संसद के साथ साल पुरे होने पर सबको बधाई, इश्वर कि महिमा देखिये सांसद के साठ साल और मात्र दिवस दोनों एक ही दिन पड़ा, आज देखा जाए तो दोनों कि ही हालत एक जैसी है, जो संसद नेतावों को मंत्री बनाता है वही मंत्री संसद का मान हरण कर लेते है, वही दूसरी ओर जो माता अपने बच्चे को पलती है बड़ा करती है पुत्र उसी को हाशिए पे डाल देते है. तो ईश्वर ने भी सोचा इस बार दोनो दिन का टांका एक ही दिन फिट कर देते है. संसद में सांसद और आभासी दुनिया में लोगो ने साठ साल के माँ कि खूब समीक्षा कि, यदि तुलना कि जाए तो संसद और माँ कि समीक्षा एक ही तरह कि थी.
१. संसद के साठ साल पूरा होने पर सबको बधाई/ मात्र दिवस पर सबको बधाई.
२. संसद सर्वोपरि है हम उसका सम्मान करते हैं/ माता सर्वप्रथम है हम उसका सम्मान करते हैं.
३. कुछ लोग संसद का सम्मान हरण करना चाहते है / कुछ लोग अपनी अपनी शादियाँ कर के मातावों के सम्मान पर कुठाराघात करना चाहते हैं.
४. हम जनता द्वारा संसद में चुनकर आये हैं इस तरह से कोई बाहरी हम पर अंगुली नहीं उठा सकता / हमारी माता ने हमको पैदा किया हम उसके साठ कुछ भी करे कोई बाहरी कौन होता है कुछ भी कहने सुनने वाला.
५. हमें इस बात का संज्ञान लेना होना कि आगे से संसद कि गरिमा पे कोई अंगुली न उठाये चाहे सांसद कुछ भी करें / हम अपने माता के साठ के कुछ करे कोई कौन होता है कुछ बोलने वाला.
६. हम संसद में सोये, जगे उससे क्या संसद हमारी है / हम अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करे या न करे, आखिर हमारी माता है.
७. बुद्ध जीवियों ने भी दोनों कि समीक्षा अपने अपने तरीके से लेकिन एक ही कि.
सब मिला के देखा जाए तो माँ और संसद कि स्थिति एक ही है, दोनों अपने बच्चो को बेहतर देखना चाहती है, लेकिन बच्चे दोनों को ही गच्चा देते देखे जा रहें हैं ( कुछ एक को छोड़ कर).
दोनों कि स्थिति पे सब घड़ियाली आँसू रोते हैं, हलाकि स्थिति कुछ दूसरी होती है.
अंत में सबसे खास बात, दोनों पे चिंता किसी एक खास दिन ही व्यक्त कि जाती है, क्या हम पुरे साल माँ और संसद दोनों कि गरिमा का ख्याल नहीं रख सकते ????
1 comment:
बढ़िया तुलनात्मक विवरण |
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