नारद: November 2011

Tuesday, November 22, 2011

मौनी बाबा


"बाबा" बड़ा विचित्र शब्द है ये, सुनते तमाम किस्म के चहरे मष्तिस्क पटल पे आतें है. बाबाओं के कई प्रकार हमारे सभ्य समाज ने निर्धारित कियें हैं कुछ उदहारण इस प्रकार से हैं :-राहुल बाबा, रामदेव बाबा, नित्यानंद बाबा, और हम लोग अपने दादा जी को भी बाबा ही कहते थे, आजकल जिसकी मानसिकता जैसी होती है वो उस वाले  बाबा को मार्केट से चुन लेता है  .

हमारे खुनी रिश्ते ( ब्लड रिलेशन ) वाले बाबा का चेहरा आज के अन्ना जी से काफी मिलता था, आज हम अन्ना को देख के वशीभूत हो जाते है, लेकिन  अन्ना से विचारधारा इनकी अलग थी, शायद चलने फिरने में तकलीफ के कारण उन्होंने हिंसा का रास्ता अपना लिया था, दिन में दस बार लाठी फेंक के मारते थे यदि एक मिनट भी देर हो जाए तो, वो बात अलग है हमेशा हुक हो जाती थी. फिर वही लाठी उनको दूर से दे के भागना पडता था.

उनको रोज शाम मंदिर ले जाने कि जिम्मेदारी मेरी होती थी, वो बात अलग है कि सुबह सुबह मै अपने आप जाता था, मंदिर  कि सारी मिठाइयां चट  करने. मुझे लगता था इससे भगवान शंकर खूब खुश होते होंगे, आखिर उनके प्रसाद का पहला पात्र मै और मेरी टोली जो होती थी. शाम को पंडित आग लगाता था. "आपका पोता शिवलिंग रोज जूठा कर जाता है "

एक शाम जब हम और दादा जब मंदिर पहुंचे तो देखा पुजारी जी के बगल में एक और बाबा बैठे हैं, जिनके हाथ में सुन्दर सी चांदी कि चिलम थी, जिससे वो ऊर्जा ग्रहण कर भीड़ को भी उर्जावान बनने का प्रवचन रहे थे. उनकी  लंबी दाड़ी देख मुझे एक बार नोचने का भी मन किया, शकल से तो चोर दिख रहे थे, लेकिन स्वभवतः दादा जी उनके श्रधा के पात्र थे.  उनके साथ साथ  गाँव के मुखिया जी और मुंशी जी भी  बगल में आ के बैठ गए .

मुखिया जी ने कहा  "ये तो हमारे भाग्य कि आप इस गाँव में पधारे"
मै डर गया, कि बाबा के जाते ही मुखिया जी का भाग्य भी चला जायेगा और इस बार पक्का प्रधानी का चुनाव हारेंगे.

अस्तु, बाबा के रहने का इंतजाम मंदिर प्रांगण में ही बने एक कमरे को साफ़ कराया गया और अगले दिन  शाम को कीर्तन मंडल का कार्यक्रम रखा गया, बाबा उसके अगले दिन मौन व्रत पे जाने वाले थे.

जम के तैयारियां कि गयी, गांव समाजी ढोलक, मजीरा, हरमुनिया  मंदिर पर पहले से ही था, लेकिन जो बजाने वाला था वो एक हफ्ते पहले पड़ोस कि लडकी साथ भागा हुआ था, सो तय हुआ कि  पास के गाँव से बजवैया  आएंगे. खाने पीने का इंतजाम मुंशी जी ने सम्हाल लिया. बच गया बाबा जी का गांजा भांग सो उसकी भी कोई चिंता न थी, जोखू चाचा चलते फिरते दूकान थे, उनको निशुल्क दान के लिए भी तैयार कराया गया लेकिन शर्त थी कि "उतारे" के पैसे  से हिस्सा चाहिए.

आसपास के गाँव में मुनादी करा दी गयी कि, एक तेजस्वी बाबा गाँव में पधारे हैं, कल मौन व्रत पे आके उनके दर्शन का लाभ लें, यों लग रहा था जैसे १० साल बाद पुरे गाँव में किसी के घर लड्का पैदा हुआ था.

