नारद: साहब जी और फ़ूड सेक्योरिटी बिल

Tuesday, August 27, 2013

साहब जी और फ़ूड सेक्योरिटी बिल


सुबह सुबह "साहब" जी  जब खटिया से अपना पैर नीचे उतार, उनके हिसाब से "भारत डायन"  के सीने पे पाँव रखा तो खुश हुए, हलाकि यह काम वो रोज करते थे. लेकिन आज ख़ासा खुश थे.

"अजी सुनती हो,  जरा डेटाल साबुन देना, आज नहाना पड़ेगा, अमेरिका ने हमको मगाया है" -  अपनी पत्नी से कहा.

क्या हुआ जी ? सब ठीक तो है, कहीं "दिल्ली वाली मम्मी" ने आपको भी बेच तो नहीं दिया उन्हें ? - बेगम  ने कहा.

"कभी कभी ढंग की बात किया करो, तुम बेगम हमेशा हमें अंडर इस्टीमेट करती हो- तमतमाते  बोले.

"काश कुम्भ मेले वाले भी करते तो उनकी जान बच जाती., लो पकड़ो डेटाल, इससे शरीर का कीड़ा तो मार लोगे, दिमाग साफ़ तो पहले ही हो चूका है"- बेगम ने साबुन खुश होते हुए इस तरह से दिया मानो जहर दे रही हो.

डायन के सीने से टुल्लू फिट कर निकले गए पानी से जम  के नहाने के बाद कच्छे को सूरज के नजरो के इनयात कर सूरज  पे अपनी नज़ारे इनायत कर कहा, 
"दो मिनट में सुखा दो , एके है, दूसरा स्वीटजरलैंड में है.  नहीं किया तो  सांप्रदायिक बता के अंदर कर दूंगा, बड़े बड़े आई ए एस को अन्दर- बाहर  किया है, तुम क्या हो ?"
 सुरज ने मारे  डर के धुप तेज कर दी, कच्छा सूखने लगा लेकिन खान साहब को पसीना आने लगा, फिर तमतमाए, "अबे  रोना  हो तो अपने आँख से पानी निकालो, न की  मेरे "वहां" से. 

खैर ये उनकी रोज की आदत थी, इस तरह के कारनामे कई बार कर चुके हैं,  पिछली बार  कूत्तो के समूह को जो की  सामाजिक व्यक्तियों को  काटने की वजह से मुनिसिपल वाले उठा ले गए थे उनको छुड़ाने की  दलीले थी की ये तो  पागल कुत्ते है, कटना इनका स्वभाव है, अब कुत्ते नहीं काटेंगे तो कौन  काटेगा ? इनको छोड़ दो नहीं तो  कुत्ताधिकार वाले बहुत  है अपने देश में तुम्हारी नौकरी खा जाऊँगा, इंसान और जानवरों में मतभेद करते हो ? साम्प्रदायीक  कही के. कुत्ते हमारे समाज के अभिन्न हिस्सा है. ये हमारी रखवाली करते है तो किसी को काटे भी तो हमें आपत्ति क्यों ?. अब कुत्ते कुत्तई नहीं करेंगे तो क्या आप करेंगे ? 

खैर नहा धो के साहब ने अपने "कमजोर नाडे" को बड़े कसीदे के बाँधा ताकि कमर पर टिकी रहे. मुलायम हाथो द्वारा भेंट की गयी मूल्यमान इतर का छिडकाव किया ताकि किसी भी प्रकार के गन्दगी की बदबू न आये, दिमाग इन सब से मुक्त था अतः इतर से उसको भी मुक्त रखा हमेशा की तरह. इनका मानना था की दिमाग की खुशबू से प्रभावित करना खतरनाक हो सकता है, कही किसी चोर चुहाडे की नजर पड गयी तो रहा सहा भेजा भी उड़ा ले जायेगा, अतः जैसा भी है अपना है, खोपड़े में सुरक्षित तो रहेगा. 

घर से अभी कुछ दूर गए होंगे की किराने  के दूकान पर लम्बी लाइन नजर आई. आप सामाजिक  थे वहां गए, "क्यों रे इत्ती लम्बी लाइन कहे की ? खुदा की खैरात बट रही क्या ? 

"खुदा की खैरात ले के क्या करेंगे चाचा? मम्मी जी का भेजा कोटा आया है,  

 हायं ?? ये कैसे  भैया तो अपने मुलायम जबान में कुछ कुछ खिलाफत की थी, लेकिन क्या भैया और क्या गिरगिट ? चलो कोई नहीं पास हो गया तो हो गया. मन में बुदबुदाए साहब. 

"ये बताओ बिलवा में खाने के बाद पचाने का भी कुछ उपाय है,"  साहब ने धमकाने के अंदाज में पूछा. 

साहब,  जिसे दो जून का कहना न नसीब हो वो  पचाने की क्या सोचे? आप लोग खाइए, खूब  खाइए, मिल बाँट के पचाईए. यहाँ तो कब से लाइन में लगे है, पंसारी कुछ देने को तैयार नहीं होता, कहता है किसी की शिफारिश ले के आ , अब आप आ गए हो तो, तो आप ही कह दो. सुना की आपके शिफारिश से सम्परादायिक  यात्रायें रुक जाती है, साम्प्रदायिक लोग थर थर कांपते है. 

अबे ये जनता का काम है, हम ठहरे नेता, हम सिफारिश करंगे तो लोग क्या कहेंगे? साहब ने पहले से फुले हुए सीने को और फुलाने की कोशिश की. लेकिन सुनो, जितना मिलेगा उसका आधा हमारे बेगम को पंहुचा जाना बाकियों से भी यही कह दो, "अबे पंसारी, दो इन सबको, कहे तंग करते हो, माल बंद करावा दे क्या" ? साहब ने पंसारी से धमकी से लबालब शिफारिश की और चलते बने. 

गरीब बेचारा अपनी हथेली पे पड़े  उन सिक्को को जो उसने मम्मी के पोस्टरों को रद्दी के भाव बेच बेच के जमा किया  था, जमीन पर फेंकते हुए, ढेर सारा दुसित प्रवाह किया और  चलता बना, नंगा, भूखा.  

कमल कुमार सिंह. 

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