कोंग्रेस का हाथ अन्ना के साथ |
गिरगिट (Chameleons) एक प्रकार की छिपकली है। तोते की तरह के उनके पैर; अलग-अलग नियंत्रित हो स्कने वाली उनकी स्टिरियोटाइप आँखें; उनकी बहुत लम्बी, तेजी से निकलने वाली जीभ; सिर पर चोटी (क्रेस्ट); तथा कुछ द्वारा अपना रंग बदलने की क्षमता इनकी कुछ विशिष्टताएँ हैं। इनकी लगभ्ग १६० जातियाँ "हैं " जो अफ्रीका, मडागास्कर, स्पेन पुर्तगाल, दक्षिण एशिया आदि में पायी जातीं हैं।
लेकिन सन २०११-१२ के दौरान भारत में एक और १६१वें किस्म के एक अनोखे और आश्चर्यजनक गिरगिट का पता चला जिसका चाल ढाल तो इंसानी था लेकिन बाकी विशेषताएं जैसे तेजी से निकलने वाली जीभ, सिर पर चोटी (क्रेस्ट= अर्थात कोंग्रेस का हाथ); और अन्य विशेस्तावों से युक्त पल पल रंग बदलने की अदभुद क्षमता, एसा माना जा रहा है की यह सबसे उन्नत किस्म का गिरगिट है जिसने बाकि के १६० प्रजातियों को पछाड़ दिया है.
मेरा ये कहना गिरगिट और गिरगिट समर्थको को बुरा जरुर लगेगा, वो मुहे गालियाँ दे सकते हैं, या कुतरक, लेकिन हाँ तर्क सहित वो मेरी बात को गलत साबित नहीं कर सकते और इतना तो गिरगिट और गिरगिट समर्थक भी जानते हैं.
जिस केजरीवाल और अन्ना को दो साल पहले तक उसका खुद का मोहल्ला न जानता हो उसे आज पूरा देश जनता है. कैसे ?? सिर्फ और सिर्फ गिरगिट विकास के अध्याय में एक नयी कड़ी जोड़ने के कारन मात्र, अब ध्यान देने योग्य बात ये है की इस नयी प्रजाति को विकसित करने की जरुरत क्या आन पड़ी ??
कई साल तक पहले जमीनी कार्य और जनता में अलख जगाने के बाद बाबा रामदेव ने काली सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की तिथि की घोषणा जून २०११ निर्धारित कर दी तो महीनो पहले से जनता उस दिन का इन्तजार बेसब्री से करने लगी, क्योकि जनता सरकार के काली करतूतों से अजीज आ चुकी थी इसके कई कारन थे, पहला, वेश्यावों के को रखने वालो, ब्लू फिल्म बनाने वालो और अवैध बच्चो के पिता जी, और घोटाले उत्पादक सरकार से जनता तंग आ चुकी थी.. परेशांन थी, हैरान थी, उसको चाहिए था तो किसी का नेतृत्व, ये कमी बाबा राम देव ने पूरी कर दी तिथि घोषणा के साथ.
जमीनी तौर से कई वर्षों से हर प्रकार के देश सेवा करने वाले बाबा रामदेव् ने आन्दोलन से पहले जमीनी रूप से ढेर सारे कार्य कर चाहे वो स्वदेशी हो, योग हो, आयुर्वेद हो, या व्यापार हो शीर्षता हासिल कर जनता मे परबा विश्वाश बना लिया था. जिससे कोंग्रेस के पेट में बल पड़ने लगने, जरूरत थी एन केंन प्रकारेंन किसी भी तरह योग गुरु बाबा रामदेव को नीचे दिखाना, लेकिन ये आसन काम नहीं था और न ही है. तो क्या किया जाए ?? अकबर बीरबल के "रेखा छोटी करो" का सिध्धांत अपना बाबा के बराबर किसी भी इंसान को उस स्तर तक लाया जा सके चाहे वो उस योग्य हो या न हो, इसके लिए मिडिया का खूब इस्तमाल हुआ.
अब देखिये घटना क्रम कितनी तेजी से बदलता है.
