नारद: संजय निरुपम पे इतना हंगामा क्यों ?

Friday, December 21, 2012

संजय निरुपम पे इतना हंगामा क्यों ?


आज ये बात कोंग्रेस के ऊपर पूरी तरह चरीतार्थ  होती है, बड़े बुजुर्ग कहते हैं जैसा होगा संग वैसा होगा मन, यह बात  नैतिकवादी कोंग्रेस के नेता संजय  निरुपम  पूरी तरह से सिध्ध करतें हैं. मेरी समझ में नहीं  आ रहा इस पर इतना हंगमा क्यों ? 

आईये पहले मामला समझ ले, ए बी पी  न्युज पर संजय निरुपम ने चुनावी विश्लेषण के दौरान दौरान स्मृति ईरानी पर टिप्पणी की, आप तो टीवी पर ठुमके लगाती थी. और अन्य तरह के गैर राजनितिक हमले किये.  कृपया दिया हुआ दुर्लभ विडिओ देंखे, दुर्लभ इसलिए केवे कोंग्रेस ने अपनी प्रतिभा का उपयोग कर इसको हर जगह से हटा दिया है, बस कुछ लोगो के पास है . 


अब लोग कह रहे हैं संजय ने महिला का अपमान किया है, एसा नहीं होना चाहिए, या-वा, लेकिन क्यों ?क्या लोग ये नहीं जानते की वो कोंगेस पार्टी से हैं. इतना हंगामा क्यों भाई ? ये कोंग्रेस का जन्मसिध्ध अधिकार है. जब  मोदी जब ५० करोड़ की गर्लफ्रेंड बिना व्यक्तिगत टिप्पड़ी किये कहा तो लोगो में हंगमा मचना स्वाभाविक था क्योकि यह उनके स्वभाव के विपरित था. यदि कोई साधू गाली बकने लग जाए, या कोई कवि कठोर ह्रदय हो जाए, या कोई  डाकू साधू हो जाए, अर्थात चरित्र के विपरीत कार्य करने लग जाए तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है. इस पर शायद हंगामा किया जा  सकता है, बहस हो सकती है की एसा कैसे हुआ? लेकिन संजय निरुपम  पर  हंगामा समझ में  नहीं आता, यह तो कोंग्रेस और अपने चरित्र के हिसाब ही बात की थी. मर्यादा तोड़ना, उनका हनन करना, बदजुबानी करना, इज्जत लूटना, इज्जत का सौदा करना, हत्या करना, बाल्तकार करना, किसी चीज का लालच दे के किसी के साथ बिस्तर में सोना कोंग्रेस का एक मात्र अधिकार है इसको आपत्तिजनक नहीं मानना चाहिए. वह आदत ही क्या जो बदल जाए. यह सब कोंग्रेस का आदर्श और यही चरित्र है, जिसको आगे ले जाने के लिए कई नेता कटिबध्ध हैं, संजय निरुपम इनमे से एक हैं. 

इस पर किसी को कोई शंका  सुबह हो तो बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है. कुछ साल पीछे और महीने का इतिहास खंगाल लीजिये. कोंग्रेस के कोंग्रेस को प्रेरणा देने के लिए कई प्रेरणा दायक महापुरुष है जो हाल फिलहाल अपनी  त्याग तपस्या और सद्भावना के लिए भारत भर में  जाने जाते हैं. 

महान मदेरणा 
राजस्थान के मदेरणा ने नर्स के साथ जब अविस्मरणीय फिल्म बना कर शकीला और सनी को पीछे छोड़ दिया  था. बाद में  इस तरह की उम्दा फिल्म कोई न बना सके इसलिए उस नर्स की हत्या भी कर दी गयी थी. पुराने ज़माने में भी कई मुग़ल राजा अपने महल और  इमारते बना मजदूरो के हाथ बस इसलिए काट डालते थे  की उनकी बनवाई चीजे एकमात्र रहे.   

