अभी अभी मै प्रधानमन्त्री जी का भाषण सुन रहा था , हमारे आदरणीय प्रधानमन्त्री, जो बुध्धि और व्यक्तित्व मे अतिविकसित रोबोट को पीछे कर रखा है, ने घोषणा की, कि पुरे देश मे स्किल डेवलपमेंट योजना चलाई जायेगी, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ा हो सके और यह योजना बहुत बड़ी और भव्य होगी.
पहली बात ये स्किल डेवलपमेंट योजना का असली फायदा कौन उठाएगा ??? जनता या मंत्री ???
यदि योजना बड़ी होगी तो स्किल जनता का कम मंत्रियो का जादा बढेगा, मंत्रियो का "परम्परागत स्किल" जनता भी "इन्तजार धैर्य और अगले वादे " सुनने की स्किल मे इजाफा जरुर कर लेगी .
तब इस योजना का फायदा क्या??जनता तो वैसे भी धैर्य और इन्तजार के स्किल मे परफेक्ट है, और मंत्री,नेता का भी परम्परागत स्किल का फिगर भी फिट है, जो की संसद रूपी जिम जाने से हुआ है.
हाँ एक फायदा होगा, अगले साल फिर इस योजना लागू करने के श्रेय लाल किले से खुद ले सकते हैं अपने "परम्परागत मौलिक मौन स्किल " को कम करते हुए.
जनता सुनना चाहती थी की असम के दंगे, और मुंबई के पचास हजार मुसलमानों को क्या सन्देश देंगे ?? या देश को शेखुलर से सेकुलर बनाने के लिए क्या कदम होगा ?? कम कम से मैंने तो यही सोच के टी वी खोला था ?? क्योकि एक आदमी जिसके पास जरा भी बुध्धि है उसे पता है की ये सारी योजनाये मंत्रियो के स्किल का निर्माण करती है, और इसी स्किल से वो शेखुलारिज्म (सेकुलर्जिम नहीं) फैलाते हैं.
लेकिन वास्तव मे एसी चीजों की आशा रखना हम जैसो की गलती है, क्योकि वो गलतियाँ मुसलमानों ने की है हिन्दुवो ने नहीं.,. जो उनके मुखांगो से इसके बारे मे निकले. यही जो ५० हजार तो छोड़ा जनाब सिर्फ सौ पचास हिंदू ऐसा कुछ करता तो तो जरा अंदाजा लगाईये क्या क्या हो सकता था ?? सारे संघटन एक होके भगवा आतंकवाद का नारा दे देते, सारे हिन्दुओ को आतंकवादी और नफरत बढ़ाने वाला घोषित कर दिया जाता ," कट्टर हिंदू " होने का तमगा दे दिया जाता, अब इनको कौन समझाए हिंदू जब भी कट्टर होगा उसकी सहिष्णुता बढाती जायेगी क्योकि हिंदू धर्म यही कहता है "सर्व धर्म सामान " यानि जो हिंदू जितना कट्टर होगा होगा वो उतना ही सहिष्णु होगा, मुसलमान तो बाद मे पहले अपने ही "शेखुलर" सीना पिटने आ जाते ... और मजे की बात ये है आज भी मुंबई और असम पे ये शेकुलर लेखक कुछ नहीं बोलते न लिखते बल्कि जो निंदा करता या लिखता मिल रहा है उसकी निंदा कारते हुए दलीले दे रहे हैं की नफरत न फैलाओ .. समझ नहीं आता इनकी सोच पे हँसू या रोऊ ?? ...वैसे भी कहा जाता है जहाँ प्यार होता है वहाँ नफरत भी होती है, और जहाँ नफरत वहाँ प्यार. शायद उनकी भी सोच यही हो.
अपने प्रधान मंत्री इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है, की दंगा हो रहा है, तो सद्भावना के लिए, क्योकि चक्र पलटता है, सद्भावना फैलाने के लिए तो देश मे तो काफी दंगे हो ही रहे थे, चाहे कोसीकला का मुसलमानों द्वारा बाल्त्कार से शुरी की हो या प्रताप गढ़ या बरेली के शिव कावरियो पे मुसलमाओ का हमला, कोई टेंशन नहीं जहाँ नफरत होती है प्यार भी अपने आप हो जायेगा, लेकिन अपनी सरकार भारत के अलावा दूसरे देशो से भी अच्छे सम्बन्ध रखना चाहती है, पडोसी बंगला देश था तो सोचा इन्ही से संबंध सुधार की शुरुवात की जाय, सो बुला बुला के दंगा करना शुरू किया, आखिर जहाँ नफरत है प्यार भी वही होगा..तो असम का दंगा पड़ोसी देशो से संबंध सुधार के एक अंग है. पाकिस्तान से तो पहले ही शुरुवात कर दी गयी है.
भ्रस्टाचार का भी मुद्दा गायब ही रखा, पिछले सालो मे कई बड़े आन्दोलन हुए बाबा के नेतृत्व मे, लेकिन ये भी मनमोहन जी की स्किल बड़ा गया, "मौलिक मौन स्किल".
या कौन जाने ये सोचा हो की "भ्रष्टाचार" तो अपने घर की बात है, इसको पब्लिक मे उछलना ठीक नहीं , कोई भी अपने घर की इज्जत बाहर नहीं उछलता.
काला धन पर भी चुप रहे, काला धन ?? ये क्या होता है ? अरे धन भी कही काला होता है ? धन तो बस धन होता है, अबला के पास हो तो काला और सबला के पास हो तो सफ़ेद.. और ये ध्यान रखे की नोटों पे गांधी जी का चित्र होता है जिन्होंने अफ्रीका के कालो के लिए लड़ाई लड़ी थी, जिसका कुछ प्रभाव भारतीय नोटों पे उनका चित्र छपने की वहज से आ ही गया तो इतना हल्ला क्यों ??, उलटे कलाधन को कालों के लिए संघर्ष का धन मानना चाहिए, आखिर यही संघर्ष धन तो चुनावो के समय संघर्ष करने के काम आता है.
अब आईये प्रधान मंत्री के स्किल डेवलपमेंट पे, किस तरह का स्किल बढ़ाएंगे ?? कहीं पॉकेटमार भी न आन्दोलन कर दे की हमारे लिए उन्नत यंत्र मंगवाओ, आजादी के पैंसठ सालो बाद भी हमें पाकेट मारने चोरी करने मे दिक्कत आती है, डाकू समूह मांगो को पूरा करेंगे?? वैसे काफी हद तक कर दिया है, डाकुओ मओवादियो को मुख्य धारा मे लाया जा रहा है , नौकरिया दी जा रही है, और देश का रिटायर्ड बुजुर्ग पेंशन तक के लिए दर दर की ठोकर खा रहा है. ऐसे बुजुर्गो को पैरागोन के चप्पल दे के शायद चक्कर लगवाने की स्किल डेवलप करवाई जाए या इमानदारी लाने के लिए देश का टाटा नमक सबको खिलवाया जाए.. कम से कम संसद कैंटीन के भोजनो मे तो इसका इस्तमाल जरुरी करवाया जाए.
अब इन्तजार है लाल किले से अगले साल के भाषण का...
नमस्कार .
सादर कमल
2 comments:
करदाता के नोट से, वोट खरीदें जात |
जात-पांत का दांव चल, ये सरकार बनात |
ये सरकार बनात, समझ के माल बाप का |
देते खर्च दिखाय, खाय के नोट पाप का |
देते जमा कराय, विदेशी बैंकों में जब |
करिहैं कब अकुलाय, क्रान्ति यह जनता या रब ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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