नारद: राष्ट्रपति चुनाव : सट्टा बाजार का नया आयाम:

Wednesday, June 13, 2012

राष्ट्रपति चुनाव : सट्टा बाजार का नया आयाम:



सट्टा, आज रोमांच और डर का एक पर्याय बन चूका है, रोमांच इसलिए दिल उसी प्रकार धडकता है जैसे प्रस्ताव प्रेषित करने वाले प्रेमी का , डर इसलिए कि कही उसका प्रेम हार न जाए. 

ग्लोबलाईजेशन कि इस दौर मे सट्टा बाजार अपनी पैठ हर जगह बना चूका है, चाहे वो क्रिकेट हो या राजीनीति. एक बच्चे कि पैदा होते ही माँ बाप उस पर सट्टा लगाते हैं, सहारा बनेगा या नहीं, फिर दिल के तसल्ली देने के लिए कहते पाए जाते  "पूत सपूत तो का धन संचय, पूत  कपूत तो का धन संचय"  सारा पूत पे लगा दो बाद मे सूत मिलेगा, चल गया ठीक नहीं तो  तब तक जिंदगी कि  निपटानावस्था तो हो ही चुकी होगी.  बड़ा होने पे पुत्र और पुत्रवधू (वास्तव मे "पुत्र वधि" होना चाहिए - शब्दावली मे परिवर्तन कि आवश्यकता है ) माँ बाप पे सट्टा लगाते हैं, खुश हो गए तो सब नाम कर देंगे. 

जिस तरह से रोटियों के लिए बिल्लियों को  संशय मे  लड़ते देख बन्दर अपनी पैठ बना उल्लू सीधा कर लेता है, उसी प्रकार जहाँ भी संशय हो सट्टा चुपचाप कब्ज़ा जमा लेता है. 

जनता को दिखने के लिए आज तक सरकार ने समस्यायों का राजनीतिकरण तो किया है सिवाए सट्टा समस्या के, जरा सोचिये जो सरकार समस्यायों का राजनीतिकरण करती है यदि उसी सरकार के राजनीति के समस्या का सट्टा करण हो जाए तो कैसा होगा ?? 

देखा जाए तो बुरा भी नहीं लगता सुनने मे, राजनीति से सत्ता, या सट्टे से राजनीति फिर सत्ता. लग रहा है न जुड़वाँ भाईयों कि तरह??? 

वैसे अमर सिंह टाइप के लोग इस प्रथा कि बीज कोंग्रेस के खेत मे काफी पहले बो सके हैं लेकिन इसका शेयर आम पब्लिक के लिए ओपन नहीं था जैसे क्रिकेट या अन्य खेलो मे होता है.  

इस प्रकार के सट्टे मे मे जनता कि अनदेखी कर सिर्फ अपना लाभ कमाया जाता है. यदि भारतीय राजीनीति का भी सट्टाकरण हो जाए जो आम जनता के लिए भी उपलब्ध हो, तो सोचिये रोमांच किस हद तक बढ़ जाएगा ??  और जनता कि भागीदारी भी सुनिचित हो जायेगी कम से कम उस  लखपति -करोड़पति जनता कि जो  धूप कि वजह से वोट देने मे अपनी भागीदारी नहीं निभा पाता उसके लिए ये एक वाईल्ड  कार्ड इंट्री कि तरह होगा. और जो मध्यम  तबके के लोग है वो भी अपने पुरुशार्थानुसार भागीदारी ले सकते हैं.   इस प्रकार भारतीय राजनीति सच्चे अर्थो मे लोकतंत्र का आईना कहलायेगा.  

भारत मे राष्ट्रपति पद का चुनावी जंग भी बड़ा रोमांचक और संशय पूर्ण लग रहा है, कभी मुल्ला यम , ममतामयी ममता कि छाँव मे जाते हैं, तो कभी ममतामयी ममता मुल्ला यम के ऊपर वात्सल्य उडेलती नजर आती है, लेकिन इसमें जनता का क्या ??  वो बिचारी  बस सुबह शाम माँ -बेटे कि लाडला फिल्म का खबरिया चैनलों पे आनंद उठा सकती है . 

मै तो कहता हूँ कि राजीनीति का सट्टाकरण होना ही चाहिए, सोचिये क्या माहौल होगा ?? 

प्रणव का भाव सौ  पे तीन , हामिद पे पचास,  मंदमोहन अपने भावनिर्धारण के लिए सोनियान्मुख हुआ करेंगे,
जहाँ ममता -मुल्ल्यम बुकि अपने अपने जूनियर बुकियों (कार्यकर्त्ता) के द्वारा जनता से सीधे मसौदा तय किया करेंगे..  बड़े बड़े बुकि चेहेतो को पद दिलाने के लिए नेतावो कि खरीद फरोख्त आधिकारिक तौर पे किया करेंगे ( आई पी एल के क्रिकेटरों कि तरह), और यदि इसमें कोई पी ए  संगमा जैसा प्रतयाशी भी जीत जाए तो भी किसी पार्टी को कोई मलाल नहीं, धंधा लाल जो हो चूका है.  

ऐसे मे हाशिए पे पड़े दिग्गी टाइप के नेता भी बुकि बन कुछ रोजगार तो हासिल कर ही सकते है ,  और साथ जनता भी कुछ पैसे जोडने के साथ साथ भारतीय वोट व्यवस्था से इतर,  पद व्यवस्था मे भागीदार बन खुद पे गर्व  महसूस कर सकती है जिन्दा रही तो , कहीं पार्टी हार गयी तब भी कोई मलाल नहीं बड़े भागीदारी का सदमा मौत पे खत्म होगा सो सीधे मोक्ष प्राप्ति, जनसँख्या मे सुधार अलग से. 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया - वाला शोल्क एक दम यथार्थ हो जाएगा.  बाबा रामदेव और खूसट अन्ना मुह बाए खड़े रह जायेंगे, क्योकि ये अनशन तो कर सकते हैं अंड संड नहीं. जिससे सरकार कि चिंताए भी कम हो सकेंगी. 

इस तरह से एक दिन भारत एक सुखी देश  बनता जाएगा,  और आने वाले दिनों मे सट्टा निश्चित ही आधिकारिक तौर सपोर्टिंग खेल के रूप मे ,  ओलम्पिक से ले के कामनवेल्थ तक शामिल होता चला जायेगा ..

सादर 

कमल कुमार सिंह 

2 comments:

दीपक बाबा said...

सही व्यंग्य कसा है गुरु

Anonymous said...

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