बाबा के तिथि घोषणा के बाद है एक ऐसे गुमनाम शक्श को रातो रात भारत की जनता का मसीहा बनाया जाता है जिसको पिछली सुबह तक कोई जानता तक न था, जो शायद किसी महारष्ट्र के अनाम गाँव से था... वास्तव मैंने खुद भी इनका नाम कभी नहीं सुना था, और मेरी ही तह करोड़ो युवावों ने भी, जो महारष्ट्र से नहीं थे.
एक सभा बुलाई, बाबा राम देव को बुलाया, बाबा ने उसका परिचय अन्ना हजारे के नाम से इस देश को कराया. शायद ये सब पहले से सोची समझी योजना थी. शायद इसके पीछे केजरीवाल का दिमाग रहा हो.. केजरीवाल का इतिहास खंगाला जाए तो केजरीवाल वास्तव में बहुत ही महत्वाकाक्षी व्यक्ति रहें है, एक बार इनसे किसी टी वी वाले ने पूछा की अपने सरकारी नौकरी क्यों छोड़ दी, तो इनका जवाब था, यहाँ न नाम है न इज्जत, मुझे और जादा चाहिए ... यानि ये दिल मांगे मोर...
अब अन्ना के लांचिंग के लिए किस पैड का इस्तमाल हों ?? तो इस्तमाल बाबा का किया जो इन के मनसूबे से अनजान थे. उन्होंने सोचा काम देश का है तो एक से भले दो... उन्हें नहीं पता था की जिस भर्ष्टाचार को मिटने के लिए बाबा रामदेव, इन गिरगीटो को अपना आशीर्वाद दे रहे हैं वही दोनों आगे चल के इनके लिए भस्मासुर साबित होंगे. वास्तव में बाबा आज इस देश में किसी भी व्यक्ति से लोकप्रिय है, भारत ही नहीं वरन विदेशो में भी.. चाहे वो गूंगा प्रधान मंत्री हो या भ्रष्ट का कलंक लेने वाला राष्ट्रपति. तो अरविन्द अन्ना को खड़ा आगे कर बाबा को लांचिंग पैड बनाया, और अन्ना हजारे को लांच कराया,
बाबा के द्वारा लांचिंग के बाद अन्ना और टीम को आम जनता जानने लगी तभी आना को जंतर मन्त्र पर बिठा दिया गया, और माया से उनको भारत का हीरो, डुप्लिकेट गाँधी, और न जाने क्या क्या बता दिया गया, जनता भी खुश, की चलो अब क्रांति हो के रहेगी, उधर बाबा और इधर अन्ना..
जब इन गिरगिट को लगा की अब सरकार द्वारा प्रायोजित मिडिया से ये मजबूत हो चुके हैं तो बाबा को हाशिये पे डालने के काम शुरू किया, अप्रत्याशित ज्वार भाटीय जनता के समर्थन से इन गिर्गितो का रंग इतना बदला की माहात्व्कंक्षा वश मौके का फायदा उठाने को स्वयं कोंग्रेस के लिए भस्मासुर बन बैठे जो की इनके पोषक थे.
लेकिन बाबा कोई झूट के पुलिंदे पे तो थे नहीं , न ही पूर्ण रूप से मिडिया प्रायोजित . सो सफल न हो सके और जनता भी ये समझने लगी .
अभी हाल में जब अन्ना ने जंतर मंतर पे बाबा को नेयोता दिया तो बाबा अपना समर्थन ले के गए लेकिन जब मामा ने दुबारा रामलीला मैदान में बुलाता तो अन्ना पल्टू उर्फ़ गिरगिट अपने ही वायदे से मुकर गए.
वो जनता जो सरकार के खिलाफ थी वो रे धीरे जनता दो भागो में बंट गयी एक अन्ना समर्थक दूसरा बाबा समर्थक.लेकिन धीरे -धीरे इन दोनों गिरगीटो का सच जनता के सामने आने लगा, तो इन गिरगीटो का जनाधार खोने लगा, तो अरविन्द एक बार फिर अपने पोषक कोंग्रेस से माफ़ी मांगी होगी, और उनके लिए दुबारा भश्मासुर न बनने की कसम खायी होगी.. यानि थूक के चाटा होगा, कोंग्रेस के प्रति अपनी स्वामी भक्ति दुबारा सिध्ध करने के लिए ये इन गिरगीटो ने एक और रंग बदल घोटालाबाज कोंग्रेस को छोड़ हर मामले में बी जे पी को कोसना शुरू कर दिया. लेकिन इन गिर्गितो को ये नहीं समझ आता की जनता सब देखती है.
