दोस्तों आजकल प्रगति मैदान में पुस्तक मेला चल रहा है जो आगामी चार मार्च तक चलेगा.
अंजू जी के पुस्तक का विमोचन होना था सो मै भी गया था. सभा निपटने के बाद जब स्टाल के चक्कर लगाने शुरुवात की हाल नो ११ से तो शुरुवात में ही एक भव्य स्टाल दिखा, हम पहुँच गए मुह उठा के.
वहाँ लाखो की किताब थी सिर्फ इस्लाम की . महँगी से महँगी . बहुत सुना था इलामी किताबो के बारे में लेकिन किताब के आवरण देख के ही डर गया, आवरण से ही मंहगी प्रतीत होती थी .
जब चलने लगा तो किसी उस स्टाल के एक महनुभाव ने रोका कहा "बेटा तुम कुछ न लोगे "
मैंने कहा की ये पुस्तके महंगी है और मुझे कुछ साहित्यिक भी चाहिए , सारी जेब तो यहीं खाली हो जायेगी .
ये मुफ्त है बेटा, जीतनी चाहे ले सकते हो " उन्होंने कहा .
मैंने कुछ किताबे ले ली और साधुवाद किया .
--------------------------------------------
अब सोचने वाली बात ये है की ये किताबे मुफ्त में क्यों ?? किताबे यदि जिसका पैसा दिया जाए तो वो हजारों की होती वो भी सिर्फ मेरी .निश्चय ही किताबे इस्लाम फ़ैलाने के लिए मुफ्त में बांटी जा रही है.
वहीँ हिंदू धर्मार्थ की पुस्तके नाम मात्र लेकिन कुछ न कुछ शुल्क अवश्य था .
अब जरा सोचिये इसकी फंडिंग कौन कर रहा है. यदि मुसलमान खुद कर रहें हैं तो इसका मतलब ये है भारत के मुसलमान इतने सक्षम है की वो एक मेले में करोरों का खर्च उठा सकते हैं, जबकि हिंदू नहीं . तो पिछड़ा कौन ?? जाहिर सी बात है हिंदू , तो आरक्षण मुसलमान को क्यों ??? यदि भारतीय मुसलमान इतने सच्चे हैं की वो इस्लाम का प्रचार करने के लिए हाथ मिला सकते हैं तो तो अपने भईयों की समस्याएं भी खुद सुलझा सकते हैं .
यदि मुसलमान इस बात से मना करते हैं की ये किताबे भारतीय मुसलमानों द्वारा पोषित नहीं है तो फिर पैसा कौन दे रहा है ?? क्या अरब ?? ठीक उसी तरह से जैसे आतंकवाद फैलाने के लिए देता है ??
यदि किसी को मेरे बात का विश्वाश नहीं तो तो कृपया पुस्तक मेले में जाएँ और खुद परख लें .
धन्यवाद .
8 comments:
point to be noted , undoubtedly a serious matter.
शुक्रवारीय चर्चा मंच पर आपका स्वागत
कर रही है आपकी रचना ||
charchamanch.blogspot.com
यही तो आज तक हम नहीं सोच पाए हैं की कमी कहाँ रह गयी ,प्रवचन और कर्म में जब भी फर्क होता है दूरियां बढती है, और हम हैं की दूरियां कम करने को तैयार नहीं हैं / हमारी शुचिता , हमारा दंभ ,हमारी तथा कथित श्रेष्ठता हमको अपनों से दूर करती जा रही है ,जो ..... आज हमारी कुंठा का कारन बन रही है ...सोचना होगा / यक्ष प्रश्न .... शुक्रिया जी /
कमल जी ....आपकी ये रिपोर्ट एक दम सच हैं ...२७ फरवरी को जब ये दुकान सजाई जा रही थी ....मैं वही थी ...मेरे देखते ही देखते कम से कम २० लोग थे जिन्होंने वो दुकान सजाई ...और वहाँ लोगो का हजूम देख कर मैं भी दंग थी ....
पर ये हिंदू मुस्लिम का भेद ना जाने कब खत्म होगा ..
आपने किया है सही ढंग से मेले का अवलोकन ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
विश्वास है भाई। और कोई थोड़ा सा भी रुचि प्रदर्शन करे तो ईसाईयत की किताबेण भी इसी तरह उपलब्ध हैं।
अच्छी प्रस्तुति ।
Post a Comment