नारद: July 2013

Friday, July 12, 2013

मलाला जैसे हो इस्लामिस्ट


अंग्रेजी में एक  कहावत है "Action speaks louder than words" जो सत्  प्रतिशत सही है. जिस  किशोरावस्था में स्कुल में दुनिया भर के सपने सजाते हैं, बगल वाले से जलते हैं किस उसका नंबर उससे जादा क्यों? उस छोटी उम्र मलाला जैसी किशोरी किसी आम हमउम्र से अलग हट कुछ एसा करती दिखाई देती है जो इस्लामिस्टो की नजर में चुभती है, यहाँ तक इस लड़की के ऊपर हमले भी हुए. जान बचने के बाद भी यह किशोरी बिना किसी दबाव में आये अपने धुन में लगी है. मलाल डे पे सयुंक्त राष्ट्र संघ ने इन्हें आमंत्रित भी किया है. 

अब सोचने वाली बात है की इस्लाम इस्लाम चिल्लाने वाले एक तरफ तो अफगान में दुसरे कि संस्कृति नष्ट करते हैं, गया में बम फोड़ते हैं  जो इस्लाम के चहरे पर चेचक  नुमा कभी न जाने वाले धब्बे हैं, वही दूसरी तरफ मलाला जैसे लोग भी हैं जो इन सब कट्टरवादिता से  आगे बढ़ इस्लाम  को दिए गए दाग को अनजाने में सही लेकिन चेहरा दरुस्त कर रही है. अनजाने में इसलिए कहाँ की वो कोई काम अपने दिल में इस्लाम को आगे बढाने के उदेश्य से नहीं कर रहीं, पूरी मानवता के लिए कर रही हैं, उनके कार्यो से हर किसी के दिल मीठा सा अहसास होता है, कि काश ये बम फोडू जो अपने आप को इस्लाम के लिए समर्पित कहतें हैं, एसा कुछ क्यों नहीं करते जिससे वास्तव में लगे की वास्तव में इस्लाम बेहतर है.  क्या इतने सारे नकारात्मक संगठनों के बावजूद भी मलाल एक सकारात्मक पहचान रहीं है तो इस पर इस्लाम को क्या एतराज या नुक्सान हो सकता है. 

जो लोग इंटरनेट पर इस्लाम का बखान करते नहीं चुकते उनके लिए भी ये बड़ा सबक है, जो इस्लाम इस्लाम चिल्लाते हैं, ख़ासकर भारत में इन्हें भोपाल के लोग नहीं दीखते जिन्हें कोंग्रेस सरकार ने एक करारा लेकिन गहरा जख्म दिया है, ८० के दशक में भोपाल गैस काण्ड जिस क्षेत्र में हुआ वहां अधिकतर मुस्लिम  बस्तियां ही है, जो आज बस इसलिए जिन्दा ताकि अगले दिन अस्तपाल जा सके. वहां उस क्षेत्र में आप जायेंगे तो आप की रूह काप जाएगी जब आप जिन्दगी को कराहते घसीटते हुए देखेंगे, और आप अपने आप को  दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानेंगे की आप भोपाल के उस दशक में पैदा नहीं हुए जहाँ कोंग्रेस ने मौत का हाहाकार मचा दिया. लेकिन उनके लिए यहाँ के किसी भी इस्लाम परस्तो का हाथ आगे नहीं बढ़ता. कोंग्रेस को बार बार निशाने पे इसलिए ले रहा हूँ, क्योकि उस समय अर्जुन  सिंह वहां के मुख्यमंत्री थे, भोपाल गैस काण्ड के अभ्युक्त "एंडरसन" काण्ड के बाद शाही व्यवस्था में अमेरिका विदा करने में उनका बड़ा हाथ था. हलाकि खबर राजिव गांधी को भी थी. इसके बाद सबसे बड़ा मजाक ये की  मुस्लिम जज "अहमदी" जी ने पूरी जी जान लगा दी की अभियुक्तों को कम से कम सजा मिले. 

जो लोग इस्लाम का झंडरबरदार बनते है, उनकी नजर बस इंटरनेट पे प्लास्टिक पीटने तक ही सिमित रहती है, बजाय  मलाला जैसे लोगो से कुछ सकारात्मक उर्जा लें,  एक मलाल जब मुझे मजबूर कर सकती है उनके बारे में लिखने के लिए तो जरा सोचिये यहाँ का १% मुसलमान इस तरह का कमान हाथ में लेले तो उसे नेट पर प्लास्टिक पीटने की कोई जरुरत नहीं रह जाएगी. 

हमें मलाला चाहिए, प्लास्टिक पिटवा नहीं . 