इससे फिर इनका जनधार खोना शुरू हो गया. और बाबा के समर्थक यथावत उतने ही है बल्कि इन गिरगीटो को देख और बढ़ गए. जब गिरगिट गैंग को लगा की वो अब बाबा को पछाड़ नहीं सकते तो एक और नाटक खेला, आपसी सर फुट्टवल का.. क्यों ??क्योकि एक बड़ी संख्या में गिरगिट समर्थक इन गिरगीटो का साथ छोड़ समझदारी दिखाते हुए बाबा के पाले में चले गए जिसके कारन था अरविन्द ये जनता अब भी अन्ना को साफ़ सुथरा मानती है, अनजाने में ही सही . तो बचा खुचा जनाधार रोकने के लिए ये एक और रंग बदल आपसी समझौते के तहत खुद ही दो भागो में बंट गए ताकि पल्टू अन्ना के समर्थक कम से बाबा के पाले न जाए जो गिरगिट अरविन्द से खफा है, यानि घर का माल घर में रखने के लिए ये सब नाटक हो रहा है.
मेरा ये कहना गिरगिट और गिरगिट समर्थको को बुरा जरुर लगेगा, वो मुहे गालियाँ दे सकते हैं, या कुतरक, लेकिन हाँ तर्क सहित वो मेरी बात को गलत साबित नहीं कर सकते और इतना तो गिरगिट और गिरगिट समर्थक भी जानते हैं.
जिस केजरीवाल और अन्ना को दो साल पहले तक उसका खुद का मोहल्ला न जानता हो उसे आज पूरा देश जनता है. कैसे ?? सिर्फ और सिर्फ गिरगिट विकास के अध्याय में एक नयी कड़ी जोड़ने के कारन मात्र, अब ध्यान देने योग्य बात ये है की इस नयी प्रजाति को विकसित करने की जरुरत क्या आन पड़ी ??
कई साल तक पहले जमीनी कार्य और जनता में अलख जगाने के बाद बाबा रामदेव ने काली सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की तिथि की घोषणा जून २०११ निर्धारित कर दी तो महीनो पहले से जनता उस दिन का इन्तजार बेसब्री से करने लगी, क्योकि जनता सरकार के काली करतूतों से अजीज आ चुकी थी इसके कई कारन थे, पहला, वेश्यावों के को रखने वालो, ब्लू फिल्म बनाने वालो और अवैध बच्चो के पिता जी, और घोटाले उत्पादक सरकार से जनता तंग आ चुकी थी.. परेशांन थी, हैरान थी, उसको चाहिए था तो किसी का नेतृत्व, ये कमी बाबा राम देव ने पूरी कर दी तिथि घोषणा के साथ.
जमीनी तौर से कई वर्षों से हर प्रकार के देश सेवा करने वाले बाबा रामदेव् ने आन्दोलन से पहले जमीनी रूप से ढेर सारे कार्य कर चाहे वो स्वदेशी हो, योग हो, आयुर्वेद हो, या व्यापार हो शीर्षता हासिल कर जनता मे परबा विश्वाश बना लिया था. जिससे कोंग्रेस के पेट में बल पड़ने लगने, जरूरत थी एन केंन प्रकारेंन किसी भी तरह योग गुरु बाबा रामदेव को नीचे दिखाना, लेकिन ये आसन काम नहीं था और न ही है. तो क्या किया जाए ?? अकबर बीरबल के "रेखा छोटी करो" का सिध्धांत अपना बाबा के बराबर किसी भी इंसान को उस स्तर तक लाया जा सके चाहे वो उस योग्य हो या न हो, इसके लिए मिडिया का खूब इस्तमाल हुआ.
अब देखिये घटना क्रम कितनी तेजी से बदलता है.
बाबा के तिथि घोषणा के बाद है एक ऐसे गुमनाम शक्श को रातो रात भारत की जनता का मसीहा बनाया जाता है जिसको पिछली सुबह तक कोई जानता तक न था, जो शायद किसी महारष्ट्र के अनाम गाँव से था... वास्तव मैंने खुद भी इनका नाम कभी नहीं सुना था, और मेरी ही तह करोड़ो युवावों ने भी, जो महारष्ट्र से नहीं थे.