महिलाए आपस में बात करने लगी   "  ललिता  के माई , चलना है न " ??
दूसरी महिला   "हाँ, काहे नहीं , बाबा से बेबी के ब्याह का योग पूछना है"
पहली वाली  "कल के वास्ते  साडी  न कोई ढंग का , तुम्हरे पास हो तो तनिक इस्तरी करा लेना"
दूसरी वाली  "पिछली बार तुमने  बीडी फूंक के झौंस दिया, अबकी  ऐसा किया तो दंड लुंगी"

सबका तय हो गया, कौन सा चप्पल, कौन सा जूता, कौन धोती, कौन सा कुर्ता  कल के शुभ अवसर पे जंचेगा .सब दोपहरी बाद से लग गए तैयारी मे.  इतना तो हम पन्द्रह अगस्त के एक दिन पहले मिलने वाले आधा रेसस में भी न करते, उतने में  गिल्ली डंडा के तीन पदान निपटा देते थे.  सुबह पहुँच जाते थे गन्दा वर्दी पहिन के, अलबत्ता जलेबी मिल जाती थी.

सुबह शुरू हुआ मेला,  मौनी बाबा आसन जमाए हुए थे, उनके हाथ में स्लेट थी, सबकी शंका का समाधान दुधिया से लिख लिख के देते थे, समस्याए थी भी अपरम्पार, किसी को बच्चे कि, किसी को पत्नी कि, तो कोई पूछता, मेरी लडकी कब वापिस आयेगी जो अमुक लडके के साथ भाग गयी. बीच में बाबा कि दुधिया खत्म हो गयी पता चला एक सुन्दर बच्चा उनके बगल में रखा सारा दुधिया चबा गया.   बाबा ने हमको भी झूठा दिलासा दिलाया कि सम्मान पूर्वक पास होगे, उसके बाद तो मैंने पढना लिखना ही छोड़ दिया था, परिणाम आने पे जम के मार पड़ी थी. शाम को कीर्तन कम रंगा - रंग कार्यक्रम का आयोजन भी किया, बाबा मदमस्त थे, जवान लम्पट लडके- लड़कियों ने भी जम के चिठ्ठी -पत्री का आदान प्रदान किया. शाम तक अच्छा चढावा आ गया था, सब अपने घर लौटे, बाबा का मौन लंबा चलना था.

आदतन अगली सुबह पहुँच के हमारी बन्दर  टोली पहले मंदिर में न जाकर बाबा के कमरे कि ओर रुख किया. बाबा अनुपस्थित थे, शायद खेत कि ओर गएँ होंगे.  छक  के फल फुल उड़ाने के बाद पीछे मुड़े तो काटो तो खून नहीं, बाबा पीछे खड़े थे,  चिल्ला के कहा , "शर्म नहीं आती, बाबा का भोजन झूठा करते हो".  बबलू , भद्दू तो  भाग लिए फसां रह गया मै, कहा "आप ने अपना मौन व्रत तोड़ दिया, जाने देते हो कि गाँव में बताऊ कि पोंगा  आदमी हो"  बाबा ने कान पकड़ के बाहर निकाल दिया.

गाँव में जिसको भी बताया कि बाबा बोला, सबने डाट पिलाई, "अभी तो मौन व्रत पे है , भाग बन्दर कहीं का "
मन मसोस के रह गया. सब  हमारा  दूध भात मान के भगा दिए, कोई बात ही नहीं सुनता था.
मैंने अब वहाँ जाना ही छोड़ दिया, जब भी कीर्तन शुरू होता मै गन्दी गन्दी गालियाँ  सुनाना शुरू कर देता.

 चार दिन बाद स्कूल से लौटा तो पड़ोस में रोना पीटना मचा था .

लोग आपस में काना फूसी कर रहे थे .. "आजकल बाबा -बूबी, मौनी -सौनी  का कोई भरोसा नहीं, किसी को शक भी न हुआ कि सरीता कि माई को भगा ले जाएगा, राम बचाएं ऐसे मौनी से " . सब मुखिया और मुंशी जी को कोंस रहे थे, जोखू चाचा अलग सिर धुन रहे थे.

