पता नहीं इस हालत मे मुझे इस तरह के लेख लिखना चाहिए या नहीं, यदि मै लिख रहा हूँ तो इसका मतलब ये भी नहीं की जो कुछ भी असम के भाईयो के साथ हो रहा है मै उससे सहमत हू, या निंदा नहीं करता हूँ. जो कुछ भी हो रहा है वो बिलकुल निंदनीय है खासकर की तब जब ये सब विदेशी विस्थापितों के कारण हो, और उससे भी निंदनीय ये कि इन विस्थापितों के समर्थन मे कोई भारतीय कौम आ जाता है, और हद तो तब हो जाती है, जब हैदराबाद का एक सांसद अकबरुद्दीन ओवेसी आतंकी मुद्रा मे हिंसा होने की वकालत करता है, जो की एक निनांत असामाजिक और वृहद सांप्रदायिक है, और इन सबसे बढ़ कर निंदनीय की इन्ही के कौम के जो ये जुमले बोलते हैं "वो भटके हुए है "उनके विरोध मे सडको पे नहीं उतरते जबकि उनके मजहब ही बात हो तो शहीद स्मारक तोडने से भी नहीं चुकते.
मामले की लीपापोती करने के लिए सरकार और मिडिया ने बढ़िया शब्द इजाद किया है, "अफवाह" यानि अफवाह की परिभाषा ही बादल गयी है, अब यदि कोई कहे दंगाई कौम ने शहीद स्मारक तोड़ा तो क्या अफवाह है ?? यदि कोई कहे दंगाई कौम ने गाडी फूंकी तो क्या ये अफवाह है ?? यदि कोई कहे दंगाई कौम ने पुलिस महिलाओं के साथ अभद्रता किया तो क्या अफवाह है ?? यदि कोई कहे दंगाई कौम ने मिडिया को निशाना बनाया तो क्या अफवाह है ?? असम का प्रायोजित दंगा बांग्लादेशी मुसलमानों की वजह से है क्या ये अफवाह है ? हैदराबाद मे १४ अगस्त को पाकिस्तानी झंडा फहराया जाता है क्या ये अफवाह है?? बरेली मे शिव कावडियो पर दंगाई कौम द्वरा हमला क्या अफवाह है ?? अकबरुद्दीन ओवेसी आतंकी मुद्रा मे हिंसा होने की वकालत करता हैक्या ये अफवाह है ??? आखिर आप किन किन चीजों को अफवाह कह के झुठला सकते है ??? या आप जो फैला रहे हैं वो खुद अफवाह है ?? खैर इसका जवाब मिडिया या सरकार शायद ही दे पाए.
अब सच्चाई को अफवाह का नाम दे कर सच्चाई को वाष्पित कर भाईचारा रूपी आसमान मे विलय कर दिया जायेगा जो की कोरी कल्पना है, वाष्प कभी आसमान छू पाया है ?? बल्कि आधे रस्ते से ही वापिस आ जाता है , ये कितना भी झूठ को वाष्पित करने की कोशिश करे सच तो सच है.
दंगा एक बदबू की तरह होता है, जो फैलाता कोई है और तेजी से बढता हुआ सबके नथुनों तक पहुच जाता है यहाँ तक उसके पास भी जो भाई चारा डीओडेंट्र लगाया हुआ है जो की सिर्फ एक के बदन पर ही चिपका रह जाता है.
आज स्थिति इतनी भयावह हो गयी की असम के भाई बंधू दंगाई कौम से डर कर हदस गए, और पलायन जारी है.. आज शायद इन असम के भाईयो को भी समझ आ रहा होगा की ये स्थिति कितनी दुखदायक होती है, कितन पीड़ा दायक होती है , इस तरह का जिल्लत तिरस्कार झेलना कितनी बड़ी त्रासदी होती है ये या तो असम के भाई बहन जान सकते है या वो उत्तर भारतीय / हिंदी भाषी जिनको इन असम के बंधुओ ने कुछ वर्ष पूर्व पलायन करने पर मजबूर कर दिया था, चाहे कारण कुछ भी रहा हो.
किसी ने ठीक कहा है "जा के पावँ न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई" कारण कुछ भी हो.
1 comment:
दक्खिन में भी है शुरू, पूरब का संग्राम |
मारकाट कसके मचा, होता चक्का जाम |
होता चक्का जाम, असम से गए भगाए |
हिंदीभाषी कई, भूलते नहीं भुलाए |
आज असम के लोग, वही वापस पाते हैं |
किये कर्म ले भोग, बिरादर हम आते हैं ||
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