एक सभा बुलाई, बाबा राम देव को बुलाया, बाबा ने उसका परिचय अन्ना हजारे के नाम से इस देश को कराया. शायद ये सब पहले से सोची समझी योजना थी. शायद इसके पीछे केजरीवाल का दिमाग रहा हो.. केजरीवाल का इतिहास खंगाला जाए तो केजरीवाल वास्तव में बहुत ही महत्वाकाक्षी व्यक्ति रहें है, एक बार इनसे किसी टी वी वाले ने पूछा की अपने सरकारी नौकरी क्यों छोड़ दी, तो इनका जवाब था, यहाँ न नाम है न इज्जत, मुझे और जादा चाहिए ... यानि ये दिल मांगे मोर...
अब अन्ना के लांचिंग के लिए किस पैड का इस्तमाल हों ?? तो इस्तमाल बाबा का किया जो इन के मनसूबे से अनजान थे. उन्होंने सोचा काम देश का है तो एक से भले दो... उन्हें नहीं पता था की जिस भर्ष्टाचार को मिटने के लिए बाबा रामदेव, इन गिरगीटो को अपना आशीर्वाद दे रहे हैं वही दोनों आगे चल के इनके लिए भस्मासुर साबित होंगे. वास्तव में बाबा आज इस देश में किसी भी व्यक्ति से लोकप्रिय है, भारत ही नहीं वरन विदेशो में भी.. चाहे वो गूंगा प्रधान मंत्री हो या भ्रष्ट का कलंक लेने वाला राष्ट्रपति. तो अरविन्द अन्ना को खड़ा आगे कर बाबा को लांचिंग पैड बनाया, और अन्ना हजारे को लांच कराया,
बाबा के द्वारा लांचिंग के बाद अन्ना और टीम को आम जनता जानने लगी तभी आना को जंतर मन्त्र पर बिठा दिया गया, और माया से उनको भारत का हीरो, डुप्लिकेट गाँधी, और न जाने क्या क्या बता दिया गया, जनता भी खुश, की चलो अब क्रांति हो के रहेगी, उधर बाबा और इधर अन्ना..
जब इन गिरगिट को लगा की अब सरकार द्वारा प्रायोजित मिडिया से ये मजबूत हो चुके हैं तो बाबा को हाशिये पे डालने के काम शुरू किया, अप्रत्याशित ज्वार भाटीय जनता के समर्थन से इन गिर्गितो का रंग इतना बदला की माहात्व्कंक्षा वश मौके का फायदा उठाने को स्वयं कोंग्रेस के लिए भस्मासुर बन बैठे जो की इनके पोषक थे.
लेकिन बाबा कोई झूट के पुलिंदे पे तो थे नहीं , न ही पूर्ण रूप से मिडिया प्रायोजित . सो सफल न हो सके और जनता भी ये समझने लगी .
अभी हाल में जब अन्ना ने जंतर मंतर पे बाबा को नेयोता दिया तो बाबा अपना समर्थन ले के गए लेकिन जब मामा ने दुबारा रामलीला मैदान में बुलाता तो अन्ना पल्टू उर्फ़ गिरगिट अपने ही वायदे से मुकर गए.
वो जनता जो सरकार के खिलाफ थी वो रे धीरे जनता दो भागो में बंट गयी एक अन्ना समर्थक दूसरा बाबा समर्थक.लेकिन धीरे -धीरे इन दोनों गिरगीटो का सच जनता के सामने आने लगा, तो इन गिरगीटो का जनाधार खोने लगा, तो अरविन्द एक बार फिर अपने पोषक कोंग्रेस से माफ़ी मांगी होगी, और उनके लिए दुबारा भश्मासुर न बनने की कसम खायी होगी.. यानि थूक के चाटा होगा, कोंग्रेस के प्रति अपनी स्वामी भक्ति दुबारा सिध्ध करने के लिए ये इन गिरगीटो ने एक और रंग बदल घोटालाबाज कोंग्रेस को छोड़ हर मामले में बी जे पी को कोसना शुरू कर दिया. लेकिन इन गिर्गितो को ये नहीं समझ आता की जनता सब देखती है.
