नारद: मौनी बाबा

Tuesday, November 22, 2011

मौनी बाबा


"बाबा" बड़ा विचित्र शब्द है ये, सुनते तमाम किस्म के चहरे मष्तिस्क पटल पे आतें है. बाबाओं के कई प्रकार हमारे सभ्य समाज ने निर्धारित कियें हैं कुछ उदहारण इस प्रकार से हैं :-राहुल बाबा, रामदेव बाबा, नित्यानंद बाबा, और हम लोग अपने दादा जी को भी बाबा ही कहते थे, आजकल जिसकी मानसिकता जैसी होती है वो उस वाले  बाबा को मार्केट से चुन लेता है  .

हमारे खुनी रिश्ते ( ब्लड रिलेशन ) वाले बाबा का चेहरा आज के अन्ना जी से काफी मिलता था, आज हम अन्ना को देख के वशीभूत हो जाते है, लेकिन  अन्ना से विचारधारा इनकी अलग थी, शायद चलने फिरने में तकलीफ के कारण उन्होंने हिंसा का रास्ता अपना लिया था, दिन में दस बार लाठी फेंक के मारते थे यदि एक मिनट भी देर हो जाए तो, वो बात अलग है हमेशा हुक हो जाती थी. फिर वही लाठी उनको दूर से दे के भागना पडता था.

उनको रोज शाम मंदिर ले जाने कि जिम्मेदारी मेरी होती थी, वो बात अलग है कि सुबह सुबह मै अपने आप जाता था, मंदिर  कि सारी मिठाइयां चट  करने. मुझे लगता था इससे भगवान शंकर खूब खुश होते होंगे, आखिर उनके प्रसाद का पहला पात्र मै और मेरी टोली जो होती थी. शाम को पंडित आग लगाता था. "आपका पोता शिवलिंग रोज जूठा कर जाता है "

एक शाम जब हम और दादा जब मंदिर पहुंचे तो देखा पुजारी जी के बगल में एक और बाबा बैठे हैं, जिनके हाथ में सुन्दर सी चांदी कि चिलम थी, जिससे वो ऊर्जा ग्रहण कर भीड़ को भी उर्जावान बनने का प्रवचन रहे थे. उनकी  लंबी दाड़ी देख मुझे एक बार नोचने का भी मन किया, शकल से तो चोर दिख रहे थे, लेकिन स्वभवतः दादा जी उनके श्रधा के पात्र थे.  उनके साथ साथ  गाँव के मुखिया जी और मुंशी जी भी  बगल में आ के बैठ गए .

मुखिया जी ने कहा  "ये तो हमारे भाग्य कि आप इस गाँव में पधारे"
मै डर गया, कि बाबा के जाते ही मुखिया जी का भाग्य भी चला जायेगा और इस बार पक्का प्रधानी का चुनाव हारेंगे.

अस्तु, बाबा के रहने का इंतजाम मंदिर प्रांगण में ही बने एक कमरे को साफ़ कराया गया और अगले दिन  शाम को कीर्तन मंडल का कार्यक्रम रखा गया, बाबा उसके अगले दिन मौन व्रत पे जाने वाले थे.

जम के तैयारियां कि गयी, गांव समाजी ढोलक, मजीरा, हरमुनिया  मंदिर पर पहले से ही था, लेकिन जो बजाने वाला था वो एक हफ्ते पहले पड़ोस कि लडकी साथ भागा हुआ था, सो तय हुआ कि  पास के गाँव से बजवैया  आएंगे. खाने पीने का इंतजाम मुंशी जी ने सम्हाल लिया. बच गया बाबा जी का गांजा भांग सो उसकी भी कोई चिंता न थी, जोखू चाचा चलते फिरते दूकान थे, उनको निशुल्क दान के लिए भी तैयार कराया गया लेकिन शर्त थी कि "उतारे" के पैसे  से हिस्सा चाहिए.

आसपास के गाँव में मुनादी करा दी गयी कि, एक तेजस्वी बाबा गाँव में पधारे हैं, कल मौन व्रत पे आके उनके दर्शन का लाभ लें, यों लग रहा था जैसे १० साल बाद पुरे गाँव में किसी के घर लड्का पैदा हुआ था.

महिलाए आपस में बात करने लगी   "  ललिता  के माई , चलना है न " ??
दूसरी महिला   "हाँ, काहे नहीं , बाबा से बेबी के ब्याह का योग पूछना है"
पहली वाली  "कल के वास्ते  साडी  न कोई ढंग का , तुम्हरे पास हो तो तनिक इस्तरी करा लेना"
दूसरी वाली  "पिछली बार तुमने  बीडी फूंक के झौंस दिया, अबकी  ऐसा किया तो दंड लुंगी"

सबका तय हो गया, कौन सा चप्पल, कौन सा जूता, कौन धोती, कौन सा कुर्ता  कल के शुभ अवसर पे जंचेगा .सब दोपहरी बाद से लग गए तैयारी मे.  इतना तो हम पन्द्रह अगस्त के एक दिन पहले मिलने वाले आधा रेसस में भी न करते, उतने में  गिल्ली डंडा के तीन पदान निपटा देते थे.  सुबह पहुँच जाते थे गन्दा वर्दी पहिन के, अलबत्ता जलेबी मिल जाती थी.

