नारद: कोल्हू के बैलों का पत्र एन बी टी संपादक के नाम

Sunday, July 1, 2012

कोल्हू के बैलों का पत्र एन बी टी संपादक के नाम


सेवा मे , (फ्री मे ) 
संपादक महोदय, (जो भी हों समझ जाए ) 
नवभारत टाईम्स, (कोल्हू-फ्री सेवा सेक्शन) 

विषय : पूरा पत्र पढ़िए समझ आ जाएगा, 

प्रिय संपादक महोदय, 

आपको ज्ञात हो कि आज श्री अपलम चपलम जी के  "आ बैल मुझे मार" नामक फतवे के अनुसार उनके निवास स्थान कीर्तिनगर मे  बैलों कि सभा  सफलता पूर्वक संपन्न  हुयी. 

बैलो कि सभा कि अध्यक्षता का जोखिम स्वामी श्री चंद्र मौली जी ने उठाया,  और दक्षता पूर्वक  बिना किसी स्व क्षति के निभाया. 

कुछ देर इधर हुंकारने के बाद नाद लगने कि पारी आई, जिसका बंदोबस्त अपलम जी के गृहमंत्रालय ने दक्षता पूर्वक निभाया, दबा के  स्वादिष्ट मध्यान भोजन के बाद आज पता लगा कि बैलो कि भी आत्मा होती है.  मुह से तो कहने मे अशिष्टता लगती थी लेकिन मन ही मन अपलम जी ने लाखो साधुवाद पाया, बैल भी साधुवाद देते हैं कभी कभी यदि उनकी आत्मा तृप्त हो जाए तो ... 

इसी कड़ी मे  यहाँ उपस्थित सारे बैलो ने आपको भी साधोवाद देने का दृण संकल्प लिया है, संपादक के केस मे आम तौर पर कोई भी बैल किसी संपादक को साधुवाद नहीं देता,, जब तक वो आदमी न हो जाए.

अब आपकी ये नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि आप हमें बैल से आदमी  बनाए,  कैसे ?? बड़ा  आसान सा तरीका है, आप जब तक अपने ब्लॉग के हम ब्लोगर को बैल बना के फ्री कि सेवायें लेते रहेंगे तब तक आपको हमारा दुर्लभ साधुवाद मिलना मुश्किल है. 

आजादी से पहले अंग्रेज पुरे हिंदुस्तानियों को अंग्रेजो का बैल मानते थे, अपने अपने हिसाब से उनको आकृष्ट कर अपने कोल्हू मे जोत देते थे, कृपया आप उस परम्परा पे न चले.बड़ा आभार होगा.

कभी कभी लगता है आपने वेदव्यास जी के गीता के श्लोक का गलत मतलब निकाल लिया है "कर्मन्येवाधिकारस्त ,मा फलेसु कदाचन " एसी लाइन तो बैलो के लिए ही इस्तमाल कि जा सकती है, कोल्हू मे जुतते रहो आदमी बनने कि इक्षा मत करो ..  

यहांके बैल बड़े विचित्र किस्म के हैं, आपके आकर्षण भी विचित्र है, हम खुद ही बैल बनने चले आते हैं, उस पर भी मेहनत कब और कैसे करनी है आप निर्धारित करते हैं ये बैलो के साथ अन्याय है. ये कुछ इसी तरह से लगता अहि  जैसे हिन्दुस्तानी विदेश नौकरी कोझते जाता है, उनकी सेवा भी करता और और उनकी आँखे भी देखता है, आशा ही नहीं पूरा विश्वाश है कि आप इसका संज्ञान लेंगे. बदले मे आप चाहे तो स्वामी जी के आश्रम मे  योगा क्लासेस ले सकते है बिना शुल्क के. हम तो मख्खन पानी लगा के अपना रास्ता साफ़ कर आये.  

हमारी समस्यायों पे गौर कर हमें बैल  से आदमी बनाने कि कृपा करे, बड़ा आभार होगा.. 

सादर , 
बैल समाज 
स्वामी चंद्र मौली ( पैट्रन, सम्पूर्ण क्रांति - अब होने वाली है ) 
अपलम जी ( अध्यक्ष, अपलम चपलम कि डायरी - सब कुछ नोट हो रहा है) 
केशव ( आक्रोशित मन- आदमी बनाओ नहीं आक्रोशित मन कुछ भी कर सकता है) 
विजय बाल्यान जी ( दिल कि बात - जो आज कह दी ) 
कमल कुमार सिंह, ( नारद-सन्देश वाहक  ) 

चेतावनी : बैल भी कभी चेतावनी देते हैं ??? 

नोट : ऊपर लिखी बाते बस हास्य विनोद के लिए हैं, हमे पहले ही पता है संपादक ह्रदय विहीन होते हैं, कृपया गंभीर न हो, यदि  हो जाए तो आपसा दयावान पूरी पृथ्वी पे नहीं ) 

9 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी पत्रलेखन विधा बहुत अच्छी लगी।

मनोज कुमार श्रीवास्तव said...

बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन


क्‍या व्‍याख्‍या की है, कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते की ,,,,,,, कोल्‍हू का बैल, दिन भर खटो पर भोजन की इच्‍छा मत करो

पत्र लेखन विधा अपने आप में निराली है , अब लगता है कमल भाई ने सही ट्रैक पकड़ा है,

रविकर said...

बिना बुलाये बहकता, गोबर करके जाय |
हुआ मार का हक़ ख़तम, बैल नधा अकुलाय |
बैल नधा अकुलाय, हुआ था बधिया पहले |
कोल्हू-रहट चलाय, कलेजा अब तो दहले |
बैल मुझे आ मार, नहीं तेली बोलेगा |
जब तक करे बेगार, पगहिया ना खोलेगा ||

virendra sharma said...

सुन्दर पत्र लेखन कला .पारखी चाहिए .एन बी टी सुपात्र नहीं है .. .बहुत सुन्दर है . बहुत बढ़िया प्रस्तुति .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai

रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?

डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/

virendra sharma said...

सुन्दर पत्र लेखन कला .पारखी चाहिए .एन बी टी सुपात्र नहीं है .. .बहुत सुन्दर है . बहुत बढ़िया प्रस्तुति .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai

रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?

डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/

Unknown said...

बहुत ही अच्छा जी ...

kanu..... said...

:)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बाबा की कृपा हुई तो बैल बनारसी सांड़ बन सकता है पर आदमी नहीं।

ZEAL said...

बहुत सटीक लिखा है। आजकल जुटे रहो बैल की तरह, किन्तु पूछ परख कोई नहीं।