Thursday, July 11, 2013

मुसलमानो का मोदी विरोध


एसा नहीं है २००२ से पहले या बाद में कोई दंगे नहीं हुए, कब हुए, कितने हुए, कहाँ हुए, किसके सरकार में हुए  ये सब नहीं लिखूंगा, सभी जानते है. लेकिन २००२ के दंगो को ही निशाना जादा बनाया जाता रहा है. साथ उसको "स्टेट स्पोंसर्ड" का दर्जा राजनीतिज्ञों  द्वारा बताया जाना इस बात का  सबुत है की उन्हें अपनी करनी पे विश्वाश नहीं बल्कि दंगो का की राजनीति का ही सहारा है , नहीं तो "स्टेट स्पोंसर्ड" दंगा क्या होता है ??  क्या बाकी के दंगे सहमती से गोलमेज मीटिंग टाइप के बाद हुए  है ? ख़ासकर  उस  केस में जब तक किसी भी कोर्ट ने मोदी पे कोई टिप्पड़ी भी न की हो. असंम  में कोंग्रेसियों (कोंग्रेस - आई )  द्वारा  बांगला देशियों का बसाया जाना फिर दंगा होना क्या एक सुनियोजित  "स्टेट स्पोंसर्ड" दंगा  नहीं है ? ये वही पार्टियाँ हैं  जो  पीछे से दंगे करा के फिर आगे इन्साफ मांगती है खासकर मुस्लिमो के लिए. 

असली बात वोट बैंक है, सभी जानते हैं. आज जबकि मोदी  किसी भी पार्टी के किसी भी नेता से जादा लोकप्रियता लिए हुए हिन्दू मुस्लिम किये बिना चुनाव जीतते है, तो बाकी पार्टी के  राजनितिज्ञो  का तिलमिलाना समझ में आता है.  मोदी को का भुत उन्हें जगाने सोने नहीं देता, एसा लगता है जैसे दंगो  ने उनके राजीनीति को भी खा लिया है.  उन्हें लगता है २००२ का दंगा उनके जितने की रेसिपी है हलाकि वो मुगालते में हैं जबकि वही मोदी तीसरी पारी खेल चुके हैं.  और २००२ के बाद जहाँ कोई दंगा नहीं हुआ तो दूसरी तरफ पुरे देश में न जाने कितने  दंगे हुए तो फिर मुसलमान मोदी से क्यों भड़कते हैं ?? 

 राजनीतिज्ञों का मोदी से भडकना समझ आता है, जलन कह लीजिये या दुर्भावना या राजनैतिक  प्रतिद्वंदता जो भी दूसरी पार्टियो का भडकना समझ में आता है, लेकिन साथ साथ ही  मुस्लिमो  मोदी का नाम से भडकना बड़ा गोल गोल घुमाता है,  क्या मोदी मुसलमान विरोधी है ? यदि एसा है तो गुजरात में कैसे जीतते ? या  मान लीजिये  मोदी देश के प्रधान मंत्री बन जाते है तो क्या देश से मुसलमानों का खात्मा कर देंगे ? तब ये सोचना चाहिए की क्या गुजरात में मुसलमान खतम हो गए ? बड़ी हास्यपद बात है, तो फिर मुसलमान मोदी से क्यों भड़कते हैं ?? 

अब आईये दुसरे पहलू पे सोंचे, आज तक मैंने किसी नेता को नहीं देखा जो अपने भाषणों में मुसलमानों की पैरवी न करते देखा गया हो, चाहे हो लालू  का  परिवर्तन रैली हो, या टोपीबाज नितीश की रैली, या मुलायम की "उत्तर प्रदेश के मुस्लिम को लडकियों वजीफा देना हो,  अरविन्द केजरीवाल का बुखारी वंदन हो (वो बात अलग है भगा दिए गए थे वहां से ) या अन्य कोई नेता, उनका पलड़ा एक तरफ इस मुसलमान "वोट बैंक" कि तरफ झुका होता है,  पलड़ा कभी बराबर  होते नहीं देखा गया.  नहीं तो क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के अतिरिक्त और कोई लड़की उस योग्य नहीं है जिसको सहायता की दरकार है ?  वही कोंग्रेस के भारत विकास में एक मुस्लिम लड़की को एड में दिखाना क्या दिखता है ? 

ठीक  इसके उलट मोदी के भाषणों  में आजतक किसी ने हिन्दू मुसलमान की बात नहीं सुनी होगी. उन्होंने हमेशा बराबरी की बात की,  गुजरात मे हो तो ६ करोड़ गुजरात और  यदि देश में हो तो भारतीय कह के संबोधित करने वाले मोदी शायद यहीं चुक कर गए, उन्हें बराबरी और समानता की बात  न करके  बल्कि मनमोहन सिंह की तरह "देश में पहला हक़ अल्पसंख्यको का है" टाइप का कोई जुमला बोलते  तो शायद मुसलमान उने कभी नहीं भड़कता, क्योकि दंगे तो और भी कई  कोंग्रसी नेतावो ने करवाए हैं, सो दंगा उनके लिए ख़ास मुद्दा नहीं है क्योकि वो भी जानते हैं की वाजिब से ऊपर किस आशा रखना  उनकी आदत बन चुकी है, मिले न मिले वो बात अलग है. असली मुद्दा मोदी विरोध का है उनका "कान", जो नेतावो से " मुस्लिम मुस्लिम" सुनने का आदि हो चूका है , अभ्यस्त हो चूका है, एसे में मोदी यदि "मेरे प्यारे  भारतीय भाईयों और बहनों"  टाइप का एक सामानता की बात करेंगे  तो निश्चित और लाजिमी  है मुसलमानों का मोदी से भडकना.