लेकिन अब पछताए का होत जब चिड़िया चुग गयी खेत.

कमल  २२ नोव २०११ 

Thursday, November 17, 2011

आयुर्वेदिक व्हिश्की



माता जी के आदेश से जब बाजार पंहुचा तो देखा चौराहे पर एक आदमी जोर जोर से भाषण दे रहा था जिसको बस दो चार भैंसे और एक आध और जीव  जंतु ही जुगाली कर सुन  रहे थे शायद, बाकी इंसान तो बस मुसकरा कर कल्टी काट रहा था, भाषण था भी एकदम जोशीला , चेतना जागृत करने वाला, केजरीवाल टाइप. 

  मैंने पास खड़े एक भाई साहब से पूछा, "इनको क्या तकलीफ है "

भाई साहब ने मुस्कराते हुए एक दूकान कि तरफ अंगुली दिखा दी,

नूरी, ठर्रा  १५ रुपया ,  बगल में एक खूबसूरत युवती का भी चित्र बना हुआ था उस पुरुष के जिसने नूरी हाथ में ली थी ...

अब समझ में आया इनके जड़ से चेतन होने का राज . मेरे भी एक मित्र हैं, जो चेतन अवस्था में आते ही जोर जोर से अंग्रेजी बोलना शुरू कर देते हैं.

इस पुरे जगत को दो भागो में बाटा गया है, अपने सरकार जैसे जड़ और  और अमेरिका जैसे चेतन, जो सबकी खबर ले कर अपने लीक से लिक करता है, और जड़ में चेतन  डालता है.  कुछ तो अपनी बुद्धि और चेतना के लिए  रासायनिक पदार्थों का भी उपयोग करते हैं, लेकिन इस विधि में चेतन के साथ  माता जी के दावानल भी मिलता  है जिससे वाष्प रूपी चेतन परलोक गमन कर जाते हैं.


एक दिन मेरी मुलाकात एक मित्र से हो गयी से हो गयी दोनों अलग अलग विचारधार के  जैसे कोंग्रेस और भाजपा,  फिर भी सभी मुद्दों पे असहमति होते हुए भी बस एक कड़ी थी जो आपस में जोड़े रखती थी .. जैसे भारत और पाकिस्तान को कश्मीर , दिल प्रसन्न हो जाता जब वो अध्धा पौवा कि बात करते .

उनकि  आयुर्वैदिक  व्हिश्की वाली बात तो जहन में समां गयी थी , कभी सोचता था कि काश ये वाली चीज आ जाए मार्केट में तो  कितना मजा आ जाये लाईफ में,  गर्लफ्रेंड  भी बोले कि "पि लिजिये जी मन मार के दो पेग, नाक बंद कर के ही पि लीजिए "  

मुझे भी विचार जंच गया, क्योकि आये दिन नशा मुक्ति मोर्चा वालों ने नाक में दम कर रखा था जिसकी अध्यक्ष हमारी पड़ोस वाली आंटी  थीं.

मैंने सोचा  बाबा तो न बनायेंगे, हाँ  हम जैसे कुछ उच्च कोटि के वैज्ञानिकों कि मदद ली जा सकती है.


मै दिन रात मेहनत  करने लगा, कि कैसे  मै एक एसी आयुर्वेदिक  व्हिश्की आविष्कार  करूँ जो हर बिमारी में काम आये,खुजली से ले के कैंसर तक, बच्चे कोम्प्लान कि जगह और बूढ़े सिरप कि तरह इस्तमाल करें.

 . इसके बाद  मै दुनिया के आँखों का तारा बन जाऊं, लेखक गण मेरे बारे में रोज लिखे , स्टार न्यूज में कमल  और कमल कि  प्रतिभा ( गलत न समझे = टैलेंट ) को लेकर बहस हो, इंडिया टी वी मुझे दुनिया का दशवाँ अवतार घोषित कर दे, बाबा हमें अपना सचिव घोषित कर दे, और अन्ना के कोर कमेटी में जगह पक्की हो जाए, राजनैतिक पार्टियों में होड मच जाए मुझे अपना उम्मीदवार बनाने का वो भी बिना पैसे दिए. 