इससे फिर इनका जनधार खोना शुरू हो गया. और बाबा के समर्थक यथावत उतने ही है बल्कि इन गिरगीटो को देख और बढ़ गए. जब गिरगिट गैंग को लगा की वो अब बाबा को पछाड़ नहीं सकते तो एक और नाटक खेला, आपसी सर फुट्टवल का.. क्यों ??क्योकि एक बड़ी संख्या में गिरगिट समर्थक इन गिरगीटो का साथ छोड़ समझदारी दिखाते हुए बाबा के पाले में चले गए जिसके कारन था अरविन्द ये जनता अब भी अन्ना को साफ़ सुथरा मानती है, अनजाने में ही सही . तो बचा खुचा जनाधार रोकने के लिए ये एक और रंग बदल आपसी समझौते के तहत खुद ही दो भागो में बंट गए ताकि पल्टू अन्ना के समर्थक कम से बाबा के पाले न जाए जो गिरगिट अरविन्द से खफा है, यानि घर का माल घर में रखने के लिए ये सब नाटक हो रहा है.
अब आईये इनके गिरगिट समर्थको पे, कहा जाता है "संगत से गुण होत है संगत से गुण जात" . गिरगिट गैंग का जिन समर्थको पर जबरजस्त प्रभाव पड़ा वो उनके अन्दर भी गिरगिट वाले गुण आ गए हैं. वास्तव में मानसिक रूप से असहाय हैं, इन बिचारो को ये पता नहीं की दोनों ही कोंग्रेस के लिए काम कर रहे हैं, जिनके समझ में आया वो मेरी तरह इनसे भाग खड़े हुए और जो नहीं समझ पाए वो आज गिरगिट समर्थक बन चुके है जो अपने गिरगिट सरदारों को देखते हुए अपना रंग बदलने पे मजबूर है.
अन्ना और उनकी भूतपूर्व टीम का गिरगीटीया सवभाव उसके अंध समर्थको पर भी पड़ा है.जो कल कहते है मै भी अन्ना, वही आज कह रहे है कौन अन्ना नेता तो अरविन्द है, और जो कल तक जो अरविन्द को बाप मानते थे वो अन्ना के साथ है . इस प्रकार के गुट और उनके समर्थको का मनाना है की देश बहुत सादा है , रंगहीन है, इसलिए हमलोगों ने गिरगिट बन देश के माहौल में रंग भरने की एक छोटी सी कोशिश की है .
अन्ना अरविन्द दोनों की साठ- गाँठ था बाबा के आन्दोलन को दबाने की और इसी योजना नुसार अन्ना का नाटक और दिखावा है अरविन्द से अलग होने के लिए, दोनों अलग हो के सारे देश वासियों के ऊपर काबिज हो कोंग्रेस को सत्ता दिलवाना चाहते है और कुछ नहीं. एक बहुत बड़ा तबका अन्ना गैंग के खिलाफ हो चूका था खासकर अरविन्द को ले के, जिससे इनका आन्दोलन असफल हुआ, उस तबके को अन्ना गैंग अपने व पास वापिस लाने का तय एक षड्यंत्र रच है, ताकि रामदेव से जुड़े लोग अन्ना के बारे में फिर से सकारत्मक सोच सके. एक बात निश्चित है , की आने वाले दिनों में यदि इनका षड्यंत्र सफल हो गया, तो अन्ना अरविन्द फिर एक हो जायेंगे , वैसे आजतक का मेरा कोई भी विश्लेषण गलत नहीं हुआ है ( इक्छुक लोग मेरे पुराने लेख पढ़ ले जो गिरगिट गैंग के ऊपर था ). कभी अन्ना कहता है की की उसका नाम इस्तमाल न किया जाए कभी कहता है वो अरविन्द का प्रचार करता है , यानि गिरगिट प्रवृत्ति अभी उछाल पे है.
टोपी पहनने के लिए बार बार टोपी का "कैप्शन" बदला गया .. कभी मै अन्ना हूँ , कभी मै अरविन्द हूँ , और आज , मै आम आदमी हूँ, अरे भाईओं आपसे एक छोटी सी टोपी तो सम्हलती नहीं ,आप देश कैसे सम्हालोगे ??