सुबह शुरू हुआ मेला,  मौनी बाबा आसन जमाए हुए थे, उनके हाथ में स्लेट थी, सबकी शंका का समाधान दुधिया से लिख लिख के देते थे, समस्याए थी भी अपरम्पार, किसी को बच्चे कि, किसी को पत्नी कि, तो कोई पूछता, मेरी लडकी कब वापिस आयेगी जो अमुक लडके के साथ भाग गयी. बीच में बाबा कि दुधिया खत्म हो गयी पता चला एक सुन्दर बच्चा उनके बगल में रखा सारा दुधिया चबा गया.   बाबा ने हमको भी झूठा दिलासा दिलाया कि सम्मान पूर्वक पास होगे, उसके बाद तो मैंने पढना लिखना ही छोड़ दिया था, परिणाम आने पे जम के मार पड़ी थी. शाम को कीर्तन कम रंगा - रंग कार्यक्रम का आयोजन भी किया, बाबा मदमस्त थे, जवान लम्पट लडके- लड़कियों ने भी जम के चिठ्ठी -पत्री का आदान प्रदान किया. शाम तक अच्छा चढावा आ गया था, सब अपने घर लौटे, बाबा का मौन लंबा चलना था.

आदतन अगली सुबह पहुँच के हमारी बन्दर  टोली पहले मंदिर में न जाकर बाबा के कमरे कि ओर रुख किया. बाबा अनुपस्थित थे, शायद खेत कि ओर गएँ होंगे.  छक  के फल फुल उड़ाने के बाद पीछे मुड़े तो काटो तो खून नहीं, बाबा पीछे खड़े थे,  चिल्ला के कहा , "शर्म नहीं आती, बाबा का भोजन झूठा करते हो".  बबलू , भद्दू तो  भाग लिए फसां रह गया मै, कहा "आप ने अपना मौन व्रत तोड़ दिया, जाने देते हो कि गाँव में बताऊ कि पोंगा  आदमी हो"  बाबा ने कान पकड़ के बाहर निकाल दिया.

गाँव में जिसको भी बताया कि बाबा बोला, सबने डाट पिलाई, "अभी तो मौन व्रत पे है , भाग बन्दर कहीं का "
मन मसोस के रह गया. सब  हमारा  दूध भात मान के भगा दिए, कोई बात ही नहीं सुनता था.
मैंने अब वहाँ जाना ही छोड़ दिया, जब भी कीर्तन शुरू होता मै गन्दी गन्दी गालियाँ  सुनाना शुरू कर देता.

 चार दिन बाद स्कूल से लौटा तो पड़ोस में रोना पीटना मचा था .

लोग आपस में काना फूसी कर रहे थे .. "आजकल बाबा -बूबी, मौनी -सौनी  का कोई भरोसा नहीं, किसी को शक भी न हुआ कि सरीता कि माई को भगा ले जाएगा, राम बचाएं ऐसे मौनी से " . सब मुखिया और मुंशी जी को कोंस रहे थे, जोखू चाचा अलग सिर धुन रहे थे.

लेकिन अब पछताए का होत जब चिड़िया चुग गयी खेत.

कमल  २२ नोव २०११ 

8 comments:

Dr.Madhoolika Tripathi said...

हमारे खुनी रिश्ते ( ब्लड रिलेशन ) वाले बाबा का चेहरा आज के अन्ना जी से काफी मिलता था, आज हम अन्ना को देख के वशीभूत हो जाते है, लेकिन अन्ना से विचारधारा इनकी अलग थी, चलने फिरने में तकलीफ होती थी उनको शायद इसलिए उन्होंने हिंसा का रास्ता अपना लिया था, दिन में दस बार लाठी फेंक के मारते थे,
आपकी रचना की इस भावना से सहमत हूँ ...की "बाबा" नाम लेते ही आजकल पारिवारिक कम राजनैतिक भावना ज्यादा बलवती होती है...आखिर बाबाओं का ज़माना है:-)...हा हा हा हा बहुत ही रोचक लेखन है आपका..बधाई .....यूहीं जारी रखिये

Unknown said...

आपकी कलम दिल छूती है,, कहाँ कहाँ नहीं ले जाती है.. आपको सायद नहीं पता होगा .. लेकिन आपकी लेखनी को मैंने कई बार पढ़ा है.. मैं कहूँगा की ये सबसे अच्छा है.. बहुत उम्दा.. बहुत दिनों बाद कलम की भाषा सुनी जो वक्ता और वक्त से भी प्रगाढ़ हो..

Arunesh c dave said...

धार आ गयी है कलम में। मजा आ गया एक दम ठांय ठांय

Anshuman Verma said...

कमल भाई...!! आपकी कल्पना की उड़ान काफी अच्छी हैं !! पढ़ की गाव की महक आ गयी !! फर्निवर नाथ रेनू की कृति ...मैला आचल, लाल पान की बगुम,पञ्च लाइट...... आपकी सोच उस उचाई तक की हैं !! जारी रखिये !!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

sachchaai ko bakhoobi, bade manoranjak andaz me prastut kiya hai..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या लिखा है आपने :))

सादर...

Asha Joglekar said...

ढोंगी बाबाओं की खूब उतारी है । पर लोग तो ठगे जाते ही हैं ।
सुंदर चित्रण .

मनोज कुमार श्रीवास्तव said...

हा हा हा.......सांप को छोड़ सम्पोलों पर प्रहार........माफ़ करना कमल बाबू न ही वह धार है और न ही वह तीखापन जो दूसरे धर्मों को कोसने में नज़र आता है.... फिर बड़े नाम लेने से क्यों बचे आप...???

और खेत तो चिड़े ने चुगा......