एक दिन मेरी मेहनत सफल हो गयी,  दूसरे दिन अखबार में मेरे आविष्कार के साथ साथ  जहाज उर्फ दारु किंग के आत्म हत्या कि भी खबर छपी, बड़ा आघात लगा था उनको मेरे इस अविष्कार से. जहाज तो डूब ही चूका था अब दारु भी . मुझे थोडा सा छोभ तो हुआ, लेकिन अरबो जनता के आशीर्वाद  के बोझ में दब गया ..

मेरी हाहाकारी आयुर्वेदिक व्हिश्की पुरे विश्व में लांच  कि गयी डब्लू एच  ओ  कि मान्यता के साथ, अब तो ऋषि -मुनि लोग भी प्रसन्न हो गए, अब वो भी धड़ल्ले से मेरा आयुर्वेदिक सोमरस पान कर सकते थे वो भी मान्यता के साथ सरे आम, जनता के बीच.

इसका साफ़ असर  समाज के साथ साथ जनता और सरकार पे देखा गया. सरकार नीतियाँ बनाने में लग गयी कि कैसे कमल के व्हिश्की को सब्सिडी दे के सस्ता किया जाए, ताकि इसका गुणकारी लाभ ३२ रूपये के नीचे वाली आम  जनता भी ले सके.
...............
अब तो समाज का दृश्य  ही बदल चूका था, मम्मी  रोज जबरजस्ती करती, कि टाइम टाइम से पेग लिया करो स्वस्थ्य रहोगे तो बच्चे भी स्वस्थ्य ही आएंगे दुनिया में, नहीं तो तमाम सरकारी इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे साल भर छोटे छोटे नवजातो को.

एक दिन बगल से आंटी आ गयी, माता जी  से बोली , " जरा दो पेग देना मेरे यहाँ खत्म हो गया है, और बच्चों का एक्साम चल रहा है, आज ड्राई डे है, कल कोटा आयेगा तो वापिस कर दूंगी".

माता जी  ने दे तो दिया, लेकिन पीठ पीछे बडबडाने लगीं  "हफ्ते में दो दिन मांग के ले जाती है, कभी बच्चो के नाम पे तो कभी अपने पति के नाम पे, अब तक कुल चार  बोतल से भी जादा हो गया यदि जोड़ा जाए तो"

अगली सुबह जब टहलने निकला  तो सामने से सिंह साहब स्कूटर से आते दिखे, मै दोनों को ही श्रध्दा भाव से देखता था, सिंह साहब को उनके उम्र कि वजह से ( मैंने अपने सारे प्रयोग इन्ही पे किये थे ) और उनके स्कूटर को अनुभव कि वजह से, निहायत ही सीधा स्कूटर जिससे वो अपने श्रीमती जी से भी जादा प्यार करते थे, बिचारे में ब्रेक भी न था, पावँ से ही रुक जाता था.

मुझे देखते ही पावँ जमीन पे लगा दिया, कहा   " मिया तुम्हारा आविष्कार तुम पे खूब जंच रहा है, दिन ब दिन मोटे होते जा रहे हो, जरा सावधान रहो , आजकल तुम्हारे खिलाफ प्रपंच चलाये जा रहे हैं.

मै सहम के बोला  " मेरी इस अभूतपूर्व देंन में क्या कमी रह गयी. ???

सिंह साहब " भाई जब से तुमने अपना नुख्शा दुनिया को दिया है, लोग घर में चेतना जाग्रत करने लगे हैं, सारे बार , पब पर ताला लग गया है, सो ये तो होना ही था..

