१८ साल का एक लड़का अपने ज़माने में एक एक लडकी पे फ़िदा था. अच्छी बात है , इसमें बुरा क्या है ? प्यार और आकर्षण होना इस उम्र में आम बात है. लेकिन दिक्कत ये थी वो कोई भी काम अकेला न करता, थोड़ी थोड़ी सबसे मदद मांगता अकेले की हिम्मत न थी.
दोस्तों क पास गया, समस्या बताई, मित्रों ने मिलकर भागीरथ प्रयास किया तो उसका नाम पता चला, नाम था चंदा (इस नाम की युवतियाँ कृपया संयोग मात्र समझे). जिससे जितना हो सका सहयोग राशि प्रदान की ताकि उस सुंदरी के लिए एक तोहफा आये, खैर ये भी हो गया, बात भी आगे बढ़ गयी, सब सेट हो गया. तो उक्त प्रेमी बालिका को ले के नदारद हो गया.औ र गाज दोस्तों पे पड़ी, काफी कुछ आमतौर वही सब हुआ जो अपराध में साथ देने के मामले में होता है. लड़के पछताते रह गए की हाय रे किस्मत जिसको चंदा के लिए चंदा दिया उसी ने फसा दिया.
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इस मामले से पता चलाताब है की चंदा में कितनी शक्ति थी की चंदा के लिए चंदा देने वाले विपत्ति में और और चंदा के लिए चंदा लेने वाला मजे में, कमोबेश यही हालत आजकल हमारे आस पास भी हो चुकी है.
कुछ संघटन के नाम पे चंदा माँगते हैं कुछ पार्टी के नाम पे चंदा की खूबसूरती में कमी आते ही लोग चंदा को सवारने में लग जाते हैं ताकि धंधा मंदा न पड़े और जब सच्चाई पता लगती है तब तक पैरों से जमीन खिसक चुकी होती. और चंदा देने वाला अपने को ठगा महसूस करता है
चाहे राजनितिक व्यक्ति हो या समाज सेवक चहु और बस चंदा ही चंदा. चंदा का धंधा मंदा पड़ते है लोगो को बुखार आ जाता है, भूख मर जाती है तो लोग अनशन पे उतारू हो जाते है, एक तीर से दो निशाने, चंदा के गम भूख तो लगनी नहीं तो अनशन कर थोडा रास्ता बनाया जाये. इस लिहाज से देखा जाए तो टीम इंडिया के लगातार हारने से बेहतर है की मैच फिक्स कर लिया जाए जब तक सितारे साथ न हो, कुछ न कुछ तो लाभ अवश्य हो जायेगा.
यदि राजनितिक चंदे की बात की जाए तो नेतागण जनता का वोट रूपी चंदा लेके अन्ना की तरह कहाँ गायब हो जाते पता ही नहीं लगता. जीतने के बाद फिर शुरू होता है असली चंदे का खेल. आईये चंदे का प्रभाव कुछ प्रदेशों में देखें.
उत्तर प्रदेश:-कांशीराम की सर्वजन हिताय, सर्वमान्य बहन जी को सांस लेने से लेके सोने तक को चंदा.चाहिए..
बिहार :- नितीश को मिडिया का सहयोग रूपी चंदा चाहिए. वैसे यहाँ के लालू जी जानवरों तक से सहयोग लेने में नहीं हिचकते थे.
झारखंड : मधुकोढा जी चंदा के लिए कोड़ा तक इस्तमाल करते थे बात वो अलग है की सब खोडा हो गया.
छत्तीस गढ़ : रमन रमैनी मनुष्य से ले के जंगल तक किसी को नहीं छोडते.
पंजाब : कप्तान साहब का सहयोग कोंग्रेस की पूरी जमात करती थी.
राजस्थान : मदेरणा को भंवरी का चंदा ( क्या था सबको मालूम है ).
कर्णाटक : जमीन खोद के बलात् चंदा ले लेते हैं भाई.
ये तो हैं कुछ राज्यों की बाते. अब आईये जरा कुछ संघटनो पे प्रकाश डाले.
नवज्योति : समाज कार्य के नाम पे उगाही करना और चंदे का पैसा मार कर दलील देना की वापिस चंदे वाले गुल्लक में डाला जायेगा.
इंडिया अगेंस्ट करप्शन: इनकी तो महिमा अपरम्पार है, ये जनजागरण के नाम पे जनता के इमोशन का चंदा लेते हैं, फिर चक्र्वृध्धि ब्याज की तरह आर्थिक चंदा लेने के बाद खुद सोते हैं. अरविन्द का वोटरलिस्ट में नाम नहीं, अरविन्द नींद में हैं उनको पता नहीं. अन्ना कभी कभार जाग जातें हैं बशर्ते ठण्ड का मौसम न हो.६५ हजार की संपत्ति वाले अन्ना चंदे के बूते न जाने एसी इन्नोवा में यात्रा और महंगे इलाज करा चुके हैं, मनो लगता है उनके लिए रूपये की कीमत अभी भी ५० साल पुरानी वाली है जब ५ किलो चावल ४ रूपये में आता था.
चंदा लेने के लिए सर्वमान डैडी गाँधी (मेरा नहीं -जिसका हो वो संज्ञान ले ) का सहारा लिया. जब तक जनता समझ पाती तब तक मौसम निकल चूका था और मेंढक की भाँती जमीन के दस फूट नीचे घुस चुके थे .
खैर अब ठण्ड का मौसम जा चूका सो आईसी अपने दूकान में एक नया प्रोडक्ट ले के आई है -"राईट तो रिकाल"
अबकी भी देखा जाए जनता से किस प्रकार का कितना चंदा मिलता है, बशर्ते स्थिति उस १८ साल वाले लडके जैसी न हो .
सादर कमल
२९/०२/२०१२
2 comments:
चंदा का धंधा चले, कभी होय न मंद ।
गन्दा बन्दा भी भला, डाले सिक्के चंद ।
डाले सिक्के चंद, बंद फिर करिए नाहीं ।
चूसो नित मकरंद, करो पुरजोर उगाही ।
सर्वेसर्वा मस्त, तोड़ कानूनी फंदा ।
होवे मार्ग प्रशस्त, बटोरो खुलकर चंदा ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
बहुत सार्थक आलेख!
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