कोंग्रेसी सांसद फौजिया खान के स्नेही- "हलाल आतंकवादी अबू जिंदाल " |
जब अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान है, या यूँ मान ले अल्लाह गधो पर ही मेहरबान होता है, क्योकि ये जिसपर भी मेहरबान होता है वो सिर्फ चारो तरफ ढेंचू ढेंचू करता है, दुसरे की नहीं सुनता. जिसने भी ये कहावत कही होगी वो किसी न किसी दिन सत्ता पक्ष में जरुर रहा होगा या फिर कोई सेठ रहा होगा जो जिसको सुबह शाम उसका कुत्ता सडको पर घुमाता होगा या कुकरम करने वाला कोई धर्मगुरु.
आजकल स्पेशली हिन्दुस्तान के लिए एक स्पेशल अल्लाह डेपुट हुआ है जिसका नाम सरकार है, कोंग्रेसी सरकार, इस अल्लाह का लोगो के भाग्य का फैसला करने का एक स्पेशल रेंज है -गरीब तबका, पैसे वाले क्षेत्र में इस भगवान् का काम धाम ठप्प हो जाता है, या यूँ कह ले दान दक्षिणा ले अल्लाह खुश हो जाता है. ये भारत भाग्य विधाता टाइप टाइप के स्पेशल आईटम के दो मुह है, एक खाने के एक निकालने के हलाकि है दोनों मुह. सेठ के कई कुत्तो की तरह इनके भी श्वान है जो ये मानते है की न्याय पैसे के हिसाब से होना चाहिए.
१९९३ में संजय दत्त को अवैध हथियारों के मामले गिरफ्तार किया गया, जिसमे साफ़ था की संजय दत्त के घर में किसी ने अनजाने में नहीं रखा बल्कि संजय के शौक का इसमें पूरा हाथ था. जबकि जेब्बुनिशा के घर में यही हथियार कुछ दिन तक किसी ने रखा था लेकिन जेब्बुनिशा की मर्जी इसमें थी, ये कहीं साबित नहीं हो सका, न ही उनका या उनके दिमाग या हाथ का किसी तरह के "भाईवाद" या आतंकवाद में शामिल होना पाया गया, उनका गुनाह था तो बस इतना की यह हथियार बस कुछ दिन तक उनके घर में आराम फरमा रहा था. यदि जेब्बुनिशा की यही मात्र गलती है तो बाकियों को क्यों बक्शा जाय ?
हथियार जिन्न की तरह प्रकट तो नहीं हुआ, वह गाडी भी उतनी दोसी है, बाहर से आया तो किसी रास्ते से आया होगा, वह रास्ता भी दोसी है, उन सबपे मुकदमा चलाना चाहिए जिस रास्ते, निर्जीव चीजों से होकर यह हथियार गुजरा, भले उनका कोई रोल न हो, आखिर जेब्बुनिषा का घर भी एक निर्जीव चीज है और सजीव जेबू की इसमें कोई मर्जी नहीं दिखती यहाँ तक की कानून की नजर में भी नहीं सिध्ह हुआ. यदि फिर भी सरकार या कानून इनको दोसी सिर्फ इसलिए मानती है की अनजाने में ही सही हथियार इनके घर में तो पाया गया.
दोस्तों याद है आपको वो कोंग्रेसी सांसद फौजिया खान जिनके घर में कुछ समय के लिए ही सही लेकिन आतंकी अबू जिंदाल था खुद फौजिया ने भी इस बात का माना है लेकिन ये मानने से इनकार कर दिया की उन्हें उसके आतंकी होने की जानकारी थी. अब देखिये फौजिया और जेबुनिषा दोनों अनजान लेकिन एक कानून के गिरफ्त में और एक आजाद शायद आतंकी आईटम हराम, आतंकी हलाल है , फौजिया पर क़ानून और सरकार की आँखे कई कारणों से मूंदे हैं वह यह की फौजिया, इस ७० साला जेबुन्निषा की तरह गरीब नहीं, नहीं फौजिया इस बुजुर्ग की तरह बेबस है, और सबसे बड़ी और अंतिम बात, अरे भाई फौजिया कोंग्रेसी है.
कमल कुमार सिंह
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