँ क्यों इकठ्ठे हुए है, हमें खाने कि आदत पड़ी है, उसक असर स्वास्थ्य पे भी पड़ा है, हम मोटे जरुर हुयें हैं , लेकिन इसका मतलब ये नहीं की हमें जीवन मार्ग पार करने अधिकार प्राप्त नहीं, रास्ता चौड़ा बनाते , लेकिन क्यों बनाए , ये संयम वालो कि शाजिश है , जिसके विरोध हम एक नया रास्ता बनायेंगे, इन्ही के तर्ज पर...हमें रास्ता चौड़ा करना है माल किसी भी प्रकार हो.....बस  चार लगा होना चाहिए क्योकि हम भी इनसे अलग नहीं आखिर इन्ही कि वजह से तो हम आगे बढते है, ये पतले होते हैं तभी तो हम मोटे होते हैं, ये इनकी जिम्मेदारी है कि ये पतले क्यों है , सब जेम्मेदारी इनकी है.. ये सचेत क्यों नहीं ??(शायद यही भाषण मुंबई के युवावों ने सुन लिया था, जो ए सी पि के विरुध्ध मोर्चा खोले हुए थे) 

इनके सदाचार , आचार के विरुद्ध हम एक नए रास्ते कि घोषणा करते है "भ्रस्टाचार"  इन पत्लुवों  को कम से कम हमें शुक्रिया देना चाहिय की इनका "चार"  सफिक्स शब्द हमने भी समाहित किया है.  और इस चार मे हम चार चार जोडते है, दुराचार, बुराचार, मुल्ला चार  और अंतिम महान शब्द नेता चार... 


जोरो कि तालियाँ बजी, मोटा सभा ने जय जय कारे लगाये, सब प्रसन्न ...

वो पतला मनुष्य एकाकी एक कोने मे खड़ा था, जो सब कुछ सुन रहा था वो बस सोचता रहा, "रास्ता पतला है तो क्या मजबूत तो है",  लेकिन था तो अकेला,

वो आज तक सिसक रहा है.. शायद रो भी रहा है ...मोटे अभी भी  चौड़े रास्ते पे  चल रहें हैं,  शायद अभी बीच मे है, उन्हें हाशिया तो मिल जाएगा लेकिन किनारा नहीं. 



5 comments:

रविकर said...

सुन्दर पोस्ट |
आकर्षक प्रस्तुति ||

दिगम्बर नासवा said...

ऐसे अकेले आदमी मिलना भी तो नहीं चाहते ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आम आदमी के लिए, नहीं बने कानून।
खास-खास के लिए हैं, सारे ही मजमून।।

सुशील कुमार जोशी said...

नारद जी लाये हैं
बहुत कुछ देखिये
ब्लाग पर अपने
सजाये हैं सुंदर !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,,,,,,

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