भ्रष्टाचार के मामले मे आज सरकार और उसके गठबंधन हर तरफ से घिरे जा रहे है, धन के चक्कर मे ये सरकार और उसके मंत्री भूल गए की इमानदारी ही नैतिकता रूपी कपडे को मजबूत बनाती है और भ्रस्टाचार चूहा स्टाईल मे इस इमानदारी कुतर डालती है. धन के लालच मे ये सरकार खुद चूहा टाइप भ्रस्टाचार से अपने कपडे कुतरवा के इमानदारी को कमजोर चुकी है जहाँ से इनके मन के काले धब्बे और कारनामे दिखने शुरू हो गए है, इमानदारी का कपडा एक जगह से फटता है तो दूसरे जगह से ढकने की कोशिश कर रही सरकार अपने कारनामे छुपाने मे असफल है तो देल्ही की कुर्सी भी इन्हें पतिता मान तलाक देने का मन बना चूका है. अब ये क्या करे ?? कमासुत खसम चला जायेगा तो फिर इन्हें पूछने वाला कौन ?? ये क्योकि कुर्सी को धर्म नहीं बल्कि खसम से जादा कुछ मानते भी नहीं. ये शायद भूल गए है जो खसम आपकी तीमारीदारी, परवाह इनकी पवित्रता पे करता था, जिसको अब इनके अपवित्र होने का सबूत मिल चुका है, शायद तलाक भी दे सकता है.
साम्प्रदायिकता का कार्ड खेल कोंग्रेस ने सरकार तो बना ली, (अनावश्यक तुष्टिकरण साम्प्रदायिकता का एक निम्नतम रूप है जिससे अलग अलग धर्मो के बीच दूरियाँ बढती है). लेकिन जब मुसलमान भी समझने लगे की हमें तो बेवकूफ बनाया गया, हमारा तो कोई विकास नहीं हुआ, भाषणों सिर्फ आरक्षण, और सुरक्षा के दावे खोखले पड़ने लगे, ऊपर से इनके रोज रोज के घतोत्कछ्छी, डायनासोर टाइप के घोटाले देख जनता पूरी तरह से टूट गयी , पक गयी और पूरा मन २०१४ मे इनके तलाक दिलवाने के वकील भूमिका मे आने लगी तो इनके माथे पे पसीना आने लगा.
और ये पुख्ता जानकारी दिलाई शोशल मिडिया ने, मेंन मिडिया कितना भी चिल्ला ले की वो बिकी हुयी नहीं है लेकिन असलियत सबको मालूम है, कोठे पे बैठी हुयी वेश्या पवित्रता का चाहे जितना दंभ भर ले लेकिन संस्कार से अछूता नहीं रह सकती.
अब ये क्या करें ? तो इन्होने एक तीर से दो निशाना साधा, पहला अपना वोट बैंक साधने का और दूसरा शोशल मिडिया पे लगाम लगाने का. मजे की बात ये है की वोट साधने का काम भी शोशल मिडिया से ही करवाया.
हर पतिता को मालूम होता है की उसका भांडा एक दिन फूट जायेगा, सो वो पहले ही आपातकालीन परिस्थिति मे एक विश्वशनीय गवाह तैयार कर लेती है, अब गवाह किसको बनाए जिससे खसम को एहसास कराया जा सके की ये अभी भी विश्वनीय और पवित्र है ?? जिस साम्प्रदायिकता का कार्ड खेल एक खास कौम को अपना गवाह बनाया था वो समझदार हो चला था, इनको पता था अबकी बार ये साथ न देंगे, सो बंगलादेशियो को पहले ही तैयार कर रखा था.
नियत समय पर शुरू कर दिया अपना खेल, करवा दिया दंगा आसाम मे, जिसमे लाखो लोग बेघर हो गए, इनको पता था की जनता हमारे मिडिया पे भरोसा करे या न करे लेकिन शोशल मिडिया तक ये बाते हर जगह पहुच जायेगी, जिससे देश मे अशंतोस फैलेगा, और फैला भी.. आखिर विदेशियों को अपने जमीन पे खुरापात करते कौन देखना चाहेगा ?? इससे होगा ये जो मुसलमान समझदार हो इनका साथ छोड़ इनके साथ हो गए थे वो एक बार फिर से भयभीत हो जायेंगे, और उनका ध्रुवीकरण एक बार फिर से इनकी तरफ हो सकता है, दूसरे ये शोशल मिडिया को आड़े हाथ ले सकते है.