उनकी ये बाते किसी एक पत्रकार ने सुन ली और पेपर  में छाप दिया,

लोगो कि प्रतिक्रियाएं आने लगी, दिग्गु ने कहा " इसमें आर एस एस का हाथ है "
भाजपा ने कहा " सरकार बार व्यापारियों से प्रभावित है, बाबा को नहीं छोड़ा तो कमल क्या चीज है ? "
रजत जी ने मुझे अपनी अदालत में बुला कर बाईज्जत बरी कर दिया,  हमेशा  कि तरह जैसे बाकियों को किया करते थे .
मंदमोहन ने कहा मुझे इस बारे में कुछ मालुम नहीं.
अमूल बेबी ने कहा "जरुरत नहीं है कमल के भीख कि "
तमाम एन जी ओ जो कि मेरे समर्थन में आ गए थे, विदेश से फंड भी मंगवा लिया मेरे सुरक्षा के नाम पे .
सवर्णों ने कहा "अच्छा हुआ , बड़ा आरक्षण कि तरफदारी करता था "
दलितो ने कहा " अच्छा हुआ, सवर्णों के साथ ऐसा ही होना चाहिए, हम लोगो को अपने आविष्कार में आरक्षण तक न दिया  "

और मै उन व्यापारियों के साथ अपना गम गलत कर रहा था अपना पेय भूल के ...

 तभी एक  ध्वनि कान में आई "बेटा आज बाजार न जाओगे क्या "

मेरी तन्द्रा टूटी , झोला उठाया उसी चौराहे पे जाना था, जहाँ कल चेतना जागरण शुरू हुआ था ..

कमल   १७ नोव २०११ 

Saturday, November 12, 2011

आरक्षण और जातिवाद



आरक्षण, एक जवलंत मुद्दा है, बहुत दिन से सोच रहा था इस मुद्दे पे कुछ विचार रखने का लेकिन हिम्मत न पडती थी, लेकिन भला हो मंडल जी का जिन्होंने बताया कि आजकल तो लोग १० रूपये का पत्रकार भी बन जाते हैं, शायद उन्होंने खुद १० रूपये में साईबर कैफे से पत्रकारिता कि होगी.

खैर उनके हौसलाफजाई से मेरी हिम्मत बढ़ी सो आज मै भी बैठ गया मुह में पान दबा के, बमुश्किल दो लाइन पूरी हुई होगी तभी मेरे दो मित्र आ गए जिनको देख के मै अपने दुश्मन तक को भूल जाता है था, उधार तो कभी लौटते ही न थे दोनों रंगा-बिल्ला.

रंगा धुर  पंडित और कालेज में प्रोफ़ेसर थे जबकि  बिल्ला प्रशाशनिक अधिकारी जिनको रंगा दिन रात कोसा करते थे "कोटे में आया है ". दोनों में "कोटे" को ले के तू तू - में में जिस दिन न हो उसके अगले दिन रंगा पढ़ा न पाता था, और बिल्ला अपने मातहतों को विदेशी घी में लपटी हुई गालियों के गोले देता था.

बैठका में घुसते दोनों धम्म से सोफे पे धंस गए,  श्रीमती को दूसरे के लिए चाय बनाने में ह्रदयाघात लगता था सो भुनभुनाते ह्रदयाघात हेतू  किचन में चल दीं.

तपाक से मैंने कहा : "महीने का पहला सप्ताह है भाई, कुछ बोहनी करा रहे हो क्या ?

सुनते ही दोनों एक दूसरे का मुह देखा, ठहाका लगा के कहा  "जिसका लेना कभी न देना मर जाना पछताना क्या ? "

कहो कैसे याद  किया ?? मैंने कहा .

"भाई कल  आरक्षण विरोधी आन्दोलन में जाना है, नेवता देने आया था "  रंगा ने कहा .

तुम कैसे आये भाई ??? बिल्ला कि ओर देख के कहा .

"यार आरक्षण विरोधी मोर्चा के विरोध में एक भाषण लिख के दे दो, इन्ही के सामने वाला मैदान बुक किया है. " बिल्ला ने कहा .

अमा यार हमको भगवान कृष्ण समझ रखा है ?? धर्म संकट में क्यों डालते हो ???

तभी श्रीमती जी अपना ह्रदयाघात तीन कप में सजा के ले के आयीं साथ में भुनभुनाहट का प्लेट  नमकीन भी .

