अंग्रेजी में एक कहावत है "Action speaks louder than words" जो सत् प्रतिशत सही है. जिस किशोरावस्था में स्कुल में दुनिया भर के सपने सजाते हैं, बगल वाले से जलते हैं किस उसका नंबर उससे जादा क्यों? उस छोटी उम्र मलाला जैसी किशोरी किसी आम हमउम्र से अलग हट कुछ एसा करती दिखाई देती है जो इस्लामिस्टो की नजर में चुभती है, यहाँ तक इस लड़की के ऊपर हमले भी हुए. जान बचने के बाद भी यह किशोरी बिना किसी दबाव में आये अपने धुन में लगी है. मलाल डे पे सयुंक्त राष्ट्र संघ ने इन्हें आमंत्रित भी किया है.
अब सोचने वाली बात है की इस्लाम इस्लाम चिल्लाने वाले एक तरफ तो अफगान में दुसरे कि संस्कृति नष्ट करते हैं, गया में बम फोड़ते हैं जो इस्लाम के चहरे पर चेचक नुमा कभी न जाने वाले धब्बे हैं, वही दूसरी तरफ मलाला जैसे लोग भी हैं जो इन सब कट्टरवादिता से आगे बढ़ इस्लाम को दिए गए दाग को अनजाने में सही लेकिन चेहरा दरुस्त कर रही है. अनजाने में इसलिए कहाँ की वो कोई काम अपने दिल में इस्लाम को आगे बढाने के उदेश्य से नहीं कर रहीं, पूरी मानवता के लिए कर रही हैं, उनके कार्यो से हर किसी के दिल मीठा सा अहसास होता है, कि काश ये बम फोडू जो अपने आप को इस्लाम के लिए समर्पित कहतें हैं, एसा कुछ क्यों नहीं करते जिससे वास्तव में लगे की वास्तव में इस्लाम बेहतर है. क्या इतने सारे नकारात्मक संगठनों के बावजूद भी मलाल एक सकारात्मक पहचान रहीं है तो इस पर इस्लाम को क्या एतराज या नुक्सान हो सकता है.
जो लोग इंटरनेट पर इस्लाम का बखान करते नहीं चुकते उनके लिए भी ये बड़ा सबक है, जो इस्लाम इस्लाम चिल्लाते हैं, ख़ासकर भारत में इन्हें भोपाल के लोग नहीं दीखते जिन्हें कोंग्रेस सरकार ने एक करारा लेकिन गहरा जख्म दिया है, ८० के दशक में भोपाल गैस काण्ड जिस क्षेत्र में हुआ वहां अधिकतर मुस्लिम बस्तियां ही है, जो आज बस इसलिए जिन्दा ताकि अगले दिन अस्तपाल जा सके. वहां उस क्षेत्र में आप जायेंगे तो आप की रूह काप जाएगी जब आप जिन्दगी को कराहते घसीटते हुए देखेंगे, और आप अपने आप को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानेंगे की आप भोपाल के उस दशक में पैदा नहीं हुए जहाँ कोंग्रेस ने मौत का हाहाकार मचा दिया. लेकिन उनके लिए यहाँ के किसी भी इस्लाम परस्तो का हाथ आगे नहीं बढ़ता. कोंग्रेस को बार बार निशाने पे इसलिए ले रहा हूँ, क्योकि उस समय अर्जुन सिंह वहां के मुख्यमंत्री थे, भोपाल गैस काण्ड के अभ्युक्त "एंडरसन" काण्ड के बाद शाही व्यवस्था में अमेरिका विदा करने में उनका बड़ा हाथ था. हलाकि खबर राजिव गांधी को भी थी. इसके बाद सबसे बड़ा मजाक ये की मुस्लिम जज "अहमदी" जी ने पूरी जी जान लगा दी की अभियुक्तों को कम से कम सजा मिले.
जो लोग इस्लाम का झंडरबरदार बनते है, उनकी नजर बस इंटरनेट पे प्लास्टिक पीटने तक ही सिमित रहती है, बजाय मलाला जैसे लोगो से कुछ सकारात्मक उर्जा लें, एक मलाल जब मुझे मजबूर कर सकती है उनके बारे में लिखने के लिए तो जरा सोचिये यहाँ का १% मुसलमान इस तरह का कमान हाथ में लेले तो उसे नेट पर प्लास्टिक पीटने की कोई जरुरत नहीं रह जाएगी.
हमें मलाला चाहिए, प्लास्टिक पिटवा नहीं .
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (13-07-2013) को समय की कमी ने मार डाला में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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