फिर असम, म्यामार और बर्मा के समर्थन मे मुंबई मे रैली निकलवा फिर हिंसा करवाई क्योकि सिरफिरे लोग हर कौम मे होते है और जब हजारों नेता ही पैसो के लिए कुछ भी करने को तैयार है तो २० -२५ हजार भाड़े के टट्टू जुटा के ये सब करना कौन सी बड़ी बात है ?? और ये जरुरी तो नहीं की मुंबई दंगे मे हर टोपी पहनने वाला मुसलमान ही रहा हो या हो भी सकता है, जिसका जिम्मेदार मै सीधे सीधे सरकार को मानता हूँ नहीं तो कोई कारण नहीं था शहीद स्मारक तोडने वाले आतंकी को जब मुंबई के "डी सी पी" ने पकड़ा तो कमिश्नर ने उनको भी धमका दिया जैसे वो "डी सी पि" नहीं बल्कि कोई चपरासी हो. और ये भी ध्यान देने योग्य बात है की दोनों ही दंगा कोंग्रेस शासित प्रदेशो मे हुए जिससे ये पुख्ता हो जाता है की "सरकार का हाथ इन आतंकियों के साथ". फिर मुसलमान सोचने लगेंगे की ये सरकार हमारे गुनाहों पे कितना पर्दा डालती है, इनसे अच्छा हमारे लिए कोई हो ही नहीं सकता.(मुसलमान भाईयो सावधान ये सब आपको बरगलाने के लिए किया जा रहा है और हिन्दुओ को भड़काने के लिए).
ध्यान देने योग्य बात ये है की कुछ भी मेंन मिडिया मे जानबूझकर नहीं दिखाया जा रहा था ताकि हिन्दुओ मे अशंतोश फैले जिससे इनका आधा काम हो गया दूसरा की फिर ये बाते शोशल मिडिया से जन जन तक पहुचेंगी जिससे ये बहाना ले के शोशल मिडिया पे नकेल कस सकेंगे जो आज इनकी सबसे बड़ी दुश्मन है.
अब इनका अगला पड़ाव था विपक्ष पे निशाना साधना, सो कर्णाटक मे कौन जाने अफवाह भी इन्ही के गुर्गो ने फैलाई हो ??ताकि हिंदू भी भडके की ये सरकार भी ठीक नहीं ताकि कुछ हिन्दुवो का भी ध्रुवीकरण इनकी तरफ हो सके. यहाँ गौर काने लायक बात ये है राज्य सरकार के (जो की केन्द्रीय सरकार की विपक्षी पार्टी है ) कोई कदम उठाने से पूर्व ही कोंग्रेस सरकार ने बैंलोर से कई ट्रेने चलवा दी, ताकि बंगलौर मे इन्ही के द्वारा फैलाई अफवाह पुख्ता हो जाये, लोग दहशत मे आ जाये. बजाय की शांति बहाल करने मे राज्य सरकार का साथ देने इन्होने अफवाहों को पुख्ता ट्रेने चला अफवाहों को पुख्ता करना जरुरी समझा.
फिर हैदराबाद के संसद मे एक सांप्रदायिक सांसद का साम्प्रदायिक बयांन, यहाँ भी ध्यान देने योग्य बात ये है की यहाँ भी कोंग्रेस की ही सरकार है.