"भाई देखो आरक्षण बड़ा ज्वलंत मामला है, चाय पी के न तो सहमति हो सकती है न मै विपक्ष में कुछ लिख सकता हूँ. एक काम करो कनाटप्लेस का एक बड़ा सुन्दर व्यवस्थित जगह है जहाँ हम तीनो कि व्यक्तिगतता  भी हो जायेगी और  स्वर्गादित इन्द्र पेय के बाद  विचार भी उमडेंगे. "  मैंने कहा, वैसे  भी इतने सुन्दर मौके को छोड़ने का मतलब ठीक वही था जैसे सोनिया जी कि कुर्बानी से मनमोहन का प्रधानमंत्री बनना .  

मन मसोस के दोनों ने स्वीकार किया और चले टारगेट पे. रास्ते दोनों ने  तीन बार बताया कि कार जादा पेट्रोल खाती है, बीच बीच में इसके लिए सरकार को मातृत्व का  साधुवाद और बहन का स्नेह उड़ेल रहे थे.

कोने का टेबल देख चिपक गए और बिना देर किये आत्म तृप्ति के लिए एक पूर्ण का आह्वाहन कर दिया.

"अब तो चलोगे न"  ? रंगा  ने कहा ,
"भाई लगे हाथ लिख भी दो , जादा टाइम नहीं है , और तुम्हारा कोई भरोसा भी नहीं होता जब तुम मग्नता में होते हो"  बिल्ला ने कहा.

यार रंगा  पिछले महीने वाला हिसाब भी साफ़ कर देते तो कल  पुरे मन से चलता जम के भाषण देता, और बिल्ला लिखने में तभी मजा आता है जब मन साफ़ हो, तुम भी रंगा का अनुशरण करो.

हिसाब  और एक चौथाई खत्म कर के रंगा से पूछा " भाई ये आरक्षण का विरोध क्यों ? "

रंगा   " यार अजीब हो , तुम्हारे पास आँखे हैं या अंडे ?, दिखता नहीं स्वर्ण मेधावी बच्चे कितने कुचक्र में फस रहें हैं, आजादी के साठ सालों बाद भी आरक्षण ? इतने सालो में इनका विकास न हुआ तो अब क्या होगा ? भीम राव जी ने आजादी के बस कुछ आगामी सालो तक आरक्षण का प्रावधान किया था, जो अब तक  चल रहा है, तुर्रा ये कि आरक्षण पाने  के बाद भी सवर्णों को गाली देते हैं, अलबत्ता इनकी शादी अधिकांशतः ब्राह्मण ही करता है, नर्क मचा रखा है दलितों ने.

मायावती ने दलितो के नाम पे अपनी मूर्ति खड़ी करा ली , अब तुम्ही बताओ किसी सवर्ण मुख्यमंत्री ने ऐसा किया ? कुछ दिन बाद उसी मूर्ति के आस पास जोड़े चोंच लड़ाए जायेंगे, दलित उत्थान  के नाम पे सवर्णों को लुटा खसूटा जा रहा है. ये सारे पुल आरक्षण वाले ही गिराते हैं.

कल को ये कहेंगे इन्हें हमारे तनख्वाह में से भी चाहिए. वो मंडल कहता है कि दलित एक भी अन्ना टीम में नहीं, मै कहता हूँ भाई तुम खुद तो  कोई शुरुवात कर नहीं सकते अलबत्ता मुह उठा के हिस्सा  माँगने चल देते हो.

 दलित भी कुछ अच्छा शुरुवात करे जो कि कभी करते नहीं,  और सवर्ण हिस्सा मांगे तो देखिये इनकी मोटी मोटी गालियाँ, जो की ये वैसे  भी देते हैं. दर्जनों बच्चे पैदा कर देश कि संख्या बढ़ाते हैं और फिर चिल्लाते हैं आरक्षण दो, तुर्रा ये कि बोल दो कि "कोटे से आया है"  तो भड़क जाते हैं जो है सो है , भडकना क्यों ? आरक्षण भी चाहिए और दलित भी नहीं कहलवाना चाहते,  गुड़ खायं और गुलगुले से परहेज  .

