नारद: स्वर्ग में धरना

Thursday, May 22, 2014

स्वर्ग में धरना



स्वर्ग के विश्वशनीय एकाउंटेन्ट चित्रगुप्त व्हाट्स एप पे इंद्रा से कुछ निर्देश ले रहे थे, तभी मै नारायण नारायण करते हुए प्रकट हुआ. 

"कैसे आना हुआ मुनिवर? प इस बार के पृथ्वी लोक का टूर कैसा रहा? क्या क्या किया? कहाँ कहाँ घुमे? अब आगे का क्या प्लान है, और ये आपके सर पे टोपी कैसी है? अपने जूड़े को कैसे एडजस्ट किया." चित्रगुप्त ने एक ही सांस में सारे सवाल कर डाले. 

"क्या यार मरदे तुम भी धरनामैन की स्टाईल में एक साथ सवाल करते हो? थोडा पानी पि लिया करो, जवाब तो हम देंगे ही. रही टोपी की बात तो अभी भारत में इसी का चलन है, ये नहीं पहना तो चाहे तुम दानव हो देवता, दानव की श्रेणी में ही आओगे, इज्जत भी कोई चीज है की नहीं? गुंडों से बचना है तो गुंडों जैसे बन जाओ" - आई  रिप्लाईड.. 

लेकिन मुनिवर आपको इसी क्या जरुरत ? चित्रगुप्त शंकाषित पूछे . 

पहले तो मुझे भी जरुरत नहीं समझ आया, पर जिस कोन्फीडेंस से धरनावाल सिर्फ सवाल पूछने के लिए मुह खोलते है, उनका मुह माफिया लेन की तरह है, वन वे, सिर्फ प्रश्न के लिए खुलता है, जवाब के टाईम पे फेविकोल पी के उस कम्पनी से भी चंदा वसूल लेते है की देखि तेरा पिया तो तू धन्य है, मै समझ गया की ब्रम्हा की जी ने कोई गोची किया है, बिना किसी से बताये दसवें अवतार बना के विष्णु जी को ही भेजा है, सो मारे डर के मै मोफ्ल्रावातारा के सिर्फ प्रश्न पूछने के लिए खुलते मुह के सामने मैंने कुछ पूछने के लिए अपना मुह नहीं खोला, हलाकि एसा नहीं था, की मैंने कोशिश नहीं की, एक बार की थी, लेकिन मोफ्ल्रावातर के साथ शव बम की भुत प्रेत मंडली भी है उन्होंने मुझे खूब कूटा, मेरे बाल बिखेर दिए, मेरा सारंगी तोड़ दिया. मुह से फेचकुर फेक्वा दिया, लेकिन अब वो ठहरे प्रभु, मै क्या करता? सो टोपी पहन ली. 

तो आप ब्रम्हा जी से शिकायत क्यों नहीं करते? 

गया था उनके पास, लेकिन उन्होंने इस घटना में अपना हाथ होने से साफ़ इनकार कर दिया. 

फिर ? 

फिर विष्णु जी के पास गया, उन्होंने भी कहा की वो  मै नहीं हु . 

फिर ?

फिर मै दुबारा ब्रम्हा जी के पास गया? तो वो मुझे अपने कार्यशाला ले गए, और एक आलमारी पट को दिखा बोले" जानते हो ये क्या है? ये है दिमाग? शरीर बना हि था की वो बिना दिमाग के भाग लिया, मैंने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन वो भागता रहा, कभी अमरावती, कभी स्वर्ग, वहां जा के  सबको अंट शंट सुनाया. लक्ष्मी को कहा, की आपके पास जो नोट है वो बिना लेखा जोखा का है. 

दूतगण पकड़ने को हुए तो वहां से फिर भगा, नरक में जा के वहां के लोगो को भी डराया, बोले देवतावों के खिलाफ मेरा साथ न दिया तो बिजली पानी बंद कर दूंगा, वो उसके साथ हो लिए, एक बार फिर देव्तावो और असुरो में युध्ध हुआ, एक समय एसा भी आया की जब वो हारने लगा, लेकिन एक बार फिर वह दानव सहित प्रथ्वी पे कुंच कर गया, बाकी तो तुम वही से आ रहे हो, बाकी का तुम बताओ.


हे परम पिताआपका बनाया वो डैमेज पिस अत्यंत आतुर है कुर्सी के लिएलेकिन समस्या ये है की जो यहाँ थीकही एक जगह टिकता नहींकिसी एक कुर्सी पे तशरीफ़ नहीं धरताएसा नहीं की कुर्सियों में किल गड़े पड़े हैंबस भागता रहता है अलग अलग कुर्सियों के लिए मानो म्यूजिकल चेयर खेल रहा हो.  - आई उवाच.

भागना, धरना देना और प्रश्न पूछना उसका अन्तराष्ट्रीय होबी है, खुद कुर्सी पे न हो तो कुर्सी धारक के बजाय विपक्ष से प्रश्न पूछता हैकुर्सी पे हो तो जनता से प्रश्न पूछता है, खुद जनता रहे या नेता रहे या शाशक, वो सदाबहार धरनामुग्ध है, यदि उससे गलती से भी जनता ने प्रश्न पूछ लिया तो उसे अम्बानी का बिकाऊ आइटम कहता है, और दबा के खांसता है हर बात पे, कुछ तो कहते है वो बलगम से पैदा हुआ है इसलिए स्वभावतः खांसता है.  

ओह्ह्ह ऐसा ?? तब अब यमराज ही मदद कर सकते है पृथ्वी वासियों की - ब्रम्हा उवाच . 

फिर क्या हुआ मुनिवर - चित्रगुप्त आस्क्ड.

फिर क्या ब्रम्हज्ञान से यमराज चल दिए अपना सोटा ले के उसको सोटने.

फिर ??

फिर क्या, फिर धरनामैंन गुस्से में आ गया, जिससे मलेशिया वाला विमान गायब हो गया, उसे समुद्र निगल गयी, बोला तू क्या मुझे मारेगा? मुझे कूटने के लिए क्या मेरे ससंदीय क्षेत्र के लोग क्या कम है ? देख यामुवा, ये कूट काट कर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो तुम्हरी क्या औकात है? हम लात - मार -प्रूफ है. और सुनो मै समझ समझ रहा हु, तुम मोदी से मिले हुए हो, इस काम के लिए अदानी ने तुम्हे  भैंसा दिया है, 

फिर क्या ? 

फिर महाराज, उसे तड़ तड़ अपने गुर्गो से उनके गुर्गो को मैसेज करवाया है, अब यहाँ स्वर्ग में आ रहा धरना देने, इसीलिए मै भागा भागा आया ताकि सुचना दे दु.

इतना सुनते है चित्रगुप्त बेहोश हो गए, और मै उनके इलाज के लिए अश्विनी बंधुवो को लाने जा रहा हु . 

सादर 

कमल कुमार सिंह - नारद .

1 comment:

नरेश said...

धरनावाल के ड्रामे की बखिया उधेङता व्यंग्य।
(y)