अंत में बस एक बात कहना चाहूँगा सच के कड़वाहट को कितना भी झूट के चाशनी में डुबो के रखा जाए कड़वाहट नहीं जाती.
सादर
कमल कुमार सिंह
अन्ना और उनकी भूतपूर्व टीम का गिरगीटीया सवभाव उसके अंध समर्थको पर भी पड़ा है.जो कल कहते है मै भी अन्ना, वही आज कह रहे है कौन अन्ना नेता तो अरविन्द है, और जो कल तक जो अरविन्द को बाप मानते थे वो अन्ना के साथ है . इस प्रकार के गुट और उनके समर्थको का मनाना है की देश बहुत सादा है , रंगहीन है, इसलिए हमलोगों ने गिरगिट बन देश के माहौल में रंग भरने की एक छोटी सी कोशिश की है .
अन्ना अरविन्द दोनों की साठ- गाँठ था बाबा के आन्दोलन को दबाने की और इसी योजना नुसार अन्ना का नाटक और दिखावा है अरविन्द से अलग होने के लिए, दोनों अलग हो के सारे देश वासियों के ऊपर काबिज हो कोंग्रेस को सत्ता दिलवाना चाहते है और कुछ नहीं. एक बहुत बड़ा तबका अन्ना गैंग के खिलाफ हो चूका था खासकर अरविन्द को ले के, जिससे इनका आन्दोलन असफल हुआ, उस तबके को अन्ना गैंग अपने व पास वापिस लाने का तय एक षड्यंत्र रच है, ताकि रामदेव से जुड़े लोग अन्ना के बारे में फिर से सकारत्मक सोच सके. एक बात निश्चित है , की आने वाले दिनों में यदि इनका षड्यंत्र सफल हो गया, तो अन्ना अरविन्द फिर एक हो जायेंगे , वैसे आजतक का मेरा कोई भी विश्लेषण गलत नहीं हुआ है ( इक्छुक लोग मेरे पुराने लेख पढ़ ले जो गिरगिट गैंग के ऊपर था ). कभी अन्ना कहता है की की उसका नाम इस्तमाल न किया जाए कभी कहता है वो अरविन्द का प्रचार करता है , यानि गिरगिट प्रवृत्ति अभी उछाल पे है.
टोपी पहनने के लिए बार बार टोपी का "कैप्शन" बदला गया .. कभी मै अन्ना हूँ , कभी मै अरविन्द हूँ , और आज , मै आम आदमी हूँ, अरे भाईओं आपसे एक छोटी सी टोपी तो सम्हलती नहीं ,आप देश कैसे सम्हालोगे ??
अंत में बस एक बात कहना चाहूँगा सच के कड़वाहट को कितना भी झूट के चाशनी में डुबो के रखा जाए कड़वाहट नहीं जाती.
सादर
कमल कुमार सिंह
2 comments:
' एक बात निश्चित है , की आने वाले दिनों में यदि इनका षड्यंत्र सफल हो गया, तो अन्ना अरविन्द फिर एक हो जायेंगे , वैसे आजतक का मेरा कोई भी विश्लेषण गलत नहीं हुआ है ( इक्छुक लोग मेरे पुराने लेख पढ़ ले जो गिरगिट गैंग के ऊपर था ). कभी अन्ना कहता है की की उसका नाम इस्तमाल न किया जाए कभी कहता है वो अरविन्द का प्रचार करता है है, यानि गिरगिट प्रवृत्ति अभी उछाल पे है."
अरे !भई नारद! क्या रखा है ब्लोगरी में आप भविष्य कथन कहने वाले ही क्यों नहीं बन जाते .इतनी मेहनत ब्लॉग पे करते हो उससे दोगुनी हमें आपकी वर्तनी समझने में करनी पड़ती है .आप भी खुश हम भी खुश .
वीरेंदर जी , अन्ना अरविन्द जैसे लोग थोडा संख्या में और जादा हो जाए तो इस क्षेत्र में भी सुनहरा मौका है :) .. वैसे आपका सुझाव बुरा भी नहीं ... लेकिन मई इसके लिए तैयार भी नहीं ( और हाँ मई अपनी बात से पलटून्गा नहीं ) :)
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