मै तो कहता हूँ कि जो योग्य हो वो आगे जाए, आरक्षण क्यों ? "   एक साँस में प्याला खत्म करते हुए एक साँस में बात भी ख़म कर दी रंगा ने.

बिल्ला कि भी आँखे लाल हो चली, कुछ असर प्याले का था कुछ रंगा कि बातों ने रंग चढ़ा दिया, रंगा को रंग दिखा के कहा   " हाँ हाँ क्यों नहीं सारे पुल हम गिराते हैं, अपना न देखते, दलितों को आगे बढते देख तुम्हारे आँख कान लाल हो जाते हैं, सोचते हो कि अब दरी कौन बिछायेगा ??? झाड़ू कौन लगायेगा, हमारी तरक्की देखि नहीं जाती तुमसे इसीलिए आरक्षण का विरोध करते हो . तुम लोगो कि वजह से पिछड़े हैं तो गाली किसे दें ????

हमने कहा  " यार  हम तीनो संग में पढ़े , बढे हुए , तब तक तो  एसी कोई बात विचार में न थी, किसी ने बिल्ला को दलित या पिछड़ा न माना, आज का ही वाक्य देख लो, श्रीमती ने तीनो को बराबर से ह्रदयाघात दिया . अब क्या हुआ कि अपने अपने काम छोड़ उटपटांग कामो में लग गए हो ? , भाई रंगा यदि जनसँख्या बढ़ाने वाली बात है तो तुम्हारे पिता जी कम थे , जो तुम्हे ७ और भाई घेलुवा में दे गए ? उनसे देश का विकास होता है , ???
सुनो आरक्षण जरुरी है , लेकिन जात के आधार पे नहीं बल्कि पिछडेपन के आधार पे.

भाई बिल्ला आरक्षण तुम्हे मिला तुम अधिकारी बन गए , अब तुम पिछड़े कहाँ ? रामविलास पासवान जैसे नेता जो हर सरकार में मंत्री हो वो पिछड़े कैसे ? लालू यादव को आरक्षण क्यों ? हर वो इंसान जो वास्तव में पिछड़ा था आज डाक्टर, अभियंता बन बराबरी में आ गया वो दलित कैसे ????
बाबा रामदेव यादव होके कहाँ से कहाँ पहुच गए, अच्छे अच्छे  मनुवादी  उनके मंजन से दांत चमकाता है.
 भाई आरक्षण का का नियम बना देना चाहिए कि जिसकी परिवार कि मासिक आय फला से ऊपर हो वो दलितों में नहीं आयेगा,
नेतावों और दस रूपये वाले पत्रकारों के चक्कर में पड़ोगे तो यही होगा, वो भला क्यों सही रास्ता दिखायेंगे, उन्हें अपनी दूकान बंद करानी है क्या ? जब एक बार विकास कर लिए तो आप  अपने बाकी भाईओं को भी मौका दो.
जब आरक्षण वाली पीढ़ी भी पढ़ लिख के समझदार हो चुकी है तो इन नेतावों के चक्कर में पढ़ कर के सवर्णों को गाली देना मूर्खता है नहीं तो सिर्फ और सिर्फ दुराव होगा और ये सवर्ण इसी  तरह से विरोध करेंगे, मलाई खायेंगे नेता .
तुम दोनों यही बाते कहना एक ही मैदान कहना . दूसरा मैदान  कैंसिल कर दो जो पैसा बचे तो कल फिर यहीं आ जायेंगे.  देखो मजा फिर यदि एक बार सबके समझ में तुम्हारी बातें आ गयी तो, दुराव फैलाने से बेहतर है मेरा उपाय लगाओ, और हीरो बन जाओ, खाना पीना संग में करते हो तो मुद्दा अलग कैसे. अब बताओ अब मै चलू या लिखूं ?

बहुत सही गुरु घंटाल बातें सही बता के कल का भी इंतजाम कर लिया, सभा समाप्त हुई और सब वापिस वाहन में,  रास्ते में  तीनो सरकार को मातृत्व का साधुवाद दे रहे थे,  आरक्षण निति पे .

कमलं  १३ नोव २०११