जगह : मुजफ्फर नगर का एक गाँव,
आयोजन , एक महापंचायत ,
कारन ? : एक शोहदे ने एक लड़की को छेड़ दिया था,हालाकि ये उसका रोज का काम था. लड़की ने ये घटना अपने भाईयों को बताया, भाईयो की उन शोहदों से कुछ कहा सुनी हुयी, मार पिट हुयी. नतीजन, उन शोहदों ने उन दोनों लड़को सचिन और गौरव की पिट पिट कर हत्या कर दी. पीड़ित के माँ बाप पुलिस स्टेशन जाते हैं, पुलिस कोई एक्शन नहीं लेती, वो सिर्फ इसलिए इस शोहदे मुसलमान थे. फिर एक पीड़ित की की तरफ से एक पंचायत करने का विचार हुआ, जिसको प्रशाशन ने रोक दिया. वही जुम्मे की नमाज के बाद मुसलमानों ने पंचायत का आयोजन किया ( ध्यान रहे सारे दंगे जुम्मे की नमाज के बाद ही होते है, क्योकि वह एक उपयुक्त समय होता है एक साथ "अड्डे " पर जुटने का ), जिसमे सरकार के लोग भी शामिल थे . पीड़ित पक्ष को नाराजगी हुयी, फिर उन्होंने भी पंचायत करने की ठानी, अब चुकी प्रशाशन ने "दंगाईयो की पंचायत होने दी थी ,सो वो इसको नहीं रोक पाए.
पंचायत से वापसी के समय , जुम्मे वाली पंचायत ने रंग दिखाया, निहत्थे पीड़ित पक्ष के पंचायती जब लौट रहे थे, तब उन पर अल्लाह के बन्दों ने मस्जिदी आदेश की तामिलो के तौर पर, हमला बोल दिया, हमला ठीक वैसा ही जैसा किसी ज़माने में कह्स्मिर में हुआ था, इस हमले में एके ४७ तक का इस्तमाल हुआ, हिंदुवो को काटकर नाहर में फेका जाने लगा, उस दिन उस नहर में पानी की जगह हिन्दुवों का खून बहा. शायद ये खून अल्लाह के काम आये या न आये लेकिन आजम खान इसी ताक में थे की अपने वोट की खेती इन्ही हिंदुवो के खून से सींचेंगे, मुसलमानों के गुस्से की खाद डालेंगे, फिर फल पकेंगे, और वही चक्र.
लेकिन आजतक वालो ने गुड गोबर कर दिया. अब आजमखान साहब अपना सा मुह ले के कालिख से बचाने की कोशिस कर रह है.
लेकिन इसमें गलती किसकी ? मुसलमानों की ? तो हाँ है, लेकिन इसमें आश्चर्य क्या ? ये उनका स्वभाव है. इसलिए मई उनका कोई दोष नहीं देता.
प्रशाशन की : बिलकुल, लेकिन आश्चर्य होता है, की एसा क्यों ? क्यों कोई प्रह्सश्निक अधिकारी इस तरह की बात मान सकता है , लें शायद उनके भी हाथ में कुछ नहीं रहा होगा, ट्रान्सफर होने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता कम से कम उस स्थान पे .
मिडिया की : सबसे जादा और १००% , मुल्ला- यम की पूत्र की सरकार जब से पुत्तर प्रदेश में आई, तब से कोई छोटे बड़े ५० से भी जादा दंगे हो चुके है. लेकिन मिडिया इसको खाती रही. चुप रही, भगवान् जाने किस सौहार्द्य बिगड़ने के डर से ? और इससे कुरानी फरिश्तो की हिमाकत बड़ी , नतीजा सामने है.
मीडिया आज भी यह नहीं बता रही की की वह ए के ४७ का क्या हुआ ? कहा से बरामद हुआ ? उस पर कोई कार्यवाही हुयी या नहीं ? या मिडिया भी मानती है की समुदाय विशेष के घर में ए के ४७ पाया जाना मामूली घटना है ठीक वैसे है जैसे किसी के घर में चमच्च, कढाई या पौना -कलछुल पाया जाना, यदि मानती तो शायद बताती. लेकिन मिडिया को अछ्छी तरह से मालुम है.
हमें नहीं चाहिए एसा सामजिक सौहार्द्य, नहीं चाहिए हमें भाई चारा जब कीमत सिर्फ एक तरफ़ा चुकानी हो, हर जगह , हर तरह से और हमेशा. क्योकि भाई चारा इंसानों में की जाती है, डाकुवों और आतंकवादियों से नहीं,
पागल कुत्तों ने घात लगा कर शेर को काट लिया है, देखते हैं शेर के पंजे से कब तक बाहर रहता है.
कुछ जादा पढने के लिए डी एन ए का लिंक क्लिक करे .
http://www.dnaindia.com/india/1888043/report-dna-special-jolly-canal-killings-triggered-the-muzaffarnagar-riots
सादर
कमल कुमार सिंह
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