इसका परिणाम ये हुआ की देश भर मे असमिस भाईयो के मन मे असुरक्षा की भावना पैदा हो गयी और वो पलायन करने लगे,
इन सब कांडो से देश भर के मुसलमानों मे भी अशंतोश आ गया की शायद अब गाज उनपे भी गिरने वाली है या कौन जाने वहाँ भी किसी ने उनको भडकाया हो, क्योकि आज देश मे मुसलमानों को गलत राह पे ले जाने वाले इनके धर्म गुरु ही है, जब इनके धर्मगुरु गुस्से मे अपनी एक आँख बंद और मुह टेढा करके ये कहते है की अब तुम एक हो जाओ तुम सुरक्षित नहीं तो जाहिराना तौर पर इनपर दिमागी असर तो होता ही है. क्योकि जिसको हम अपना बड़ा मानते है , पथ प्रदर्शक मानते है उस पर विश्वाश भी करते है, अब ये तो उस पथ प्रदर्शक पे निर्भर करता है की वो पथभ्रष्ट न हो, लेकिन आज के ९९% मौलवी नेतावो के चंगुल मे है और उनके लिए कार्य करते दिखाई पड़ते है, ये सब बाते तब पुख्ता हो जाती है जब इमाम भुखारी जैसे लोग मुलायम के पास अपने दामाद के लिए टिकट लेने पहुच जाते है. अब आज दिनांक १७ अगस्त २०१२ को लखनऊ मे भी उसी खास समुदाय द्वारा हिंसा करवाई गयी, फिर कानपुर मे, फिर अलाहाबाद मे कर्फुयु और मजे की बात ये की ये भी टी वी पे नहीं दिखाया जा रहा, जाहिर सी बात है की बाते भी शोशल मिडिया द्वरा ही जनता मै फैलेगी और फिर ये सरकार योजनानुसार इस सूचना साधन को भडकाऊ घोषित कर लगाम लगाने की कोशिश करेगी.
इन सारी बातो से अलग एक आबत प और ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा की उत्तर प्रदेश मे भी कोंग्रेस समर्थक की ही सरकार है, अब आप खुद विश्लेषण कर लीजिए, और मान भी लीजिए की अब आगे जहाँ जहाँ भी दंगे होंगे वो कोंग्रेस शाषित राज्य ही होंगे ताकि मुसलमानों के वोटो का ध्रुवीकरण हो सके, शायद ही अपने दिमाग पे किसी ने जोर दे के सोचा हो की, मध्यप्रदेश, गोवा, कर्नाटक, बंगाल, और गैर कोंग्रेसी राज्यों मे क्यों नहीं हो रहे ? हाँ अब यदि आगे होते है तो ये भी इन्ही की कोई चाल होगी.
सरकार एक तीर से कई निशाने साध रही है.. वोटो का ध्रुवीकरण, शोशल मिडिया पे लगाम, और घोटालों पर से जनता ध्यान हटा साम्प्रदायिकता की आग झोकना. लेकिन इसकी सबसे जादा त्रासदी कौन झेलेगा ?? सिर्फ और सिर्फ मुसलमान, उनको एक बार फिर से शक कि नजरो से देखे जाने लायक बना सरकार मन ही मन खूब खुश होगी क्योकि धार्मिक विभाजन के खाई मे ही ये अपने दुश्मनों को धकेल सकते है, खाई के बीच यदि कोई पुल बनायेंगे तो नुक्सान सरकार का ही है..
हिंदू एक बार फिर से किसी आशंका से ग्रस्त हो इनसे नफरत करने लगेंगे, और भगवान न करे कुछ हुआ तो एक बार फिर पूरा देश असम की आग मे जलने लगेगा.
अतः मुसलमानों से निवेदन है धैर्य बनाए रखे गलत को गलत कहने की ताकत लाईये चाहे वो कोई भी हो, किसी भी मुल्ले मौलवी के बहकावे मे न आये, क्योकि टारगेट आप ही है, और साधक सरकार के "साधन" भी, सरकार भी यही चाहती है की कुसूरवार भी आप ही को बनाया जाये लेकिन साधक के साधना के बाद जब सिध्धि प्राप्त हो जाए.
सादर
कमल कुमर सिंह
१७/ अगस्त २०१२ .
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बात तो सोचने वाली है।
लगे हाथ आपको बता दूं कि ब्लॉगर्स के नाम महामहिम राज्यपाल जी का संदेश आया है। क्या पढ़ा आपने?
bilkul sahi kaha aapne kamal bhai.
bilkul sahi kaha aapne kamal bhai.
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