अनोखा खिलाड़ी तिवारी.
 महान खिलाड़ी तिवारी  जी ने जिस  एक पिच पर खेल कर पिच का बेडा गर्क कर  दिया था, बिचारी वह महिला कई सालो तक धुल खाती रही, बाद में किसी तरह कोर्ट ने आदेश दे के मैडल को तिवारी जी के नाम किया. सोचिये हो सकता है कोई इतना महान ? जो अपने मैडल  को देश को दान कर सके? यदि कोर्ट ने अडंगा नहीं लगाया होता तो आज भी तिवारी जी के त्याग का डंका बज रहा होता. 

मनु सिंघवी: 
कुछ दिन पहले ही गांधीवादी और नैतिकवादी कोंग्रेस के नेता "कम" प्रोफ़ेसर एक प्रतियोगी को बिना ज्युडिशियल परीक्षा के जज बनाने का गणित समझा रहे थे. हलाकि की फार्मूला लगा नहीं, जज से पहले प्रोफ़ेसर ही फेल हो गए,  दिखावे के लिए कुछ समय तक के लिए इन्हें नौकरी से ही निकाल दीया गया. लेकिन बाद में गांधीवादी कोंग्रेसियो को समझ आया की इतने बड़े विद्वान को अपने से दूर रखना ठीक नहीं है, इन्ही जैसे प्रोफेसरों  के उच्च ज्ञान द्वारा निर्मित जज  हमें आपदावों  से बचाते आयें  हैं. सो पुनः ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने वापिस बुला लिया है.

काण्ड सम्राट कांडा 
जिस मिडिया ने आपको इतना भला बुरा कहा था, वह मिडिया अचानक चुप हो गयी, आप कहाँ भजन गा रहे हैं किसी को कुछ पता नहीं. खैर, कोंग्रेस में आपका नाम  "काण्डरे"  अछरों में लिखा जाएगा, आप  जेल में भी मजे कर रहें  होंगे यदि होंगे तो तो , खैर आपको जेल में जाना ही नहीं चाहिए था, आप  को देश की कई कम्पनिया अपना आदर्श मानती है.  आपने अपने एयर डूबते एयर लाइन की परवाह किये बिना १० सवारियों  पे १०० एयर होस्टेस रख "कस्टमर सटिस्फैक्शन" को जिस मुकाम पे पहुचाया है वो शायद ही कोई कम्पनी कर पाए, सोचिये रखेगी भला  कोई एयर लाईन १ सवारी पे १० एयर होस्टेस रख सकती है? खैर बाद में आपने भी  अपने वरिष्ठ मदेरणा  की राह पकड़  .. आगे कुछ कहने लायक नहीं है . सब मिला के आपको "कस्टमर केयर" का एतिहासिक सम्मान मिलना चाहिए था, बजाय  की आरोप. 

इसी कड़ी  में संजय जी का भविष्य भी उज्जवल है. अब बताईये जिस पार्टी में इतने महान और "अनुभवी" लोग भरे हो  उस अवस्था में  संजय निरुपम को दोस देना कहाँ तक उचित है ? पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं, संजय जी भी बिग बॉस में खूब रंगरलिया की हुई हैं जिसके वजह से आपको बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा. संजय निरुपम अपने शुरुवाती समय में "फूटपाती पत्रकार" थे. बला साहब के ठाकरे की तेल मालिश करते समय उसमे से बचा तेल खुद अपने शारीर पर मल आप आगे बढे,  लेकिन आप वहां फिट नहीं बैठ रहे थे ,क्योकि आपको आपके टाइप का ही माहौल चाहिए था, "जईसन को तईसन सजे, सजे नीच को नीच", आपको कोंग्रेस  आपके चरित्र के अनुसार उपयुक्त लगा और आप कोंग्रेस की सदस्यता  स्वीकार कर बैठे. जिसकी अध्यक्षा  ही ज़माने में विदेश में कहीं हेल्पर  रही थी.  

आशा है आने वाले दिनों में आप अपने अध्यक्षा और महापुरुषों के राह चल अपने अग्रजो का मार्ग प्रशस्त करेंगे, और आप पर शोर शराबा और हंगामा करने वालो को लानत भेजता हूँ. आप अपने चरित्र पर ही रहें, जिसको जो कहना है  कहे. 

भाड में जाए दुनिया , 
आप बजाएं हरमुनिया. 

सादर 
कमल कुमार सिंह 

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!