नारद: जन लोकपाल बनाम सौतेला जनलोक पाल :

Wednesday, August 24, 2011

जन लोकपाल बनाम सौतेला जनलोक पाल :



मै नारद , नारायण नारायण करते हुए आकाश गंगा का भ्रमण कर रहे था  , तभी मेरी  नज़र पृथ्वी पे भारत देश के रामलीला मैदान पे  पड़ी , देख कर चकित रह गया   की जहाँ हर साल प्रभु के मरे रावण का पुतला जलाया जाता था आज वहाँ सब "अन्ना -अन्ना"  कर रहे हैं , चंचल स्वाभाव बस अपने को रोक न पाए , उतर आये पृथ्वी पे .


आते ही भेष बदला , गंजी लुंगी में बड़े जंच रहे थे हम , तभी किसी ने मुझे  पीछे से अन्ना वाली टोपी पहना दी ... चौक के बोले भाई टोपी तो हम स्वर्ग में पहनाते है कभी ब्रम्हा को कभी विष्णु को , कभी शिव को .. ये कोन वाला टोपी है , उस मनुष्य ने झंडा हिला हिला के बताया की ये अन्ना की "एंटी -करप्शन" टोपी है , इसके पहले नेता लोग जनता को टोपी पहनते थे , अभी अन्ना के साथ हो के जनता का  , नेताओं  को   टोपी पहनाओ अभियान"   जारी  है .

सुन के मै  मुस्कराया  बोला  यानि  भारत का इन्द्र भ्रष्ट है ???

स्वर्ग से आया जान उस मनुष्य ने मुझे "टी वी" रूम तक पहुचाया , किसी सितारा समाचार पर पे देखा लोग वार्तालाप  में में व्यस्त थे , कोई किसी की नहीं सुन रहा था , मुझे तो अपने स्वर्ग की याद आ गयी , कुछ भी अलग नहीं यहाँ तो . तभी लगा की लोग किसी नियम कानून की बात कर रहे थे , किसी अन्ना की , और  " रॉय  " की ,       मैंने पूछा भाई , अन्ना का जनांदोलन देख तो मै पृथ्वी पे आया , अब ये बूढी हड्डियों वाली नयी अप्सरा कौन है जो  अपना बिल भी दिखा रहीं हैं चश्मा लगा के ?? उस मनुष्य ने बताया , अरे यहाँ का इन्द्र बड़ा घाघ है , अभी तक तो पता नहीं कितने मीटिंग बुला के काजू किशमिश तोड़  चूका है , और इस बुढिया को भी भेजा है अडंगा लगाने , सुनाने में आया है की पहले ये मम्मी जी के यहाँ बर्तन  माजती थी , इतने दिन तक पता नहीं कहा थी , लेकिन अब ये भी बहती गंगा में हाथ धोने की सोच रही है अपना बिल ले के , मम्मी जी के कहने पे .

मैंने पूछा भाई ये मम्मी जी कोन है ??? उसने बताया ये अपने  इन्द्र की माता जी है , अभी जान बचाने के लिए भारत छोड़ के भागी हैं , एक तरफ अन्ना हैं जो देश के लिए जान देते हैं और दूसरी तरफ ये मम्मी जो जान के लिए देश छोडती है बीमारी का बहाना बना के ..

मैंने पूछा भाइ अब क्या होगा ??? उसने कहा की होगा क्या ?? जैसे इन्द्र की पगड़ी उछाली वैसे इसका चश्मा भी टूटेगा ...

 सुन के मै  मुस्कराया  बोला ..एक आध अन्ना हमें भी दे दो स्वर्ग ले जाना है, हमारा इन्द्र भी बड़ा कुकर्मी है मुआ , कुछ भी करता है गद्दी बचने के लिए . कभी विश्वामित्र का ताप भंग करता है , कभी कुछ , कभी कभी तो गठबंधन के लिए , विष्णु जी के पास भी दौड लगा देता है .

इसी के साथ मै भी अन्ना अन्ना करके के स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर दिया आखिर साडी बातें विष्णु जी को जो बतानी थी , अन्ना अन्ना  ( नारायण नारायण तो शायद मै भी भूल जाऊं  कुछ दिनों के लिए )

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