बनारस शहर यूँ तो साहित्य, संगीत, शिक्षा और अध्यात्म के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ एक बात और है इस शहर में जो इसको पूरी दुनिया से अलग बनता है, वो है इस शहर की मस्ती और अल्ल्हड़पन. जहाँ रिक्शा वाला और रिक्शे पे बैठने वाला दोनों गुरु होता है. "क्या गुरु लंका चलोगे ? " रिक्शा वाला "हा गुरु काहे नहीं ? " .
इसी शहर से दस किलोमीटर दूर एक गाँव है जिसमे हमारा निर्दोष- निश्छल, खुरापाती शिरोमणि जोखुवा रहता था.
उसी गाँव के मुंशी जी बड़े ही धर्म परायण दयावान इंसान थे. सूद पे पैसा बाटना और पूरी निष्ठां से वसूल करना कोई उनसे सीखे. दोनों समय गाँव के शिव मंदिर में जा के पूजाअर्चना करना उनका नित्य काम था साथ को रोज अपनी लिस्ट भी भोले बाबा को पकड़ा आते थे. "इस साल के अंत तक ये कर दें प्रभु, अगले साल तक वो कर दें प्रभु". साथ में शिव के सहयोगी हनुमान जी से लोगो के लिए दया याचना कर देते "हे बजरंग बलि रहमान की तबियत ठीक कर दो". (ताकि मरने से पहले उससे पैसा वसूला जा सके). लोगो को भुत प्रेत बता कर ओझाई कर पैसा वसूलना उनका काम था. और जिसके पास इलाज का पैसा न होता उसको खुद ब्याजी देते. डबल बिजिनस .
रहमान का लड़का फैजल, जोखुआ का परम मित्र था. आ के समस्या बताई, पंडित रोज रोज बाबा को परेशान करता है. फिर क्या था, जोखुवा को उसका नया शिकार और प्रोजेक्ट मिल चूका था. आखिर दोस्त के लिए इतना भी न करेगा ?
दुसरे के खेत का गन्ना अपनी मेंड़ पे लाके चुसना हो या सुबह मंदिर का प्रसाद चट करके निर्दोष भाव से अपनी कहानिया दूसरो को बताना दोनों आपस में बिना सलाह मशवरा के न करते.
एक दिन सुबह सुबह मुंशी जी पूजा पाठ करके वापिस लौट रहे थे.
"क्या चाचा सुबह सुबह किसका ब्याज चढ़ा के आ रहे हो भोले को ? " जोखुवा बोला.
"चुप ससुर के नाती सुबह सुबह प्रेत पता नहीं कहाँ से गया, हे भोले मेरा दिन ठीक कर देना". पंडित जी बिदक के बोले.
" अरे हम प्रेत थोड़े न है , जिस दिन प्रेत को देख लोगे उस दिन ब्याज वाली धोती गीली हो जाएगी " जोखुवा ने फिर चुटकी ली.
" प्रेत भी तुझसे अच्छा होगा, अरे मै हनुमान जी का भक्त हूँ, यदि तू सच्चा वाला प्रेत होता तो तुझे मजा चखा देता." मुंशी जी ने चेतावनी दी.
जाड़े में सूर्य देवता भी ठण्ड से डर कर कुछ जल्द ही अन्ना की रजाई में घुस जाते है. एक शाम जब मुंशी जी भोले- हनुमान गठबंधन को रिश्वत दे के आ रहे थे तो झोखुवा घात लगा के मंदिर के आम वाले पेड़ पर तैनात था.
जैसे ही पेड़ के नीचे से गुजरे एक आवाज आई "मुंशी रुक जा"
"कौन है" मुंशी जी हडबडाये. एक तो शाम का समय ऊपर से आम का घना पेड़, शरीर पर काला पेंट लगाये जोखुवा को लाख कोशिशों के बजाय पंडित देख न पाए .
" मै तेरे घर के नींव वाला भुत हूँ, कुछ दिन में तेरा घर गिर जायेगा और तू मरने वाला है."
अब जो पंडित जी दूसरों का भुत भागते थे वो खुद पसीने से तर बतर हो गए उनको उनके पुरखों ने बताया था की ये घर एतिहासिक है भवन निर्माण के समय इसके नीव में बलि दी गयी थी" मैंने क्या किया प्रभु, "पंडित जी की करुणामयी आवाज निकली .
"सुना है तू हम लोगो को प्रेत कहता है , जो प्रेत तेरे घर की नीव सम्हाले हुए है, उन्ही को बदनाम करता है, मै तुझसे अप्रसन्न हूँ " जोखुआ अपनी हंसी दबा के बोला .
"गलती हो गयी सरकार, अब कभी न बोलूँगा, जैसा आदेश दें वैसा करूँ." पंडित जी अपने स्वभाव अनुसार रिश्वत की तत्काल पेशकश कर दी.
"तो सुन, मंदिर बगल वाले भैरव मंदिर पे रोज २०० रूपये और एक बोतल दारू अगले दो महीनो तक बिना नागा किये भोर के चार बजे चढ़ावा चढ़ा, यदि एक भी दिन नागा हुआ मै तेरी नीव छोड़ के भाग जाऊंगा. इस गाँव के सारे प्रेतों का जिम्मा मै लेता हूँ, वो किसी को कोई कष्ट न देंगे और तू आगे से कभी किसी को बेवकूफ नहीं बनाएगा " जोखुना ने डिमांड बताई.
जिस प्रेत का नाम सुनने के बाद भी पंडित जी अपने को सम्ह्ले हुए थे, डिमांड सुनते ही बेहोश हो गए. लेकिन मरता क्या न करता.
चट जोखुवा पेड़ से उतरा, पंडित के मुह पे पानी मारा, होश आने पर मुंशी जी घबराये की और दौड़ लगा दी, "अरे भाग पठ्ठे, पेड़वा पर भूत हौ"
फिर क्या था अगली सुबह से जोखुवा की शाम की दवा पक्की और जो पैसे थे रहमान चाचा को दे के धीरे धीरे उनका कर्ज उतारा.
अब मुंशी जी ने ओझाई छोड़, कथा बांचना शुरू कर दिया है. पहले से जादा सुखी भी हैं.
सादर
कमल
१५/०३/२०१२
3 comments:
पंडित जी के भूत को, जोखुवा बुझा खूब ।
कारस्तानी कर्ज की, गई ढिठाई डूब ।
गई ढिठाई डूब, फँसे नारद के फन्दे ।
गन्दे धन्धे बन्द, हुए खुश सारे बन्दे ।
जोखुआ को आशीष, करें हम महिमा-मंडित ।
हुवे अधिक खुशहाल, कराते पूजा पंडित ।।
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पंडित जी की ब्याज वाली धोती वाकई गीली हो गयी....
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